चूचियों से रगड़कर

बदरू मियाँ की झाँटें फुँक गईं, एक लौंडिया की यह मजाल कि वह घटिया शेरों के सरताज के सामने शेर कहने की जुर्रत करे, तो उन्होंने मूँछों पर ताव दे कर:

हाँ मैं घड़ा होता
तो तेरी चूचियों से रगड़कर
तेरे सिर पर चढ़ा होता,
और कोई मुझे फोड़ देता
तो मैं नाली में पड़ा होता
जानेमन कभी तो तू वहाँ मूतने आती

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चूची तेरी नर्म नर्म और,
निप्प्लों पे आई जवानी..
गदराये से चूतड़ तेरे,
गाण्ड तेरी मस्तानी..
झाँट तेरी घुँघराली जानू,
चूत पे चिप चिप पानी..
चाटूँ इसको,
चूसूँ इसको,
सूंघू इसको रानी..
लण्ड मेरा तन्नाया,
पाकर इसकी गन्ध सुहानी..
आओ चोदें रगड़ रगड़ कर,
साथ में छोड़ें पानी…!

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कुंवारी कलि ना चोदिये, चूत पे करे घमंड;
चुदी चुदाई चोदिये, जो लपक के लेवे लंड!

प्रस्तुति- आर के शर्मा