स्वाति भाभी की अतृप्त यौनेच्छा का समाधान -1

हम चारों आँगन वाले बड़े कमरे में रहते थे और नीचे एक हाल.. जिसमें रात को मालिक काका सोते थे.. और एक रसोई घर था। ऊपर दो बेडरूम थे.. जो अलग-अलग से एक ही गैलरी में खुलते थे। सबसे अच्छी बात ये थी कि परिवार के लिए टॉयलेट नीचे था और हमारे लिए ऊपर था।

मालिक के दोनों बेटे लगभग हमारी ही उम्र के थे.. तो वो हमारे अच्छे दोस्त बन गए थे। हमारी शाम की मेस भी उन्हीं के पास थी। बड़े बेटे की बीवी जिसका नाम स्वाति है.. और एक बूढी नौकरानी मिल कर सबका खाना बनाया करते थे। स्वाति को हम सब भाभी ही कहते थे।
हम चारों में मैं ही थोड़ा टेढ़ा सोचने वाला था और बाक़ी सारे और वो दोनों भाई बहुत ही शरीफ किस्म के थे।

जब मैं पहली बार रूम देखने आया था तो बस उस स्वाति भाभी को देखकर ही रूम फाइनल किया था। ये सब मेरे दोस्तों को कुछ भी समझ नहीं आया था।
भाभी के बारे में क्या बताऊँ.. वो तो असली भारतीय नारी थी। रंग एकदम गोरा.. चेहरा हसीन.. लम्बे घने काले बाल कमर तक.. माथे पर लाल टीका.. पतला शरीर.. ज़रूरी साइज़ के मम्मे और उठी हुई गाण्ड.. एकदम कामसूत्र की हीरोइन लगती थी वो मुझे..

मैं जब भी उसे जी भर के देख लेता.. तब अलग-अलग स्टाइल में लंड हिला-हिला कर थक जाता था। कभी वो रूम के साइड में कपड़े धोते रहती.. तो कभी आँगन के चूल्हे पर रोटियाँ बनाती.. तो कभी बच्चे को लेकर आँगन में खिलाती।
कभी-कभी ये मौके दोस्तों की वजह से गंवाने भी पड़ते थे.. लेकिन एक ऐसा मौका था.. जो मेरा फेवरेट था.. और वो था.. जब वो सूरज निकलने से पहले आँगन में रंगोली बनाती थी।

मैं दरवाज़े के करीब ही सोता था और इन सभी आलसियों से पहले उठता और थोड़ा सा दरवाज़ा खोलकर स्वाति भाभी को निहारता रहता। वो मेरी वासना भरी नज़रों से अनजान अपनी ही धुन में घूम-घूम कर रंगोली बनाती।
मुझे कभी उसके गीले बाल दिखते.. कभी चेहरा.. कभी मम्मों के बीच की दरार.. कभी थिरकती गाण्ड.. तो कभी ब्लाउज से झाँकती पीठ..
ये सब देखकर मेरा लौड़ा ‘टन’ से खड़ा हो जाता और मैं ज़ोर-ज़ोर से हिला-हिला कर अपना माल निकाल देता।

यह सब मेरा हर रोज़ का कार्यक्रम था और फिर मैं फ्रेश होने जाता।
जब कॉलेज के लिए निकलता.. तो स्वाति चाय के लिए बुलाती और फिर हम चाय पीकर निकल जाते।

मुझे स्वाति भाभी की आदत पड़ गई थी। छुट्टी के दिन मेरे सारे दोस्त अपने अपने गाँव चले जाते.. लेकिन मैं रूम में ही पड़ा रहता था। तब दिन भर जितने मौके मिलते.. उतने सारे मज़े में गुज़ार देता था।
फिर मेरे दिमाग में अजीब अजीब ख़याल आते थे.. क्यूंकि छुट्टी के दिन घर पर सिर्फ स्वाति भाभी और राकेश ही रहते थे.. लेकिन मैंने देखा कि छुट्टी के दिन भी इतनी जबरदस्त माल साथ होने पर भी राकेश कभी दरवाज़े बंद करके उसे दिन बेडरूम में ले जाकर चोदता नहीं था और घर पर भी रिपेयरिंग का काम करता रहता।

मुझे ऐसा लगने लगा शायद स्वाति कि प्यास नहीं बुझती थी। मुझे बस इसी बात का फायदा उठाना था लेकिन कन्फर्म करने के लिए मैंने राकेश के सामने ऐसे ही बात छेड़ दी।

मैं- राकेश भाई.. मेरे एक दोस्त की शादी हो रही है.. वो कहता है कि वो उसकी बीवी को दिन-रात जब भी मौका मिलेगा.. चोदेगा और मज़े करेगा।
राकेश- अरे साहिल तुम लोग न पागल हो.. भला ऐसा कभी होता है क्या? ये सिर्फ बोलने की बातें हैं, बहुत मुश्किल होता है.. सब काम और परिवार सम्भाल कर मज़े करना। मुझे तो शायद ऐसा नहीं लगता।

