माँ बेटी को चोदने की इच्छा-41

फिर विनोद गिनतियाँ गिनने के साथ साथ रूचि को भी चिढ़ाए जा रहा था और इसी तरह रूचि की टीम हार गई.. जिसकी ख़ुशी शायद मुझसे ज्यादा विनोद को हो रही थी.. क्योंकि यह आप लोग समझते ही होंगे कि भाई-बहन के बीच होने वाली नोंकझोंक का अपना एक अलग ही मज़ा है।

अब उनकी नोंकझोंक से हमें क्या लेना-देना। जैसे-तैसे हार के बाद बारी आई कि आज कौन किसके साथ रहेगा।

तो विनोद बोला- इसमें कौन सी पूछने वाली बात है.. आज रूचि मेरी गुलाम है।
तो रूचि बोली- आप चुप रहो.. यह फैसला कप्तान का होगा।
मैंने भी बोल दिया- अरे अब विनोद की आज की इच्छा यही है.. तुम उसकी गुलाम बनो.. तो मैं कैसे मना कर सकता हूँ।

जिस पर रूचि ने मेरी ओर देखते-देखते आँखों से ही नाराजगी जाहिर की.. जैसे मानो कहना चाह रही हो कि इससे अच्छा मैं ही जीतती। क्योंकि उसकी भी यही इच्छा थी कि उसे आज ही वो सब मिले.. जिसे उसने सपनों में महसूस किया था।
खैर.. जो होना था.. सो हो चुका था।

तभी विनोद बोला- लाल मेरी.. तैयार हो जा.. सुबह तक तू मेरी गुलाम बनेगी.. और जैसा मैं चाहूंगा.. वैसा ही करेगी.. क्यों राहुल ऐसी ही शर्त थी न..

तो मैं विनोद की ओर मुस्कुराता हुआ बोला- हाँ.. ठीक समझे.. अब आंटी मेरी गुलाम.. और रूचि तेरी..
इस पर रूचि नाक मुँह सिकोड़ते हुए अचकचे मन से विनोद से बोली- चल देखती हूँ.. आज कितने दिनों का बदला लेते हो..
यह कहते हुए वो अपने कमरे की ओर चल दी और आंटी अपने कमरे की ओर..

तभी विनोद बोला- देख आज जम के काम कराऊँगा रूचि से.. कल देखना अलमारी और कमरा कैसा दिखता है..
कहते हुए विनोद भी अपने कमरे की ओर चल दिया और शर्त के मुताबिक मैं आंटी के रूम की ओर चला गया।

फिर जैसे ही मैंने कमरा खोला.. तो आंटी बिस्तर पर ऐसे बैठी हुई थीं.. कि जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रही हों।

मैंने भी फ़ौरन दरवाज़ा अन्दर से बन्द किया और जैसे ही मैं मुड़ा.. तो मैंने पाया कि आंटी अपने दोनों हाथ फैलाए मेरी ओर देखते हुए ऐसे खिलखिला रही थीं.. जैसे सावन में मोर..
मैं भी अपनी बाँहें खोल कर उनके पास गया और उन्हें उठा कर हम दोनों आलिंगनबद्ध हो गए।

ऐसा लग रहा था.. मानो समय ठहर सा गया हो.. कब मेरे होंठ उनके होंठों पर आकर ठहर गए और मेरा बायां हाथ उनकी कमर में से होकर उनके चूतड़ों को मसकने के साथ-साथ दायां हाथ उनके मम्मों की सेवा करने लगा।

आंटी और मैं इतना बहक गए थे कि दोनों में से किसी को भी इतना होश न रहा कि घर में उनके जवान बेटे और बेटी भी हैं।
मैं और वो.. हम दोनों बड़ी तल्लीनता के साथ एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे और एक पल के लिए भी होंठ हट जाते तो ‘पुच्च’ की आवाज़ के साथ दोबारा चिपक जाते।

अब आप लोग समझ ही सकते हैं कि हमारी चुम्बन क्रिया कितनी गर्मजोशी के साथ चल रही थी।

