तेरी याद साथ है-25

मैंने राहत की सांस ली और थोड़ी देर के बाद मैं भी बाथरूम से निकल कर अपनी साइड वाली सीट पर जाकर सो गया। वहाँ कोई भी हलचल नहीं थी, यानि शायद किसी ने भी हमें कुछ करते हुए नहीं देखा था। मैं निश्चिन्त होकर सो गया और ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही…

सुबह चाय वाले के शोर ने मेरी नींद खोली और मैंने कम्बल हटा कर देखा तो सभी लोग लगभग जाग चुके थे। घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे। आंटी, मामा जी, नेहा दीदी और मेरी प्राणप्रिया प्रिया रानी अपने अपने कम्बलों में घुस कर बैठे हुए थे और उन सबके हाथों में चाय का प्याला था। बस रिंकी अब भी सो रही थी। मैं रात की बात याद करके मुस्कुरा उठा, सोचा शायद कल के मुखचोदन से इतनी तृप्ति मिली है उसे कि समय का ख्याल ही नहीं रहा होगा।

“चाय पियोगे बेटा…?” आंटी की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।

मैं एक पल के लिए उनकी आँखों में देखने लगा और सोचने लगा कि क्या यह वही औरत है जिसने कल रात मुझसे अपनी चूत को मसलवाया था… उन्हें देख कर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें कल रात वाली बात से कोई मलाल हो।

मैं थोड़ा हैरान था, लेकिन गौर से उनकी आँखों में देखने से पता चला कि उन्हें भी इस बात का एहसास है कि मैं क्या समझने की कोशिश कि कर रहा हूँ।

“अरे किस ख्यालों में खो गया…अभी तो मंजिल थोड़ी दूर है…!” आंटी ने बड़े ही अजीब तरीके से कहा, मानो वो कहना कुछ और चाह रही हों और कह कुछ और रहीं हों।

उनकी दो-अर्थी बात सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया… मेरा घबराना लाज़मी था यारों… क्यूंकि मैं अब भी असमंजस में था कि मुझे आंटी की तरफ हाथ आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं… वैसे आंटी तो मेरे मन में तब से बसीं थीं जब मेरा ध्यान रिंकी और प्रिया पर भी नहीं गया था। उनकी मदमस्त कर देने वाली हर एक अदा का मैं दीवाना था… लेकिन अब बात थोड़ी अलग थी, अब मैं एक तो प्रिया से प्यार करने लगा था और रिंकी को भी चोद रहा था… एक आंटी के लिए मैं कुछ भी खोना नहीं चाहता था। लेकिन शायद भगवन को कुछ और ही मंजूर था।

“हाँ आंटी, मंजिल तो दूर ही है लेकिन हम पहुँचेगे जरूर !” पता नहीं मेरे मुँह से यह कैसे निकल गया। मेरे हिसाब से तो यह बात आंटी की उस बात का जवाब था जो उन्होंने शायद किसी औरे मतलब से कहा था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अपने तरीके से ही समझा और अपने होंठों को अपने दांतों से काट कर मेरी तरफ देखा और एकदम से अपना चेहरा घुमा लिया और चाय का प्याला भरने लगीं।

मैंने भी अपना ध्यान उनकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ किया और उनके हाथों से चाय का प्याला ले लिया।

थोड़ी देर में हम सब फ्रेश हो गए और पटना स्टेशन के आने तक एक दूसरे से बातें करते हुए अपने अपने सामान को ठीक कर लिया। हमें पटना उतर कर वहाँ से बस लेनी थी।

ट्रेन अपने सही टाइम से पटना स्टेशन पहुँच गई। हम सब उतर गए और स्टेशन से बाहर आ गए। सामने ही एक भव्य और मशहूर मंदिर है, मैं पटना पहली बार आया था लेकिन इस मंदिर के बारे में सुना बहुत था। महावीर स्थान को देखते ही मैंने प्रणाम किया और बजरंगबली से अपने और अपने पूरे परिवार कि सुख और शांति कि कामना की। साथ ही मैंने उन्हें प्रिया को मेरी ज़िन्दगी में भेजने के लिए धन्यवाद भी किया।

उस वक़्त मुझे सच में इस बात का एहसास हुआ कि मैं प्रिया से कितना प्यार करने लगा था… यूँ तो मैंने रिंकी को भी अपनी बाहों में भरा था और कहीं न कहीं आंटी के लिए भी मेरे मन में वासना के भाव थे लेकिन भगवान के सामने सर झुकाते ही मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आया।

खैर, हम सब वहाँ से हार्डिंग पार्क पहुँचे जो पटना का मुख्य बस अड्डा था खचाखच भीड़ से भरा हुआ…

