प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-3

वो तुरन्त ही नीचे बैठी और मेरे लंड को मुँह में ले लिया पर लंड को इस तरह से लिया कि लंड का कोई हिस्सा उसकी जीभ से छू नहीं रहा था, केवल बाहरी चमड़ा उसके होंठो में फंसा था।
मुझे मजा नहीं आ रहा था तो लंड को बाहर निकालकर सुपाड़े के खोल को खोल कर उसे जीभ से चाटने के लिये कहा, बिना कुछ बोले वो सुपाड़े को चाटने लगी।
धीरे-धीरे वो मेरे लंड को चाटने में इतनी मस्त हो गई कि अपनी बुर को भी सहलाने लगी।

दो मिनट बाद खड़ी हुई और मुझसे बोली- शरद, आपके कहने पर मैंने कर दिया… अब आप मेरी बात भी मानेगे?
मैंने कहा- हाँ बिल्कुल मानूंगा पर खुले शब्दों में बोलना।
मेरे पास आई और मुझसे चिपकते हुए बोली- जिस तरह तुमको मैंने मुताया है। क्या उसी तरह तुम मुझे मूताओगे?
‘बस इतनी सी बात…’ कहकर मैं उसके पीछे गया और उसके पीछे खड़ा हो गया।
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यद्यपि मेरा लंड उसके पीछे लड़ रहा था फिर भी मैं उससे चिपक कर उसकी बुर के फांकों को फैलाया और वो पेशाब करने लगी।
वो पेशाब कर रही थी और मैं उसकी क्लिट को उँगली से छेड़ रहा था।
पेशाब करने के बाद बोली- जानू, मेरी चूत भी फड़फड़ा रही है, प्लीज चाटो ना!

मैंने नीचे बैठते हुए उसकी एक टांग को सीट के ऊपर रखा और बुर में जीभ लगा कर चाटने लगा।
रचना मस्त हो गई और ‘हूँ हाँ…’ की आवाज उसके मुँह से निकल रही थी। बीच बीच में ‘और चाटो और चाटो…’ बोल रही थी।
शायद उसकी खुजली बढ़ती जा रही थी तभी तो वो मुझे अपने बुर के अन्दर समेट लेना चाहती थी।

‘शरद खुजली नहीं खत्म हो रही है, कुछ करो?’ मैं उठा और उसको कमरे में लाकर बिस्तर में लेटाया और उसकी टांग फैलाकर लंड को सेट किया।
लेकिन यह क्या, चूत थी उसकी या कोई आग का भट्टा।
बहुत गर्म थी उसकी चूत!

फिर हल्के से मैंने धक्का दिया, उसके मुँह से आह की हल्की सी आवाज निकली।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोली- ऐसा लग रहा है कि मेरे अन्दर तुमने गरर्म लोहे की रॉड डाल दी हो।

इसकी इस बात से मुझे उस पर बहुत प्यार आया, मैंने उसके गालों को चूमा और बोला- जान, मेरी मेरी भी हालत तुम्हारी जैसी है, मुझे भी लग रहा है कि किसी भट्टी के अन्दर मेरा लंड चला गया है।
‘हस्स!’ मुँह से निकला और दाँतो से अपने होंठों को चबाने लगी।

मैं उससे बातें करता जा रहा था और लंड को धीरे-धीरे अन्दर की तरफ डाल रहा था। मैं इस नई बुर की सील को ताकत, झटके से साथ नहीं तोड़ना चाहता था तो मैं बार-बार हल्के से लंड पुश करता, काफी प्रयास करने पर सुपाड़ा ही अन्दर घुसा था।

अब मुझे गुस्सा आ रहा था और मन कर रहा था कि झटके वाला ही मामला ठीक है,क्योंकि इस तरह तो मुझे अपने दिल और दिमाग दोनों को ही नियन्त्रण भी करना पड़ रहा था, क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा था कि कहीं नियन्त्रण खोने से माल जल्दी न निकल जाये और रचना के सामने शर्मिन्दा न होना पड़े।

फिर एक तरफ दिमाग में आता कि चलो जो होगा वो देखा जायेगा और मैंने अपने ऊपर नियन्त्रण रखते हुए लंड को धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा और काफी प्रयास के बाद लंड ने बुर में जगह बनानी शुरू कर दी।

इस बीच शायद रचना को भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था, इसलिये वो भी अपनी गांड उठा-उठा कर लंड को अन्दर लेने का प्रयास कर रही थी।
हम दोनों के लगातार प्रयास के कारण लंड अब पूरा उसके बुर में जा चुका था।
हाँ एक बात जरूर थी दोस्तो कि दोनो एक दूसरे को काफी जकड़ कर रखे थे।

जगह मिलने पर लंड ने अब अपना काम दिखाना शुरू कर दिया था और अब हम दोनों के बीच तेजी की जंग लड़ी जा रही थी।
अब मेरी भी ताकत जवाब दे रही थी और शायद रचना भी झड़ चुकी थी क्योंकि वो भी ढीली पड़ गई थी।
मैंने जैसे ही अपना लंड बाहर निकाला, पिचकारी छूट गई और मेरा माल पूरा रचना के चूची, नाभि और यहाँ तक की उसके होंठों में ऊपर पड़ गया।

वो उठी और रूमाल लेकर उसने अपने मुँह को पोंछा और फिर उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी जो उसकी चूत की खून से सना था, देखकर बोली- यह खून तुम्हारे लंड पर कहाँ से आया?
मैंने खींस निपोरी और बोला- डार्लिंग, यह तुम्हारी बुर की सील टूटने की निशानी है।

वो मेरी तरफ आश्चर्य से देखने लगी और बोली लेकिन आप लोगों की कहानियो में तो मैंने पढ़ा है कि जब सील टूटती है तो लड़की को बहुत दर्द होता है? मुझे तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।
‘वो मैंने तुम्हारे साथ जोर अजामाइश की जगह प्यार से किया था इसलिये तुम्हें दर्द नहीं हुआ था।’

तब से, दोस्तो, मैंने एक प्रण लिया कि अगर किसी कुँवारी चूत को चोदूँगा तो उसके साथ संयम से करूँगा, चाहे मैं जल्दी खलास क्यों न हो जाऊँ।
उसने बड़े ही प्यार से मेरी तरफ देखा और फिर रूमाल से मेरे लंड को साफ करके अपने बदन को साफ किया और टॉयलेट की तरफ जाने लगी।
मुझे लगा कि वो मूतने जा रही है लेकिन वो टट्टी करने लगी।
‘डार्लिंग मुझे बता देती तो पहले मैं मूत लेता उसके बाद तुम टट्टी कर लेती।’
‘मुझे तो बहुत तेज लगी थी इसलिये मैं करने बैठ गई।’
फिर अपनी टांग को फैलाते हुए बनी हुई जगह को इशारे से बताते हुए बोली- तुम चाहो तो मूत सकते हो।
‘करने को तो मैं कर दूँ लेकिन छींटा पड़ेगा?’

‘कोई बात नहीं, नहाना तो है ही! इतना उसका कहना ही था कि मैंने मूतना शुरू कर दिया। मूतने के बाद मैंने अपना लोअर पहना और रचना से बोला- अब मुझे ऑफिस भी जाना है, तुम भी अपना काम निपटा लो, फिर शाम को मिलते हैं। और तुम्हारी झांट भी बनाते हैं।

आपका अपना शरद
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