भरी दोपहरी में आंटी से सेक्स

एक दिन तो पड़ोस की एक और आंटी ने मुझे लगभग रंगे हाथ पकड़ ही लिया था।
हुआ यूं कि दोपहर के समय घर में कोई नहीं था, मैं पिछले कमरे की खिड़की के सामने खड़ा बरमूडा नीचे किए जोर जोर से हिला रहा था। मन में उर्वशी आंटी की नंगी जांघें और गोल मम्मे थे।
मैं ख्यालों में ही आंटी की चिकनी चूत में अपना मोटा औजार डाल कर घस्से पर धस्से लगाए जा रहा था।
मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थीं “आह आंटी… और लो… आज फाड़ कर ही छोडूंगा… आहहहहह… आह आंटी… आहहहहह” और तभी मेरा जोर से छूटने लगा। मेरी आंखें आनन्द में बंद हो गई थीं।
अभी एक पिचकारी लगी ही थी कि किसी ने दरवाजे से आवाज लगाई। वे पड़ोस की आंटी थी और मम्मी को आवाज लगाते हुए अंदर आ रही थीं। मेरे पास बाथरूम में घुसने तक का टाइम नहीं था,
इसलिए परदे के पीछे सरक गया। डर के मारे मैंने बरमूडा ऊपर कर लिया जो मेरे लिसलिसे वीर्य से पूरा खराब हो गया। पर यह देखने का टाइम किसे था।

आंटी कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे में मम्मी को खोजती रहीं और घर में किसी के न होने से परेशान होती रही। एक बार वे मेरे परदे के सामने से निकली तो मैंने सांस रोक ली। किसी तरह राम राम करते वे गई तो मुझे सांस आई, उनके जाते ही सबसे पहले मैंने बरमूडा चेंज किया।

मैं अभी सदमे में ही था और बरमूडा धोने की फिराक में था कि तभी फिर दरवाजे से आवाज आई; यह आवाज तो मैं लाखों में पहचान सकता था, उर्वशी आंटी थीं। उन्होंने गोद में अपने बेटे को उठाया हुआ था और दरवाजा खोल कर अंदर आ रही थीं।
अब मेरे कपड़े ठीक थे, इसलिए बिना डर के खुशी खुशी बाहर निकल आया और उन्हें बैठाया। उन्होंने अपनेपन से पूछा- कैसे हो तुम? पढ़ाई कैसी चल रही है?
मैंने कुछ उदास होकर कहा- आप क्यों चली गईं आंटी। वहां मकान क्या ज्यादा अच्छा है?
उन्होंने सो रहे बेटे को सोफे पर बैठाया और फर्श पर मेरे पास बैठते हुए बोलीं- तू क्यों उदास हो रहा है। वहां भी आ सकता है मेरे पास!

फिर उन्हें मम्मा का ध्यान आया तो मैंने बताया कि वे बाजार गई हैं शबनम आंटी के साथ; शाम तक आ जाएंगी।
आंटी ने बताया कि वहां का घर ज्यादा बड़ा नहीं है और अभी जान पहचान भी नहीं हुई है इसलिए यहां मिलने चली आईं। बेटी स्कूल गई हुई है। उसके आने से पहले, वापस जाना है।
वे पंखे के नीचे फर्श पर पालथी मार कर बैठ गईं और पल्लू से हवा करने लगीं।
गर्मी थी भी काफी!

पर मेरी नजर तो गलत जगह ही पड़नी थीं। उनके मम्मे लो कट सफेद सूट में से काफी दिख रहे थे। वे बातें करती जातीं और मैं कनखियों से नजारा करता जाता।
तभी वे बोलीं- मुझे वाशरूम जाना है, जरा मिंकू का ख्याल रखना।
वे उठकर बाथरूम की तरफ चली ही थीं कि तभी मुझे बरमूडा ध्यान आया, मेरी तो फट गई, वह तो लिथड़ा पड़ा है; मेरा निकलता भी बहुत ज्यादा है; हे भगवान, वे क्या सोचेंगी।

उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया; मैं उल्लुओं की तरह बैठा देखता रहा। उन्हें बाहर निकलने में काफी समय लगा; या फिर मेरी फटी पड़ी थी कि मुझे उनका थोड़ा समय भी ज्यादा लगा।
पर आखिर वे बाहर आईं, वे आकर फिर मेरे सामने बैठ गईं। पर इस बार कुछ नहीं बोलीं, बस मुझे देखती रहीं।

