हर किसी को चाहिए तन का मिलन-4

अकीरा- तो यह बात है… अच्छा यह बताओ लंच किया या नहीं?
विक्रांत- नहीं समय ही नहीं मिला, फिर आज मेरा बावर्ची भी छुट्टी पे चला गया तो लंचबॉक्स भी मैं ला नहीं सका.
अकीरा- तो मैं भिजवा दूँ?
विक्रांत- दिल्ली से भिजवाओगी? हा… हा… हा!
अकीरा- तुम बस अपने आफिस का एड्रेस सेंड करो। 10 मिनट में खाना तुम्हारे टेबल पे होगा।

विक्रांत ने ऑफिस का एड्रेस अकीरा को भेज दिया और बेलबॉय से अगले उम्मीदवार को भेजने के लिये कहा।
तीन चार लड़कियां आई पर कोई भी विक्रांत को जंची नहीं… पर तभी उसने ईशा को अंदर आते देखा, लाल रंग के स्कर्ट और सफेद शर्ट में वो एयर होस्टेस जैसी लग रही थी ऊपर से बला की खूबसूरत।
ईशा- मे आई कम इन सर? (सर, मैं अंदर आ सकती हूँ?)
ईशा ने अपने बालों की एक लट को सँवारते हुए पूछा।
विक्रांत- येस प्लीज… बैठिये!
ईशा- गुड मोर्निंग सर!

विक्रांत- एम बी ए हो, फिर इस जॉब के लिए क्यों अप्लाई किया? मेरा मतलब है कि तुम्हें इससे बेहतर जॉब मिल सकती है।
ईशा- सर, फैमिली प्रॉब्लम के कारण मैं पिछले एक साल से जॉब नहीं कर पाई. और अब मुझे अपनी प्रोफाइल की जॉब मिल नहीं रही। और फिर जॉब तो जॉब है कुछ भी हो सकती है।
विक्रांत- मुझे तुम्हारी सही और सच्ची बात अच्छी लगी। अब ये बताओ सैलरी क्या लोगी।
ईशा- जो भी आप अपनी हार्डवर्किंग सेक्रेटरी को देते।
विक्रांत- ओह!
विक्रांत ने एक सफेद पन्ना लिया और उस पर 20000 लिख दिया और पन्ना ईशा को देते हुए कहा- इतनी सैलरी ठीक रहेगी?
ईशा- बिल्कुल सर… थैंक यू वैरी मच! कब से जॉइन करना है मुझे?

इससे पहले की विक्रांत ईशा को कोई जवाब देता उसका ‘पीए’ अंदर आया और उसने विक्रांत से कहा कि किसी ने उसके लंच भिजवाया है।
पीए- सर लंच ले आऊं?
विक्रांत- हाँ, पेमेन्ट कर देना।
पीए- सर किसी अकीरा चौहान ने पेमेंट कर दी है।
विक्रांत- कमाल है ये लड़की भी!
उसने खुद से कहा।

ईशा- क्या मैं जाऊं सर?
विक्रांत- नहीं, तुम्हें अभी से जॉइन करना है और पहला काम है लंच में मुझे कंपनी देना अगर तुम्हें कोई एतराज न हो तो!
ईशा- अह… नहीं नहीं सर… बिल्कुल नहीं कोई प्रॉब्लम नहीं है बल्कि आपके साथ लंच करना मेरे लिए सम्मान की बात है.

तो इस तरह विक्रांत को अपनी नई सक्रेटरी मिल गयी।
पर यह अकीरा कौन है और विक्रांत के पीछे क्यों पड़ी हुई है, इसका जवाब विक्रांत के अतीत में है जो धीरे धीरे हमारे सामने आएगा।

उधर दूसरी तरफ रूपिका… शाम हो चुकी थी और सब घर जा चुके थे पर रूपिका अपने ऑफिस में बैठी कुछ सोच रही थी; उसके मन में एक काम को लेकर एक उलझन थी जिसके कारण वो थोड़ी परेशान थी “क्या आज यह सब करना ठीक होगा?” उसके एक मन ने सवाल किया।
“ठीक गलत कुछ नहीं होता; जो कुछ होता है वो है जरूरत!” दूसरे मन ने जवाब दिया।
“यह ठीक नहीं है; किसी की मर्ज़ी के खिलाफ ऐसा करना ठीक नहीं!” पहले मन ने जवाब दिया।
“यह सब छोड़ रूपिका, हर किसी के जिस्म की जरूरत एक ही होती है… मर्द को बस चूत से मतलब होता है; उसकी मर्जी कुछ नहीं होती; मर्द लन्ड से सोचता है, दिमाग से नहीं; तुझे लन्ड की जरूरत है और उस दो कौड़ी के ड्राइवर को तुझ से बेहतर चूत नहीं मिलेगी.” उसके दूसरे मन ने जवाब दिया।

