कामुकता वश गलती हो गई

मेरा कद 5 फुट 7 इंच ही है, एथलीट होने के कारण सख्त शरीर का मालिक हूं, मेरा हथियार खासा मोटा है और अपने ऊपर भरोसे की सबसे बड़ी वजह भी वही है। एक बार लड़की थोड़ी नजदीक आ जाए तो मौका मिलते ही थोड़ा फोर्स भी कर लेता हूं। इससे उन्हें चीप होने का एहसास नहीं होता। एक बार खुल जाती हैं तो हर तरह की बातें कर लेती हैं।

ऐसा ही एक वाकया मेरी एक पुरानी दोस्त अनामिका ने सुनाया। सुनकर इतना एक्साइट हुआ कि घर आकर खूब मुठ मारी तब जाकर कुछ शांत हुआ।
लो, बाकी किस्सा अनामिका की ही जुबानी सुनो।

मैं अनामिका, कालेज में असिस्टेंट लाइब्रेरियन हूं। वैसे एम लिब हूं, लेकिन नेट नहीं निकाल पाई इसलिए कच्ची नौकरी पर हूं। एक बार नेट हो जाए तो फिर ग्रेड मिल सकता है।
इस नौकरी में फिलहाल पैसे कम हैं, पर मजा पूरा है। वजह यहां के लड़के!

वैसे भी हरियाणा के लड़के कुछ ज्यादा ही बेशर्म होते हैं, फिर यहां तो लाइब्रेरी भी पुराने जमाने की बनी है, जहां छिपने छिपाने की काफी जगह है। जब भी लाइब्रेरी में इक्का दुक्का लोग होते हैं, कितनी ही बार मैंने लड़कों को अपने लंड पर हाथ चलाते देखा है।
जब भी लाइब्रेरियन यहां नहीं होता, मुझे ऐसा लगता है कि हर लड़का मुझे चोदने की ताक में है; मौका मिलते ही घोड़ी बना कर मेरी चूत में लंड ठूंस देगा।

उनका भी कसूर नहीं है; मैं सुंदर ही इतनी हूं, कंधों तक बाल, बड़ी काली आंखें, साफ रंग और सेहत से भरपूर पतला शरीर… मेरी पेट इतना सपाट और कमर इतनी पतली है कि सुडौल जांघों और पटों पर सीधे नजर जाती है। सूट की सलवटें भी आगे शेप बनाए रहती हैं।

तीन साल पहले जब यहां आई थी तो डर जाती थी लेकिन अकेले काफी समय मिलने और हर वक्त नेट पर अन्तर्वासना की कहानियां पढ़ने की वजह से इतनी कामुक हो जाती हूं कि दिल करता है खोल कर खड़ी हो जाऊं।

लड़कों ने खूब कोशिश की, पर बदनामी से डर से खुद पर हमेशा काबू रखा।
वैसे शादी शुदा हूं, पति का धागे का व्यवसाय है।
जब तक मैं कालेज के लिए निकल आती हूं, वे अच्छी तरह जगे भी नहीं होते। और जब वे रात को घर आते हैं तो मेरा सोने का समय हो रहा होता है।
मेरे पति की एक आदत है कि मैं पहल न करूं तो वे कुछ नहीं करते।

बस एक बार कोई गंदी बात छेड़ दो तो फिर वे चुदाई किए बिना नहीं छोड़ते। अच्छा भी है, जब मेरा मूड़ करता है तो मैं अपनी किसी सहेली का किस्सा छेड़ देती हूं और फिर जो धमाल मचता है कि पूछो मत। हां, इस चक्कर में मुझे नकली असली कहानियां बनानी पड़ती हैं या फिर पोर्न मूवीज!

ऐसे ही एक बार हम नेट पर पोर्न मूवी देख रहे थे। उसमें एक महिला डाक्टर के पास आती है, सांवली सी, गांव की घरेलू सी महिला। पता नहीं जेंट्स डाक्टर के पास कैसे आई है चेकअप के लिए। बाहर उसके छोटे बच्चे की आवाज भी आ रही है, जिसे शायद उसका पति लेकर बैठा है।
डाक्टर पहले उसे लेटने को कहता है और उसका पेट चेक करता है। वह बहाने से न केवल उसकी चूचियां दबाता है बल्कि उसके गर्म होने पर उसकी चूत उंगली से चोदता भी है। महिला बार बार बाहर की तरफ देख रही है कि कोई आ न जाए।

