भाई के लण्ड से चुद कर जीने की आजादी पाई-1

मैंने अभी तक किसी को अपने आपको टच नहीं करने दिया था। हमारे मोहल्ले के सभी लड़के और अंकल मुझे देख कर ‘आहें..’ भरते थे। यह मुझे उनके कमेंट्स से पता चलता था कि मैं कैसी माल हूँ।

मेरे भैया थोड़े पुराने ख्यालों के हैं.. उन्हें घर की औरतों का बहुत मॉडर्न होकर रहना अच्छा नहीं लगता था।
बीएससी करने के नाते मेरा मॉडर्न लड़कियों और लड़कों से काफ़ी मिलना-जुलना था.. जो कि मेरे भैया को पसंद नहीं आता था।

मेरे फिगर के वजह से ही भैया मुझे बहुत ज़्यादा टोका-टाकी करते थे, ‘कहाँ जा रही हो.. क्या कर रही हो..’ वगैरह वगैरह।

बीएससी में जब मैंने एडमिशन लिया.. तब तक मेरे पास कोई स्मार्टफ़ोन नहीं था.. लेकिन मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन लेने के साथ ही कंप्यूटर कोर्स भी ज्वाइन कर लिया था.. जिससे मुझे इंटरनेट के बारे में जानकारी हो गई थी। अब भैया जब कभी भी घर आते थे उनका फोन लेकर मैं गेम खेलने के बहाने ले लेती थी और नेट चलाती थी।

एक बार मैंने उनके मोबाइल की हिस्टरी चैक को किया.. तो पता चला कि भैया अन्तर्वासना पर चुदाई की कहानियाँ पढ़ते थे।
अब ये सब देख कर मेरे मन में कुलबुली मची और चूत फड़कने लगी।

मैं आगे बढ़ती गई तो पता चला कि भैया सबसे अधिक भाई-बहन की सेक्स कहानियाँ पढ़ते थे। इससे पहले मुझे कभी भी उनको देख कर ऐसा नहीं लगा था कि वो ये सब भी करते होंगे। मुझे तो यकीन भी नहीं हो रहा था कि वे इतनी गिरी हुई हरकतें कर सकते हैं।

लेकिन इससे पहले कभी उन्होंने भी मुझे गंदी नज़र से नहीं देखा था कि मैं उन पर शक़ भी करूँ। बल्कि मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि भाई-बहन के भी बीच में सेक्स होता होगा।

उस रात मैं सो नहीं पाई.. मैं सारी रात जाग कर भाई-बहन की सेक्स कहानियाँ पढ़ती रही। सारी रात सेक्स कहानियों को पढ़ने का असर कुछ ऐसा हुआ कि मेरी पैन्टी भीग गई और मेरा हाथ पैन्टी में कब चला गया.. मुझे खुद मालूम ही नहीं चला।

मैंने एक छोटी उंगली अपनी चूत में डाल ली.. तो मुझे बहुत गुदगुदी का एहसास हुआ और मेरी उत्तेजना और भी बढ़ती गई। मैंने अपनी दूसरी उंगली भी चूत में डाल ली और अपनी चूत में फिंगरिंग करने लगी।

मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.. अब मैं सातवें आसमान में पहुँच चुकी थी।
फिर थोड़ी देर बाद चूत में से कुछ चिपचिपा सा पदार्थ निकला और उसके निकलते ही मैं निढाल हो गई।
शायद इसी को लड़कियों का स्खलन बोलते हैं।

सुबह हो चुकी थी.. मैंने जैसे-तैसे अपने कपड़े सही किए और सो गई.. और सुबह देर में उठी।
मम्मी ने जगा कर मुझे चाय दी। उस दिन सुबह में काफ़ी रिलेक्स फील कर रही थी।