उसके अच्छे मन की आवाज़ को उसके अतृप्त औरत के मन ने दबा दिया और रूपिका ने झट से फ़ोन उठा लिया और अपने ड्राइवर को फ़ोन लगाया- महेश, जल्दी आफिस के नीचे आ जाओ, मैं ऑफिस से निकल रही हूं।
महेश- जी मैडम।

रूपिका जल्दी से बाथरूम गयी और कपड़े बदल लिए, उसने जीन्स और शर्ट उतार के एक गहरे गले वाली वन पीस ड्रेस पहन ली जिसमें से उसके सुडौल स्तन काफी साफ नजर आ रहे थे। रूपिका को नए मर्दों की सनक थी, जिसके साथ एक बार चुदाई कर लेती, उसे दुबारा न देखती और इसके लिए वो चुनती अपने ड्राइवर को… कई ड्राइवर उसकी इस सनक का शिकार हो चुके थे और महेश पन्द्रहवां था।

वो जब नीचे पहुँची तो महेश कार के पास खड़ा था, महेश 22-23 साल का मँझोले कद का लड़का था; अपनी मालकिन के ऐसे रूप को देख कर वो थोड़ा असहज हो गया। उसने रूपिका के लिए दरवाजा खोला।
रूपिका जानबूझ कर इस तरह से कार में बैठी की महेश की आँखें उसके मम्मों पर गड़ गयी पर लड़के ने जल्दी ही खुद को संभाल लिया और ड्राइवर सीट पर आ गया।
महेश- मैडम, घर चलना है?
रूपिका- नहीं, पहले मुझे अपने जीरकपुर वाले फार्म हाउस जाना है कुछ पेपर्स लेने हैं।
महेश ने ‘जी’ कहा और कार चलाने लगा।

रूपिका- महेश, कोई गर्लफ्रैंड है तुम्हारी?
महेश- नहीं मैडम, हम जैसे गरीब को कौन प्यार करता है।
रूपिका- आजकल प्यार के लिए बल्कि किसी और चीज़ के लिए गर्लफ्रैंड बनाई जाती है।
महेश- जी वो तो है।
रूपिका- तो कितनी बार मजा ले चुके हो?
महेश- जी मैडम क्या? मुझे समझ नहीं आई आपकी बात?
रूपिका- बड़े भोले हो, मैं पूछ रही हूँ कि कितनी बार सेक्स कर चुके हो?

रूपिका की ऐसी बात सुन कर महेश तो जैसे सुन्न ही हो गया, उससे कोई जवाब देते न बना।
रूपिका- शर्माओ नहीं, बोलो भी? या अभी तक हाथ से काम चलाते हो?
महेश- ह… हा… हाथ से ही करते हैं। मैडम फार्म हाउस आ गया।
रूपिका- गाड़ी गेराज में लगा दो, मुझे कुछ सामान भी लेना है इसलिए गाड़ी गेराज में पार्क करके अंदर आ जाना।

महेश जब बंगले में दाखिल हुआ तो रूपिका एक कमरे में एक फ़ाइल खोले बैठी थी। उसके सामने टेबल पे जॉनी वॉकर की ग्रीन लेबल दारू की बोतल खुली पड़ी थी और दो गिलास थे।
रूपिका- आओ बैठो महेश, मुझे यह रिपोर्ट पढ़नी है थोड़ा टाइम लगेगा।

महेश चुपचाप टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। रूपिका ने अपने लिए एक पैग बनाया और पीने लगी.
पर गिलास को अपने होंठों के पास ले जाकर रुक गयी एक नज़र महेश को देखा और बोली- तुम पीते हो?
महेश- पार्टी वैगरह हो तो पी लेता हूँ।
रूपिका- आज अपनी मालकिन के साथ पियोगे?
रूपिका ने पूछा पर इससे पहले महेश जवाब देता, उसने एक बड़ा सा पेग बना कर महेश को थमा दिया।

