आधी हकीकत आधा फसाना-2

अब ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.. सब कुछ अच्छा ही चल रहा था, मेरे मन में किमी के लिए कोई गलत बात नहीं थी, फिर भी था तो मैं जवान लड़का ही।

ऐसे ही एक दिन रात को किमी अपने कमरे में जल्दी सोने चली गई और मैंने अपने मोबाइल पर अन्तर्वासना की कहानी पढ़नी शुरू कर दी। कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा हथियार फुंफकारने लगा, मैं इस वक्त हॉल में ही बैठा था, मैं अपने निक्कर के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा।

मेरी उत्तेजना बढ़ती गई और मैं लंड को निक्कर से बाहर निकाल कर मसलने लगा और जोर-जोर से हिलाने लगा, मैं झड़ने ही वाला था कि किमी अचानक हॉल में आ गई, मैं कुछ ना कर सका। किमी ने नजरें चौड़ी करके सलामी देते और हाँफते हुए मेरे नन्हे शहजादे को देखा।

आप सभी को झड़ने के वक्त क्या बेचैनी रहती है.. इसका पता ही होगा, शायद मैं भी उस सुखद एहसास के चक्कर में सब कुछ भूल गया था और मैंने उसके सामने ही चार-पांच झटके और लगा दिए। फिर मेरा सैलाब फूट पड़ा.. कुछ बूँदें छिटक कर किमी के चेहरे पर तक चली गईं। ये सब महज चंद सेकंड में हुआ।

फिर किमी ने ‘सॉरी..’ कहा और कमरे में वापस चली गई।

मुझे रात भर नींद नहीं आई, मेरी गलती पर भी किमी ने खुद ‘सॉरी’ कहा, यह सोचकर मुझे खुद पर बहुत शर्म आ रही थी, सुबह उठ कर मैं किमी से नजर नहीं मिला पा रहा था।

किमी मेरे से बड़ी थी इसलिए वो मेरी हालत समझ गई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- संदीप.. रात की बात मैं भूल चुकी हूँ, तुम भी भूल जाओ, जवानी में ऐसी हरकतें अपने आप ही हो जाती हैं। मेरे लिए तुम कल जितने अच्छे थे.. आज भी उतने ही अच्छे हो।

उसके मुंह से इतनी बातें सुनकर मेरे मन का बोझ हल्का हुआ, फिर मैंने मौका अच्छा जानकर किमी से कह दिया- बूढ़ी तो तुम भी नहीं हुई हो.. तो क्या तुम्हारे लिए भी ये आम बात है?

किमी मेरे सवाल से चौंक गई और उसने मुझे घूर कर देखा, मैं डरने लगा कि मैंने फिर गलत तार तो नहीं छेड़ दिया।
उसने सोफे पर बैठते हुए मुझसे पूछा- आज कौन सा दिन है?
मैंने कहा- आज तो सन्डे है, पर पूछ क्यूं रही हो?

तो उसने कहा- क्योंकि आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी बताती हूँ, कहानी लंबी है इसलिए छुट्टी की पूछ रही थी। उस दिन भी तुमने मेरे आत्महत्या के प्रयासों के बारे में पूछा था ना? असल में यही सबसे बड़ा कारण है।
मैंने कहा- मैं समझा नहीं!
उसने कहा- तुम ऐसे समझोगे भी नहीं.. पूरी कहानी सुनोगे, तब ही समझ पाओगे।

उसने बोलना शुरू किया.. उसने जो कुछ भी बोला, वो एकदम साफ़ शब्दों में कहा था.. हालांकि ये कुछ ज्यादा ही खुल कर कहा था, पर जैसा उसने बताया मैं वैसा ही आपके सामने रख रहा हूँ।

