शीला का शील-7

हाँ कभी-कभी अवि भैया जब लखनऊ आये हैं तो उसने भी सेक्स की ज़रूरत को पूरा किया है।
सोनू को यह बात मैंने बता दी थी और अपनी बहन की हालत समझते हुए उसने भी इसे स्वीकार कर लिया था।

जब भी कभी अवि भैया आते हैं, वह खुद से कोशिश करके दोनों को ऐसे मौके उपलब्ध करा देता है कि वह अकेलेपन का मज़ा ले सकें।

सुनने में कितना अजीब और गन्दा लगता है न दी कि मैं अपने से सात साल छोटे भाई जैसे लड़के से सेक्स करती हूँ, रंजना अपने सगे भाई को सेक्स करते देखती है और उससे खुद भी डिस्चार्ज होने का रास्ता निकालती है और अपने मौसेरे शादीशुदा भाई से अवैध सम्बन्ध बनाये हुए है।

कोई समाज का ठेकेदार सुन लेगा तो हमें फांसी की सजा दे देगा लेकिन क्या कोई इस सवाल का जवाब भी देगा कि हम करें तो क्या?

ज़ाहिर है कि इतनी देर से ख़ामोशी के साथ उसकी रूदाद सुनती शीला के पास भी क्या जवाब था।

चाचा के लिंग से उठते वक़्त भी उसकी उत्तेजना अधूरी रह गई थी और अब जब तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते रानो की दास्तान ने उसमें लगी आग और भड़का दी थी, जिसके अंत के बगैर उसमें चैन नहीं पड़ने वाला था।

‘क्या हुआ दी… चुप क्यों हो?’ उसे खामोश देख कर रानों ने उसे टोका।
‘इतना सीख गई और यह न सीख सकी कि ऐसी दास्तान सुन कर इंसान की हालत क्या होगी। क्या स्खलन के बगैर मैं चैन पा सकती हूँ? क्या मैं अभी कुछ सोच-समझ सकती हूँ?’

हाँ, उसने ध्यान भले न दिया हो मगर समझ सकती थी, उसने खुद से शीला की नाइटी को खींचते हुए ऊपर कर दिया।
शीला ने खुद से नितम्ब, कमर ऊपर करते उसे नाइटी खींचने में मदद की थी।
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रानो उसके वक्ष उभारों पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरने लगी। आज से पहले ऐसी हिम्मत न कभी रानो की हुई थी और न ही शीला कभी ऐसा करने की इज़ाज़त देती, लेकिन आज बात दूसरी थी।

आज उन्होंने शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था और हर वर्जना को तोड़ने की ठान ली थी तो अब क्या रोकना… अब तो हर चीज़ स्वीकार थी।

आज रानो का उसके वक्ष पे फिरता हाथ उसे भला लग रहा था और उसे खुद से उसने धकेल कर नीचे कर दिया था और अपने ही हाथों से अपने वक्ष का मर्दन करने लगी थी।

रानो ने हाथ नीचे करते उसके भगांकुर तक पहुंचा दिया था और उसकी योनि से ही रस लेकर उससे उंगलियाँ गीली करके उसे रगड़ने लगी थी।

शीला के मुख से कामुक सी सीत्कारें जारी होने लगी थीं।

यहाँ तक कि थोड़ी देर शीला के भगांकुर को रगड़ने के बाद उसने बीच वाली उंगली उसके छेद के अंदर सरका दी थी और शीला ‘उफ़ आह’ करके अकड़ गई थी।

‘दीदी, तुम्हारी झिल्ली अभी बाकी है क्या?’ उसने उंगली अंदर-बाहर करते पूछा।
‘न नहीं… बचपन में… एक… बार साइकिल… चलाते… में फट… गई थी।’ शीला ने अटकते-अटकते जवाब दिया।

रानो ने अब उंगली और गहराई में धंसा दी और अंदर-बाहर करने लगी।
शीला का पारा चढ़ने लगा, जल्दी ही स्खलन की घड़ी आ गई और मुंह से तेज़ सिसकारियाँ निकालते शीला कमान की तरह अकड़ गई और झटके लेने लगी।
फिर एकदम ढीली पड़ गई और बेसुध सी हो गई।

‘दी…’ थोड़ी देर बाद रानो ने उसे पुकारा।
‘ह्म्म्म?’ शीला ने जवाब देते हुए आँखें खोली और ठीक से ऊपर चढ़ के लेट गई।

