दिल पर जोर नहीं-2

२ बजे स्कूल की छुट्टी हो गई थी। मैंने उसका काफ़ी इन्तज़ार किया पर वो नहीं आया। मैं पीछे अपने क्वार्टर पर आ गई।

आदत के अनुसार मैंने अपने कपड़े उतारे और अपने बदन को निहारा। वैसा ही चिकना, वैसा ही फ़िगर, पतली कमर, बोबे वैसे ही उभार लिये हुए, मेरे मन में एक टीस उठी। कितना लम्बा समय गुजर गया था। ये शरीर तब से किसी की बाहों में आने के लिये तड़प रहा था। ईश्वर का नाम लेकर मैंने बदन पर ठण्डा पानी डाला। शायद किसी ने दरवाजा खटखटाया था।

मैंने झांक कर देखा तो कोई नहीं था। शायद मेरे मन का भ्रम था। नहाने के बाद मैं तौलिया ले कर अपने अंगो को पौंछने लगी, तभी सामने आईने में एक युवक नजर आया। मैंने फिर उसे नजरों का भ्रम समझा और अपने स्तन दबा कर आह भरने लगी, और ईश्वर से मांगने लगी कि वास्तव कोई आ जाये और मुझे अपनी बाहों में ले ले।

पर मेरा भ्रम जल्दी टूट गया। आभास वास्तव में वहाँ था। मैं बुरी तरह बौखला उठी। मैंने अपने बाथरूम का दरवाजा जल्दी से बन्द कर लिया पर नजारा तो उसकी नजरों में कैद हो चुका था। मैंने तुरन्त गाऊन पहना, पर अन्दर कुछ नहीं पहनने के कारण सारा शरीर झन रहा था। मैंने तौलिया कमर में और लपेट लिया। ताकि नीचे मेरे चूतड़ और कूल्हे वगैरह नजर ना आये।

‘सॉरी मैम ! मुझे आने में देर हो गई, रास्ते में जाम लगा था।’

उसकी नजरें अभी भी मेरे बदन को कुरेद रही थी। मुझे अजीब सी खुमारी सी लगी। आभास मुझे अचानक ही सेक्सी लगने लगा।
‘तुम झांसी के हो…?’
‘जी हाँ… सीपरी में रहता हूँ।’
‘तुम आलोक साहब को जानते हो?’
‘जी हाँ… वो मेरे चाचा हैं !’
‘कैसे हैं वो?’
‘जी ठीक हैं, प्रिन्सिपल है कॉलेज के !’
‘उनके घर वाले?’
‘जी नहीं, उन्होने शादी नहीं की !’

मैं सकते में आ गई। क्या मेरी याद में वो… नहीं… नही… मैं ख्यालों में डूबती चली गई। मेरा तौलिया जाने कब नीचे गिर पड़ा। आभास ने पास पड़ा टेबल क्लॉथ उठाया और मुझ पर डालने लगा। मुझे जाने क्या हुआ, मैं दो कदम बढ़ कर उसके सीने से लग गई और रोने लगी, पुराने घाव उभर आये। पर जवान आभास यह बात क्या समझता, उसने अपनी बाहें फ़ैला कर मुझे आगोश में ले लिया। मेरी नजरों में आलोक घूम गया।
‘आलोक, कहाँ थे अब तक… !’

वो जाने समझा या नहीं, उसने मुझे हाथों में कस लिया। मैंने अपना आँसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठा लिया। उसने मेरे होंठो को चूम लिया।
‘मैम, आप बहुत खूबसूरत हैं, आप का जिस्म तरो ताजा है’ वो वासना में बह निकला।
‘आलोक, मुझे छोड़ कर अब नहीं जाना, हाय मैं मर मर कर जिन्दा हूँ !’

‘क्या कहे जा रही हैं मैम, आपने मुझे नौकरी दी है, मेरी तो आप ही सब कुछ है।’ मेरी तन्द्रा को एक झटका लगा। अरे मैं ये क्या कर बैठी। पर मुझे ये सब सुहाना लगा, मन को ठण्डक मिली। मैं धीरे से दूर हो गई।

‘सॉरी आभास… मैं बहक गई थी !’ पर वो इस सॉरी को झेलने के मूड में नहीं था। उसे एक औरत का जिस्म मिल रहा था। उसने फिर से मुझे खींच कर चिपका लिया।

‘नहीं मैम, सॉरी की क्या बात है, आपका गुलाम हूँ !’ और मेरे स्तनों पर उसके हाथ जम गये। पहले तो मैंने छूटने के लिये जोर लगाया। लेकिन मन बहकने लगा, दिल मर्द मांगने लगा और फिर मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। शायद ईश्वर ने मेरी सुन ली हो।

‘हे भगवान… मेरे जीजस… मुझे सम्हालना !’