वासना में उसके बार बार प्यासी मैना की तरह होंठ खोलने, किसी के आने जाने के डर से घबराने और और डाक्टर की तेजी ने ऐसा माहौल बनाया कि मूवी देखते देखते ही मेरे पति मेरे ऊपर चढ़ गए और इतनी जोर से चोदने लगे जैसे पहली बार कर रहे हों। बस दिक्कत यह हुई कि मेरा होने से पहले ही वे झड़ गए और मैं प्यासी रह गई। शायद यही प्यास मेरी लाइफ की सबसे बड़ी गलती की वजह बनी।

अगले दिन मुझे नेट की परीक्षा के लिए कुरुक्षेत्र जाना था। पति से कहा तो वे बिजी होने का बहाना बना गए।
मैंने अपनी सहेली चहक को फोन किया, उसका फाइन आर्ट्स का नेट का पेपर था इसलिए दोनों सुबह सुबह कुरुक्षेत्र के लिए निकल गईं। सोचा था कि पेपर देकर शाम को दोनों वापस आ जाएंगी.

पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था; कु़रुक्षेत्र में हमारा नंबर यूनिवर्सिटी के अलग अलग कैंपस में था, वह अपना पेपर देने चली गई और मैं अपने कैंपस की तरफ गई।

लेकिन जैसे ही एंट्री के लिए अपना रोल नंबर निकालने लगी तो सन्न रह गई। रोल नंबर पर्स में कहीं नहीं दिखाई दिया।
हे भगवान! अब क्या होगा?
उन्होंने मुझे घुसने नहीं दिया। अब क्या किया जाए। पेपर छूटने का दुख था, पर उससे ज्यादा चिंता थी कि चहक के बिना वापस कैसे जाऊं और इतनी देर यहां बैठूं कैसे।

मैं बाहर एक जूस की दुकान पर आ गई जहां अंदर बैठने की अच्छी सी जगह थी।
जूस का आर्डर दिया और सिर पकड़ कर बैठ गई।
इतनी मेहनत की थी, पर पेपर ही नहीं दे सकतीं।

थोड़ी ही देर हुई थी कि मुझे चेहरे पर सुरसुरी सी महसूस हुई, मेरी नजरें सामने की टेबल पर गई, वहां एक लड़का बैठा था, वह मेरी जांघों की तरफ देख रहा था।

मुझे टेबल के नीचे उसके हाथ भी हिलते नजर आए। वह जींस में से दिख रहे अपने उभार को मसल रहा था। मैं समझ गई कि मेरा शर्ट थोड़ा एक तरफ हो गया था और उसके नीचे पिंक कलर की टाइट स्लेक्स ने मेरी जांघें नुमाया कर दी थीं।
एक बार को कोफ्त हुई कि लड़के कभी नहीं सुधरने वाले।

पर ऐसा ज्यादा देर तक नहीं रहा, मैं रात की प्यासी थी मेरी कामुकता उफान पर थी और मुझे जमकर चुदाई की जरूरत थी; पर मैंने नजरें घुमा लीं।
उसकी नजरें मुझे अब भी अपनी जांघों पर महसूस होती रहीं। मै। उसे देख नहीं रही थी, लेकिन दिमाग में रात की मूवी और गुलाबी मोटा लंड ही घूम रहे थे।

मैंने ध्यान हटाने की कोशिश भी की पर खाली दिमाग शैतान का घर। पेपर तो छूट ही गया था, शाम तक का समय भी निकालना था।
मेरी वासना जागने लगी, लड़का अब भी लगातार ताड़ रहा था।

मैंने अनजाने में ही टांग बदली तो जांघें कुछ और नुमाया हो गईं; लड़के का हाथ और तेज हो गया था। वहां किसी को पता नहीं लगने वाला था कि आखिर हो क्या रहा है। मैं कुछ झुकी और चूची टेबल के किनारे पर टिका दी।
आहाहा हाहा… मेरी सिसकारी निकल गई; मुझे रात वाली पिक्चर का डाक्टर याद आया जिसने बहाने से महिला के स्वाद लिए थे।

साथ ही अपनी सहेलियों के किस्से भी याद आए जब उन्होंने मौके का फायदा उठा कर किसी अनजान से चुदवाया था या रगड़ा रगड़ी करवाई थी। वे कहती थीं कि जहां हमें कोई जानता नहीं और सेफ मौका मिल रहा है, वहां ऐसी मौज कैसे छोड़ दें; एक बार चुदाई हुई कि न हम उसे जानते न वह हमें; किसे पता क्या हुआ।