किमी ने कहना शुरू किया- तुम तो जानते ही हो कि मैं शुरू से ही मोटी, सांवली सी दिखने वाली लड़की हूँ। इसलिए कालेज लाइफ में किसी ने मुझ पर चांस नहीं मारा और मेरा मन भी खुद से भी इन चीजों में नहीं गया, बस पढ़ाई करने में ही मैंने जिन्दगी गुजार दी। फिर घर में मेरी शादी की बातें होने लगीं, लेकिन हर बार मेरे भद्देपन के कारण लड़के मुझे रिजेक्ट कर देते थे।

दोस्तों.. मेरे दोस्त की बहन किमी ने मुझे अपनी जिन्दगी के पहलुओं से परिचित कराना शुरू कर दिया था।

उसका ये खुलासा उसकी ही जुबानी काफी दुःखद था इसको पूरे विस्तार से समझने के बाद ही आपको इस कहानी का अर्थ समझ आ सकेगा।

किमी ने आगे बोलना शुरू किया- मेरे रिश्ते को लेकर घर वालों का तनाव भी बढ़ने लगा और नतीजा ये हुआ कि वो सब मुझे भी भला बुरा सुनाने लगे। मुझे खुद से घिन आने लगी, मेरा आत्मविश्वास भी गिरने लगा। ऐसे में पापा ने कहीं से एक लड़का ढूंढ निकाला.. मैं बहुत खुश हो गई, लड़का सामान्य था.. पर मेरी तुलना में बहुत अच्छा था।

बड़े धूमधाम से हमारी शादी हुई, सुहागरात के बारे में मैंने सुना तो था कि पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्ध बनते हैं पर मुझे इसका कोई अनुभव नहीं था। मैं बिस्तर में बैठी डर रही थी कि आज रात क्या होगा, मन में भय था पर खुशी भी थी… क्योंकि आज मेरे जीवन की शुरूआत होनी थी।

कहते हैं न.. किसी भी लड़की का दो बार जन्म होता है, एक जब वो पैदा होती है और दूसरी बार जब शादी होकर अपने पति के पास आती है और पति उसे स्वीकार लेता है। सुहागरात बड़ी ही अनोखी रस्म होती है, इसके मायने मैं अब समझ पाई हूँ।

खैर.. अब रात गहराती गई और वो अब तक कमरे में नहीं आए थे, मुझे नींद सताने लगी थी.. तभी मुझे अपने कंधे पर किसी के छूने का अहसास हुआ, मैं चौंक कर पलटी तो देखा कि कोई और नहीं.. वो मेरे पति सुधीर थे, मैं बिस्तर पर बैठ गई और सर पर पल्लू डाल लिया।
वो मेरे पास आकर बैठ गए और अपना कान पकड़ते हुए मुझसे कहा कि सुहागरात के दिन आपको इस तरह इंतजार कराने के लिए माफी चाहता हूँ, आप जो सजा देना चाहो, मुझे कुबूल है!

उस वक्त मैं नजरें झुकाए बैठी थी, मैंने पलकों को थोड़ा उठाया और मुस्कुरा कर कहा- अब आगे से आप हमें कभी इंतजार ना करवाइएगा.. आपके लिए इतनी ही सजा काफी है।
उन्होंने ‘सजा मंजूर है..’ कहते हुए मुझे बांहों में भर लिया और मेरे गहने बड़ी नजाकत से उतारने लगे।

पहले तो मैं शर्म से दोहरी हो गई, किसी पुरुष का ऐसा आलिंगन पहली बार था, हालांकि मैं पापा या भाई से कई बार लिपटी थी, पर मन के भाव से लिपटने का एहसास भी बदल जाता है और ऐसा ही हुआ। मेरे शरीर में कंपकपी सी हुई.. पर मैं जल्द ही संयत होकर उनका साथ देने लगी।

गहनों के बाद उन्होंने मेरी दुल्हन चुनरी भी उतार दी, मेरे दिल की धड़कनें और तेज होने लगीं, वो मेरे और करीब आ गए और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. हाय राम.. ये तो मैंने अभी सोचा भी नहीं था। मेरे ‘वो’ तो बहुत तेज निकले, मैं घबराहट, शर्म और खुशी से लबरेज होने लगी।
मैंने तुरंत ही अपना चेहरा घुमा लिया.. पर उन्होंने अपने हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और अपनी ओर करते हुए कहा कि जानेमन शर्म औरत का सबसे मंहगा गहना होता है, लेकिन सुहागरात में ये गहना भी उतारना पड़ता है.. तभी तो पूर्ण मिलन संभव हो पाएगा।

