जरा सोचिये

*वस्त्र उतारने वाली अभिनेत्रियाँ अब सेलिब्रेटी हैं।

*माँ-बाप अपने बच्चों को ‘शीला की जवानी’ और ‘मुन्नी बदनाम हुई’ जैसे गानों पर नचा कर खुश होते हैं और दाद चाहते हैं।

*विवाह समारोह में चालू गानों पर जेठ-बहू और सास ससुर का नाचना अब आम बात है।

*इस देश में महिला आयोग की मुखिया चाहती हैं कि सुन्दर महिलाओं को ‘सेक्सी’ कहो।

*धर्मिक आयोजनों में भी भजन नहीं बजता, फ़िल्मी गीतों की भरमार रहती है।

*युवा पीढ़ी हनी सिंह के अश्लील गीतों को गन्दा नहीं मानती।

*लड़की का दुपट्टा एक बार फिसलता है और मीडिया उसे एक सौ एक बार दिखाता है।

*सार्वजनिक स्थानों पर बिकनी पहनकर सम्मान चाहने वाली लड़कियों की तादाद बढ़ती जा रही है।

*50+ की मेरी पीढ़ी बच्चों को हर कीमत पर कार देना चाहती है, संस्कार बहुत पीछे छूट रहे हैं।

*विकृति verses संस्कृति की जंग को बिना वजह पुरुष verses महिला की जंग का रूप दिया जा रहा है।

*क्या हम सबको आइना देखने की जरुरत नहीं है? या केवल व्यवस्था को कोसने से काम चल जायेगा?

*जब ज्यादातर चैनल TRP और विज्ञापनों का सुख जुटाने में जुट जाएँ तब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ लड़खड़ाता नजर आता है।

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