लण्ड न माने रीत -6

अपने गाँव कई साल बाद आया था तो मुझे सब नज़ारा बदला-बदला सा लगा। शहरी सभ्यता का प्रभाव यहाँ भी दिखने लगा था.. लड़के-लड़कियों की वेशभूषा बदली-बदली सी थी, लड़कियाँ पारम्परिक सलवार-कुर्ती की जगह स्टाइलिश कपड़े पहने हुए थीं, कुछ लड़कियों ने जींस-टॉप भी पहन रखा था.. जिस पर दुपट्टा नहीं डाला जाता.. जिस कारण उनके मम्मे भी शहरी छोरियों की तरह अपना आकार प्रकार दर्शा रहे थे। सेल फोन तो जैसे यहाँ भी अनिवार्य हो ही गया था।

आरती से मिलने.. उसे देखने को मैं बेचैन हो रहा था।
क्यों बुलाया था उसने मुझे?
वो मुझसे नाराज़ तो नहीं थी? उस दिन उसके साथ सम्भोग करने के बाद मैं उससे कभी नहीं मिला था।

न जाने क्यों.. मेरे मन में एक अपराध बोध भी था।
आखिर मैंने उसे डरा धमका कर.. ब्लैक मेल करके ही तो उसके बदन को हासिल किया था…
क्या सोचती होगी वो मेरे बारे में? नौकरी की व्यस्तता की वजह से मैं उसकी शादी में भी नहीं जा सका था।

यही सब बातें सोचता हुआ मैं उसके घर की तरफ चला जा रहा था।
उसे देखने का मन में बहुत कौतूहल था… शादी के बाद कैसी लगती होगी वो… अब तो पूरी तरह से खिल गई होगी.. बदन भी खूब भर गया होगा उसका.. क्योंकि शादी के बाद जब लड़की को ‘लेदर-मायसिन’ इंजेक्शन नियमित रूप से लगता है.. तो उसके हुस्न में गज़ब का निखार.. कशिश और आकर्षण आ ही जाता है।

यही सब बातें सोचते-सोचते मैं आरती के घर जा पहुँचा।
वहाँ सब कुछ चिर-परिचित ही लगा, मेरा दोस्त राजा मुझे बाहर वाले कमरे में ही बैठा मिल गया।
मुझे देखते ही गले लग गया.. कुशल-क्षेम पूछने के बाद हम बातें करने लगे।

लेकिन मेरा दिमाग कहीं और था.. कहाँ थी वो..?

कुछ देर यूं ही गप्प लड़ाने के बाद:

‘अरे यार.. पानी-वानी तो पिलवा.. भाभी जी कहाँ हैं? मैं बोला।
‘आरती ओ आरती.. पानी तो लाना बेटा.. देख कौन आया है..!’ राजा ने आवाज लगाई।
‘आई पापा..’ घर के भीतर से सुरीली सी आवाज आई.. और मैं धड़कते दिल से उसका इंतज़ार करने लगा।

कुछ ही देर बाद वो पानी का गिलास लिए आती दिखाई दी।
उसने मुझे चौंक कर देखा और उसके कदम कुछ थम से गए.. वो मुझे आँख भर कर देखने लगी, फिर संभल कर आगे बढ़ी और पानी का गिलास मेरे सामने कर दिया।

‘नमस्ते बड़े पापा.. कैसे हो आप कब आये.. और सब लोग कैसे हैं?’ उसने एक सांस में ही सब कुछ पूछ लिया और मेरे सामने बैठ गई।
वो मुझसे हँस-हँस कर बड़ी आत्मीयता से बात कर रही थी.. इससे इतना तो मैं जान गया कि वो मुझसे नाराज़ नहीं थी।

मैं भी उससे बातें करता जा रहा था.. साथ में उसे जी भर के देख भी रहा था।
उसका रूप यौवन ऐसा खिल उठेगा.. मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.. सुंदर सी मेरून कलर की साड़ी पहन रखी थी उसने.. जो उसके गोरे रंग पर खूब फब रही थी.. कजरारी चंचल आँखें.. रस छलकाते होंठ.. सुराहीदार गर्दन में लिपटा मंगलसूत्र.. जो उजले भारी उरोजों की गहरी घाटी में उतर कर कहीं गुम हो गया था, कसे हुए ब्लाउज में से उसके उभार अलग ही छटा बिखेर रहे थे। मांग में सिन्दूर.. तरह-तरह के सोने के आभूषण पहने थी.. उसकी गोरी कलाइयाँ सोने और कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियों से सजी थीं, बदन भी अच्छा भर गया था..

कुल मिलाकर साक्षात् रति की प्रतिमूर्ति बन गई थी आरती..
‘अरे तुम लोग बातें ही करते रहोगे या इसे कुछ खिलाओगी भी.. जा.. होली पर जो-जो बनाया है.. सब लेके आ..” राजा बोल उठा।
‘खिला-पिला भी दूँगी पापा.. ऐसी भी क्या जल्दी है!’ आरती बोली।
‘अच्छा भई.. तुम लोग बातें करो.. मैं जरा खेतों का चक्कर लगा के आता हूँ.. और सुन.. हम लोग शाम को बैठते हैं.. बढ़िया पार्टी करेंगे..’ राजा मुझसे बोला।