मैं मुस्कुरा कर रह गई, मैं और कहती भी क्या.. लेकिन मेरी शर्म अब और बढ़ गई, तभी उन्होंने मेरे कंधे पर चुम्बन अंकित कर दिया और मैंने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया। उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी पीठ सहलाई और दूसरे हाथ को मेरे लंहगे के अन्दर डाल कर मेरी जांघों को सहलाने लगे।

उहहहह मईया रे.. इतना उतावला पन.. हाय.. मैं खुश होऊं कि भयभीत.. मेरी समझ से परे था।

उन्होंने मेरे जननांग को छूना चाहा और उनके छूने के पहले ही उसमें सरसराहट होने लगी, मेरे सीने के पर्वत कठोरतम होने लगे, मैं शर्म से लाल होकर चौंकने की मुद्रा में लंहगे में घुसे हाथ को पकड़ कर निकालने लगी।

उन्होंने हाथ वहाँ से निकाल तो दिया, पर तुरंत ही दूसरा पैंतरा आजमाते हुए, मेरे उरोजों को थाम लिया।

मैं अब समझ चुकी थी कि आज मेरी जिन्दगी की सबसे हसीन रात की शुरूआत हो चुकी है, पर मुझ पर शर्म हावी थी, तो उन्होंने कहा- जान अब शरमाना छोड़ कर थोड़ा साथ दो ना..!

तो मैंने आँखें खोल कर उनकी आँखों में देखा और झिझक से थोड़ा बाहर आते हुए मस्ती से उनकी गर्दन में अपनी बांहों का हार डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा और उनके कानों में कहा कि जनाब सल्तनत तो आपको जीतनी है, हम तो मैदान में डटे रहकर अपनी सल्तनत का बचाव करेंगें। अब आप ये कैसे करते हैं आप ही जानिए।

इतना सुनते ही उनके अन्दर अलग ही जोश आ गया.. उन्होंने मेरे ब्लाउज का हुक खोला नहीं.. बल्कि सीधे खींच कर तोड़ दिया और मिनटों में ही अपने कपड़ों को भी निकाल फेंका।

अब वो केवल अंतर्वस्त्र में रह गए थे। उन्होंने अगले ही पल मेरा लंहगा भी खींच दिया, मैंने हल्का प्रतिरोध जताया, लेकिन मैं खुद भी इस कामक्रीड़ा में डूब जाना चाहती थी। अब वो मेरे ऊपर छा गए और मेरे सीने पर उभरी दोनों पर्वत चोटियों को एक करने की चेष्टा करने लगे। अनायास ही मेरे मुंह से सिसकारी निकलने लगी, तभी उन्होंने मेरे सीने की घाटी पर जीभ फिरा दी।

हायय… अब तो मेरा खुद पर संयम रखना नामुमकिन था। उधर नीचे उनका सख्त हो चुका वो बेलन.. मुझे चुभ रहा था, मैं अनुमान लगा सकती थी कि मेरे नन्हे जनाब की कद काठी कम से कम आठ इंच तो होगी ही!

मुझे खून खराबे का डर तो था, लेकिन यह भी पता था कि आज नहीं तो कल ये तो होना ही है, इसलिए मैं आँखें मूँदे ही आने वाले पलों का आनन्द लेने लगी, मेरा प्रतिरोध भी अब सहयोग में बदलने लगा था।

वो अब मेरे अंतर्वस्त्रों को भी फाड़ने की कोशिश करने लगे, उनके इस प्रयास से मुझे तकलीफ होने लगी.. तो मैंने खुद ही उन्हें निकालने में उनकी मदद कर दी। तभी उन्होंने एक झटके में अपने बचे कपड़े भी निकाल फेंके।

अब हम दोनों मादरजात नग्न अवस्था में पड़े थे। उन्होंने पहली बार मेरी योनि में हाथ फिराया और खुश होकर बोले- क्या कयामत की बनावट है यार, इतनी मखमली, रोयें तक नहीं हैं..! अय हय.. मेरी तो किस्मत खुल गई!

ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी पहले से गीली हो चुकी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी।

मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, मैं चिहुंक उठी, लेकिन फिर अगले हमले का इंतजार करने लगी। कुछ देर पहले सल्तनत की रक्षा करने वाली.. अब खुद ही पूरी सल्तनत लुटाने को तैयार बैठी थी।

अब तो मेरा भी हाथ उनके सख्त मूसल से लिंग को सहलाने लगा था, साथ ही मेरे जिस्म का हर अंग उनके चुम्बन से सराबोर हो रहा था। मेरी योनि तो कब से उसके लिंग के लिए मरी जा रही थी और अब अपनी सल्तनत लुटाने का वक्त भी आ ही गया।

सुधीर मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल बैठ गए और उन्होंने मेरे दोनों पैरों को फैला कर मेरी योनि को बड़े प्यार से सहलाया.. मैं तड़प उठी।

फिर उन्होंने मेरी योनि पर एक चुम्बन अंकित किया, मेरे शरीर के रोयें खड़े हो गए और फिर वे अपने लिंग महाराज को मेरी योनि के मुहाने पर टिका कर मुझ पर झुक गए।

उन्होंने थोड़ी ताकत लगाई और अपना लगभग आधा लिंग मेरी योनि की दीवारों से रगड़ते हुए, मेरी झिल्ली को फाड़ते हुए अन्दर पेवस्त करा दिया।

मैं दर्द के मारे बिलबिला उठी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी। पर वो तो मुझ पर किसी शेर की तरह झपट्टा मारने लगे, उन्होंने मेरे उरोजों को दबाते हुए एक और जोर का झटका दिया और अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में बिठा दिया।

मैं रो पड़ी पर उसे कहाँ कोई फर्क पड़ना था, उन्होंने हंसते हुए कहा- क्यों जानेमन.. अब हुई ना सल्तनत फतह?
मैंने मरी सी आवाज में कहा- हाँ हो तो गई.. पर जंग में तो मेरा ही खून बहा है ना, आपको क्या फर्क पड़ना है।

उनका जवाब था कि जंग में तो खून-खराबा आम बात है.. अब सिर्फ लड़ाई का मजा लो!
यह कहते हुए उन्होंने फिर एक बार अपना पूरा लिंग ‘पक्क.. की आवाज के साथ बाहर खींच लिया। किसी बड़े मशरूम की तरह दिखने वाला लिंग का अग्र भाग मेरी योनि से बाहर आ गया.. मुझे बड़ा मजा आया।

फिर उन्होंने मेरी योनि को अपने लिंग के अग्र भाग से सहलाया और एक ही बार में अपना तना हुआ लिंग मेरी योनि की जड़ तक बिठा दिया। इस अप्रत्याशित प्रहार से मैं लगभग बेहोश सी हो गई, पर कमरा ‘आहह ऊहह..’ की आवाजों से गूंज उठा।

जब मैं थोड़ी संयत हुई.. तब एक लम्बे दौर की घमासान पलंगतोड़ कामक्रीड़ा के बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए और एक दूसरे से चिपक कर यूं ही लेटे-लेटे कब नींद आ गई.. पता नहीं चला।

साथियो, मेरी इस कहानी में बहुत उतार चढ़ाव आएंगे, साथ ही आपको सस्पेंस देखने को भी मिलेगा, कहानी के साथ अन्तर्वासना से जुड़े रहिए।

यह सेक्स कहानी आपको कैसी लग रही है.. इस पते पर अपनी राय जरूर दें।
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कहानी जारी है।