माया आंटी तो इतना बहक गई थीं कि मात्र मेरे चुम्बन और साथ-साथ गांड और चूची के रगड़ने मात्र से ही झड़ गईं..
जब उनका चूतरस स्खलित हुआ तो उनके होंठ स्वतः ही मेरे होंठों से जुदा हुए और एक गहरी.. ‘श्ह्ह्हीईईई ईईईई..’ सीत्कार के साथ बंद आँखों से चेहरा ऊपर को उठाए झड़ने लगीं।

उस पल उनके सौंदर्य को मैं जब कभी याद कर लेता हूँ.. तो अपने लौड़े को हिलाए बिना नहीं रह पाता।
क्या गजब का नज़ारा था.. चेहरे पर ख़ुशी के भाव.. होंठ चूसने से होंठों पर लालिमा.. और अच्छे स्खलन की वजह से उनके माथे पर पसीने बूँदें.. उनके सौंदर्य पर चार चाँद रही थीं..

मैं तो उनके इस सौंदर्य को देखकर स्तब्ध सा रह गया था।
तभी उन्होंने चैन की सांस लेते हुए आँखें खोलीं और मुझे अपने में खोया हुआ पाया।

तो उन्होंने मेरे लौड़े को मसलते हुए बोला- राहुल मेरी जान.. किधर खो गया?

उनकी इस हरकत से मैं भी ख्वाबों की दुनिया से बाहर आता हुआ बोला- आई लव यू माया डार्लिंग.. तुम कितनी प्यारी हो.. पर ये क्या.. तुम तो पहले ही बह गईं।

तो उन्होंने नीचे झुककर मेरे लोअर को नीचे सरकाया और मेरी वी-शेप्ड चड्डी के कोने में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर मेरे पप्पू महान को.. जो की रॉड की तरह तन्नाया हुआ था.. उसे अपने दूसरे हाथ की उँगलियों से पकड़कर बाहर निकाला।

उन्होंने मेरे लौड़े के ऊपर की चमड़ी को खिसकाया ही था.. तभी मैंने देखा कि जैसे मेरे लौड़े के टोपे में मस्ती और चमक दिख रही थी.. ठीक वैसे ही उनके चेहरे पर चमक और होंठों पर मस्ती झलक रही थी।

फिर उन्होंने मेरे सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह एक ही बार में ‘गप्प’ से अपने मुँह में घुसेड़ लिया और अगले ही पल निकाल भी दिया। शायद उन्होंने मेरे लौड़े के सुपाड़े को मुँह में लेने के पहले से ही थूक का ढेर जमा लिया था.. जिसके परिणाम स्वरूप मेरी तोप एकदम ‘ग्लॉसी पिंक’ नज़र आने लगा था।

जिसे देख कर माया ने हल्का सा चुम्बन लिया और मेरे लौड़े को मुठियाते हुए बोली- राहुल.. तेरे इस लौड़े का कमाल है.. जो मुझे खड़े-खड़े ही झाड़ दिया.. पता नहीं.. इसके बिना अब मैं कैसे रह पाऊँगी।

मैं बोला- आप परेशान न हों.. मैं हूँ न.. मैं कभी भी आपको इसकी कमी न खलने दूंगा..ु
कहते हुए मैंने अपने दोनों हाथों को उनके सर के पीछे कुछ इस तरह जमाया.. जिससे मेरे दोनों अंगूठे उनके दोनों कानों के पिछले हिस्से को सहला सकें और इसी के साथ ही साथ मैंने अपने लौड़े को उनके होंठों पर ठोकर देते हुए सटा दिया..