महेश- मैडम आपके साथ कैसे?
महेश ने गिलास पकड़ते हुए कहा।
रूपिका- पार्टी में पीते हो तो आज सोच लो कि तुम्हारी मालकिन पार्टी दे रही है।

दोनों के गिलास टकराये और रूपिका एक ही घूंट में पूरा पेग पी गयी। उसे देख महेश ने भी गिलास खत्म कर दिया.
रूपिका ने दूसरा पेग बनाया… फिर तीसरा… महेश पर शराब अपना असर करने लगी थी पर रूपिका बिल्कुल होश में थी.
उसने तीसरे पेग में वायग्रा की गोली चुपके से मिला दी और खुद पेग पीने का बस दिखावा करती रही।

कुछ देर बाद मेहश पांच पेग पी चुका था और रूपिका का तीसरा भी अभी खाली नहीं हुआ था।
रूपिका- काफी हैंडसम हो तुम!
महेश- थैंक्यू मैडम, आप भी काफी सुंदर हैं।
रूपिका- अच्छा… कितनी सुंदर हूँ मैं?
महेश- आप तो परी हैं जिसके सपने देखते हैं हम!
रूपिका- कभी सपने में इस परी की चुदाई भी करते हो?
महेश- मैडम, रोज आपके नाम की मुठ मारता हूँ।
रूपिका- झूठ मत बोलो?
महेश- कसम से मैडम, जब भी देखता हूँ आपको लन्ड डंडा बन जाता है मन तो करता है कार में ही चोद दूँ आपको।
रूपिका- बड़े बदमाश हो। अच्छा ये बताओ कि मुझे देख कर तुम्हारा खड़ा क्यों होता है?
महेश- मैडम, आपको देखते ही छक्के का भी खड़ा हो जाये, मैं तो मर्द हूँ।
रूपिका- चोदना चाहते हो?
महेश- मैडम, मुझे आपसे प्यार हो गया है… माँ कसम आपसी लड़की नहीं देखी, एकदम बिंदास।

रूपिका को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। महेश की हालत देखकर उसे पता चल चुका था कि पहली बार इसने इतनी पी है और नशे में धुत है।
पर उसे खेलने में मजा आ रहा था इसलिए उसने और मजा लेने की सोची।
रूपिका- प्यार और मुझ से? पता है तुमसे पहले कई मर्दों के साथ चुद चुकी हूँ मैं… मुझे मर्द प्यार नहीं करते, बस चोदते हैं।
महेश- पता है मैडम, आफिस में कई लोग आपको ऐसा बोलते हैं. यह देखो चोट… ये उस कमीने मैनेजर की ठुकाई करते हुए लगी थी. कह रहा था…
महेश कहते कहते रुक गया।

रूपिका- क्या कह रहा था ?
महेश- छोड़ो मैडम, क्यों परेशान होती हो!
रूपिका- बताओ भी…
महेश- कह रहा था कि मैडम रंडी है; हर 15 दिन पे ड्राइवर चेंज करती है और उनसे चूत मरवाती है… कुत्ते के लगाए मैंने दो चार!

रूपिका ने उसकी बात सुनी, उसका हाथ देखा, वो सच में काफी सूजा हुआ था।
रूपिका ने मेहश का चेहरा देखा तो वो आंसुओं से भीगा हुआ था। रूपिका को मैनेजर की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था पर इस ड्राइवर ने उसके अंदर की अच्छाई को जगा दिया था, उसने अपने गुलाब से होंठ महेश के अंगारों से जलते होंठों पर रख दिए और दोनों के होंठ एक हो गए। अपने घमंड के बावजूद न जाने क्यों उसने महेश को उसके घर पहुँचा दिया। वो काफी देर अकेले ही कार चलाती रही, एक अजीब सी खुशी थी उसके मन में… जिसका कारण वो खुद भी नहीं जानती थी; पर इतना जरूर जानती थी कि महेश हो सकता है कि उसके जिस्म की भूख को मिटा न पाए पर अब रूपिका अपना बदन और किसी मर्द को सौंप नहीं पाएगी।

रूपिका लगभग 8 बजे घर पहुँची और सीधे अपने कमरे में चली गई।
कुछ देर बाद उसके दरवाजे को किसी ने खटखटाया.
रूपिका- कौन है ?
महिला की आवाज़- मालकिन हम हैं रश्मि… राम लाल काका की नातिन, वो गाँव गए हैं ना तो हमें बुलाया है काम करने के लिए।