‘देखो, अगर वर्जनाओं को लात मारनी ही है तो हमारे लिए बेहतर यही है कि हम घर में मौजूद चाचा के लिंग का उपयोग करें।

लेकिन चूंकि चाचा का लिंग ही समस्या है जिससे पार पाने के लिये हमें अपनी योनियाँ इस हद तक ढीली करनी पड़ेंगी कि समागम संभव हो सके।

और योनि ढीली करना कोई दो चार बार उंगली करने से तो हो नहीं जाएगा। इसके लिए बाकायदा हमें सम्भोग करना पड़ेगा। जैसे मैंने किया है, आज मैं तो इस हाल में पहुंच गई हूँ कि कोशिश करूं तो चाचा के साथ सहवास बना सकती हूँ।

लेकिन बात तुम्हारी है, मान लो जैसे तैसे करके घुसा ही लो तो घुसाना ही तो सब कुछ नहीं है, चाचा कोई समझदार इंसान तो है नहीं कि उसे पता हो कि कैसे करना है, कितना करना है।
वह ठहरा बेदिमाग जानवर सा… क्या भरोसा एकदम जोश में आकर सांड की तरह जुट जाये। तो समझो कि फाड़ के ही रख देगा।’

‘यह ख्याल तो मुझे भी आया था कि अगर कहीं चाचा घुसाने और करने के लिए बिगड़ गया तो संभालूंगी कैसे? ये तो ऐसा मसला है कि किसी को बुला भी नहीं सकती थी।’

‘हाँ वही तो… इसीलिये चाचा के लिंग के बारे में तब सोचना जब उसे संभाल पाने की क्षमता आ जाये। फ़िलहाल किसी ऐसे इंसान के बारे में सोचो जो तुम्हारे साथ ऐसा रिश्ता भी बना सके और हमेशा के लिए सर पे भी न सवार हो।’

‘ऐसा इंसान?’ वह सोच में पड़ गई।

‘अवि भैया जैसा जिसकी अपनी मज़बूरी हो कि खुद से कभी न सवार हो या सोनू जैसा जो तुम्हारी ज़रूरत भी पूरी कर दे और फेविकोल भी न बने।’

एक-एक कर उसके दिमाग में वह सारे चेहरे घूम गये जिनके साथ उसका उठना-बैठना था, बोलना था, मिलना-जुलना था लेकिन उन तमाम चेहरों में उसे एक भी चेहरा ऐसा न दिखा जिसपे वह भरोसा कर सके।

‘नहीं।’ उसने नकारात्मक अंदाज़ में सर हिलाते कहा- जो हैं, उनमें मुझे भोगने की लालसा रखने वाले तो कई हैं लेकिन ऐसा एक भी नहीं जिस पे मैं भरोसा कर सकूँ।’

‘फिर… घर के अंदर ही जैसे रंजना को अवि भैया उपलब्ध हैं या मुझे सोनू उपलब्ध है, ऐसा भी तो कोई नहीं… जो हमारी मुश्किल हल कर सके?’
दोनों सोच में पड़ गईं।

थोड़ी देर बाद रानो उसे अजीब अंदाज़ में देखती हुई बोली- दी, अगर तू कहे तो सोनू से बात करूं?

‘क्या!’ शीला एकदम चौंक कर उसे देखने लगी- पागल तो नहीं हो गई रानो? सोच भी ऐसा कैसे लिया तूने? मैं और सोनू… छी!’
‘दी… अब यह तुम्हारे खून में दौड़े संस्कार बोले। ज़रा बताना तो यह छी कैसे हुआ?’

‘नहीं रानो, यह नहीं हो सकता। कहाँ सोनू और कहाँ मैं? मैं भला कैसे… अरे बच्चा है वह। जब पैदा हुआ तो मैं बारह साल की थी। अक्सर मैं संभालती थी उसे जब चाची को ज़रूरत होती थी।’

‘गोद तो मैंने भी खिलाया था न उसे, मुझे भी दीदी ही कहता था, आज भी कहता है पर हमारे बीच यह रिश्ता संभव हुआ न! तो तुम्हारे साथ कौन सी ऐसी वर्जना है जो तोड़ी नहीं जा सकती।’
वह चुप रह गई।

‘सोच के देख दी, क्या बुराई है इसमें? मर्द ही है वह भी, जैसे चाचा मर्द है… हमें एक मर्द ही तो चाहिये जो हमारी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा कर सके। चाचा भी तो रिश्ते में है न? तो जब उसके साथ सम्भव है तो सोनू के साथ क्यों नहीं?’