यहां मुझे जानने वाला कौन था! सोचा कि लड़के को लाइन दूं; लेकिन फिर काबू किया।
शादी से पहले एक ऐसा ही मौका मिला था; मैं भी चुदने को तैयार थी, पर हमें जगह नहीं मिली और उसने एक पार्क में मुझे मसल मसल कर इतना गर्म कर दिया था कि बड़ी मुश्किल से खुद को काबू किया।
इसलिए लड़के पर से ध्यान हटाया।

वासना भड़क रही थी और मुझ पर एडवेंचर का भूत सवार था; मुझे अपनी पैंटी गीली होती महसूस हो रही थी। मैंने सोचा कि मेरे पास पांच घंटे हैं; चलो आज किसी डाक्टर के क्लीनिक में ही चलें। चुदाई नहीं पर हाथ वाथ लगवाने में क्या हर्ज है।
अब मुझ में से पेपर की निराशा गायब हो गई।

मैं बाहर सड़क पर निकल आई; चलते हुए आज मेरी जांघें कुछ ज्यादा ही रगड़ रही थीं. इतनी गुदगुदी मच रही थी कि लगता था कि ऐसी ही झड़ जाऊँगी। गर्मी काफी थी, मैंने काला चश्मा लगा लिया और चुन्नी सिर पर ले ली। आते जाते लोग आदतन मुझे घूर कर निकल जाते। काले चश्मे में से कनखियों से देखती तो उनकी नजरें सीधे मेरे पटों पर पड़ती; सोच रहे होंगे कि क्या माल है। मैं भी उनकी पैंटों पर नजरें गड़ाए यह महसूस करने की कोशिश करती कि उनका कैसा दिखता होगा।

इन कल्पना ने मेरा माथा गर्म कर दिया था; दिल भी 100 की स्पीड से धड़क रहा था। लगभग डेढ़ घंटा बाजार में घूमती रही; कभी किसी दुकान पर कुछ देखती तो कभी कुछ। अब तक कहीं भी सेफ नहीं लगा था।

मेरा ज्यादा ध्यान छोटे क्लीनिकों पर था। पर कहीं भीड़ थी तो कोई इतना बड़ा कि कई डाक्टर होंगे।
मैंने सोच लिया था कि अब बस… वापस चलती हूं। कोई सेफ पार्क मिले तो कस कर चूत रगडूंगी और झड़ जाऊँगी।

अचानक मेरी नजर एक डेंटल क्लीनिक पर नजर गई तो बिना सोचे वहीं घुस गई। पर अंदर जाते ही उत्साह काफूर हो गया क्योंकि रिशेप्शन पर एक अठारह उन्नीस साल की लड़की मौजूद थी। एक पेशेंट अभी अंदर जा रही थी और दूसरा बाहर निकल रहा था।

मैं वापस निकलने की सोच ही रही थी कि लड़की ने कहा- आपका नंबर अगला है; सौ रुपये जमा करवा दीजिए।
ए सी क्लीनिक था, मैंने कुछ देर आराम से बैठने की सोची और पैसे जमा करा दिए। चलो, कुछ होना तो है नहीं। अब आ ही गई हूं तो दांत चेक करा लूं।

रिशेप्सनिट की तरफ ध्यान गया; वह सामने टी वी पर हिंदी गाने देख रही थी; लड़की मासूम सी लगी; छोटा कद, कुछ भरी हुई, सलवार सूट में उसकी छोटी छातियां कसी हुई और सुंदर लग रही थीं। उसकी भोली सूरत देख कर मैंने सोचा, चलो अभी तो इसमें इतनी गर्मी नहीं है। नहीं तो बेचारी तड़पती फिरती।

तभी अंदर से महिला बाहर आई और रिशेप्सनिस्ट ने मुझे अंदर भेजा।

डाक्टर पतला और सांवला सा था। वह तीस-पैंतीस का होगा और चश्मा लगाए मेज पर कोई रिपोर्ट चेक कर रहा था। उसने रिशेप्सनिस्ट को आवाज लगाई- पद्मा… और पेशेंट्स मत लेना, आज जल्दी निकलना है।
पद्मा अंदर आई और पूछा- सर, मैं भी जल्दी चली जाऊं आज?
“हां, हां, तुम अकेली यहां क्या करोगी। वैसे भी संडे है, शाम को वापस तो आना है नहीं।”

