मामी की अन्तर्वासना

पिछले साल की बात है जब मामा के ठेकेदार की एक आधी बनी हुई बिल्डिंग की दुर्घटना में वह घायल हो कर दो माह अस्पताल में दाखिल रहे तब मम्मी के कहने पर मैं मामा-मामी की सहायता के लिए उन्हीं के घर पर रहा। मामी दिन में जब घर जाती थी तब मैं मामा के पास अस्पताल में रहता था और फिर मामी को अस्पताल आने पर मैं दफ्तर चला जाता था। रात के समय मामी तो मामा के पास अस्पताल में ही रहती थी और मैं उनके कमरे में जा कर सो जाता था।

उन्ही दिनों मुझे मामी के नज़दीक रहने व देखने को मिला और उसके स्वभाव के बारे में कुछ जान पाया।

मामी बहुत ही सुन्दर हैं, उसका रंग बहुत ही गोरा, नैन-नक्श तीखे और बहुत ही आकर्षक हैं। एक गरीब घर की होने के कारण मामी शृंगार आदि नहीं करती लेकिन इसके बाबजूद भी वह एक अनुपम सुन्दरी दिखती हैं। उसका चेहरा गोल और गोरा, आँखें हिरणी जैसी, गाल प्राकृतिक गुलाबी, होंठ गुलाब की पंखड़ियों की तरह पतले, काले बाल लंबे और घने हैं। वह ब्रा नहीं पहनती इसलिए उसके पतले ब्लाउज में से उसके गोल गोल उभरे हुए, सख्त तथा ठोस वक्ष दिखाई देते तथा उन पर डोडियाँ गहरे भूरे रंग की दिखती रहती। उसकी पतली कमर और नाभि स्थल बहुत ही मनमोहक दिखता है, उसकी जांघें सुडौल और टांगें पतली और लंबी हैं।

एक बार जब अस्पताल में वह मामा के पास वह बिस्तर पर टांगें ऊंची करके बैठी उनके लिए फल काट रही थी तब उसकी साड़ी थोड़ी ऊँची हो गई और मुझे उसके गुप्तांगों की झलक दिख गई थी।

मामी ने पैंटी नहीं पहनी हुई थी और उसके वस्तिस्थल पर घने काले काले बाल थे, उसकी चूत के पतले होंठ थोड़े खुले हुए थे।

लगभग दो महीने अस्पताल में रहने के बाद डॉक्टर ने मामा को घर ले जाने की छुट्टी तो दे दी लेकिन जाने से पहले मामी और मुझे बताया कि मामा की रीढ़ की हड्डी में कुछ नसें दब गई हैं। उन नसों में रक्त के बहाव की कमी के कारण उनका शिश्न खड़ा नहीं हो सकेगा और वह किसी भी स्त्री के साथ सम्भोग नहीं कर सकेंगे।

अस्पताल से चलते वक्त डॉक्टर ने मायूस मामी को यह आशा तो दी कि समय बीतने के साथ जब देह में ताकत आयेगी और कभी किसी झटके के कारण उन दबी नसों पर से दबाव हट जायेगा तो मामा एक साधारण पुरुष की तरह स्त्री सम्भोग कर सकेंगे लेकिन इसके लिए उसे इंतज़ार करनी पड़ेगी।

हम जब मामा को घर ले के आये तो वह बहुत ही कमज़ोर थे इसलिए अधिकतर बिस्तर पर ही लेटे रहते थे और उनकी देखभाल मामी ही करती रहती थी।

मेरी मम्मी ने जब मामा के स्वास्थ के बारे में जाना तो मुझे कुछ दिन मामी की सहायता के लिए वहीं रहने को कहा और घर में सारा राशन डलवा दिया।

