लण्ड न माने रीत -7

अगले दिन जब आरती के मम्मी-पापा जा चुके थे.. मैं शाम को करीब साढ़े सात बजे उसके घर पहुँच गया। कुण्डी खटखटाने पर दरवाजा आरती ने ही खोला और मुस्कुरा कर मुझे भीतर आने को कहा और एक तरफ हट गई।

मेरे बैठने के बाद उसने दरवाजे की कुण्डी बंद की और मेरे सामने आकर बैठ गई।
उसने गुलाबी रंग की बिना बाँहों वाली सिल्क की नाइटी पहन रखी थी जो सामने से खुलती थी। गीले से बालों का जूड़ा बांध रखा था.. लगता था कि अभी नहाई थी.. नाइटी पारदर्शी तो नहीं थी लेकिन उसमें से उसके मम्मों के साथ साथ घुंडियों का उभार साफ़ दिख रहा था.. लगता था जैसे उसने नीचे कुछ नहीं पहन रखा था।

‘क्या देख रहे हो बड़े पापा..?’ वो बोली।
‘देख रहा हूँ कि तू पहले से और कितनी सुंदर हो गई है.. गुलाब की तरह खिल उठी है।’ मैं बोला।
‘खिलाया तो मुझे आप ही ने था बड़े पापा..’ वो बोली और हँस दी।

मैं भी हँस दिया और उसके पास जाकर बैठ गया। उसके बदन से भीनी-भीनी सी सुगन्ध उठ रही थी।
मेरा मन बेकाबू हो उठा और मैंने उसे अपने पास खींच लिया और चूमने लगा।

‘अरे रे.. यह क्या बड़े पापा.. यह सब नहीं करना है.. मम्मी बोल के गई थीं कि आपको खाना खिला कर सुला देना है।’
‘सुला देना नहीं.. सुला लेना..’ मैंने कहा।
‘धत्त.. अब कुछ नहीं.. अब मैं पराई हूँ..’ वो बोली।

‘तू तो हमेशा मेरी प्यारी-प्यारी गुड़िया थी और हमेशा रहेगी.. मुझसे पराई कभी नहीं हो सकती।’ कहकर मैंने उसके दोनों मम्मे पकड़ लिए और उसके गालों को चूमने लगा।
उसने ज्यादा विरोध नहीं किया और मुझे अपनी मनमानी करने दी।

‘अब हटो ना.. पहले खाना खा लो.. ये बातें करने को सारी रात पड़ी है।’ वो बोली।
‘अरे खा लेंगे.. जल्दी क्या है.. अभी तो आठ ही बजे हैं.. पहले इस बेचारे का कुछ करो..’ मैंने कहा और उसका हाथ पकड़ के पैंट के ऊपर अपने खड़े लण्ड पर रख दिया।
‘मैं क्या करूँ उसका.. उसे जगाया ही क्यों आपने?’ वो बोली और अपना हाथ हटा लिया।
‘मैंने कुछ नहीं किया.. यह तुझे देख के ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा.. तो मैं क्या करूँ..’
‘आप को जो करना हो करते रहो.. मैं तो जा रही हूँ.. अभी रोटी सेकनी है.. बाकी सब तो तैयार है.. गर्म गर्म खा लेना।’ वो बोली और भीतर चली गई।

मैंने टीवी खोल दिया और यूं ही चैनल बदल-बदल के देखने लगा।

थोड़ी ही देर में आरती वापस आई.. उसके हाथ में व्हिस्की की बोतल और गिलास था।
‘ये लो बड़े पापा.. अपनी शाम रंगीन करो.. आप लोगों की तो रोज की आदत है ना.. मैं पानी लेकर आती हूँ।’ वो बोली।
थोड़ी देर में वो पानी का जग और तले हुए काजू ले आई और मेज पर रख कर चली गई।

मैंने अपना पैग बनाया और टीवी देखते हुए शुरू हो गया।
यहाँ मैं इतना बता दूँ कि आरती ने मुझे बचपन से ही अपने पापा के साथ पीते हुए देखा है.. इसलिये वो मेरे बारे में सब जानती थी।

नौ बजे के करीब आरती ने खाना लगा दिया.. पहला कौर मैंने उसे अपने हाथ से खिलाया.. उसने भी यही किया।
उसने वाकयी खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया था.. ज्यादा तड़क-भड़क वाला नहीं.. सब्जी दाल-चावल रोटी जैसा कि रोज ही घरों में बनता है।
‘कैसा लगा खाना?’ उसने पूछा।
‘बहुत बढ़िया.. पेट तो भर गया लेकिन नीयत नहीं भरी अभी..’ मैंने हँसते हुए कहा।
‘अच्छा.. तो नीयत कैसे भरेगी आपकी?’ उसने पलकें झपकाते हुए पूछा।

‘अब तुझे खाऊँगा.. समूचा.. चाट-चाट कर..’ मैं बोला और उसकी कमर में हाथ लपेट कर अपनी ओर खींच लिया।
‘अच्छा.. देखती हूँ अभी.. आप ऊपर मेरे कमरे में चलो.. मैं ये सब काम समेट कर अभी आती हूँ..’ खुद को छुड़ाती हुई वो बोली।
फिर वो बर्तन समेट कर चली गई।

मैंने इत्मीनान से एक सिगरेट सुलगा ली और हल्के-हल्के कश लगाने लगा.. एक तो शराब का सुरूर ऊपर से यह अहसास कि आरती मेरे साथ घर में अकेली है और कुछ ही देर बाद उसका नंगा बदन मेरी बाँहों में होगा और रात अपनी होगी ही।

ख़ास अहसास ये.. कि लड़की को उसी के घर में.. उसी के बिस्तर में.. चोदना.. एक अलग ही रोमांच देता है.. यह सब सोचकर मेरे लण्ड में तनाव आने लगा।
मुझे लगा कि ये रात मेरी ज़िन्दगी की सबसे हसीन रात होने वाली है।
मैंने पैन्ट के ऊपर से ही छोटू को सहला कर सांत्वना दी कि सब्र कर बच्चू.. अभी थोड़ी देर बाद ही तू आरती की रसीली चूत में गोता लगाएगा.. थोड़ा सा सब्र कर ले..

दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिल रहा होगा.. आपके ईमेल मुझे प्रोत्साहित करेंगे.. सो लिखना न भूलियेगा।
कहानी जारी है।
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