मामा जी ने जल्दी से एक बढ़िया से बस की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित किया और हमें उसमें चढ़ जाने के लिए कहा। शायद हमारी सीट पहले से ही बुक थी। हम सब बस में चढ़ गए और मामा जी के कहे अनुसार अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। बस 2/2 सीट की थी तो नेहा दीदी और रिंकी एक साथ बैठ गईं। प्रिया अपने मामा जी की बड़ी लाडली थी सो वो उनके साथ बैठ गई…

वैसे मैं चाहता था कि प्रिया मेरे साथ बैठे लेकिन मामा जी के साथ साथ होने पर प्रिया के चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट दिखाई दे रही थी मैं उस ख़ुशी के बीच में नहीं आना चाहता था। अब मैं और आंटी ही बचे थे तो हम फिर से एक बार साथ साथ बैठ गए।

मेरा दिल धड़कने लगा और मेरी आँखों में बस कल रात का दृश्य घूमने लगा… सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा पैर अब भी आंटी की साड़ी के अन्दर से उनकी चूत को मसल रहा है और उनका घुटना मेरे लंड को। मैं थोड़ा सा असहज होकर उनके साथ बैठ गया।

सुबह का वक़्त था और थोड़ी-थोड़ी ठंड थी, मैं बैठा भी था खिड़की की तरफ। मैंने अपने हाथ मलने शुरू किये तो आंटी ने बैग से एक शॉल निकाली और दोनों के ऊपर डाल ली। मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए मैं बस के चलते ही ऊँघने सा लगा। पटना से दरभंगा की दूरी 4 से 5 घंटे की थी। मैं खुश था कि अपनी आधी नींद मैं पूरी कर लूँगा। वैसे भी प्रिया तो मेरे साथ थी नहीं कि मैं जगता… लेकिन एक कौतूहल तो अब भी था मन में.. सिन्हा आंटी थीं मेरे साथ, और जो कुछ कल रात हुआ था वो काफी था मेरी नींद उड़ाने के लिए। मैं अपने आपको रोकना चाहता था इसलिए सो जान ही बेहतर समझा और अपना सर सीट पे टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। सिन्हा आंटी के साथ किसी भी अनहोनी से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका नज़र आया मुझे।

15 से 20 मिनट के अन्दर ही मैं गहरी नींद में सो गया। बस की खिड़की से आती हुई ठंडी ठंडी हवा मुझे और भी सुकून दे रही थी।

“चलो अब उठ भी जाओ… सोनू… ओ सोनू… उठा जाओ, हम पहुँच गए हैं..” सिन्हा आंटी ने धीरे धीरे मेरे कन्धों को हिलाकर मुझे उठाया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।

दिन पूरी तरह चढ़ आया था और सूरज की रोशनी में मेरी आँखें चुन्धियाँ सी गईं। करीब 12 बज चुके थे.. पता ही नहीं चला… मैं पूरे रास्ते सोता रहा !!

मैं खुश हुआ कि हम आखिरकार पहुँच ही गए… लेकिन मैं थोड़ा हैरान भी था, यह सोच कर कि पूरे रास्ते आंटी ने कुछ भी नहीं किया… या शायद कुछ किया हो और मैं नींद में समझ नहीं पाया… क्या आंटी ने कल रात जैसी उत्तेजना दिखाई थी, वैसी उत्तेजना उन्होंने बस में भी महसूस नहीं करी… या फिर वो जानबूझ कर शांत रहीं…?

मन में हजारों सवाल लिए मैं बस से नीचे उतरा। उतर कर देखा तो प्रिया के छोटे वाले मामा अपनी बेटी के साथ हमें लेने बस अड्डे आये हुए थे। प्रिया भाग कर अपने छोटे मामा की बेटी यानी अपनी ममेरी बहन के गले लग गई और वो दोनों उछल उछल कर एक दूसरे से मिलने लगे… मुझे उन्हें देख कर हंसी आ गई… बिल्कुल बच्चों की तरह मिल रही थीं दोनों।

हम सबने एक दूसरे को राम सलाम किया और उनके जीप में बैठ कर लगभग आधे घंटे के अन्दर प्रिया के नाना जी के घर पहुँच गए। मैंने चैन की सांस ली।