मैं सुबह तैयार होकर दफ्तर चला जाता था और शाम को घर आकर मामा व मामी की ज़रूरत का सामान बाज़ार से लाकर दे देता था तथा उनके काम में हाथ बंटाता था। रविवार को मैं दिन में अपने घर राजपुरा चला जाता था और शाम तक वापिस आ जाता था। इस तरह छह सप्ताह बीत गए लेकिन मामा के स्वास्थ में कुछ सुधार आया था और वह उठने-बैठने लगे लेकिन ज्यादातर खामोश और गुमसुम बैठे रहते थे। मामी मामा को खुश रखने की बहुत कोशिश करती रहती थी लेकिन ज्यादा सफल नहीं हो पाती थी।

इस बीच हमने मामी के कहने पर मामा की नपुंसकता के लिए कई और डॉक्टरों को भी दिखाया लेकिन सबने वही बताया जो के अस्पताल के डॉक्टर ने कहा था।

मामा के घर में रहते मुझे आठ सप्ताह हो चुके थे और इतने दिनों तक एक साथ रहने के कारण मामी का संकोच दूर हो गया था और वह मेरे साथ खुल कर बात भी करने लगी थी। दिन में जब मामा सो जाते थे तब वह अपने बचपन शरारतों के बारे में अक्सर चर्चा करती थी और कभी कभी तो वह अपने छोटे छोटे भेद भी बता देती थी। इन्हीं भेदों में से उसने एक भेद यह भी बताया कि उसकी बाईं जांघ के अंदर की तरफ एक काला तिल भी है और वह उस तिल को किसी को दिखाती नहीं हैं।

मामी ने बताया कि वह तिल सिर्फ उसके माता पिता और उसके पति यानि मेरे मामा ने देखा है। जब मैंने उसे वह तिल मुझे दिखने के लिए कहा तो धत्त ! कह कर हँसती हुई वहाँ से भाग गई।

एक कमरे के घर में रहने की वजह मामी और मुझे कुछ दिक्कतें तो होती थीं लेकिन सहन करनी पड़ती थीं। अक्सर मामी को दिन में या रात में कपड़े बदलने के लिए कमरे के एक कोने में जाना पड़ता था और वह मुझे बाहर जाने को या मुँह दूसरी ओर करके खड़े रहने को कहती थी। मुझे भी दिन में नहाने के बाद या रात में सोने से पहले कपड़े बदलते समय मामी को मुँह दूसरी ओर करने या आँखें बंद करने को कहना पड़ता था।

इसी तरह सात महीने बीत गए थे।

एक रात जब सब सोने के लिए जब कमरे की बत्ती बंद कर दी तब बाहर से आ रही रौशनी में मैंने देखा कि एक साया मामा की टांगों के बीच में झुक कर बैठा हुआ ऊपर-नीचे हिल रहा था। मैं कुछ देर तक तो वह दृश्य देखता रहा और समझने की कोशिश करता रहा लेकिन जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने उठ कर कमरे की बत्ती जला दी।

रोशनी होते ही मैं हैरत में आ गया और देखा कि मामी ने मामा की लुंगी ऊपर कर रखी है तथा वह उनके ढीले ढाले लौड़े को मुँह में लेकर चूस रही थी और उसे खड़ा करने की कोशिश कर रही थी।

मामी भी रोशनी होने पर सकते में आ गई और शर्म के मारे उठ कर बैठ गई तथा मामा के लौड़े को लुंगी नीचे खींच कर छुपा दिया।

मैं मामी के पास जाकर उससे बोला- जल्दबाजी करने से कुछ हासिल नहीं होगा, वक्त की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

मेरी इस बात को सुन कर मामी रोने लगी और आँसू बहाती हुई कहने लगी- अब मैं अपने अंदर की ज्वाला को सहन नहीं कर सकती।

उसने मुझसे पूछा कि उसके अंदर की ज्वाला को बुझाने के लिए उसे क्या करना चाहिए तब मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा और मैं चुपचाप बत्ती बंद कर के अपने बिस्तर पर मामी की सिसकियाँ सुनते सुनते सो गया।

