यह काम ऐसा है कि घर में बैठ कर भी किया जा सकता है।
अब्बा और बड़े भाई दोनों दुकानों से ऑर्डर लाने देने का काम करते हैं, मैं और मेरा छोटा भाई दोनों घर पे ही रह के सारा दिन कढ़ाई का काम करते हैं।
अम्मी नहीं है तो घर में मैं, अब्बा और छोटा भाई ही रहते हैं।
दोनों बड़े भाई शादीशुदा हैं तो अलग रहते हैं।
मेरी उम्र 22 साल है और मैं सिर्फ काम करता हूँ।
मुझसे छोटा शकील अभी स्कूल में पढ़ता है और खाली वक़्त में हमारे साथ काम करवाता है।
बात तब शुरू हुई जब हमारे साथ वाले घर में वसीम मियां आकर किराये पे रहने लगे।
वसीम मियां की उम्र तो 50 से ऊपर थी पर उनकी बीवी जमीला महज 30-32 साल की ही थी।
गोरी चिट्टी, खूबसूरत, गुदाज बदन हर वक़्त पान खा खा कर लाल सुर्ख किए होंठ और हर वक़्त चेहरे पे ढेर सारा मेकअप…
क्योंकि मैं सारा दिन घर में ही रहता था तो अक्सर जमीला से नज़रें दो चार हो जाती थी।
वैसे भी मैं ऊपर चौबारे में खिड़की के पास बैठ कर काम करता था और वो अपने घर में घूमती फिरती मुझे दिखती रहती थी।
जब भी वो आँगन से गुजरती तो मैं उसे देखता।
मतलब यह कि उसके आने के हफ्ते भर में ही मैं उस पर फिदा हो गया।
वो भी जब कभी भी घर के काम-काज करती आँगन से गुजरती तो ऊपर मेरी तरफ ज़रूर देखती, जब वो देखती तो मैं सलाम कर देता।
पहले पहल तो ठीक था मगर जब वो भी सलाम का जवाब सलाम से और वो भी मुस्कुरा कर देने लगी तो मेरे भी दिल की धड़कन बढ़ने लगी।
जब अब्बा और छोटा भाई घर में होते तो मैं इस बात का खास ख्याल रखता कि किसी को पता न चले, मगर जब अकेला होता तो अक्सर उसे कोई न कोई इशारा ज़रूर करता।
वो भी इशारे का जवाब इशारे में देने लगी।
जब हर इशारे के जवाब मिलने लगा तो इशारों में भी घटियापन आने लगा।
मैं उसको फ्लाइंग किस करता, जब वो देखती तो उसे आँख मार देता, वो भी उसी शिद्दत से उसका जवाब देती।
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मतलब यह कि वसीम मियां की बीवी मेरे पास सेट हो गई थी।
मगर दिक्कत यह थी कि मैं उसके घर कैसे जाऊँ?
आसपास मोहल्ले वाले किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो सकती है।
एक दिन की बात है, मैं अपना काम कर रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी।
मैंने जाकर दरवाजा खोला तो सामने जमीला खड़ी थी।
मैंने उसे बड़े प्यार से सलाम किया और अंदर बुलाया।
‘आज तो खुदा मुझ पे बड़ा मेहरबान है, जो आप हमारे घर आयीं, कहिए क्या खिदमत करूँ आपकी?’ मैंने पूछा।
‘जी घर में मेहमान आयें हैं और घर में चीनी खत्म हो गई है, आप थोड़ी दे देंगे?’
मैं उसे अपने साथ रसोई में ही ले गया और चीनी का डिब्बा उसके सामने रख दिया- लीजिये जितनी चाहें, ले जाएँ।
वो बोली- बस थोड़ी सी चाहिए, एक कटोरी।
‘ठीक है ले लीजिये, आपके लिए तो जान भी हाजिर है…’ मैंने थोड़ा बेतकल्लुफ़ होते हुये कहा।
वो भी मुस्कुराई और बोली- मैं जल्दी में कटोरी लाना ही भूल गई, कटोरी भी आप ही दे दें।
मैंने शेल्फ से एक बड़ी कटोरी उठाई और उसमें चीनी डालने लगा, मेरे जेहन में हज़ार ख्याल आ रहे थे, एक बार सोचा, जो रोज़ मुझे इशारे करती है आज घर आई है, क्यों न इसे पकड़ लूँ, अगर मान गई तो वारे न्यारे…
मगर फिर ख्याल आया ‘नहीं नहीं… अगर बुरा मान गई तो? एक पहली बार घर आई और पहली बार ही इतनी बदतमीजी… मैंने शरीफ रहना ही बेहतर समझा।
मैंने उसे कटोरी भर के चीनी दी और कटोरी पकड़ते वक़्त उसकी उँगलियों को जान बूझ कर अच्छे से छूकर बोला- कोई और खिदमत हो तो बताएँ…
उसने मेरे छूने का कोई बुरा नहीं माना और बोली- जी शुक्रिया !
जब वो जाने लगी तो मैंने कहा- फिर कब आओगी?
वो पीछे मुड़ी और बोली- कटोरी वापिस करने…
और मेरी तरफ देख कर बड़े अंदाज़ से मुसकुराई।
मेरे तो दिल में उबाल आ गया- तो परसों आना, इसी वक़्त, मैं घर में अकेला होऊँगा।
उसने बड़े शरारती अंदाज़ में मुझे देखा और बोली- आज घर में कोई है क्या?
मेरे तो होश ही उड़ गए…
तो क्या वो चीनी के बहाने मुझसे मिलने आई थी?!
मैंने कहा- नहीं, है तो कोई नहीं, पर थोड़ी देर में अब्बा आने वाले हैं।
‘तो अब्बा कितनी देर में आएँगे?’ उसने पूछा।
‘बस आधे घंटे तक आ जाएँगे।’ मैंने जवाब दिया।
‘आधा घंटा तो बहुत होता है।’ उसने कहा।
तो सच कहूँ मेरे तो पसीने छूट गए।
मतलब वो मुझसे चुदने आई है और मैं शराफत दिखा रहा हूँ।
मैंने मन में सोचा ‘साले चूत उसके लगी है पर चूतिया तू है।’
मैं आगे बढ़ा, तो वो जल्दी से चल कर दरवाजे के पास चली गई…
कहानी जारी रहेगी।
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