सवाल पेचीदा था।

उसके अंदर मौजूद नैतिकता के बचे खुचे वायरस उसे कचोट रहे थे, उन वर्जनाओं की याद दिल रहे थे जिन्हें उसने बचपन से ढोया था, लेकिन अब उसमें एक बग़ावती शीला भी मौजूद थी।

जो उन वर्जनाओं से पलट कर सवाल पूछ सकती थी कि उन्होंने उसके लिए क्या सम्भावना छोड़ी है। वह जिधर भी जायेगी होगा तो सब अनैतिक ही न। तो जो चाचा के साथ हो सकता है वह सोनू के साथ क्यों नहीं?

थोड़ी देर लगी उसे समझने में कि वह चूज़ करने का हक़ नहीं रखती और उसके लिए जो भी है शायद आखिरी विकल्प ही है। या अपनाओ या इस सिलसिले को भूल जाओ।

‘मगर सोनू… भला मैं उसके साथ कैसे…?’ फिर भी उसने आखिरी बार प्रतिरोध किया।

‘तो क्या सोचती हो दीदी, तुम्हारे लिए कोई सपनों का राजकुमार आएगा?’ रानो झुंझलाहट में कह तो गई मगर फ़ौरन ही अहसास भी हो गया कि उसने गलत कह दिया।

बात चुभने वाली थी, चुभी भी और चोट दिल पे लगी।
अपनी स्थिति पे उसकी आँखें छलक आईं।
वह गर्दन मोड़ कर शिकायत भरी नज़रों से रानो को देखने लगी।

‘सॉरी दी, मेरा मतलब तुम्हें चोट पहुँचाने से नहीं था बल्कि यह कहने से था कि क्या हमारे पास चुनने के लिए विकल्प हैं?’
‘सोनू तैयार होगा भला इसके लिये?’

‘हह…’ रानो एकदम से हंस पड़ी- दीदी, फितरतन आदमी जानवर होता है, जहाँ भी उसे एक अदद योनि का जुगाड़ दिखता है, वह घोड़े की तरह उस पर चढ़ दौड़ने के लिए तैयार हो जाता है। रिश्ते भला क्या मायने रखते हैं।’
वह असमंजस से उसे देखने लगी।

‘वह मन से कितना भी अच्छा हो, मगर है तो मर्द ही और भले तुम्हें हमेशा बड़ी दीदी की जगह रखा हो… मगर जब तुम पर चढ़ने का मौका मिलेगा तो इंकार नहीं करेगा। मैं कल बात करूंगी उससे, अब सो जाओ।’
कह कर वह चुप हो गई।

शीला के दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा था।
आज एक नई सम्भावना पैदा हुई थी जो भले वर्जित थी मगर उसकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकती थी।
वह काफी देर तक इन्हीं संभावनाओं को टटोलती रही, फिर आखिरकार नींद ने उसे आ घेरा।

सुबह नया दिन उसके लिए नई उम्मीदें लाया था।
वह दिन भर रोज़ के के काम निपटाते खुद को मन से इस वर्जित समागम के लिये तैयार करती रही। उसे यह ठीक नहीं लग रहा था मगर यह भी सच था कि उसके पास चुनने के लिये विकल्प नहीं था।

जैसे तैसे करके दिन गुज़रा… रात को चाचा के परेशान करने की सम्भावना इसलिये नहीं थी क्योंकि कल ही उसका वीर्यपात कराया गया था।
वह जानने के लिये बेताब थी कि रानो की सोनू से क्या बात हुई होगी… कई तरह की संभावनाओं के चलते उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।

रात के खाने के बाद उसके सिवा बाकी तीनों ऊपर अपने कमरों में चले गये और रात के ग्यारह बजे रानो अपना तकिया कम्बल लिए उसके पास आई।

‘मैंने आकृति को समझा दिया है कि चाचा अब ज्यादा परेशान करता है और दीदी अकेले नहीं संभाल पाती इसलिये मैं अब से दीदी के साथ नीचे ही सोऊँगी।’ रानो ने दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।

‘सोनू से क्या बात हुई।’ शीला के लिये जिज्ञासा को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था।

‘बताती हूँ दी… सांस तो लेने दो।’ वह बिस्तर पर अपना ठिकाना बनाते हुए बोली, फिर खुद भी लेट गई और उसे भी लेटने का इशारा किया।