दूसरे दिन सुबह मैं उठ कर तैयार हो कर दफ्तर चला गया और शाम को जब घर आया तो माहौल को कुछ गंभीर पाया।

मामी मुझे चाय देकर रसोई में ही काम करती रही और मैं भी बिना कुछ कहे या पूछे चुपचाप मामा के पास बैठ कर चाय पीता रहा।

मैं समझ गया था कि रात की बात से मामी शर्मिंदा है और इसलिए मेरे सामने आने से कतरा रही थी।

मामी की इस दुविधा को दूर करने के लिए मैं कुछ देर के लिए बाज़ार चला गया और लगभग एक घंटे बाद कुछ फल सब्जी लेकर वापिस आया और जब वह मामी को दिए तो उसे कुछ सामान्य पाया।

इसके बाद हमने खाना खाया और सब ने कुछ देर एक साथ बैठ कर टीवी देखा। जब दस बजे तो मामी ने मामा को दवाई दे कर उन्हें सुला दिया और फिर मेरे सामने ही अपनी साड़ी उतार दूर फेंक दी तथा मेरे सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई और टीवी देखने लगी।

मामी ब्रा तो पहनती नहीं थी इसलिए साड़ी न होने की वजह से उसकी चूचियाँ और चुचूक उसके हल्के गुलाबी रंग के ब्लाउज में से साफ़ दिखाई दे रहे थे। साथ में कुर्सी पर टांगें ऊंची करके बैठने से मामी का पेटीकोट ऊँचा उठ गया था और मुझे उसकी बड़ी बड़ी काली झांटों वाली चूत साफ़ दिखाई दे रही थी।

मैं कुछ देर तो वह दृश्य देखता रहा और अपने खड़े हो चुके लौड़े को हाथ से नीचे की ओर दबाता रहा।

जब बात मेरे बर्दास्त से बाहर होने लगी और क्योंकि ग्यारह बज चुके थे इसलिए मैंने उठ कर टीवी और लाईट बंद कर दी और हम अपने अपने बिस्तर पर सोने चले गए।

लगभग दस या पन्द्रह मिनट के बाद मैंने पाया कि मामी मेरे पास आ कर लेट गई और मेरी छाती अपना हाथ फेरने लगी।

जब मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी तो उसका हाथ नीचे की ओर सरकने लगा और देखते ही देखते मेरा लौड़ा मेरी लुंगी के बाहर उसके हाथों में था।

मैंने जब मामी को दूर करने की चेष्टा की तो पाया कि वह बिलकुल निर्वस्त्र ही मेरे पास लेटी हुई थी और मुझे अपने साथ चिपटाने की कोशिश कर रही थी।

मुझसे भी रहा नहीं गया और मैंने मामी की ओर करवट कर ली और उसे अपनी बाहों में ले कर अपने बदन से लिपटा लिया।

इस डर से कि मामा जाग न जाएँ मैंने मामी को चेताया तो वह बोली- डरने की कोई बात नहीं है, उन मामा को नींद की गोलियाँ एक के बजाए दो दे दी हैं, वे रात भर सोते रहेंगे।

फिर भी मैंने अपनी तस्सली के लिए उठ कर कमरे की लाईट जलाई तो देखा कि मामा गहरी नींद सोये हुए खर्राटे ले रहे थे और मामी बिलकुल नंगी मेरे बिस्तर पर लेटे हुए हँसती हुई मुझे चिढ़ा रही थी।

अब बात मेरे बर्दाश्त से बाहर हो गई थी, मैंने अपनी लुंगी उतार कर दूर फैंक दी और नंगा ही मामी की ओर चल दिया।

लाईट में जब मामी ने मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लौड़ा देखा तो अपने मुँह पर हाथ रख कर ‘हाई दैया’ कहते हुए उठ कर बैठ गई, फिर मुझ से बोली कि अगर उसे पहले से पता होता कि मेरा लौड़ा इतना लंबा और मोटा है तो वह कभी भी नहीं उसके पास लेटने की हिम्मत करती।

मेरे यह कहने पर कि अब तो वह मेरे पास लेट गई है इसलिए अब उसे हिम्मत करनी ही पड़ेगी, वह बोल उठी- जब ओखल में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना !

और आगे बढ़ कर मेरे लौड़े तथा टट्टों को पकड़ लिया और अपने होंठों से चूमने लगी।

फिर वो मेरे लौड़े को जैसे अपने मुँह में डालने लगी, मैंने उसे रोक दिया और कहा- जब तक वह मुझे अपनी जाँघ पर काला तिल नहीं दिखाएगी तब तक मैं उसे कुछ नहीं करने दूँगा।

तब वह बोली- तुम बहुत ही नटखट हो !

और फिर अपनी दोनों टाँगे खोल कर लेट गई और मुझे उस तिल को देखने की अनुमति दे दी।

मैं कुछ देर तक तो उस तिल को ढूँढता रहा और जब नहीं मिला तो मामी से पूछा- कहाँ है?

तब मामी ने अपनी उंगली से चूत के बाएं होंठ को थोड़ा हटाया, तब मुझे उसकी जांघ की जड़ में वह काली मिर्च के दाने जितना बड़ा काला तिल दिखाई दिया।

मैं उसको देख कर बहुत खुश हुआ और नीचे झुक कर उसे चूम लिया।

तभी मामी ने मेरे सिर को कस कर पकड़ लिया और मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबा दिया तथा उसे चूसने को कहा।

मैं तो पहले से उतेजित था इसलिए अपनी उँगलियों से मामी की चूत को खोल कर उसमे जीभ मारने और चूसने लगा, उसके मटर जितने मोटे लाल रंग के छोले को जीभ से सहलाने लगा। मामी शायद इस आक्रमण को ज्यादा देर सहन नहीं कर सकी और कुछ ही पलों के बाद मेरी जीभ की हर रगड़ पर फुदकने लगी तथा आह्ह्ह… आह्ह्ह… की आवाजें निकालने लगी।

मैंने उसकी यह हरकत देख कर जीभ को तेज़ी से चलाना शुरू कर दिया जिसके कारण मामी बेहाल होने लगी और फिर एकदम से अकड़ कर अपनी चूत से पानी छोड़ दिया।

इसके बाद मामी के निवेदन करने पर मैं उसके उपर उल्टा हो कर लेट गया ताकि वह मेरा लौड़ा और मैं उसकी चूत एक साथ चूस सके।

लगभग दस मिनट तक हम उस की मुद्रा में लेटे एक-दूसरे को चूसते और चाटते रहे।

तभी मामी ने अपनी दोनों टांगों में मेरे सिर को भींच लिया और उचक-उचक कर मेरे मुँह में अपना पानी छोड़ने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

मैं भी बहुत उत्तेजित हो चुका था इसलिए मामी के पानी निकलते ही मैं भी छूट गया और मेरे लौड़े ने मामी के मुँह को मेरे वीर्य से भर दिया।

इसके बाद हम सीधे हो कर एक दूसरे से चिपक के लेट गए तब मैंने मामी से कहा- झांटें बहुत बड़ी हैं, मुझे चूसने में दिक्कत हो रही है।

उसके बाल बार बार मेरी नाक ने जा रहे थे जिससे मुझे छींक आ रही थी।

तब मामी उठ कर अलमारी से रेज़र और ब्लेड ले आई और बोली- इन्हें साफ़ कर दे।

मैं उठ कर पानी और शेविंग ब्रश व क्रीम ले आया और मामी को नीचे लिटा कर उसकी चौड़ी करी हुई टांगों के बीच में बैठ कर शेविंग ब्रश व क्रीम और पानी से खूब सारी झाग बनाई।