पद्मा ने मुझे कुर्सी पर लिटाया और जरूरत की चीजें तैयार कर बाहर चली गई।

डाक्टर ने पूछा तो मैंने रूटीन चेकअप के लिए कहा। कुछ होना तो था नहीं पर दिमाग के घोड़े कौन काबू कर सकता है। अब मेरे दिमाग में फिर वही मूवी चल पड़ी।
मैंने कल्पना की कि अब डाक्टर मेरा गोरा पेट चेक करने के लिए सूट उठाएगा और फिर बहाने से चूचियां रगड़ मारेगा।
मैंने शांति से आंखें बंद कर लीं और पैर पर पैर चढ़ा कर लेट गई।

उसने मुझसे कहा- दांत तो ठीक हैं। आप चाहें तो क्लीनिंग कर देता हूं।
मैंने कुछ और टाइम निकालने के लिए हां कर दी।
उसने अपना काम शुरू किया।

मैं इस वक्त वहां अकेली थी और एक जवान डाक्टर पास था। मैंने जांघे हल्की सी कसी तो चूत में गुदगुदी हुई।
मैंने अपना शर्ट जांघों पर ठीक किया और आंखें बंद कर आराम से लेट गई। उसने काम रोक दिया; कुछ देर तक कोई हरकत नहीं हुई तो मैंने आंखें हल्की सी खोलीं; वह कनखियों से मेरे शरीर को देख रहा था। मेरा कसा हुआ लाल शर्ट मेरी छाती और जांघों की बनावट दिखा रहा था।

मैंने फिर आंखें बंद कर लीं। उसने फिर काम शुरू किया तो मैंने अपनी बाजू पर कुछ महसूस किया। गलती की गुजाइश ही नहीं थी, उस जगह कोई और चीज हो ही नहीं सकती। मेरा दिल खुशी से उछलने लगा।
मैं मुंह का पानी थूकने के लिए उठी तो वह चीज मेरी बाजू पर कुछ लगी; मेरी सांसें तेज होने लगी थीं और गाल तपने लगे। किसी अनजान आदमी का लंड मेरी बाजू से रगड़ खा रहा था और वहां और कोई नहीं था।

मैंने फिर आंखें बंद कर लीं।

इस बार डाक्टर मेरे ऊपर झुक आया था; यहां तक कि एक दो बार उसका हाथ मेरी छाती से टच हुआ। मेरे सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई। अब तो मेरा पूरे बदन में चुदास घुस गई। पर रिशेप्शन
पर पद्मा थी। मैं मन मार कर पड़ी रही और उसके लौड़े का साइज महसूस करने लगी।
अभी इतना कड़क नहीं था।

वह इतना पास होकर काम कर रहा था कि उसकी सांसें मुझे छू रही थीं। मैंने कुछ आगे बढ़ने की सोची और इस तरह दिखाया जैसे मुझे दर्द हुआ हो, और एक पैर घुटने से मोड़ कर फिर सीधा कर लिया। मैं जानती थी कि मेरी कसी हुई जांघें मुर्दों को भी गर्म कर दें, फिर यह तो जवान डाक्टर है।

मेरी जांघ से शर्ट एक तरफ होते ही वह फिर रुक गया। उसका लंड अब भी टच कर रहा था। मैंने आंखों के कोर से देखा, तीर निशाने पर लगा था। वह मेरा सपाट पेट और गुलाबी स्लैक्स में से चिकनी जांघें देख रहा था।
मैंने अपने माथे से बाल हटाने के लिए हाथ ऊंचा किया और फिर पहले वाली जगह पर ले आई। हाथ फिर लौड़े पर लगा; क्या टच था; कुछ सख्त, कुछ नरम।
इससे उसका गर्म लौड़ा और सख्त हो गया।
अब की बार वह ऊपर आया तो उसके हाथ कांप रहे थे।

तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई तो वह एकदम अलग हो गया। पद्मा थी। मेरे मुंह में उसके लिए मोटी सी गाली आई।
उसने पूछा- सर एक और पेशेंट है।
डाक्टर ने कांपती आवाज में कहा- बस और कोई नहीं पद्मा, शटर आधा नीचे कर दो और हां, तुम्हें जल्दी जाना था ना?
आंखों की कोर से मुझे पद्मा नजर आ रही थी। डाक्टर मेरी तरफ देख रहा था और वह डाक्टर की पैंट फाड़ कर निकलने को उतारू उसके लंड को।

पद्मा कुछ रुक कर वह बोली- जी सर!
और दरवाजा बंद हो गया; पर पूरा नहीं; हल्की सी झीरी से बाहर का चांदना दिख रहा था।