सिन्हा आंटी का मायका मेरी सोच से काफी बड़ा था। जब हम वहां पहुँचे तो ढेर सारे लोग एक बड़े से गेट के बाहर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे थे। हमारे पहुँचते ही सबने आगे बढ़ कर हमारा भव्य तरीके से स्वागत किया और हम इतने सारे लोगों के बीच मानो खो ही गए। घर के अन्दर दाखिल हुए तो लगा घर नहीं, कोई पुराने ज़माने की हवेली हो। बड़ा सा आँगन और तीन मालों में ढेर सारे कमरे। खैर हम सबको अपना अपना कमरा दिखा दिया गया। मुझे सबसे ऊपरी माले पर बिल्कुल कोने में एक कमरा मिला था। मैं वैसे ही सफ़र की थकान से परेशान था और ऊपर से इतनी सीढियाँ चढ़ कर कमरे में पहुँचते ही वहाँ बिछे बड़े से पलंग पे धड़ाम से गिर पड़ा।

घर में इतने लोग थे लेकिन फिर भी एक अजीब सी शांति थी, शहरों वाला शोरगुल बिल्कुल भी नहीं था। इस शांति ने मेरी पलकों को और भी बोझिल कर दिया और मैं लगभग सो ही गया।

“ये ले… जनाब सो रहे हैं और हम कब से उनकी राह देख रहे हैं !” एक मधुर आवाज़ ने मुझे नींद से जगा दिया और जब आँखें खुलीं तो मेरे सामने मेरे सपनों की मल्लिका प्रिया अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ी मिली।

“अजी राह तो हम कब से आपकी देख रहे हैं… इतना थक गया हूँ कि उठा भी नहीं जा रहा है, सोचा कि आप आएँगी और मुझे उठा कर अपने हाथों से नहलायेंगी !” मैंने शरारत भरी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा।

“ओहो…कुछ ज्यादा ही सपने देखने लगे हैं जनाब… उठिए और जल्दी से फ्रेश हो जाइये। नीचे सब खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं… फिर आपको बागों की सैर भी तो करनी है।” प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोशिश की और खींचने लगी।

मैंने अचानक से उसे पकड़ कर अपनी बाँहों में दबा लिया और उसके गर्दन पे अपने होंठ फिराने लगा। उसके बालों से अच्छी सी खुशबू आ रही थी। मैंने अपने हाथ पीछे से उसके नितम्बों पे ले जा कर उसके उभरे हुए नर्म कूल्हों को दबाना शुरू किया और अपने लंड की तरफ दबाना शुरू किया। प्रिया ने एक जोर की सांस ली और अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे जोर से मरोड़ दिया।

“उफ्फ्फ….लगता है न बाबा..” मैंने उसे अलग करते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

वो जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरे होंठों पे एक पप्पी देते हुए कहने लगी, “बस इतना ही दम है आपके शेर में… लगता है आज बाग़ की सैर का प्रोग्राम कैंसल कर देना चाहिए !”

उसकी बातों ने मेरे अन्दर के मर्द को एकदम से जगा दिया और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर जोर से मसल दिया…

“आउच… बदमाश कहीं के… इतनी जोर से कोई मसलता है क्या। अभी भी इनका दर्द ठीक नहीं हुआ है। अगर ऐसे करोगे तो फिर इन्हें छूने भी नहीं दूंगी… ज़ालिम !” प्रिया की यह शिकायत बिल्कुल वैसी थी जैसी एक बीवी अपने पति से करती है बिल्कुल अधिकारपूर्ण… उसकी इन्ही अदाओं का तो दीवाना था मैं !

मैंने नीचे झुक कर उसकी चूचियों को चूम लिया और अपने कान पकड़ कर सॉरी बोला और प्रिया से माफ़ी मांगने लगा।

मेरी भोली सी सूरत देखकर प्रिया को हंसी आ गई और उसने बढ़कर मुझे चूम लिया। प्रिया ने मुझे धक्का देकर बाथरूम में भेज दिया और नीचे चली गई।

बाथरूम में ठंडे पानी से नहाकर मेरी सारी थकान दूर हो गई। मेरे नवाब साहब भी नहाकर बिल्कुल चमक से रहे थे लेकिन एक अजीब सी बात मैंने नोटिस की थी और वो यह कि मेरा लंड कल रात में रिंकी के मुख चोदन के बाद भी अर्ध जागृत अवस्था में ही था… न तो पूरी तरह सोया था न ही पूरी तरह जगा हुआ था। अब यह रिंकी की वजह से था, प्रिया की वजह से या फिर आंटी के कारनामों की वजह से… यह कहना मुश्किल था।

खैर, मैं नीचे पहुँचा तो वहाँ एक हॉल में ढेर सारे लोग बैठ कर खाना खा रहे थे। मैं इधर उधर देखने लगा और प्रिया को ढूँढने लगा ताकि बैठ सकूँ और खाना खा सकूँ। भूख ज़ोरों की लगी थी।