दूसरे दिन मुझे फील हुआ.. जिन किस्मत वाली चुदक्कड़ों को रात में लंड मिलता होगा.. वो सुबह कितना ताजी रहती होंगी। खैर मेरे मन में भैया को लेकर कोई ग़लत विचार अब भी नहीं आए थे।

मैंने भैया को पहले भी नोटिस किया था कि वो जब भी छुट्टियों में घर आते थे.. कोई ना कोई सामान ढूँढने को लेकर मेरे कमरे में ज़रूर आ जाते थे।
उसके बाद मैं नोटिस करती थी कि मेरी ब्रा-पैन्टी मेरे रखे हुए जगह पर नहीं मिलती थीं, वो थोड़ी बहुत इधर-उधर ज़रूर रखी मिलती थीं।
मैं भी जानती थी कि ये भैया का काम है.. लेकिन मैं जानबूझ कर इग्नोर कर देती थी कि मेरी ये हॉट फिगर देख कर उनका भी खड़ा होता होगा.. जाने दो.. जो भी कर रहे हैं.. करने दो!

जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं बनारस के पास एक छोटे से गाँव की रहने वाली.. खुले विचारों की लड़की हूँ। अब मेरा भी मन बाहर निकलने को हो रहा था.. आख़िर कब तक मैं उसी कुएँ में रहती।
मैं अब पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना चाहती थी क्योंकि भैया कहते थे कि घर से ही अपडाउन करके बनारस से पढ़ाई कर लो.. लेकिन मुझे पीजी की कोचिंग करनी थी.. जो कि एमएससी एंट्रेन्स के लिए जरूरी होती है। उसकी कोचिंग बनारस में नहीं थी.. तो मैं दिल्ली जाने की ज़िद करने लगी।

मम्मी-पापा ने भैया के ऊपर छोड़ दिया- अगर वो ज़िम्मेदारी ले ले.. तब हम तुम्हें दिल्ली जाने देंगे।
लेकिन मुझे पता था कि भैया काफ़ी पुराने ख्यालों के हैं.. इसलिए वो मुझे नहीं जाने देंगे।

दोस्तो, असली कहानी अब शुरू होती है..

मेरे मन में एक विचार आया कि आख़िर मैं भी इतनी हॉट हूँ.. अगर मैंने भैया को सिड्यूस करके उनसे चुदवा कर अपने बस में कर लिया.. तो मेरा सारा काम मस्त हो जाएगा.. फिर ना तो मुझे कोई रोकने वाला होगा.. और ना मुझे टोकने वाला रह जाएगा।

होली का मौका था.. भैया घर आए थे। उस टाइम ना तो ज़्यादा ठंडी पड़ती है.. ना ज़्यादा गर्मी.. भैया आँगन में सोते हैं। वहाँ से खिड़की से मेरे कमरे में आराम से दिखाई देता है। मैंने उन्हें दिखाने के लिए जानबूझ कर अपनी खिड़की खुली छोड़ दी। मम्मी-पापा छत पर ऊपर के कमरे में सोते थे.. तो उनके आने का कोई डर नहीं था।

मैंने भैया का स्मार्टफ़ोन आज फिर ले लिया था। अब मैं एक पतला सा नाइटड्रेस पहन कर.. बिना ब्रा-पैन्टी के ही लेट गई।

मैं आज ऑनलाइन ब्लू-फिल्म देखने लगी और वो वीडियो भी ऐसा था कि भाई-बहन वाला.. जिसमें लड़की का भाई अपनी बहन को अपने दोस्त के साथ चोद रहा था।

वीडियो देखते-देखते में अपनी चूचियों को मसलने लगी.. उनको सहलाने लगी, मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई।
उस ब्लू-फिल्म में भाई जब बहन को चोद रहा था.. तो बहन दोस्त का लंड मुँह में लेकर चूसने लगती थी और फिर कुछ देर बाद दोस्त का लंड चूत में और भाई का लंड मुँह में लेकर चूसती थी।
वो लड़की बिल्कुल मेरी तरह ही मस्त थी.. लेकिन फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि आज वो चुदवा रही थी और मैं देख रही थी।