मैं समझ गई कि कच्ची उम्र की पद्मा आज कई बार झड़ने वाली है। मुझे शर्म आई खुद पर… पर वासना इतनी हावी थी कि रोम रोम कांप रहा था। मन कर रहा था कि खुद लैगी उतार फेंकूं और डाक्टर के लौड़े पर चढ़ जाऊं।
मैंने मजे लेने की ठान ली।

डाक्टर ने फिर काम शुरू किया पर इस बार मैंने अपनी बाजुएं बगल में कुर्सी पर टिका ली थीं और हथेलियां पेट पर। बाजुएं नीचे हो जाने से लौड़ा बाजुओं पर टच नहीं हो सकता था। पर डाक्टर भी तेज था, वह कुछ आगे हुआ और अब मेरी दाईं चूची की साइड में कुछ चुभने लगा; मेरे निप्पल सख्त हो गए; ब्रा ना होती तो उसकी घुंडियां दूर से ही दिखाई दे जातीं।

मैंने कुछ दूर होने की कोशिश की जैसे इससे कुछ असहज लग रहा हो; पर डाक्टर और आगे आ गया।

तभी वह पीछे हो गया। एक दो सैकेंड कुछ नहीं हुआ तो मैंने कनखियों से देखा। वह पैंट के ऊपर से ही लौड़ा मसल रहा था; उसका मुंह देखने लायक था।
जाहिर था कि बस चले तो सारा मेरे अंदर घुस जाए।
मैं अंदर से हंस रही थी, डाक्टर की हालत देख कर मजा आ गया।

हालांकि मेरी भी हालत बुरी थी। इस वक्त नेट के पेपर, चहक, मेरे पति कुछ भी मेरे जेहन में एंट्री नहीं कर सकते थे। बस था तो डाक्टर और उसका लौड़ा।

मैंने एक जांघ हल्की सी उठाई तो चूत पर रगड़ लगी, मुझे कंपकंपी सी आई।
डाक्टर ने भी शायद यह देख लिया था। उसने बड़ी हिम्मत दिखाई और अपनी चेन खोल ली। उसे मेरी आंखें अब भी बंद ही लग रही थीं। देखते ही देखते उसने अंडरवियर के सामने से अपनी लौड़ा बाहर निकाल लिया।
मैं सांस लेना भूल गई; क्या सलौना सा लौड़ा था; डाक्टर तगड़ा नहीं था पर लौड़ा खूब तगड़ा था। आगे से जामुनी रंग का सा हो रहा था और उस पर प्रीकम ट्यूबलाइट में चमक रहा था।

मेरे होंठ हल्के से खुल गए। वह यूं ही मेरे शरीर को घूरता रहा और लौड़े पर हाथ चलाने लगा।
मैंने आंखें बंद किए किए ही पूछा- हो गया क्या डाक्टर?
उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने आंखें खोल दीं।

उसके हाथ रुक गए पर उसने लौड़ा छिपाने की कोशिश नहीं की। मैंने सकपकाने की एक्टिंग की और कुर्सी से उठने लगी। वह मुझे कुर्सी पर वापस लिटाते हुए कांपती आवाज में बोला, ’बस, दो मिनट और मैडम, बस होने ही वाला है।
मैं जितना उठने की कोशिश करती, वह उतना ही दबाता। उसे शायद यह भी डर था कि कहीं मैं चिल्ला ना पड़ूं। इस वक्त उसकी हालत खासी खस्ता था।

फिर पता नहीं उसे क्या हुआ कि वह साइड से ही मेरे कूल्हे पर लौड़ा रगड़ने लगा और साथ ही साथ मुझे वापस लिटाने की कोशिश करने लगा।
मैं इतनी जल्दी से कैसे मान जाती; मैंने उसे पीछे धक्का दिया और चेयर पर से उठने लगी।

वह कुछ पीछे हुआ लेकिन फिर एक दम पास आकर उसने मेरे पैर पकड़ लिया। उसके मुंह से बार बार बस प्लीज प्लीज ही निकल रहा था। मैंने कमजोर हाथ से उसे हटाने की कोशिश की, लेकिन वह राक्षस जैसे जोर से मुझ पर हावी होने लगा और आखिर उसने मुझे फिर चेयर पर लिटा दिया।

इसके बाद उसने देर नहीं की और चेयर पर ही सीधा मेरे ऊपर चढ़ गया। मैं दिखावे के लिए अब भी विरोध कर रही थी, लेकिन इतने विरोध से तो कोई बच्चा भी नहीं हटता, यहां तो चुदास में पागल जवान मर्द था।
मैंने अपनी टांगे कस ली थीं।

उसने लैगिंग के ऊपर से ही मेरी जांघों के बीच लौड़ा ठोक दिया। मेरे दोनों हाथ उठा कर मेरे सिर के पीछे कर दिए और मेरे होठों पर झपटा।
मैंने गुस्से में कहा- यह क्या कर रहे हैं, कोई देख लेगा… छोड़ो… छोड़ो मुझे!