“इधर आ जाओ… हम कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। चलो जल्दी से खा लो।” सिन्हा आंटी की आवाज़ मेरे कानों में गई और मैं उन्हें ढूँढने लगा।

सामने बिल्कुल कोने में सिन्हा आंटी थालियों के साथ बैठी थीं और अपने पास की खाली जगह की तरफ इशारा करते हुए मुझे बुला रही थीं। कमाल की लग रही थीं, लाल साड़ी और वो भी गाँव के स्टाइल में सर पे घूंघट किये हुए… सच कहूँ तो आंटी को पहली बार घूंघट में देखकर एक बार मन किया कि उन्हें बस देखता ही रहूँ.. बड़ी बड़ी आँखें, गाल प्राकृतिक रूप से लाल, हाथों में ढेर साड़ी लाल चूड़ियाँ… दुल्हन से कम नहीं लग रही थीं वो।

उन्हें घूरता हुआ मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके पास जाकर बैठ गया। उनके बदन से आ रही खुशबू ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया और मैं उन्हें फिर से घूरने लगा। आंटी ने मेरी निगाहों को अपने चेहरे पे महसूस किया और कनखियों से मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगीं। उनकी आँखों में मैं साफ साफ देख सकता था… एक चमक, एक शरारत, एक प्यास…

आने वाला वक़्त पता नहीं क्या दिखाने वाला था लेकिन अब तो मेरे दिल ने भी समर्पण करने का मन बना लिया था… मैंने सबकुछ ऊपर वाले के ऊपर छोड़ा और अपने घुटने से उनकी जांघों को सहलाते हुए खाना खाने लगा।

खाना खाकर हम सब उठे और बाहर आँगन में चारपाइयों पर बैठ गए। थोड़ी ही देर में प्रिया लड़कियों के एक झुण्ड के साथ आँगन में आई और मेरी चारपाई के पास आकर उन सबसे मेरा परिचय करवाने लगी.. करीब 7-8 लड़कियाँ.. सब लगभग प्रिया की उम्र की या उससे थोड़ी छोटी रही होंगी। कसम से यार, सब एक से बढ़ कर एक थीं। अगर प्रिया सामने नहीं होती तो शायद मैं जी भरकर उनके गोल गोल टमाटरों को देख लेता और उन सबके साइज़ का अनुमान लगा लेता… लेकिन मेरी जानम सामने खड़ी थीं और मैं उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहता था। इसलिए एक शरीफ बच्चे की तरह उनसे मिला और फिर सबके साथ हंसी ठिठोली होने लगी।

“क्यूँ बेचारे को परेशान कर रहे हो तुम लोग… इसे थोड़ा आराम कर लेने दो फिर उसे मामा जी के साथ बाज़ार जाना है।” सिन्हा आंटी अपने हाथों में एक प्लेट लेकर हमारी तरफ बढ़ रही थीं।

‘चल प्रिया, तू भी थक गई होगी न, थोड़ा सा आराम कर ले फिर शाम को जितना मर्ज़ी हंसी ठिठोली करते रहना !” आंटी ने प्रिया को डांटते हुए कहा और सब लड़कियाँ वहाँ से ही ही ही ही करती हुई घर के दूसरे माले पे चली गईं।

“ये लो सोनू बेटा, तुम्हारी मनपसंद गुलाब जामुन !” आंटी ने एक प्लेट में करीब 4-5 गुलाब जामुन मुझे दिए।

“अरे आंटी, अभी तो इतना सारा खाना खाया है… इतनी मिठाइयाँ नहीं खा सकूँगा।” मैं उनके हाथों से प्लेट ले ली और उनसे मिठाइयाँ कम करने के लिए कहने लगा।

आंटी ने मेरी एक न सुनी और मुझे आँखें बड़ी बड़ी करके लगभग धमका सा दिया और चुपचाप खाने का इशारा किया। गुलाबजामुन देखकर मुझे दो दिन पहले गुज़रे वो लम्हे याद आ गये जब प्रिया को…..

खैर मैं प्लेट लेकर उठा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। मैंने सोचा कि अभी अपने कमरे में जाकर थोड़ा रुक कर खा लूँगा और फिर थोड़ा सो भी लूँगा क्यूंकि शाम को प्रिया ने बाग़ दिखाने का वादा किया था। बाग़ तो सिर्फ एक बहाना था, असल में हम एक बार फिर से एक दूसरे में समां जाना चाहते थे। और इस बात से मैं खुश था और उत्तेजित भी होता जा रहा था।

तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।

“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं !” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।

आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।

कहानी जारी रहेगी…