जब मामी की चूत और उसके चारों ओर की सारीं झांटें उस झाग में ढक गई तब मैंने रेज़र में ब्लेड लगा कर उसकी चूत के ऊपर से सारीं झांटें साफ़ कर दी।

मामी की चूत एकदम चिकनी होकर कमरे में जल रही लाईट में लश्कारे मारने लगी थी और उसका तिल एक नज़र-बट्टू की तरह चमकने लगा था।

उस चमकती चूत के नज़ारे और उसके खुलते बंद होते होंट देख कर मैं बहुत ही उत्तेजित हो उठा था इसलिए मैं पलट कर मामी के ऊपर 69 की अवस्था में लेट गया और उसके मुँह में लौड़ा डाल दिया तथा अपना मुँह उसकी चिकनी चूत पर रख दिया।

मामी मेरा मकसद समझ गई थी इसलिए उसने तुरंत ही मेरे लौड़े को चूसना शुरू कर दिया और मैं उसकी चूत के अंदर तक अपनी जीभ घुमाने लगा।

लगभग पांच मिनट के बाद मामी ने पानी छोड़ा तो मैं उठ कर मामी से अलग हुआ, सीधा होकर उसके ऊपर लेट गया तथा अपना लौड़ा मामी के हाथ में दे दिया।

मामी ने लौड़े को पकड लिया और अपनी चूत के खुले हुए होंठों के बीच में रख दिया और सिर हिला कर मुझे हरी झंडी दिखा दी।

मेरे हल्के से धक्का देने पर ही मेरे लौड़े की टोपी मामी की चूत के अंदर चली गई और मामी जोर से चिल्ला पड़ी- ऊईईइमाँआ… ऊईईइमाँआआ…… हाई मम्मी मर गई रे…. इसने तो मेरी चूत का कबाड़ा कर दिया रे… इसने तो उसे फाड़ कर रख दी रे…..।

मामी की इन चीखों की चिंता किये बिना मैंने एक धक्का और लगाया तो मेरा आधा लौड़ा चूत के अंदर धंस गया जिससे मामी और जोर से चिल्ला कर मुझे कहने लगी- मैंने इतने सम्भाल कर रखा हुआ था इसे और तूने इसका कबाड़ा कर दिया रे… तूने तो इसे फाड़ कर रख दी रे…. बाहर निकाल इस साले मूसल को, मुझे तेरे से चूत नहीं मरवानी।

मैं उसकी आवाजें सुनता रहा और नीचे की ओर दबाव बढ़ाता रहा जिससे लौड़ा चूत के अंदर की ओर आहिस्ता आहिस्ता सरकने लगा।

मामी के पानी की वजह से उसकी चूत के अंदर भी फिसलन हो गई थी जिससे मेरा लौड़ा दबाव के कारण तेजी से अंदर घुसने लगा और मामी को पता भी नहीं चला कि कब पूरा लौड़ा उसके अंदर जाकर फिट हो गया था। मैं कुछ देर तो वैसे ही चुपचाप मामी के उपर लेटा रहा।

मुझे कुछ देर तक न हिलते हुए देख कर मामी ने कहा- अब दर्द नहीं है, चालू कर।

मामी के कहने पर मैं थोड़ा ऊँचा हो कर, लौड़े की टोपी को चूत के अंदर ही रखते हुए, लौड़े को बाहर खींचा और फिर तेज़ी से अंदर डाल दिया।

इसके बाद मैं लौड़े को धीरे धीरे अंदर -बाहर करता रहा और मामी उचक उचक कर मेरा साथ देती रही। दस मिनट की चुदाई के बाद मामी बोली- तेज़ी से कर !