तभी मेरी नजर दरवाजे पर पड़ी; वह जरा सा और खुल गया था; अब पद्मा साफ दिखाई दी। उसके होंठ खुले हुए थे; एक हाथ से एक चूची दबाए थी और दूसरे से शर्ट एक तरफ कर सलवार के ऊपर से ही जबरदस्त रगड़े मार रही थी। मुझे देखती देख सकपकाई लेकिन रुकी नहीं।

मैंने डाक्टर को हटाने के लिए आखिरी जोर लगाया पर अब वह मेरे कान की लौ चूस रहा था और जांघों के बीच धीरे धीरे मगर कसकर धस्से लगा रहा था। मेरी छाती उसकी छाती के नीचे
बुरी तरह पिस रही थी। और यही मुझे अच्छा लग रहा था। इस वक्त तो कोई रीछ भी मुझे कुचल देता तो उफ न करती।
जांघों में से आग निकल रही थी, आखिर मैंने जांघें खोल ही दी। डाक्टर को तो मनमांगी मुराद मिल गई, वह झट नीचे सरका और इससे पहले कि मैं कुछ करती, उसने मेरा कमीज ऊपर किया और मेरी गीली चूत लैगिंग के ऊपर से ही अपने मुंह में भर ली।

मैं सिसिया गई और मेरा एक हाथ अपनी छाती पर और दूसरा उसके सिर पर पहुंच गया। मैंने अपनी उंगलियों में फंसा कर उसके बाल खींचे। उसने एक हाथ में मेरी दूसरी छाती भींच ली और उसे रबड़ की गेंद की तरह जोर से दबाने लगा।

उधर पद्मा भी बेशर्म हो गई थी, कामुकता के अधीन होकर उसने नाड़ा खोले बिना ही अपना एक हाथ सलवार में डाल दिया था, जिसमें जोर जोर से हिलता उसका हाथ साफ महसूस हो रहा था। उसकी काली आंखें आधी बंद थीं, जैसे सोने को हो; लेकिन वह लगातार मेरी चूत की तरफ देख रही थी, जहां डाक्टर मुंह पूरा खोल खोल कर चूसे मार रहा था।
मेरी आंखों के सामने चिंगारियां उड़ने लगीं और शरीर का सारा रस गर्म चूत की तरफ मुड़ गया।

इस बार जब डाक्टर ने चूसा मारा तो मैंने उसका सिर दोनों हाथों से पकड़ कर चूत पर ही दबा लिया और जोर से सिसियाते हुए झड़ने लगी; झड़ती गई, झड़ती गई, झड़ती गई, जब तक कि पूरी खाली नहीं हो गई।
मेरी आंखें ऐसी भारी हो गई थीं कि खुल नहीं रही थीं।

आखिर डाक्टर ने फिर नीचे हलचल की तो मेरी आंखें खुलीं, मेरी नजर दरवाजे पर गई. पद्मा जा चुकी थी; शायद उसका भी पानी छूट गया था और वह बाथरूम की ओर भागी थी।

डाक्टर ने मुझे छोड़ा और जल्दी से कुर्सी नीचे कर दी। अब वह एक बेड की तरह हो गई थी।
वह कपड़े उतारने लगा। मैंने अपनी लैगी देखी, में मेरी सफेद पैंटी साफ दिख रही थीं और चूत का उभार खासा नजर आ रहा था। मैंने पैर फिर कस लिए पर उठी नहीं।

डाक्टर अब बिल्कुल नंगधडंग था। जिंदगी में शायद ही मैंने पूरा नंगा आदमी कभी देखा हो। मेरे पति भी अक्सर कुछ न कुछ पहन कर रखते थे। नहीं तो कमरे में अंधेरा तो होता ही था।
और यहां पूरी लाइट में एक सांवला, दुबला नौजवान भारी- भरकम लंड लिए खड़ा था।
मैं अभी झड़ी थी पर फिर उत्तेजित होने लगी।

