चुदाई की भूखी लौंडिया की मस्त दास्तान-2

उसने मेरे कंधे पकड़ कर धीरे-धीरे लौड़ा चूत के भीतर किया। लौड़ा घुसते समय बड़ी परेशानी हुई। उसका लंड अच्छा, स्वस्थ और सामान्य रूप से तगड़ा किस्म का था।

लौड़ा लेते ही मेरी आंखें मिच गईं।
उसने हल्के-हल्के अन्दर-बाहर किया।

मैंने गांड को दाएं-बाएं कर लंड को अन्दर एडजस्ट किया। जब लंड ने जगह बना ली तो मेरी खुजली बढ़ गई।

मैंने उससे साफ कहा- अब तुम अपनी पसंद के हिसाब से मुझे ढंग से जल्दी से चोद दो।
वह खुश होकर चोदने लगा।
उसके ‘ठकाठक’ धक्कों से मेरा सिर दीवार में लगने लगा।

मैंने उसे रोका और कहा- एक मिनट जरा मेरे सिर के पीछे तकिया लगा दो।

उसने लंड बाहर निकाल लिया। मेरे सिर के पीछे तकिया लगाया।

मैंने कहा- कंधे या कूल्हे पकड़कर ऐसे धक्के लगाओ कि मेरे सिर और गर्दन पर जोर न पड़े।

फिर उसने और थूक लगाया मैंने लंड दोबारा डालने में उसकी मदद की। उसने अबकी कंधे पकड़कर एक अच्छी स्पीड में चोदा.. इतना मजा आ रहा था कि उसे बयान करने के लिए शब्दकोष में कोई शब्द नहीं हैं।

जिन्हें अच्छी चुदाई कराने का शौक है और जिनकी अच्छी चुदाइयों हुई हैं.. वे ही जानती हैं।

उस कुंवारे ने कई महीनों से चूत नहीं मारी थी, हफ्ते भर पहले मुट्ठ मारी थी, उसने पूरी रुचि और उत्साह से मुझे जम कर चोदा।
मैं जल्दी झड़ गई।

उसने दस-बारह धक्के और पेले.. फिर आहिस्ता-आहिस्ता डालने-निकालने लगा।
उसने ढेर सारा वीर्य मेरी चूत में उड़ेल दिया।

हाय.. उससे चुदकर झड़ना और उसके झड़ने के बाद उसका गर्म बहुत गाढ़ा वीर्य से चूत का लबालब भर जाना.. और बहुत सारा वीर्य चूत से गांड तक रिसना.. और तौलिए तक फैल जाना बहुत भला लगा।

मैं उसका वीर्य पीना चाहती थी.. पर कह नहीं पाई।
अभी मेरी झिझक कुछ बाकी थी, उसका लौड़ा अभी चूत में ही था।

खैर.. हमें बातें करते एक-दूसरे की तारीफ करते कुछ क्षण गुजरे।
फिर मैंने उसे हटाया और उठी।

मैंने पहले उसके सामने चूत फैलाकर तौलिए से वीर्य पौंछा, उसका लंड भी पौंछा, फिर तौलिया लेकर बाथरूम गई।
तौलिया और चूत को खूब धोया।

आज मैं बहुत आराम महसूस कर रही थी। यद्यपि तगड़े लंड से चूत अच्छी रगड़ गई थी और रगड़ महसूस हो रही थी, पर वीर्य ल्यूब्रिकेंट का काम करता हुआ अच्छा लग रहा था।

वापस आई तो वह लुंगी लपेटे, सज्जनों की तरह दीवार के सहारे अधलेटा हुआ मेरी कक्षा की एक कहानियों की किताब पढ़ रहा था। एक-दूसरे को हमने देखा, मुस्कराए।

अब तक एक घंटा हो चुका था।
अभी भाभी और माँ के आने में कम से कम एक घंटे का समय बाकी था।

एक बार फिर मैंने मस्त चुदाई का इरादा किया।
मैं उसके बगल सटकर अधलेटी हो गई।

कुछ उसकी कुछ मेरी पहले की चुदाई की बातें हुईं।
उसने मेरी चूचियों से खेलना शुरू किया तो मैंने उसकी लुंगी में हाथ डालकर लौड़ा हाथ में ले लिया।

मैंने लौड़े की तारीफ की.. उसका लौड़ा कड़क हो गया था।

मैंने कहा- अब मैंने नहीं दी तो तुम्हारा लौड़ा तुम्हें परेशान करेगा, तुम फटाफट एक बार और मेरी चूत मार ही लो।
वह बोला- यार, तुम्हारा अंदाज.. व्यवहार और मेरी चिंता करना लाजवाब है।

