मेरी चालू बीवी-55

अरविन्द अंकल की किस्मत उन पर पूरी मेहरबान थी.. वो सलोनी को पूर्णतया नग्न अवस्था में देख चुके थे, उसके सभी अंगों को भरपूर प्यार कर चुके थे …

सबसे बड़ी बात… वो जब दिल चाहे उनसे मजे लेने आ जाते थे…

अभी कुछ देर पहले ही मेरे सामने उन्होंने सलोनी के हर अंग… मतलब उसकी रसीली चूचियों को सहलाते हुए ब्लाउज पहनाया था.. उसकी सफ़ेद, गोरी केले जैसी चिकनी जाँघों, चूत और चूतड़ सभी को अच्छी तरह छूकर, सहलाकर और रगड़कर पेटीकोट पहनाया, फिर उसका नाड़ा बाँधा..

और अंत में पूरे शरीर को ही रगड़ते हुए उसके एक एक कटाव का मजे लेकर साड़ी बाँधी..

वो सब तो फिर भी ठीक पर उस सपनों की रानी के गरमागरम कोमल हाथों में अपना लण्ड दे दिया… और फिर उन्ही हाथों में वीर्य विसर्जन…

इतना सब देखने के बाद जब मैंने फिर से उनकी इच्छा सलोनी की नंगी चूत के चुम्मे की सुनी… और वो उसकी साड़ी को ऊपर करने लगे..

जहाँ मुझे पता था कि सलोनी ने कच्छी भी नहीं पहनी है…

मैं तुरंत अपनी उपस्थिति बताने के लिए पहले मेन गेट तक गया और तेजी से दरवाजे को खोलते हुए ही अंदर आया..

मैं बिल्कुल नहीं चाहता था कि उनको जरा भी पता चले कि मुझे उनके किसी भी रोमांस की जरा सी भी भनक है..
मैं- सलोनी ओ जान… तुम आ गई.. कहाँ हो..??
मैं सीधे बेडरूम के परदे तक ही आ गया..

मैं देखना चाहता था.. दोनों मेरे बेडरूम में अकेले हैं.. वो दोनों मुझे अचानक देखकर कैसा रियेक्ट करते हैं..

मगर परदा हटाते ही मैंने तो देख लिया.. किन्तु उन्होंने मुझे देखा या नहीं.. पता नहीं…

मेरे दरवाजे तक जाने तक ही अंकल ने सलोनी को बिस्तर के किनारे पर लिटा दिया था..

मैंने देखा अंकल भौचक्के से उठकर सलोनी को बोल रहे थे- जल्दी सही हो जाओ.. लगता है नरेन् आ गया.. ओ बाबा..

और सलोनी बिस्तर के किनारे पीछे को लेटी थी… उसके दोनों पैर मुड़े हुए किनारे पर रखे थे और पूरे चौड़ाई में खुले थे..

उसकी साड़ी, पेटीकोट के साथ ही कमर से भी ऊपर होगी..क्योंकि एक नजर में मुझे केवल सलोनी की नंगी टाँगें और हल्की सी चूत की भी झलक मिल गई थी..

मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि वो चुम्मा ले चुके थे या केवल साड़ी ही ऊपर कर पाये थे !

मैं एकदम से पीछे को हो गया !

तभी मुझे सलोनी के बिस्तर से उठने की झलक भी दिखाई दी, दो सेकंड रूककर जब मुझे लगा कि अब दोनों सही हो गए होंगे, मैंने कमरे में प्रवेश किया …

अंकल का चेहरा तो फ़क सफ़ेद था, मगर सलोनी सामान्य तरीके से अपनी साड़ी सही कर रही थी…

सलोनी- ओह जानू आप आ गए.. बिल्कुल ठीक समय पर आये हो.. देखो मैं कैसी लग रही हूँ?

मेरे दिल ने कहा- ..हाँ जान सलोनी.. तुम्हारे लिए तो सही समय पर आया हूँ… पर अंकल को देखकर बिल्कुल नहीं लग रहा कि मैं ठीक समय पर आया हूँ … बहुत मायूस दिख रहे हैं बेचारे… उनके चेहरे को देखकर ऐसा ही लग रहा था जैसे बच्चे के हाथ से उसकी चॉकलेट छीन ली हो..

वैसे गर्मी इतनी है कि आइसक्रीम का उदाहरण ज्यादा सटीक रहेगा…

मैं- वाओ जान.. आज तो बिल्कुल क़यामत लग रही हो.. मैं तो हमेशा कहता था कि साड़ी में तो मेरी जान कत्लेआम करती है..

सलोनी- हाँ हाँ रहने दो… आपको तो हर ड्रेस देखकर यही कहते हो… आपको पता है न मेरी जॉब लग गई है…

मैंने तुरंत आगे बढ़कर सलोनी को सीने से लगा एक चुम्मा उसके होंठों पर किया ..

यह मैंने इसलिए किया कि अंकल थोड़ा नार्मल हो जाएँ वरना इस समय अगर मैं जरा ज़ोर से बोल देता तो कसम से वो बेहोश हो जाते..