मैंने भी सहमति में सिर हिला दिया.. राजा चला गया.. अब हम लोग कमरे में अकेले थे।

‘आरती तू मुझसे नाराज़ तो नहीं है न?’
‘हूँ.. बहुत नाराज़ हूँ आपसे.. आप मेरी शादी में आशीर्वाद देने भी नहीं आए… क्या मैं ऐसी बेगानी हो गई अब?’
‘नहीं आ सका गुड़िया.. उन दिनों मेरी नई नई नौकरी थी.. बहुत मजबूरियाँ थीं..’
‘अच्छा चलो कोई बात नहीं.. माफ़ किया आपको..’ वो बड़ी नजाकत से बोली और हँसने लगी।

‘आरती.. नाराज़गी वाली बात मैंने उस कारण पूछी थी.. जब हम मिले थे उस तरह.. बगिया में आम के पेड़ पर मचान के ऊपर.. उस बात को लेकर तो कोई गिला-शिकवा नहीं है न?’
मेरी बात सुनकर उसके गाल शर्म से लाल पड़ गए.. फिर बोली- कोई नहीं.. बड़े पापा.. गलती मेरी ही थी.. मुझे उस दिन सहेलियों के साथ वैसी हालत में कोई सगे वाला भी देख लेता.. तो वो भी वही सब करने की सोचता.. आपके साथ करने के बाद मैंने भी खूब सोचा था इस पर.. हमारे बीच वो सब अचानक से ही हुआ था.. आप भी अपने मन में कोई पछतावा मत रखना..

आरती की बात सुनकर मेरे दिल से एक बोझ सा उतर गया और मन प्रफुल्लित हो उठा।
‘अच्छा.. यह बता कि मुझे क्यों बुलवाया तूने?’ मैंने पूछा।

‘बड़े पापा आपने उस दिन मुझे अपना बनाने के बाद कभी मेरी खोज-खबर ली ही नहीं.. मेरा बहुत मन था आपको देखने को.. आपसे फिर से मिलने को..’ वो बोली।
‘मन तो मेरा भी है तुझसे मिलने को.. तभी तो मैं इतनी दूर से खिंचा चला आया.. तेरे एक बुलावे पे..’ मैं बोला।
‘अच्छा तेरी मम्मी कहाँ हैं.. दिखाई नहीं दीं..’
‘मम्मी तो पड़ोस में गई हैं.. आती ही होंगी..’

‘इसका मतलब अभी हम दोनों अकेले हैं यहाँ पर..’ मैंने शरारत से पूछा.. और उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया।
लेकिन वो झट से हाथ छुड़ा के अलग हो गई और मुझे अंगूठा दिखा कर हँस दी..
मेरे बहुत अनुनय-विनय करने.. मनाने पर आखिर मान गई..

अगले ही पल आरती मेरी बाँहों में थी और उसके स्तन मेरे सीने से चिपके हुए थे। हम लोग कुछ देर तक चूमा-चाटी चूसा-चूसी करते रहे।
फिर वो अलग हट गई।
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‘अच्छा.. अब बाकी बातें बाद में करेंगे फुर्सत से.. और सुनो.. मेरे नाना जी का स्वर्गवास हो गया था। पांच-छह महीने पहले.. कल मम्मी-पापा उनके गाँव मिलने जायेंगे.. वो पहली होली पर जाना पड़ता है ना.. दो-तीन दिन बाद लौटेंगे.. तब तक हम अकेले रहेंगे। वो बोली।

यह सुनकर मैं तो ख़ुशी से झूम उठा। आरती के साथ रात भर अकेले रहने को मिलेगा.. ये सोच कर ही पूरे बदन में रोमांच की लहर दौड़ गई।

‘इसका मतलब कल से हम लोग रात-दिन एक साथ रहेंगे.. खूब बातें करेंगे.. है ना?’ मैं चहका।
‘हाँ.. पर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं.. सिर्फ बातें.. और कुछ नहीं.. अब आप बैठो मैं कुछ चाय नाश्ता लाती हूँ।” वो बोली और पायल छनकाती हुई भीतर चली गई।

तभी मुझे सामने के मुख्य दरवाजे से भाभीजी आती दिखाई दीं.. सामान्य शिष्टाचार के बाद हम लोग बातें करने लगे।
आरती भी चाय-नाश्ता लेकर आ गई।

जब मैं उठ कर आने लगा तो भाभी जी बोलीं- कल मैं और आपके दोस्त मेरे मायके जा रहे हैं.. मेरे पिता जी का स्वर्गवास हो गया था। वो होली पर जाना पड़ता है ना.. आरती घर पर अकेली रहेगी। परसों इसकी ननद भी इसके ससुराल से आने वाली है। आप हो सके तो रात को यहीं रुक जाना.. जब तक हम लोग ना आयें.. और हाँ.. आप खाना भी यहीं पर खाना।
यह सुनकर मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगे.. प्रत्यक्षतः मैंने कहा- ठीक है भाभी जी.. जैसी आपकी आज्ञा.. जब तक आप लोग नहीं आते.. मैं रात को यहीं रुकूँगा।

मैंने एक बार मुस्कुरा कर आरती की ओर देखा तो उसने नज़रें झुका लीं और मैं वहाँ से चला आया।

दोस्तो, आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिल रहा होगा.. एक काची माटी को रौंदने की घटना वास्तव में कामप्रेमियों के लिए एक परम लक्ष्य होता है.. खैर.. दर्शन से अधिक मर्दन में सुख मिलता है.. इन्हीं शब्दों के साथ आज मैं आपसे विदा ले रहा हूँ.. अगला भाग जल्द ही प्रस्तुत करूँगा, आपके ईमेल मुझे आत्मसम्बल देते हैं.. लिखना न भूलियेगा।

कहानी जारी है।
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