मैं नजरें चुरा रहा था।
“ऐसे काम क्यों करते हो कि नजरें चुरानी पड़ें?”
मैंने शेर बनने की कोशिश की- मैंने क्या किया आंटी, और मैं क्यों नजरें चुराऊंगा?
मैं ढीट की तरह उनकी तरफ देख रहा था।
वे हंस पड़ीं- ठीक कहते हो। इस उम्र में तो सब यही करते रहते हैं। पर अगर तुम्हारी मम्मा बाथरूम में यह देख लेती तो? कम से कम धो तो देते।

अब मैं सचमुच शरमाया पर ढीट बना रहा।
वे बोलीं- अच्छा कालेज जाते हो, कोई गर्लर्फेंड नहीं बनी क्या?
मैंने मायूस होकर कहा- बात तो हाती है, पर आगे कुछ नहीं बोला जाता।
“और अब तो आप…” मैंने जीभ काट ली। मैं बोलने वाला था कि अब तो आप भी यहां से चली गईं हैं।
“मैं क्या…?”
“वो बस कुछ नहीं…” मैंने घबरा कर बेसिरपैर की बकवास की। पर इन बातों से मेरी तबियत फिर तर होने लगी थी। मैंने टांगें मोड़कर फन उठा रहे नाग को छिपाने की कोशिश की।
“बता ना? मैं क्या… नहीं बताएगा तो मैं अभी चली जाऊंगी।” उन्होंने धमकी दी।

मुझे झटका लगा, एकदम बोल पड़ा- मुझे आपके पास रहना अच्छा लगता है। आप यहीं आ जाओ वापस!
वे मुस्कुरा रही थीं, चुन्नी समेट कर सोफे पर रखी थी, उनके गुदगुदे सांवले दूध मेरी नजरों में घूम रहे थे।

मेरे होंठ सूख गए और मुझे होठों पर जरा सी जीभ फेरनी पड़ीं। मैंने गौर किया कि उनके सांवले गाल कुछ और गुलाबी हो गए थे। उन्होंने यूं ही थूक गटका और दरवाजे की तरफ देखा। अब जाकर मुझे समझ आया कि मेरे पास कितना अच्छा मौका है, पूरे घर में कोई नहीं। और न ही किसी को पता कि उर्वशी आंटी यहां है।
शायद वे भी ये बात जानती हैं।

मैंने बहाने से कहा- बाहर का दरवाजा बंद कर दूं आंटी, कभी कुत्ता ना घुस आए।
उन्होंने बस सिर हिलाया।
मैं झट से बाहर धूप में निकल आया और तपते आंगन पर नंगे पैर ही दौड़ गया दरवाजा बंद करने। वापस आते आते तो मेरे औजार ने सारी बंदिशें मानने से साफ इन्कार कर दिया और बरमूडा
में से खूंटी की तरह बाहर निकल आया।

अंदर आया तो आंटी ने सोते मिंकू को गोद में ले लिया था और मेरे सामने ही फर्श पर एक करवट लेट कर शर्ट ऊपर कर उसके मुंह में दूध लगा दिया। मेरे सामने उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया था। मेरी तो कनपटियां गर्म हो गईं। उनके काले निप्पल मुझे उत्तेजित कर रहे थे और मैं लगातार उन्हें घूर रहा था; उनका मुलायम सपाट पेट और गोल गहरी नाभि मेरे सामने थी।
मैं कुछ नहीं बोल पा रहा था क्योंकि जानता था कि आवाज कांपती हुई निकलेगी। मेरा बरमूडा मेरा सारा राज खोल रहा था।

आंटी ने आंखें बंद करते हुए कहा- नए मकान में मन बिल्कुल नहीं लगता। तेरी मम्मा होती तो मिल लेती उनसे।
“पर मैं तो हूं आंटी!” उन्होंने आंखें खोल लीं और कनखियों से मेरे बरमूडा की ओर देखा।
“तू आज कुछ अलग लग रहा है। हुआ क्या है तुझे? बाथरूम में जो किया उससे मन नहीं भरा क्या?”

मैं चाहता था कि बस किसी भी तरह आंटी आज मान जाएं और मुझे जन्नत का मजा मिल जाए। मुझे लगा कि जरा सा आगे बढूं तो शायद वे मान जाएं। और अगर ना मानी तो? मम्मा को शिकायत लगा दी तो? मेरे मन ने कहा।
पर खुद पर बस कहां था; यह तो ऐसा कुंआ था जिसमें गिरना मेरी मजबूरी थी।
मैंने बेशर्मों की तरह लौड़े पर हाथ चलाया, पहले एक बार, फिर बरमूडा के ऊपर से ही कस कर पकड़ लिया। आंटी ने नजरें घुमा लीं। उन्होंने मिंकू को अलग किया और उसे पास ही सुला दिया। फिर बिना किसी जल्दी के सूट नीचे किया। मैं तब तक देखता रहा जब तक कि उनकी चूची वापस ब्रा में कैद नहीं हो गई।