क्योंकि दिल से वाकयी अरविन्द अंकल बहुत अच्छे इंसान हैं.. और हाँ मेरी नलिनी भाभी भी …

मैं- हाँ जान… तुमको बहुत बहुत बधाई.. चलो अब तुम बिल्कुल बोर नहीं होगी… यह बहुत अच्छा हुआ…

सलोनी- लव यू जान.. और हाँ वहाँ साड़ी पहनकर ही जाना है और अंकल ने मेरी बहुत हेल्प की है..

अंकल- अरे कहाँ बेटा, बस जरा सा तो बताया है… बाकी तो तुमको आती ही है… अच्छा अब तुम दोनों एन्जॉय करो, मैं चलता हूँ…

मैं- अरे अंकल रुको ना… खाना खाकर जाना…
सलोनी- पर मैंने अभी तो कुछ भी नहीं बनाया..
मैं- तो बना लो ना… या ऐसा करते हैं कहीं बाहर चलते हैं…

अंकल- अरे बेटा… मैं तो चलता हूँ.. मैं तो सादा खाना ही खाता हूँ.. और नलिनी भी इन्तजार कर रही होगी…
सलोनी- ठीक है अंकल, थैंक्यू… और हाँ सुबह भी आपको हेल्प करनी होगी.. अभी तो एकदम से मेरे से नहीं बंधेगी.. यह इतनी लम्बी साड़ी…
अंकल- अरे हाँ बेटा, जब चाहे बुला लेना…
अंकल चले गये…

सलोनी- हाँ जानू, चलो कहीं बाहर चलते हैं खाने पर.. पर कहाँ ..???
मैं- चलो, आज अमित के यहाँ ही चलते हैं… वो तो आया नहीं… हम ही धमक जाते हैं साले के यहाँ..
सलोनी- नहीं जानू कहीं और… बस हम दोनों मिलकर सेलिब्रेट करते हैं… किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में चलते हैं..

मैं- ओके, मैं बस दो मिनट में फ्रेश होकर आया… और हाँ तुम यह साड़ी पहनकर ही चलना..
सलोनी- नहीं जान.. यह तो कल स्कूल पहनकर जाऊँगी.. कुछ और पहनती हूँ.. (मुझे आँख मारते हुए) ..सेक्सी सा…
मैं- यार, एक काम करो तुम, ड्रेस रख लो.. गाड़ी में ही बदल लेना आज…

और बिना कुछ सुने मैं बाथरूम में चला गया, अब देखना था कि सलोनी ड्रेस बदल लेती है या फिर मेरी बात मानती है।
बाथरूम में 5 मिनट तक तो मैं यह आहट लेता रहा कि कहीं अंकल फिर से आकर अपना अधूरा कार्य पूरा तो नहीं करेंगे?
मगर मुझे कोई आहट नहीं मिली…

दोनों ही डर गए थे… अंकल तो शायद कुछ ज्यादा ही कि मैंने कहीं कुछ देख तो नहीं लिया या मुझे कोई शक तो नहीं हो गया।
हो सकता है कि अंकल तो शायद डर के मारे 1-2 दिन तक मुझे दिखाई भी ना दें…

करीब 15 मिनट बाद मैं बाथरूम से बाहर निकल कर आया तो सलोनी सामने ही अपनी साड़ी की तह बनाते नजर आई।
मैं थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया कि मेरे कहने के बावज़ूद भी उसने कपड़े क्यों बदले ..??
क्या वो खुद मस्ती के मूड में नहीं थी? या मुझे अभी भी अपनी शराफत दिखा रही थी?

मैं तो यह सोच रहा था कि वो खुद रोमांच से मरी जा रही होगी कि कैसे अपनी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट खुद चलती गाड़ी में निकालेगी और दूसरी ड्रेस पहनेगी ..

मैं खुद बहुत ही ज्यादा रोमांच महसूस कर रहा था कि आसपास से गुज़रने वाली गाड़ियाँ और पैदल चलने वाले लोग उसके नंगे बदन या नंगे अंगों को देख कैसे रियेक्ट करेंगे…

मगर सलोनी ने तो सब कुछ एक ही पल में ख़त्म कर दिया था… उसने अपनी ड्रेस घर पर ही बदल ली थी…
और ड्रेस भी उसने कितनी साफ़ सुथरी पहनी थी.. फुल जीन्स और लगभग सब कुछ ढका हुआ है.. ऐसा टॉप…

ऐसा नहीं था कि इन कपड़ों में कोई सेक्स अपील न हो…
उसकी चूचियों के उभार और टाइट जीन्स में चूतड़ों का आकार साफ़ दिख रहा था… मगर एक मॉडर्न परिवार की संस्कारी बहू जैसा ही… जैसा अमूमन सभी लड़कियाँ पहनती हैं..
जबकि सलोनी तो बहुत सेक्सी है… वो तो काफी खुले कपड़ों में भी बाजार जा चुकी है..