जिसका माया ने भी बखूबी स्वागत करते हुए अपने होंठों को चौड़ा करते हुए मेरे चमचमाते सुपाड़े को अपने मुख रूपी गुफा में दबा सा लिया।

अब अपने एक हाथ से वो मेरे लौड़े को मुठिया रही थी और दूसरे हाथ से मेरे आण्डों को सहलाए जा रही थी।

मुझे इस तरह की चुसाई में बहुत आनन्द आ रहा था। वो काफी अनुभवी तरीके से मेरे लौड़े को हाथों से मसलते हुए अपने मुँह में भर-भर कर चूसे जा रही थी जिससे कमरे में उसकी मादक ‘गूँगूँ.. गूँगूँ..’ की आवाज़ गूंज रही थी।
वो बीच-बीच में कभी मेरे लौड़े को जड़ तक अपने मुँह में भर लेती.. जिससे मेरा रोम-रोम झनझना उठता।
हाय.. क्या क़यामत की घड़ी थी वो.. जिसे शब्दों में लिख पाना सरल नहीं है।

उनकी इस मस्त तरीके की चुसाई से मैं अपने जोश पर जैसे-तैसे काबू पा ही पाया था कि उसने भी अनुभवी की तरह अपना पैंतरा बदल दिया।
अब उसने मेरे लौड़े पूरा बाहर निकाला और उस पर ढेर सारा थूक लगा कर अपनी जुबान से कुल्फी की तरह मेरे सुपाड़े पर अपनी क्रीम रूपी थूक से पौलिश करने लगी।

इसके साथ ही वो.. जहाँ से लौड़े का टांका टूटता है.. वहाँ अपनी उँगलियों से धीरे-धीरे कुरेदने लगी।

मैं लगातार ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह.. श्ह्ह्ह्ह्ह्ही.. स्सीईईईई.. आआआअह’ रूपी ‘आहें’ भरे जा रहा था।

माया का अंदाज़ ही निराला था.. उसको देखकर लग रहा था कि यदि मैं अभी नहीं झड़ा तो कहीं ये मेरे बर्फ सामान कठोर लौड़े को चूस-चूस कर खा ही डालेगी.. तो मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा- जान.. क्या बात है.. आज तो बहुत मज़ा दे रही हो.. क्या इरादा है..?

तो वो नशीले और कामुक अन्दाज में लौड़े को मुँह से बाहर निकाल कर बोली- जानी.. इरादे तो नेक हैं.. पर तेरा औजार उससे भी ज्यादा महान है.. मैं इसके बिना आज सुबह से तड़प रही थी.. दो दिनों में ही तूने मुझे इसकी लत सी लगा दी है.. मैं क्या करूँ..
यह कहते ही उसने फिर से मेरे लौड़े को ‘गप्प’ से मुँह में ले लिया।

मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे मेरा लौड़ा सागर में डुबकी लगा रहा हो। यार.. इतना अच्छा आज के पहले मुझे कभी नहीं लगा था। वो अलग बात है रूचि ने अनाड़ीपन के चलते जो किया.. वो भी अच्छा था.. पर इसका कोई जवाब ही नहीं था।
ऐसा मुख-चोदन मैंने सिर्फ ब्लू-फिल्म में ही देखा था।

अब उसका हाथ रफ़्तार पकड़ने लगा था अब वह तेज़ी मुठियाते हुए मेरे लौड़े को गपागप मुँह में लिए जा रही थी। जिससे मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई और उसके इस हमले के प्रतिउत्तर में मैंने भी जोश में आकर उसे जवाब देना चालू किया।

मैंने भी उसके बालों सहित उसके सर को कसते हुए अपने लौड़े को तेज़ी के साथ मुँह में अन्दर-बाहर करते हुए ‘शीईईई आअहह्ह्ह.. शीईईईइं.. अह्हह्ह’ करने लगा।

मेरे तेज़ प्रहारों के कारण माया ने भी एक अनुभवी चुद्दकड़ की तरह मेरे लौड़े को मुँह फैला कर अपने होठों के कसावट की कैद से आज़ाद कर दिया। मानो कि अब मेरी बारी हो और उनके बालों के कसने से और लौड़े के तेज़ प्रहार से अब आवाज़ें बदल गई थीं।

अब ‘गूँगूँ..गूँगूँ..’ की जगह ‘मऊआआआ.. मुआआआअ..’ की आवाजें आने लगी थीं। उनके मुँह से उनका थूक झाग बन कर उनकी चूचियों और जमीन पर गिरने लगा।