मैं तेजी से पलटी और उसकी लुंगी, कच्छे से लौड़ा निकालकर उसका गुलाबी टोपा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
उसके मुँह से सिसकारी निकली।

मैंने उसके लौड़े को थूक से तर-बतर कर दिया और कहा- मेरी चूत में अब थूक लगाने की जरूरत नहीं.. अभी तो काफी वीर्य भरा है.. ऐसे ही डाल दो।

उसने भी देर न की।
मैंने लेटकर टांगें फैलाई, उसने टांगें उठाईं और टोपा चूत के बीच रख दिया।

मेरे आँख मारते ही उसने मेरे कंधे पकड़े और आराम से पूरा लौड़ा अन्दर सरका दिया।
कुछ सेकेंड में मैंने लंड एडजस्ट कर उसे चुदाई का इशारा कर दिया, उसने चोदना शुरू किया।

सेक्सी बातें, हल्की सिसकारियां, मेरी तारीफ.. ओह.. उसकी चुदाई में क्या मजा आ रहा था।

इससे पहले मैं गांव में अब तक 5-6 लोगों से चुदवा चुकी थी, लेकिन इतना मजा नहीं आया। शायद इसलिए कि एक तो जल्दी रहती थी और अच्छी चुदाई का तजुर्बा भी नहीं था।

मैंने कई किताबें पढ़ी थीं और उसी तरह चुदवाना चाहती थी। मैंने यूं तो कई लोगों को चुदवाते समय गाइड किया भी था लेकिन बढ़िया चुदाई हो ही नहीं पाई।
हालांकि अच्छा मजा आता था।
कई बार तो कई लोग मेरे झड़ने पहले ही झड़ जाते थे।

खैर.. इस बार मैंने उसे झड़ने से पहले ही बोला दिया था- तुम माल मेरे मुँह में निकालना।

वह समय भी आया, मैं झड़ गई..
उसका भी झड़ना करीब था।

उसने फिर लंड मेरे हाथ में दे दिया।
मैंने उसे मुँह में लेकर टोपा चूसना शुरू किया, उसकी सिसकारियां भी गजब निकल रही थीं।

वह मेरे मुँह में झड़ गया।

हम पसीने-पसीने हो गए।
कुछ क्षण बाद हम अलग हो गए।
मैं निहाल हो गई थी, उसकी बहुत एहसानमंद थी।

मैंने उससे कहा- मैं तुमसे बार बार चुदवाना पसंद करूँगी।

मैंने उससे एक मजाक भी किया- मेरे भाई ने तुम्हारी बहन चोदी है.. तुमने मेरे भाई की बहन चोद दी।

वह मुस्कराया.. उसने भी बोला- मैं हमेशा तुम्हारा एहसानमंद रहूँगा।

फिर मैं रसोई में जाकर चाय बना लाई।
हमने चाय पी।

मैंने कहा- रात को कोशिश करूँगी कि तुम मेरे इसी कमरे में, इसी बिस्तर पर सोओ.. मैं तुम्हें किसी वक्त और मौका दूँ।
उसने पूछा- सब घर में होंगे.. तो कैसे होगा?
मैंने कहा- स्थिति अनुकूल हुई, मेरे या तुम्हारे मुकद्दर में हुआ.. तो हो जाएगा।

फिर मैं रसोई में मांजने-धोने लगी।
मैं बड़ी खुश थी, मेरी हफ्तों से जंग खाई चूत की अच्छी मंजाई-सफाई हो गई थी।

तभी माँ और भाभी भी आ गईं।

माँ और भाभी बाजार से मछली लाई थीं।
हमने खाना बनाया।
आठ बजे तक भैया भी आ गए.. उन्होंने पहले स्नान किया, फिर मैंने उन चारों को खाना खिलाया, उसके बाद मैंने खाया।

खाना खाते-खाते अन्य बातों के अलावा सुरेश के मेरे कमरे में और मेरा मम्मी के साथ सोना तय हो गया था।
यही मैं चाह रही थी।

नौ बजे भाई ऊपर चले गए।
मैंने बरतन मांजे।
उस समय मैं अपनी चूत और दो बार सुरेश से मंजवाने की सोच रही थी।

भाभी दूध गरम कर रही थीं। इस बीच उन्होंने सुरेश को भी मेरे कमरे में जाने को कह दिया था।

भाभी दो गिलास दूध लेकर ऊपर चली गई।
माँ भैंस के पास थीं।

तभी मैंने सुरेश को एक गिलास दूध दे दिया, सभी खिड़कियां भिड़ा दीं।
मैंने उसे कुछ सेकेंड के लिए चूचियां पकड़वा दीं और उसके होंठ चूस लिए।