मुझे लगा कि वे मुझे ललचा रही हैं।
मैंने चांस लिया कहा- आंटी आप थक गई होंगी। मैं कुछ हैल्प करूं?
उन्होंने फिर एक बार दरवाजे की तरफ देखा और पूछा- कैसे करोगे, बताओ?
मैंने जल्दी से कहा- आप कहें तो पांव दबा दूं या…
मैं रुक गया; मैं कहना चाहता था कि या फिर पूरी बॉडी भी दबा सकता हूं, अगर इजाजत हो तो।

उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन सीधी होकर लेट गईं; उनका शर्ट पेट पर से अब भी ऊपर था; मैं उनके पैरों के पास आया और हल्के हाथों से पैर दबाने लगा; उन्होंने आंखें बंद कर लीं पर मेरा मकसद तो दूसरा था, मैं धीरे धीरे ऊपर बढ़ने लगा। घुटनों से जरा ऊपर उनकी मुलायम मगर सुडौल जांघों पर हाथ पड़ा तो मेरा लौड़ा पत्थर जैसे सख्त हो गया।
मन किया कि सलवार की सलवटों में से ही चूत सहला दूं। मैं कुछ और ऊपर हुआ तो उन्होंने एकदम मेरा हाथ पकड़ लिया।
लेकिन न तो मेरा हाथ हटाया और न कुछ बोलीं। बस हाथ पकड़े पकड़े लेटीं रहीं।

मैंने दूसरे हाथ से दूसरी जांघ सहला दी, उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैंने चूत तक सहला दिया। उन्होंने तड़प कर मेरा हाथ झटका और दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गईं।

मेरा तो दिमाग खराब हो चुका था, मैं दोनों पैर उनके दोनों तरफ कर बैठ गया और उनकी पिंडलियां, उनके कूल्हे और कमर दबाने लगा। मेरी भारी गोलियां उनके पैरों पर लग रही थी, जिनके मुलायम स्पर्श से मैं पागल हुआ जा रहा था। मेरा मोटा औजार औकात पर आ गया था। मैंने ऊपर हाथ चलाते हुए जरा सा घस्सा लगाया तो मेरे औजार की चमड़ी पीछे हो गई, मीठी सी गुदगुदी हुई।
उन्होंने फिर एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया था।

अब मैंने ढीठ होकर धीरे धीरे घस्से लगाने शुरू कर दिए। वे उठ कर बैठने लगी तो भी मैंने उन्हें दबाए रखा। उन्होंने मुझे धक्का दिया। उससे मैं हटा तो नहीं पर मेरा औजार मेरे बरमूडा के साइड से उछल कर बाहर आ गया, वे एकटक उसे देखती रही; न मेरी तरफ देखा, न कुछ कहा।

मैंने बुरी तरह कांपती आवाज में कहा- आंटी प्लीज सीधी हो जाओ; मुझसे नहीं रहा जाता।
पर उन्होंने बात नहीं मानी।

मैंने बरमूडा की इलास्टिक नीचे कर अपना मोटा नाग पूरा बाहर कर दिया और उन्हें देखते हुए एक हाथ से मसलने लगा। मैंने उनका एक हाथ पकड़ कर अपने नाग पर रखा और अपने ही हाथ से उनसे मुठ मरवाने लगा।
अब वे उठ कर बैठ गईं और इस तरह हाथ चलाती रहीं कि जैसे उनका खुद का मन न हो, मजबूरी में चला रही थीं; पर मैं तो सांड हुआ जा रहा था; मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है तो मैंने आंटी का हाथ और कस लिया आहह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह… की हल्की आवाज में सिसकारते हुए वीर्य छोड़ दिया।

मैं काफी देर तक मुंह ऊपर आंखें बंद किए झड़ता रहा। जब होश आया तो आंटी के सारे हाथ पर वीर्य लिपटा हुआ था और वे दूसरे हाथ से अपने सूट पर पड़ी बूंदें हटा रही थीं।
मेरे ढीले पड़ते ही वे उठीं तो मैंने उन्हें पीछे से पकड़ लिया और पागलों की तरह उनकी गर्दन चूमने लगा। मैंने उनकी चूचियां भी दबा लीं और अपना ढीला पड़ गया, औजार उनके बड़े बड़े कूल्हों पर रगड़ने लगा।
अचानक उन्हें पता नहीं क्या हुआ वे सिसियाकर घूमी और मेरे सामने आ गईं, उनके होंठ खुले हुए थे, मैं इस तरह लपका जैसे रेगिस्तान के प्यासे को रसीला फल मिला हो।