अब मानो कमान मेरे हाथों में थी.. तो मैंने भी बिना रुके कस-कस कर धक्के लगाने आरम्भ किए और उन्हें अपना पुरुषत्व दिखाने लगा।

वो भी हार नहीं मान रही थी.. मैं जितनी जोर से अन्दर डालता.. उसके चेहरे पर ख़ुशी के साथ-साथ अजीब सी चमक दिखने लगी थी।

मैं भी अब अपने लौड़े को कभी-कभी पूरा निकालता और पूरा का पूरा उसके मुँह में घुसेड़ देता.. जिससे उसकी आँखें बाहर निकल जातीं और मुझे ऐसा लगता जैसे मेरा लौड़ा उसकी बच्चे-दानी से टकरा गया हो।

उसकी हालत ख़राब देख कर मैंने थोड़ी देर के लिए लौड़े को बाहर निकाला।

अब मैंने लौड़े को उसके होंठों पर घिसने लगा.. और बीच-बीच में मुँह में ऐसे डालकर निकालता.. जैसे कांच वाली बोतल में अंगूठा घुसेड़ कर निकालो.. तो ‘पक्क’ की आवाज़ होती है.. ठीक उसी तरह..

अब मैं भी उसके मुँह से खेलते हुए आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा था और अचानक ही मैंने देखा कि ये क्या मेरे लण्ड में खून की इतनी मात्रा आ चुकी थी कि वो पूरा लाल हो गया था.. तो मैंने सोचा क्यों न आंटी का भी मुँह लाल किया जाए।

तो मैंने भी पूरे जोश के साथ उसके मुँह की एक बार गहराई और नापी.. जिससे उसका मुँह ‘अह्ह्ह्ह’ के साथ खुल गया और उसने मेरी जांघ पर चिकोटी काट ली.. चूंकि दर्द से उसका गला भी भर आया था।

फिर मैंने अपने पूरा लौड़ा बाहर निकाला और उसे पकड़कर उनके गालों पर लण्ड-चपत लगाने लगा। कभी बाएं तो कभी दाएं गाल पर लौड़े की थापें पड़ रही थीं।

इससे आंटी और मेरा दोनों का ही जोश बढ़ रहा था। अब इस तरह चपत लगाने से माया के थूक की चिकनाई जा चुकी थी.. जिससे मेरे लिंग मुंड पर कसावट से दर्द सा होने लगा था..

मैंने उन्हें बोला- अब मुँह खोलो..
तो उसने वैसा ही किया.. मैं बोला- बस ऐसे ही करे रहना.. और हो सके तो थोड़ा थूक भर लो।

तो उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिला दिया और मैंने भी स्ट्रोक लगाना चालू किया.. पर अब मैं ऐसे धक्के दे रहा था.. जो मेरे साथ साथ माया को भी मज़ा दे रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे मैं मुँह नहीं.. बल्कि उसकी चूत चोद रहा होऊँ.. देखते ही देखते मेरे स्खलन का पड़ाव अब नज़दीक आ गया था।

आंटी के जो हाथ मेरी जांघों में थे.. वो अब मेरे लौड़े पर आ गए थे.. क्योंकि वो मेरे शरीर की अकड़न से पहचान चुकी थी कि अब मेरी मलाई फेंकने की मंजिल दूर नहीं है.. शायद इसीलिए अब मेरे लण्ड की कमान उन्होंने मजबूती से सम्हाल ली थी। वो बहुत आराम व प्यार के साथ-साथ अपने मुँह में लौड़ा लेते हुए मेरी आँखों में आँखें डालकर बिल्कुल Sophi Dee की तरह रगड़े जा रही थीं।

इसी तरह देखते ही देखते मैं कब झड़ गया.. मुझे होश ही न रहा और झड़ने के साथ-साथ ‘अहह… आआअह्ह्ह ह्ह्ह..’ निकल गई।
मेरे लण्ड-रस को माया ने मुझे देखते हुए बड़े चाव के साथ बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में गटक लिया।
मैंने भी अपनी स्पीड के साथ-साथ अपने हाथों की कसावट को भी छोड़ दिया.. जो कि उसके सर के पीछे बालों में घुसे थे।