वह पतला था, पर सुगढ़ था; सपाट पेट काफी सख्त लग रहा था; उसका काला लौड़ा झांटों के बीच में से गर्व से फन उठाए खड़ा था। डाक्टर झपट कर मेरे पास आया और मेरी लैगिंग नीचे
करने लगा।

मैंने थोड़ा विरोध किया पर फिर टांगें खोल दीं। एक सैकेंड में लैगिंग और गीली पैंटी फर्श पर पड़े थे। उसने मेरी टांगें मोड़ दीं और कुछ देर तक एकटक देखता रहा।
मेरी झांटें कुतरी हुई थीं और कसी हुई जांघों ने उस पर कहर बरपा दिया। अक्सर मेरे पति भी मेरी जांघों और पेट के बीच साइड़ों पर हथेलियों से रगड़ते रहते थे; उन्हें उनकी कसावट बहुत पसंद थी।
मैं जानती थी कि डाक्टर भी इसी पर फिदा हो गया है।

मैंने शरमा कर टांगें सिकोड़ीं तो वह उन्हें जबरदस्ती खोल कर बीच में आ गया। अब जांघों पर उसका नंगा गर्म लौडा गड़ा जा रहा था। मेरा दिल किया कि अपने हाथ से रास्ता बना दूं और उसका सांड मेरे चिकने मैदान में कस कर घुस जाए।

उसने मेरा कमीज ऊपर किया तो मैंने उसका हाथ रोक लिया; मैं पूरी नंगी नहीं होना चाहती थी; मैंने कांपती आवाज में कहा- मुझे जाना है, अब और कुछ नहीं बस!
यह बात अलग है कि उस का अंदर लिए बिना मैं ठंडी नहीं होने वाली थी।

उसने कहा- कुछ देर और नहीं रुक सकतीं आप। मैं आपको छोड़ आऊँगा।
यह सुनते ही मैं अलर्ट हो गई। यह तो लंबी बात चलाने के चक्कर में है, कहीं पीछे ही न पड़ जाए, मैं कुछ नहीं बोली।
अब अच्छा है कि उसका भी जल्दी से छूट जाए तो मैं भागूं।

वह फिर सवार हो गया, उसका गर्म लौड़ा मेरी चूत के ऊपर फिसल रहा था। उसने मेरी गर्दन चूमनी शुरू कर और धीरे धीरे लौड़ा चूत के छेद पर ला कर रगड़ने लगा। मेरी चूत इतनी चिकनी हो चुकी थी कि हल्का सा पोजिशन में आते ही मुझे चूत में सख्ती और गर्माई महसूस हुई। मेरे मुंह से जोर से सिसकारी फूट पड़ी।

तभी दरवाजे पर हलचल दिखी, पद्मा वापस आ गई थी, इस बार वह कुछ संभली हुई थी पर अब भी एकटक देखे जा रही थी।
मैंने हाथ सिर से ऊपर खींचे और आंखें बंद कर लीं।

डाक्टर ने मुझे बांहों में भरा और धीरे धीरे लेकिन पूरे दम के साथ लौड़ा अंदर पेल दिया, जब तक कि हमारे पेट आपस में नहीं मिल गए। वह इतना जोर लगा रहा था जैसे शरीर को चपटा कर कुर्सी में घुस जाएगा।
मैं जन्नत में थी; इतना मजा तो मुझे आज तक नहीं आया था। मेरे पति कुछ मोटे थे। इसलिए मैंने इतनी अंदर तक कभी महसूस नहीं किया था। यहां तो लगता था कि गर्मागर्म सख्त डंडा अंदर
तक फंसा हो।
उसका इतना मोटा तो था ही कि चूत चिकनी ना होती तो फट सकती थी। मेरी चूत इतनी सिकुड़ रही थी, जैसे उसे अंदर ही निचोड़ देगी।

वह कुछ देर रुका तो मैं बेचैन हो गई; कूल्हे पीछे समेट कर मैंने फिर चूत उभारी तो लौड़ा अंदर फिसला। मैंने धीरे धीरे घस्से लगाने शुरू किए।

उधर पद्मा का हाथ फिर उसकी सलवार में था, उसने शर्ट का निचला सिरा ऊपर कर अपनी ठुड्डी के नीचे दबा लिया था जिससे उसका गोरा गोरा, थोड़ा गुदगुदा पेट दिख रहा था।
उसने एक हाथ से सलवार का आगे खींच रखी थी, जिससे दूसरे हाथ के अंदर जाने की जगह हो गई थी। इस बार जरूर उसकी उंगलियां उस की चूत में घुस रही थीं। उस का हाथ फिर तेजी से हिल रहा था।
उसे इस तरह देख कर मैं और गीली हो गई।