मैंने उनके पूरे होठ मुंह में भर लिए और सूट के नीचे से ब्रा ऊपर कर उनकी बाईं चूची पकड़ कर मसल डालीं। उन्होंने अपनी दोनों बाहें ऊपर कर मेरे गले में डाल दी थीं और मुझसे लटक सी गई थीं। तब तक मेरा लौड़ा फिर मस्त होने लगा था। हालांकि कुछ ही देर में दो बार झड़ चुका था और कुछ झुरझुरी सी लग रही थी लेकिन लौड़ा फिर बुरी तरह सख्त हो गया।

अब मैंने देर नही की और उनके विरोध के बावजूद उन्हें वहीं जमीन पर पटक कर उन पर चढ़ गया। जल्दी से शर्ट ऊपर किया और सलवार का नाड़ा खोला। सारे कपड़े हटाने का ना मुझे होश था और न उन्होंने कोशिश की।
मैंने नाड़ा खींच कर सलवार के साथ पैंटी भी नीचे खींच दी। वाह… क्या नजारा था। ट्रिम किए हुए बालों में उनकी गुदगुदी चूत और जांघों के बीच पानी टपकने से हुई चिकनाई।

मैं उनकी जांघें बिना खोले उन पर लेट गया और चूत के नीचे लंड पेल दिया।
वे सिसिया गईं, उन्होंने जांघें खोलने की कोशिश की लेकिन मैंने दोनों तरफ से अपनी जांघों से दबाया हुआ था। मेरा लौड़ा उनकी चूत के मुंह से होकर जांघों में घुसा था और मैं उसे अंदर-बाहर किए जा रहा था।
कसम से ऐसा मजा पहले कभी नहीं आया था।

मैं उन पर लेट कर सूट ऊपर कर मम्मे चूसता और उन्हें हर जगह से रगड़ता दबाता, घस्से मारता रहा कि तभी उन्हें मौका मिल गया; उन्होंने अपनी जांघें चौड़ी कीं। तभी मेरे घोड़े को गरम-नरम गुफा में रास्ता मिला और वह बेलगाम दौड़ पड़ा।
मैं तो जैसे स्वर्ग में था। मैं अब पूरी तरह उनकी जांघों के बीच आ गया और उनकी बाजुओं के नीचे से हाथ लेजाकर उनके कंधे पकड़ लिए और वहशियों की तरह पूरा लौड़ा बाहर निकाल निकाल कर बुरी तरह घस्से लगाने लगा।

मेरे मुंह से हूं.. हूं…हूं की हुंकार निकल रही थीं और वे मेरे बालों को जोर से खींचते हुए टांगें पूरी चौड़ी किए हुए सिसकारियां मार रही थीं। मेरा पतला पेट उनके गुदगुदे मगर सपाट पेट पर चोट कर रहा था और मेरा रीछ जैसे बालों से भरा शरीर उनके कोमल, रोमरहित शरीर को खरोंच रहा था।
मैं चाहता था कि उनसे पहले न झड़ जाऊँ और इसलिए खुद को कंट्रोल करने की कोशिश भी कर रहा था पर एक्साइट इतना ज्यादा था कि ज्यादा देर चल ना सका और तभी उनका भी सारा बदन थर थर कांपने लगा। इससे मेरा जोश और बढ़ गया, मेरे आखिरी घस्से किसी हथिनी को भी घायल करने के लिए काफी थे। मैं इस तरह भिड़ रहा था कि कंधे ना पकड़े होते तो वे ऊपर सरक जातीं।
आखिर हुंकारते हुए मैंने सारा ध्यान लौड़े की टिप पर लगा दिया और आनन्द में गोते लगाते हुए झड़ने लगा। उस वक्त मुझे आंटी का कोई ख्याल ना रहा।
जब होश आया तो आंटी भी अस्त-व्यस्त थीं, उनकी लटें बिखर गई थीं और होठों के ऊपर पसीने की बूंदें थीं।

वे उठीं और बिना कुछ बोले वाशरूम में जा घुसीं। वापस आकर उन्होंने मेरे गले में बाहें डालकर मेरे होंठ चूमे और अगले दिन दोपहर को उनके नए घर में आने को बोला।
उनकी बेटी ‘प्ले वे’ से आने वाली थी, इसलिए उन्हें जल्दी भागना पड़ा।
लेकिन मैं आज अपनी किस्मत पर इतरा रहा था; ऐसा मौका तो किस्मत वालों को ही मिलता है न!
दोस्तो, मेरी यह कहानी भी सच्ची है, बस नाम बदल दिए हैं। अच्छी लगी हो तो ईमेल पर फीडबैक जरूर दें, मेरा हौसला बढ़ेगा।

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