मैं अपने इस स्वस्थ्य स्खलन का मज़ा बंद आँखों से चेहरे पर पसीने की बूंदों के साथ ले रहा था।

मुझे होश तो तब आया.. जब माया आंटी ने मेरे लौड़े को चाट कर साफ़ किया और फिर अपने पल्लू से पोंछकर उसकी पुच्ची ली.. पर इस सबसे मुझे बेखबर पाकर उसने मेरे मुरझाए लौड़े पर हौले-हौले से काटना चालू कर दिया.. तब जाकर मेरी तन्द्रा टूटी।

फिर मैंने उन्हें उठाया और कहा- क्या यार.. इतना मज़ा दे दिया कि मेरी तो ऑंखें ही नहीं खुल रही हैं.. मन कर रहा है.. बस तुम्हें बाँहों में लेकर लेट जाऊँ।

तो माया मुस्कुराते हुए बोली- खबरदार.. जो सोने की बात की.. आज मैं तुम्हें सोने नहीं दे सकती.. पर हाँ.. तुम कल दिन और रात में सो सकते हो.. क्योंकि वैसे भी कल मेरे साथ नहीं रहोगे.. तो आज क्यों न हम जी भर के इस मौके का फायदा उठाते हुए मज़ा ले लें..।

तभी बाहर से तेज़ी का शोर-शराबा सुनाई देने लगा.. जो रूचि और विनोद के बीच में हो रही नोंक-झोंक का था।

सब कुछ ठीक से साफ़ सुनाई तो नहीं दे रहा था.. पर आवाजें आ रही थीं.. तो माया बोली- तू बाहर जा कर देख.. क्या चल रहा है.. मैं अभी कपड़े बदल कर आई।

तो मैंने उनके गालों पर चुम्बन लेते हुए बोला- कुछ अच्छा सा ड्रेस-अप करना.. जो कि सेक्सी फीलिंग दे।
वो मुस्कराते हुए बोली- चल मेरे आशिक़.. बाहर देख वरना पड़ोसी इकट्ठे हो जायेंगे।

मैंने अपनी हालत को सुधार कर अपने कपड़े ठीक किए और चल दिया उनके कमरे की ओर.. जिसका रास्ता हॉल से हो कर जाता है।

जब मैं कमरे के पास पहुँचा.. तो मैंने सुना कि काम को लेकर झगड़ा हो रहा है।

दोस्तों ये काम.. वासना वाला काम नहीं बल्कि नौकरों वाले काम को लेकर दोनों झगड़ रहे थे।

मैंने दरवाज़ा खटखटाया.. वो लोग अभी भी लड़ने में पड़े थे.. शायद उन्होंने अपनी लड़ाई के चलते ध्यान न दिया हो.. क्योंकि मैंने भी आहिस्ते से ही खटखटाया था..

मैंने पुनः तेज़ी से विनोद को बुलाते हुए खटखटाया.. तभी विनोद बोला- क्या है?

तो मैं बोला- दरवाज़ा खोलेगा या बस अन्दर से ही बोलेगा.. ये मैं बोल ही रहा था कि अचानक से रूचि ने दरवाज़ा खोल दिया और जैसे मेरी नज़र रूचि पर पड़ी.. तो मैं देखता ही रह गया।

इस समय उसने भी रात के कपड़े पहन लिए थे।
आज के कपड़े कुछ ज्यादा ही सेक्सी और बोल्ड थे.. जिसमें वो एकदम पटाखा टाइप का माल लग रही थी। उसको देख कर मेरे लौड़े में फिर से उभार आने लगा।

खैर.. आप लोग माया की ममता तो देख ही चुके हैं.. अब रूचि के स्वरुप का वर्णन के लिए अपने लौड़े को थाम कर कहानी के अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा..।

तब तक के लिए आप सभी को राहुल की ओर से गीला अभिनन्दन।
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