ब्लू-फिल्म के चलते-चलते मैंने अपनी गाण्ड में भी उंगली की और चूत में भी मजा लिया।
अब तो आदत ऐसी हो चुकी थी कि चूत में उंगली करने के बाद मैं अपनी उंगली मुँह में लेकर ज़रूर चूसती थी।
मैं अपनी फीलिंग नहीं बता पा रही हूँ कि मैं उंगली करते और चूसते हुए कितना मस्त हो गई थी।

अब वो वीडियो ख़त्म हुआ.. पर मेरा मन नहीं भरा था.. तो अब मैं भाई-बहन की मस्त चुदाई की कहानियाँ पढ़ने लगी।

दोस्तो.. कहानी पढ़ने में मुझे जितनी उत्तेजना आती है.. उतना ब्लू-फिल्म देख कर नहीं आ पाती है।
मैंने कहानी पढ़ते हुए सिसकारियाँ लेना शुरू कर दी थीं.. और कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते फिर से ना जाने कब मेरा हाथ मेरी चूत पर चला गया.. मुझे पता भी नहीं चला। मैं फिर वही मादक आवाजें निकालने लगी।

‘उनन्ह.. उन्ह.. आह.. ऑश.. मर गइईईई..’

कुछ देर बाद अचानक मेरी दो उंगलियाँ चूत में चली गईं.. और मुझे कुछ पता भी नहीं चला.. कि मेरी आवाज़ और तेज हो गई और मैं जोर-जोर से बकबकाने लगी- और चोदो.. चोदो मुझे.. पूरा घुसा दो.. उहह.. अहह.. फक मी.. फक..
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैं सचमुच बताऊं तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। अन्तर्वासना की ये कहानियाँ इतना उत्तेजित करने वाली थीं कि मैं अपनी उत्तेजना नहीं रोक पाई। कहानी भाई-बहन की होने के नाते मेरे मुँह से ‘भैया.. भैया..’ ही निकल रहा था।

अब मैं एकदम अपनी चरम पर थी और बड़बड़ा रही थी- चोदो भैया.. अब और ना तड़फाओ.. चोद डालो.. अपनी इस छिनाल बहन को.. रंडी बना दो..
ऐसा कहते हुए एकाएक मेरा स्खलन हो गया.. और मैं शांत हो कर सो गई।

जब मैं सुबह उठी.. तो मुझे तो पता नहीं कि रात में मेरी आवाज़ भैया ने सुनी कि नहीं।

नाश्ता वगैरह करने के बाद मैं नहाने चली गई और जानबूझ कर अपनी ब्रा-पैन्टी बाथरूम में छोड़ कर चली आई।
मेरे निकलने के कुछ देर बाद भैया बाथरूम में घुस गए।

जब काफ़ी देर तक वे नहीं निकले.. तो मुझे कुछ शक हुआ तो मैं बाथरूम के पास गई। मुझे कुछ सिसकारियाँ सुनाई पड़ रही थीं।

काफ़ी देर बाद जब भैया बाथरूम से निकले.. तो मैं अपने कपड़े लेने बाथरूम में घुस गई। मुझे अपनी ब्रा-पैन्टी की हालत देख कर यकीन हो गया कि मेरा हथौड़ा निशाने पर लग चुका है।
मेरी पैन्टी के ऊपर भैया के वीर्य का चिपचिपा पदार्थ लगा था।
मैं भी प्यासी थी.. उसको चाट कर साफ कर गई।

मेरे मन में यह बात घुस चुकी थी कि मुझे किसी तरह से अपनी चूत की चुदाई करवानी है और साथ ही एक आजाद पंछी की तरह मैं खुले आसमान में उड़ना चाहती थी।

आगे लिखूँगी कि मेरा मकसद कैसे मुकाम पर पहुँचा। आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।
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