अजीब उधेड़बुन में फसी शीला उसके बगल में आ लेटी और उसे देखने लगी।

‘पहले मैंने रंजना से बात की थी… उसे बताना ज़रूरी था मेरे लिये। और जैसी मुझे उम्मीद थी कि सुन कर उसने राहत की सांस ली थी कि इतनी देर से सही पर दीदी की समझ में यह बात तो आई।

फिर उसके सामने ही सोनू से बात की थी, इस अंदाज़ में नहीं कि तुम सेक्स के लिये मरी जा रही हो और तुम चाहती हो कि वह तुम्हें फ़क करे आ के।
बल्कि उसे तुम्हारी मज़बूरी, तुम्हारी तड़प और बेबसी का हवाला दिया था और यह जताया था कि हम दोनों, मतलब मैं और रंजना यह चाहते हैं कि वह इस मामले में हमारी मदद करे!

मदद ज़ाहिर है कि तुम्हारी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने की थी, उसे यकीन नहीं कि तुम इसके लिये कभी तैयार होगी।
आखिर हम सबने तुम्हारे चरित्र को देखा है जाना है, कैसे सोच ले कोई कि तुम टूट गई।

मैंने उसे यकीन दिलाया कि मैं इसके लिये तुम्हें तैयार करूंगी… चाहे कैसे भी करके, बस सवाल यह है कि क्या वह इसके लिये तैयार है।
उसमें वही हिचक थी कि भला कैसा लगेगा बड़ी दीदी के साथ सम्भोग करना।

लेकिन मैं भी तो बड़ी दीदी ही थी उसके लिये। मेरे पीछे तो खुद पागल था लेकिन अब खुद की ज़रूरत पूरी होने लगी थी तो संस्कारी हिचक सामने आने लगी थी।

लेकिन फिर दिमाग ने इस सिरे से सोचना शुरू किया कि बड़ी दीदी कुंवारी हैं और अब उसे फिर एक कुंवारी योनि भोगने को मिलेगी तो आखिरकार तैयार हो गया और एक बार दिमाग ने स्वीकार कर लिया…

तो अब यह जानो कि उसे किसी चीज़ की फ़िक्र न रही होगी बल्कि दिमाग में नई योनि की कल्पनाएँ उसे और उकसा रही होंगी।’

‘भला रंजना क्या सोचती होगी… कि हम उसके भाई का इस्तेमाल कर रहे हैं।’

‘अच्छा… और वह हमें नहीं इस्तेमाल कर रहा। ताली क्या एक हाथ से बज रही है… किसने रास्ता दिखाया मुझे? तुम कुछ ज्यादा सोच रही हो दी… वह ऐसी बात सोच भी नहीं सकती।’

शीला सोच में पड़ गई।
‘फिर… कब होगा यह?’

‘आज रात ही… अभी दस पंद्रह मिनट में आएगा। हम चुपके से उसे अंदर ले लेंगे और एक घंटे बाद चला जाएगा।’

‘क्या— अभी! यहाँ!’ वह चौंक कर उठ बैठी और झुरझुरी लेती हुई बोली- नहीं, किसी को पता चल गया तो क्या सोचेगा?’
‘किसी को क्या पता चलेगा, हमारा घर जिस गली में है उसमें अंधेरा ही रहता है और कौन आता है कौन जाता है क्या पता चलता है और किसी ने देख भी लिया तो वह कौन सा अजनबी है, देखने वाला यही सोचेगा किसी काम से आया होगा।’

‘पर…’ वह उलझन में पड़ गई।
‘पर क्या? तुम ख्वामखाह उलझ रही हो। सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो, कोई बात बिगड़ेगी तो मैं अपने ऊपर ले लूंगी। तुम फ़िक्र मत करो और दिमाग सेक्स पर एकाग्र करो।’

पर यह उसके लिये आसान नहीं था, तरह-तरह की आशंकायें, संभावनायें उसे डरा रही थीं और तभी रानो के फोन पर मिस्ड काल आई।

‘आ गया… मैं उसे लेकर आती हूँ, मैं जानती हूँ कि तुम एकदम से उसका सामना नहीं कर पाओगी, इसलिये अपनी आँखों पर स्टोल बांध लो, मैं हर तरफ घुप्प अंधेरा कर देती हूँ।’

रानो उठते हुए बोली थी और उसने तेज़ी से धड़कते दिल के साथ पास ही पड़ा अपना स्टोल उठा कर अपनी आँखों पर बांध लिया था।
अब दिमाग से ही देखना था, जो भी महसूस होता उसे दिमाग के सहारे ही कल्पना देनी थी।

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