रूपिका ने दरवाजा खोला तो उसके सामने सलवार सूट पहने 18-19 साल की बेहद सुन्दर लड़की खड़ी थी। पहली नज़र में तो उसे लगा जैसे वो आलिया भट्ट को देख रही हो. पर लड़की उससे भी सुंदर थी, ऊपर से अजंता की किसी मूर्ति से तराशा हुआ बदन… देखते रश्मि उसे अच्छी लगने लगी।

रूपिका- रश्मि, काका ने तुम्हें क्यों बुलाया? अभी तो तुम्हारे पढ़ने की उम्र है।
रश्मि- दीदी, काम के तो माँ आई हैं. मैंने तो अभी बारहवीं पास की है, पढ़ने के लिए माँ के साथ आ गए। हमारे साथ हमारा भाई भी आया है. उम्र तो मेरे जितनी ही है पर दिमाग बच्चों जैसा है बीमार है तो आप उस पर गुस्सा मत करना।
रूपिका- ठीक है।
रूपिका ने सोचते हुए जवाब दिया.
वो सोच रही थी कि कितने खुले दिल की और भोली भाली लड़की है “इसकी पलविका से खूब जमेगी” उसने मन में सोचा।

रूपिका और रश्मि जब नीचे पहुँचे तो एक 30-35 साल की भरे बदन की महिला विक्रांत के लिए खाना लगा रही थी। महिला काफी आकर्षक थी गोरा रंग कुछ कुछ सोनाली बेंद्रे जैसे नैन नक्श, काफी उभरी हुई छातियाँ और कूल्हे!
रूपिका ने अंदाज़ा लगाया कि यही रश्मि की माँ होगी “उम्र तो कम से कम इसकी 45 की होगी पर अभी 30 की भी नहीं लगती.” रूपिका ने मन में सोचा।

रूपिका- गुड इवनिंग पापा।
विक्रांत- गुड इवनिंग बेटा। तो तुम रश्मि से मिल चुकी हो. हम्म… बड़ी होनहार बच्ची है, ट्वेल्थ में टॉप किया है अब इसके एडमिशन की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है।
रूपिका- जी पापा… मैं पलविका के कॉलेज में ही एडमिशन करवा दूँगी इसका, उसी के साथ चली जाया करेगी।
पलविका खुश होते हुए- बिल्कुल… हम दोनों तो दोस्त भी बन गए हैं। हैं ना रश्मि?
रश्मि- जी मालकिन!
पलविका बुरा मानते हुए- अगर तुमने मुझे दोबारा मालकिन कहा न तो मैं कभी तुमसे बात नहीं करूंगी।
रश्मि- जी दीदी।

रश्मि की माँ- मालिक छोटे मालिक नहीं आये अब तक?
विक्रांत- रुक्मणी, तुमने फिर से इनकी माँ की याद दिला दी। आज लग रहा है कि घर घर है। और तुम राहुल की टेंशन मत लो, जनाब 10-11 बजे से पहले नहीं आने वाले।
रूक्मणी- मालिक, फिर छोटे मालिक खाना कब खाते हैं?
रूपिका- खा के आएगा, काकी उसकी चिंता मत करो।
फिर विक्रांत की और देखते हुए- पापा आपकी नई सक्रेटरी काफी स्मार्ट और इंटेलिजेंट है कितनी सैलरी फिक्स की आपने?
विक्रांत- बेचारी एम बी ए है वो भी पंजाब यूनिवर्सिटी से… तो 20000 रखी है, कुछ ज्यादा है पर क्या फर्क पड़ता है।

रूपिका- पापा आप भी न… क्या एक दो हज़ार के बारे में सोचते हो, बढ़िया लड़की है, इतनी सैलरी तो बनती ही है।

विक्रांत ने जल्दी से खाना खत्म किया क्योंकि उसे अकीरा से बात करनी थी। वो उसकी तरफ चुम्बक की तरह खिंचा चला जा रहा था। अकीरा के कई मैसेज आ चुके थे पर बच्चों के सामने वो रिप्लाई नहीं कर सकता था इसलिए उसे अपने कमरे में आने की जल्दी थी।

कामुकता भरी सेक्स स्टोरी जारी रहेगी.
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