तब मैंने अपनी गति बढ़ा दी और दे दनादन पेलने लगा।

मामी को शायद आनंद आ रहा था इसलिए आह्ह्ह… आह्हह्ह… आह्हह्ह… करती हुई मेरे धक्कों का जवाब अपनी चूत को ऊपर की तरफ उचका उचका कर देती रही।

पांच मिनट के बाद मामी पहले तो एकदम से अकड़ी और चिल्लाई आईईइ… आईई… उईईई… उईईई… फिर उसकी चूत ने सिकुड़ कर मेरे लौड़े को जकड़ा तथा उसे अंदर खींचा तब मामी चिल्लाई- ऊईईईइमाँआआ… ऊईईइमाँआआ… और अपना पानी छोड़ दिया।

जैसे ही चूत की जकड़ ढीली हुई तो मैं फिर से धक्के देने लगा और मामी हर तीन मिनट की चुदाई के बाद चिल्लाती, अकड़ती, लौड़े को जकड़ती और पानी छोड़ती। इस तरह जब पांचवीं बार मामी का पानी छूटा तब मेरे लौड़े में भी अकड़न हुई और एक झनझनाहट के साथ मेरे लौड़े ने मामी की चूत के अंदर ही वीर्य की बौछार कर दी।

मामी एकदम से चिल्ला उठी और कहने लगी- यह मेरे अंदर क्या डाल दिया है तूने? आग लगा दी है मेरी चूत में। मैंने आज तक चूत में इतनी गर्मी महसूस नहीं की जितनी अब हो रही है।

मैंने मामी को समझाया कि अगर शुक्राणु ज्यादा सक्रिय होते है तो ज्यादा गर्मी महसूस होती है।

तब मामी बोली- कि इसका मतलब है कि तेरे मामा के शुक्राणु तेरे शुक्राणु से कम सक्रिय है क्योंकि मुझे उनके वीर्य से तो इतनी गर्मी महसूस नहीं होती थी।

मेरे हाँ कहने पर मामी ने पूछा- क्या ज्यादा सक्रिय शुक्राणु के कारण जल्द गर्भवती हो सकती हूँ?

जब मैंने कहा कि वह मेरे वीर्य से गर्भवती हो सकती है तो वह मुझ पर गुस्सा करने लगी कि मैंने उसके अंदर वीर्य क्यों छोड़ा।

मैंने मामी से इसके लिए माफ़ी मांगी और उसे आश्वासन दिया कि आगे से मैं जब भी उसे चोदूँगा तब कंडोम पहना करूँगा या फिर लौड़े को बाहर निकाल कर उसके बदन के ऊपर ही वीर्य की बौछार करूँगा।

इसके बाद मैंने अपना लौड़ा मामी की चूत से बाहर निकाला तो मामी ने लपक कर उसे पकड़ लिया और चाट चाट कर साफ़ कर दिया तथा खुद को साफ़ करने के लिए गुसलखाने चली गई।

कुछ देर के बाद वह आई और मुझे और मेरे लौड़े को चूम कर मामा के पास सोने चली गई।

इसके बाद मैं मामा के घर अगले चार महीने और रहा तथा हर रात मामी की चुदाई बिना कंडोम के ही करता रहा और अपना वीर्य उसकी चूत में डाल कर आखिर उसे गर्भवती कर दिया।

मामा को मेरे द्वारा मामी को गर्भवती करने का पता चल गया था लेकिन अपने नपुंसक कहलाने के डर से कुछ नहीं बोले और मामी की खुशी के लिए उस बच्चे को स्वीकार कर लिया तथा मामी के सामने ही मुझे उसे खूब चोदने के लिए इज़ाज़त दे दी।

आज वह बच्चा दो वर्ष का है और मामा मामी के पास ही रहता है।

मैं उस बच्चे से मिलने के बहाने उनके घर सप्ताह में दो दिन ज़रूर जाता हूँ और उन दोनों दिनों को मामी को ज़रूर चोदता हूँ।

कभी-कभी जब मामा घर पर ही होते हैं तब भी हम बच्चे को उन्हें थमा के उन्हीं के सामने चुदाई के मज़े लेते हैं।

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