जब वो दिन में मिनी स्कर्ट पहनकर बाजार जा सकती है.. अब तो रात है… और वो भी अपने पति के साथ ही जा रही है…
मेरा चेहरा कुछ उतर सा गया…
सलोनी- आप कपड़े यहीं पहनकर जाओगे या कुछ और निकालूँ?

मैं- बस बस रहने दो… तुमसे वही पहनकर चलने को कहा था, वो तो सुना नहीं… और मेरे साथ चल रही हो.. एक रोमांटिक डिनर पर… ऐसा करो बुर्का और पहन लो..
सलोनी- ओह मेरा सोना.. मेरा बाबू.. कितना नाराज होता है..

सलोनी को शायद कुछ समय पहले हुई हरकत का थोड़ा सा अफ़सोस सा था, वो अपना पहले वाला पूरा प्यार दिखा रही थी..
उसने मुझे अपने गले से लगा लिया.. मुझे चिपकाकर उसने मेरे चेहरे पर कई चुम्बन ले दिए…
मैं- बस बस… रहने दो यार.. जब हम रोमांटिक होते हैं तो तुम जरुरत से ज्यादा बोर हो जाती हो..

सलोनी- क्या कहा.. मैं और बोर? नहीं मेरे जानू… तुम्हारे लिए तो मेरी जान भी हाजिर है.. तुम जैसा चाहो, मैं तो बिल्कुल वैसे ही रहना चाहती हूँ..
मैं- तो ये सब क्या पहन लिया?? तुम्हारे पास कितने सेक्सी ड्रेसेज़ हैं.. कुछ बढ़िया सा नहीं पहन सकती थीं?
सलोनी- मेरे जानू, तुम बोलो तो फिर से साड़ी पहन लेती हूँ..

मैं- हा हा… फिर तो कल का लंच ही मिल पायेगा.. मुझे पता है तुम कितनी परफेक्ट हो साड़ी पहनने में..
सलोनी- हाँ यह तो है.. अब आप बताओ.. जो कहोगे वो ही पहन लूँगी !
बिस्तर पर सलोनी की 2-3 ड्रेसेज़ और भी पड़ी थी..

मैंने उसकी एक सफ़ेद मिनी स्कर्ट ..जिसमे आगे और पीछे बहुत सेक्सी पिक्चर भी थी.. और एक लाल ट्यूब टॉप लिया जो केवल चूचियों को ही ढकता है…
सलोनी ने मेरे हाथ से दोनों कपड़े झपटने लेने की कोशिश की- लाओ ना, मैं अभी फटाफट बदल लेती हूँ..

मैं- अरे छोड़ो यार ये तो अब… मैंने कहा था ना… चलो गाड़ी में ही बदल लेना…
सलोनी- अरे गाड़ी में कैसे… क्या हो गया है आपको जानू?? सब देखेंगे नहीं क्या ..??
मैं- अरे कोई नहीं देखेगा यार.. चलती गाड़ी में ही कह रहा हूँ ना कि खुली सड़क पर…
सलोनी- मग्गरर..

मैं- कोई अगर मगर नहीं यार.. अगर थोड़ा बहुत कोई देखता भी है तो हमारा क्या जायेगा… उसका ही नुक्सान होगा…हा हा हा हा…
मैंने आँख मारते हुए उसको छेड़ा !

अबकी बार सलोनी ने कुछ नहीं कहा, बल्कि हल्के से मुस्कुरा दी बस !

हम दोनों जल्दी से फ्लैट लॉक करके गाड़ी में आकर बैठ गये और थैंक्स गॉड कि कोई रोकने टोकने वाला नहीं मिला।
सलोनी- तो कहाँ चलना है?
मैं- बस देखती रहो…

मैंने सोच लिया था आज फुल मस्ती करने का…
मैं सलोनी को अब अपने से पूरी तरह खोलना चाह रहा था इसलिए मैंने नाइटबार-कम-रेस्टोरैंट में जाने की सोची।

वो शहर के बाहरी छोर पर था और करीब 4 किलोमीटर दूर… वहाँ बार-डांसर भी थीं जो काफी कम कपड़ों में सेक्सी डांस करती हैं.. खाना और ड्रिंक सब कुछ मिल जाता है…
और कपल्स भी आते थे… इसलिए कोई डर नहीं है…

मैंने पहले भी सलोनी के साथ कई बार ड्रिंक किया था.. मुझे पता था वो हल्का ड्रिंक पसंद करती है मगर उसको पीने की ज्यादा आदत नहीं है।

शहर के भीड़ वाले एरिया से बाहर आ मैंने सलोनी को बोला- जान, अब कपड़े बदल लो !
सलोनी आसपास आती जाती गाड़ियों को देख रही थी ..
सलोनी- ठीक है.. पर हम जा कहाँ रहे हैं?
मैं- अरे यार, देख लेना खुद जब पहुँच जायेंगे !

सलोनी बिना कुछ बोले अपने टॉप के बटन खोलने लगी।
मैंने जानबूझकर गाड़ी की स्पीड कुछ कम कर दी जिसका सलोनी को कुछ पता नहीं चला।

कहानी जारी रहेगी।