वेश्या तो पूज्या होनी चाहिए

पहले हमारी दुकानें सिर्फ एक जगह होती थीं लेकिन अब हमारी दुकानें कॉलोनियों के अंदर, धर्मस्थलों के आस-पास, कॉलेजों के पीछे और मॉलों-शॉपिंग आर्केड के आस भी खूब फल-फूल रही हैं। भगवान सलामत रखें इन ढोंगियों को, जो दिन भर हमें हिकारत से देखते हैं और शाम को हमारी रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं।

जब आपकी पूरी व्यवस्था ही खरीदने-बेचने को लेकर चल रही है तो मेरे काम को लेकर ही इतना हो-हल्ला क्यों है? बाजार सिर्फ चौराहों और रास्तों पर नहीं रह गया है, वह हमारे घरों में घुस गया है। इंसानियत, ईमानदारी, सच्चाई, क्या नहीं बिक रहा यहाँ? जरा बताइए कि आपके यहाँ सरकारी नौकरियों के कोठे नहीं सजते हैं क्या?

शब्दों की दलाली करके कितने छुटभइये महान साहित्यकार का दर्जा पा गए और डिग्रियों का सौदा करके कितने अनपढ़ शिक्षाविद् बन गए। क्या आपकी राजनीति धनकुबेरों का बिस्तर नहीं गर्म नहीं कर रही और क्या जनता पर शासन करने वाले ये राजे-रजवाड़े जिन्हें आप नौकरशाह कहते हो नोट की गड्डियाँ देखते ही नंगे नहीं हो जाते हैं?

मुझे पता है कि सबको बड़ा नाज है इस विवाह संस्था पर। लेकिन दहेज में कार, फ्लैट देखते ही लार टपकाने वाले आपके युवा में एक जिगोलो जितना आत्मसम्मान भी है क्या? क्या अधिकांश युवतियाँ कोई और करियर ऑप्शन न होने के कारण विवाह की नौकरी नहीं करतीं, जहाँ वे अपनी देह से दिन में चूल्हा तपाती हैं और रात में बिस्तर?

सुना है कानपुर और आगरा में चमड़े का बहुत बड़ा कारोबार है। लेकिन उससे भी कई गुना बड़ा चमड़े का कारोबार तो मुम्बई में होता है जिसे आप फिल्म इंडस्ट्री कहते हो। मेकअप की परतों, फोटोशॉप के चमत्कारों, बोटॉक्स, सिलिकॉन और स्टेरॉयड की मेहरबानी से चलते इस उद्योग में अभिनय बिकता है या हड्डियों पर टिकी ये एपीथिलीयल टिश्यू की परतें, ये आप अपने आप से पूछिए।

फैशन की भी क्या कहूँ ! शरीर की रक्षा के लिए बने कपड़ों को लाज-शर्म की अश्लील भावनाओं से जोड़ कर आपने जो गुल खिलाए हैं उसकी तो पूछो ही मत। हद है कि लाखों-करोड़ों का कारोबार सिर्फ इसलिए चल रहा है कि कपड़े पहन कर नंगई किस तरह दिखाई जाए !!

धर्म की बात तो बस रहने ही दो, ईश्वर और धर्म की दलाली करने वालों के सामने तो हमारे यहाँ के दल्ले भी पानी मांग जाएँ। दया आ जाए तो हम तो शायद ग्राहक पर पचास रुपये छोड़ दें लेकिन आपके दक्षिणाजीवी तो दस रुपये के लिए जमीन पर लोट जाएँगे और आपकी सात पुश्तों की मां-बहन एक कर देंगे। राजनैतिक दलों के गोद में बैठते आपके धर्मगुरुओं को देख कर सच मुझे भी शर्म आने लगती है। आप लोगों की समझ का भी लोहा मानना पड़ेगा कि चंद पैसे लेकर लाशों को फूंकने वाले महामना को तो आप अछूत कहते हो लेकिन कंगाल को भी चूस लेने वाले आपके बाबा, गुरु, ज्योतिषी की चरणवंदना करते हो।

साम्प्रदायिकता का बड़ा हल्ला है आजकल लेकिन मैं जानती हूँ कि हमसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष और वादनिरपेक्ष कोई नहीं है। कोई भी हमारे पास आता है हम उसे अपनी सेवाएँ बिना किसी भेदभाव के देती हैं। मजेदार बात तो यह है कि एक बार कपड़े उतर जाएँ तो हर सम्प्रदाय के मर्द सब एक सा ही व्यवहार करते हैं।

आपको तो पूजाघर बनवा कर हमारी पूजा करनी चाहिए, सोचो जब हम हैं तब तो दैहिक शोषण की घटनाओं का यह हाल है, अगर हमने अपनी दुकानें बंद कर ली तो तुम्हारी बहू-बेटियाँ कभी घर से बाहर भी नहीं निकल पाएँगी।

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