डाक्टर ने लौड़ा पूरा बाहर निकाल कर फिर एक ही बार में वापस पेल दिया। मेरे मुख से हिचकी निकली और मैं फिर जन्नत में पहुंच गई। इसके बाद डाक्टर मुझ से चिपक गया, होठों में मेरे होंठ चूसते हुए उसने लौड़ा पूरा निकालते हुए धक्के पर धक्के जड़ने शुरू किए तो मैं दुनिया भूल गई, फिर से मेरी आंखें बंद हो गईं, सारा खून निचुड़ कर नीचे की तरफ दौड़ा और जैसे ही उसने हुंकार भर कर मुझे जोर से कसा, मेरा भी बांध टूट गया।
उसका फव्वारा मुझे अंदर तक महसूस हुआ और साथ ही बुरी तरह झड़ती चली गई; काफी देर तक मेरे शरीर में झटके लगते रहे।

आखिर मुझे सुध आई, डाक्टर ने मुझे अब भी दबा रखा था। मैं पूरी संतुष्ट हो गई थी इसलिए सब कुछ याद आ गया। अब मुझे पद्मा की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी; मैं डाक्टर से भी आंखें नहीं मिलाना चाहती थी। जब डाक्टर अपने आप नहीं हटा तो मैंने उसे धकेला और उसके हटते ही बिना नजरें उठाए शर्ट नीचे किया, अपनी गीली पैंटी पर्स में रखी और लेगी पहनी।

मैंने अपने को समेटा तो डाक्टर ने फिर मुझे बांहों में भर लिया पर मुझे अब भागने की पड़ी थी। सामने दीवार पर घड़ी तीन बजा रही थी यानि काफी देर हो गई थी; मुझे लग रहा था कि काश मैं ऐसा न करती।
पर अब तो गलती हो गई थी, मैं आंखें झुकाए झुकाए हौले से बोली- मुझे जाना है, मेरे पति आ गए होंगे।
तीर निशाने पर लगा, डाक्टर फिर कुछ नहीं बोला और अपना काला चश्मा लगा कर जल्दी से बाहर निकल कर रिक्शा तलाशने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे आस पास के सब लोग मेरी ही तरफ घूर रहे हैं जैसे उन्हें मेरी करतूत पता लग गई है।

रिक्शा पर बैठते ही सबसे पहले मैंने अपने मुंह पर चुन्नी बांध ली जैसे धूप से बचने के लिए ऐसा किया हो। मैं किसी को मुंह नहीं दिखाना चाहती थी।

यूनिवर्सिटी पहुंची तो कुछ देर में पेपर छूटने वाला था। पांच बजे चहक बाहर आई तो बहुत खुश मूड़ में थी पर मुझे देखते ही बोली- हाय रे, कितना दमक रही है। लगता है पेपर कमाल का
हुआ है?
मैं झेंप गई; क्या बताती कि मेरा तो रिजल्ट भी 100 परसेंट आया है; जल्दी से बोली- हां ठीक हुआ है। चल अब जल्दी भागते हैं, नहीं तो लेट हो जाएंगे।

कुछ ही देर में हम बस में बैठे थे। चहक पेपर की ही बातें किए जा रही थी, पर मैं डाक्टर में गुम थी; उसका सख्त शरीर उसका भारी भरकम हथियार और बिना पेंटी के बुरी तरह चिपचिपा रही
मेरी जांघें… आहहहह… मेरे मुंह से हल्की सी आह निकली।
चहक ने चौंक कर मेरी तरफ देखा लेकिन मैंने आंखें बंद कर सिर पीछे टिका लिया। मुझे डर लग रहा था कि कहीं उसे मुझ में से वीर्य की स्मैल तो नहीं आ रही। लग रहा था बड़ी गलती हो गई, पर उसने आज जन्नत की सैर करवा दी थी। ऐसा स्वाद तो सपने में भी कभी नहीं मिला था।

दोस्तो, कैसे लगी कहानी? और हां, एक बात समझ नहीं आई कि मेरी पिछली सेक्सी स्टोरीज
जैसे जंगल में कमसिन कॉलेज गर्ल्स का शिकार
पर दर्जनों मेल आई पर लगभग सभी लड़कों की… तो क्या लड़कियों को मेरी कहानियां पसंद नहीं आईं?
जैसी भी लगी हों, मैसेज तो बनता ही है।
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