आभास के हाथ मेरे चूतड़ों पर कसने लगे। मेरे शरीर को जहां तहां दबाने लगे… मेरे शरीर में आग की चिन्गारी फ़ूट पड़ी। बदन में तरावट आ गई। मेरे चूचक कड़े होने लगे। जिस्म कसमसाने लगा। अन्तत: मैंने उसका लण्ड पकड़ ही लिया। लम्बा तगड़ा लण्ड, वही आलोक जैसा बलिष्ट लण्ड, वही मसल्स…

उसने मुझे बाहों में उठाया और बिस्तर पर प्यार से लेटा दिया। मेरा जिस्म वासना में बह उठा। उसने मेरा गाऊन हटा दिया। मुझे अपने नंगेपन का अहसास होने लगा। मैंने बेशर्मी से अपनी टांगें और फ़ैला दी। मैंने अपनी आंखें बन्द कर ली।

‘आह मैम, जिस्म है या आग… इस उम्र में ऐसा बदन… !’ उसने मेरे नंगे बोबे काट लिये और कड़े चूचक पीने लगा। मेरी चिकनी चूत को हाथ से सहलाने लगा। मैं दूसरी दुनिया में खोने लगी। वो धीरे से मेरे ऊपर वजन डाल कर लेट गया। उसका तन्नाया हुआ लण्ड मेरी चूत को दबाने लगा। मेरी चूत सूखी थी, माहवारी बन्द हो चुकी थी, उसने थूक लगा कर चूत चिकनी की और उसका मोटा सुपाड़ा अन्दर घुस पड़ा। मैं सिसक उठी, दर्द सा हुआ पर अधिक नहीं, शायद चुदवाने का नशा अधिक था।

‘हाय रे… घुसा दे अन्दर…! कितने सालों बाद यह सुख नसीब हुआ है !’
मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। उत्तेजना से मेरे जिस्म में ताकत भी आ गई थी। उसने अब मेरे उरोज दबा कर चोदना शुरू कर दिया।

मैं सारा जहाँ भूल गई। यह भी कि मैं कौन हूँ, मेरी यहां हैसियत क्या है। बस वासना में बहती चली जा रही थी। मेरी चूत में मिठास भरती जा रही थी, मैं इसी सुख के लिये तड़पती थी। उसका साथ देने के लिये मेरे चूतड़ भी आगे पीछे चल रहे थे।
‘हाय रे आलोक ! चोद दे रे… जोर से धक्का लगा… लगा रे !’
‘मैम, मैं आलोक नहीं, आभास हूँ, हाय, मैम, बहुत मजा आ रहा है !’

आभास मुझे जोश में चोद रहा था। पर मेरे जेहन में आलोक बसा था। मेरी नसें खिचने लगी। मेरा अंग अंग आज मसला जाने को बेताब हो उठा। मेरी चूत गहरी चुदाई मांगने लगी। मैं पूरी उत्तेजना साथ साथ उससे चिपकती जा रही थी। मुझे ऐसा लगने लगा कि सारी दुनिया की मिठास मेरी चूत में भर गई हो… मुझे लगा कि मेरा रस निकलने वाला है। मैं तड़प उठी और मैंने अपना पानी छोड़ दिया। मैं झड़ने लगी थी।

पर आभास का जवान लण्ड मुझे पेले जा रहा था। मैं निढाल सी पड़ी चुदती रही। मेरा बदन अभी कुछ देर पहले मिठास से भरा हुआ था, अब टीसने लगा था। पर ये दर्द भी सुहाना लग रहा था। आभास भी अब अन्तिम चरण में था। उसका भी वीर्य निकल पड़ा। पर सावधानीवश उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मेरे पेट और नाभि पर पिचकारी बरसाने लगा।

मुझे इस वीर्य का निकलना बहुत अच्छा लगा और उसे अपनी चूत तक हाथ से फ़ैला लिया। लसलसा सा, चिकना, सफ़ेद, गाढ़ा गाढ़ा सा वीर्य का सुख बहुत सालों बाद मिला था। उम्र का तकाजा था, मैं थक गई थी, आभास दूसरे दौर के लिये भी तैयार था, पर मेरी हालत देख कर उसने बस मेरे शरीर को सहलाया, जगह जगह चूमा और उठ खड़ा हुआ। मैं भी थकी सी उठी और बाथरूम में जाकर फिर से अपने आप को साफ़ किया और आभास के लिये चाय नाश्ता बना कर ले आई।

आभास खुश था। उसे नौकरी के साथ साथ चुदाई भी मिल रही थी। डायरेक्टर को चोद कर उसने तो स्कूल को जीत लिया। मैंने अब उसे घर पर काम लेकर बुलाना चालू कर दिया था। कम्प्यूटर और इन्टरनेट तो घर पर था ही, अब वो साथ में कोण्डम जरूर लाता था।

मैं भी अब अपनी चूत और गाण्ड की चिकनाई लगा कर तरोताजा और चमकदार रखती थी। चुदवाने के साथ साथ अब मैं गाण्ड भी मरवाने लगी थी। आभास ने मुझे और हमारे रिश्ते को औरों के सामने मा-बेटे का दर्जा दे रखा था… कि कोई शक ना करे।
बाहरी रिश्ता कुछ भी हो पर ये जिस्म तो चुदाई और रगड़ाई मांगता था। शारीरिक सुख चाहता था। क्या करू इस दिल को कैसे काबू में रखूँ। इस उम्र में भी ये दिल है कि मानता ही नहीं…
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