मैंने भी लुंगी में खड़े उसके लंड को सहला दिया।

मैंने सुरेश को कमरे के आगे-पीछे के दोनों दरवाजे की कुंडी न लगाने की हिदायत दी।
वह समझ गया और मुस्कराकर हामी भर दी।

पीछे का दरवाजा आंगन और बाथरूम की ओर खुलता था और आगे का दरवाजा गैलरी में खुलता था।
इसी गैलरी में माँ के कमरे का दरवाजा खुलता था।
मतलब दोनों कमरों के दरवाजे आमने-सामने थे।

माँ की कई मर्जों की दवा चल रही थी, कई गोलियां खाती थीं, उनको मैं ही दवाई देती थी।
मैंने उनकी गोलियों में नींद की एक गोली मिला दी।

मैंने और माँ ने टीवी देखते हुए दूध पिया, फिर मैंने अपना और माँ का गिलास लिया और अपने कमरे में गई, टेबल से सुरेश का गिलास उठाते हुए कहा- पी लिया दूध?

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया तो फिर मैंने हल्के से उसके कान में कहा- अभी भैंस का पिया है, डेढ़-दो घंटे बाद मेरा दूध पीना।
उसने हँस कर कहा- अनुगृहीत होऊँगा।

मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रखे तो उसने कुर्ती के ऊपर से ही मेरी एक निप्पल मसल दी।
मैंने फिर तेजी से लुंगी के ऊपर से ही उसके लंड में चिकोटी काटी और भागने को पलटी कि उसने उसी तेजी से मेरे एक चूतड़ में चिकोटी काट दी।

खैर.. मैं मजे में मस्त होकर रसोई में चली गई।

मैं और माँ लेट गए।
मैंने सोने का नाटक किया।
चूतड़ पर काटी गई सुरेश की चिकोटी में हल्का मीठा दर्द था।

सवा दस बजे माँ के खर्राटे गूंजने लगे।
मैंने कई बार नींद में करवटें बदलने का नाटक किया, हाथ-पैर इधर उधर फैलाए, मम्मी पर कोई असर नहीं हुआ, उनके खर्राटे लगातार निकालते रहे।

साढ़े दस बजे तक मैंने सोचा कि अब तक तो भैया-भाभी चुदाई करके सो गए होंगे।
उनका 99 प्रतिशत डर नहीं था। क्योंकि बाथरूम ऊपर ही था, आमतौर वे रात को नीचे नहीं आते थे, उन्हें शायद चुदाई की जल्दी रहती थी।

खाना खाते ही भाई चले जाते थे, उनके बाद रसोई का आधा-अधूरा काम करके भाभी भी जल्दी भागती थीं।

मैं उठी.. जीरो वाट का बल्ब भी बंद किया।
अब मैं दबे पांव निकली.. दरवाजा पहले जैसा भिड़ा दिया।
बाहर बाथरूम में जाकर मूता, एक नजर छत पर मारी और फिर पिछले दरवाजे को हल्के से धकिया कर अपने कमरे में घुसी।

ट्यूब लाईट से कमरा रोशन था।
मैंने दरवाजों की कुंडी लगाई, आहिस्ता से सुरेश के बगल में लेटी।

वह जाग रहा था।
बोला- लाईट तो बंद करो।
मैंने कहा- नहीं, जो होगा देखा जाएगा.. पकड़े गए तो सारा दोष मैं अपने ऊपर ले लूंगी। मम्मी कई घंटे जागेंगी नहीं, भाई-भाभी के आने की संभावना नहीं।

मैं उसके सीने के बीच अपना मुँह रख उस पर लेट गई। उसने मेरे बाल.. कमर और चूतड़ सहलाए।
मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबाकर चूसा।

उसने भी ऐसा ही किया।
फिर मैं नीचे सरकी, उसका कच्छा नीचे सरकाया और लंड को दूधिया रोशनी में देखा।
बड़ा अच्छा सेहतमंद, गोरा गेहुंआ सा।

शाम की चुदाई के वक्त लौड़े को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाई थी।
मैंने कहा- बहुत शानदार लंड है।
उसने ‘थैंक्स’ बोला।

मैं उसका टोपा चूसने लगी। मुकद्दर अच्छा यह कि दोनों ही कमरों के पंखे आवाज करते थे इसलिए सिसकारियों की आवाज बाहर सुनाई देने की गुंजाइश नहीं थी।

वे बड़े अनमोल पल थे.. बहुत आनन्ददायक!

इन पलों की रस भरी दास्तान आपको अगले भाग में जारी होते हुए मिलेगी।
आप मुझे ईमेल कर सकते हैं।
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कहानी जारी है।