मैंने राकेश की बात ध्यान में ली और अपने टेढ़े दिमाग को काम पर लगा दिया। स्वाति भाभी को इस चूतिये से अच्छा और मस्त और फुल चोदने का सोचने लगा।

मैं पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर गया। अगले ही दिन मैं सुबह उठकर जो करता था.. उसे थोड़ा बदल दिया। मैं चाहता था कि आग दोनों तरफ लगे।
जब भी मैं उठता तो पहले स्वाति को इसका पता चले, ऐसा कुछ करता था, जैसे कमरे की लाइट जला देना, दरवाज़ा खोल कर मोबाइल में कुछ देखना।

वो इस समय आँगन में बिल्कुल अकेली रहती थी.. तो उसका ध्यान थोड़ा-थोड़ा मेरी तरफ जाने लगा।
कभी-कभी मैं आँगन में ब्रश करने भी बैठने लगा।
धीरे-धीरे वो कभी-कभी मुझे स्माइल देने लगी। मैं भी उसकी रंगोली की तारीफ़ इशारों से करने लगा।
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फिर एक दिन मेरे शैतानी दिमाग में ख़याल आया कि ये अकेली करीब 5 बजे उठ कर नीचे आती है.. और फिर टॉयलेट.. नहाना और बाक़ी सब करके रंगोली बनाने आती है.. तो क्यों न बाथरूम की खिड़की से इसके नंगे बदन के दीदार शुरू कर दें?

ऊपर जाने की सीढ़ियों के नीचे टॉयलेट था और उसके साइड में बाथरूम था। झक्कास बात तो ये थी कि टॉयलेट के दरवाज़े से देखो तो बाथरूम की खिड़की दिखती थी.. जो कि सीमेंट की जाली थी जिसको आप पूरी तरह से बंद नहीं कर सकते। मैं जल्द ही उठ गया। आगे का सोचकर ही लौड़ा खड़ा हो गया था। मैंने पूरा संयम रखा.. स्वाति टॉयलेट से निकल कर बाथरूम में जाने तक..

जैसे ही वो बाथरूम में गई.. मैं दबे पाँव नीचे झ़ुक कर टॉयलेट में घुस गया। घना अँधेरा था और बाथरूम की लाइट जल रही थी। मैं उसे दिखाई नहीं दे रहा था.. पर मुझे उसकी नाभि तक का सारा पिक्चर क्लियर दिख रहा था। वो कुछ गुनगुना रही थी।

उसने गरम पानी में ठन्डे पानी का नल खोल दिया और कपड़े उतारने लगी। पहले उसने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। मैंने देखा तो मेरे कान गर्म हो गए थे और तना हुआ लौड़ा बरमूडे से निकलकर मेरे हाथ में आ गया था। फिर उसने ब्लाउज के हुक निकालना शुरू किया।
जैसे हुक खुलते रहे.. वैसे मेरी लौड़ा हिलाने की स्पीड बढ़ती गई।

फिर मैंने सोचा कि थोड़ा कण्ट्रोल करूँ और रुक गया। वो अपने ही मूड में थी और उसने ब्रा निकाली और साड़ी घुमाकर निकालने लगी। अब वो बस पेटिकोट में थी।
मैंने एक नज़र भर उसे देखा और फिर लौड़ा हिलाना शुरू किया.. तब वो मुँह में हेयरबैंड पकड़ कर अपने हाथ उठाकर बाल बाँध रही थी।

स्वाति को इस रूप में देखकर मेरी आँखें फट रही थीं। लौड़ा क्या.. मेरा पूरा बदन गरम होकर जोश मारने लगा।
तभी उसने पेटिकोट की गाँठ खोल दी।

मेरे तो होश ही उड़ गए। पतली कमर और उस पर चूत के ऊपरी हिस्से के छोटे-छोटे बाल देखने में उत्तेजना बढ़ रही थी।
उसके नीचे का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

वो झट से नहाने के लिए नीचे बैठ गई। मेरा लौड़ा आखरी पड़ाव पर आ चुका था और मैंने टॉयलेट में गरमा गरम पिचकारी मार दी। फिर धीरे से कमरे में वापस आ गया और चुपचाप सो गया।
कुछ शक न हो इसलिए अपने टाइम पर उठकर अपने काम निपटाकर मैं कॉलेज चला गया।

सारा दिन कॉलेज में मेरे लौड़े ने मुझे चैन से काम करने नहीं दिया।

दोस्तो, मैंने इस घटना को पूरी सच्चाई के साथ लिखा है और मुझे लगता है कि आपको मेरी इस घटना को पढ़ने में मजा आ रहा होगा। अपने विचारों को मुझ तक भेजने लिए मुझे ईमेल जरूर करें।

कहानी जारी है।
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