जूनियर की बीवी-1

पार्टी के दौरान मैंने अलका पर अच्छे से नज़र डाली तो मेरा लौड़ा उसकी चूत की चाह में फड़क उठा. बहनचोद मदमस्त जवानी थी! उम्र होगी कोई सताईस या अठाईस वर्ष की. भरपूर जवानी की आभा से अलका दमक रही थी. 5 फुट 4 इंच का भारतीय स्त्रियों का एवरेज क़द, सांवला रंग, बढ़िया नैन नक़्शे और मर्दों की क़ातिल फिगर. मैंने सबकी निगाह बचाकर बड़े गौर से अलका को एक एक इंच करके निहारा.

माशाअल्लाह! हरामज़ादी ने मैरून रंग की रेशमी साड़ी, उसी रंग के हल्के शेड का ब्लाउज पहन रखा था. हाथ पैरों के नाखूनों में भी मैरून नेल पोलिश और मैरून ही लिपस्टिक भी. एक कलाई में सोने का कंगन, दूसरे में सुन्दर सी गोल्डन घडी. इसके अलावा दोनों हाथों में मैरून कांच की दो दो चूड़ियां. गले में एक जड़ाऊ हार और कानों में मैचिंग बुँदे. बड़ी बड़ी हिरणी सी ऑंखें थीं उस क़यामत की.
मैंने उसके हाथों और पांवों पर नज़र दौड़ाई. दोनों सुन्दर, सुडौल और दिलकश. अच्छा उभरा हुआ स्वस्थ वक्षस्थल. शर्तिया साली की चूचियां खूब मस्त होंगी, चूस के आनंद आ जायगा. यह तो पक्का था कि अलका के चुचुक पिलपिले नहीं थे.
बहनचोद मर्दों पर बिजलियाँ गिराने के लिए उसने साड़ी नाभि के नीचे बांध रखी थी. ब्लाउज काफी ऊँचा था और पीछे से लो कट भी. पेट का काफी भाग साड़ी के पल्लू के पीछे से दिख रहा था और आधी पीठ तो नंगी थी ही. इसकी नाभि में पहले जीभ, फिर लंड घुमा के कितना मज़ा आएगा. आह! सोच सोच के उत्तेजना होने लगी.

मस्त भरा भरा मांसल गुदाज़ बदन था अलका का. बेहद कामुक इतनी कि देखते ही लौड़ा अकड़ अकड़ के पैंट से बाहर कूदने को करे. सचाई तो यह है कि कामुकता उसके शरीर के रोम रोम में भरी पड़ी थी. उसकी एक एक अदा, चलने फिरने का ढंग, उठने बैठने का अंदाज़ सब कामुकता कि वर्षा करता हुआ लगता था. काम देव ने अपना बाण छोड़ दिया था और यह चूतनिवास बुरी तरह से घायल हो गया था. बार बार एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही थीं.

दिल में चुभे वो तीर है तू
चाहत की तक़दीर है तू
कौन न होगा तुझ पे दीवाना
प्यार की इक तस्वीर है तू

यह तीर तो बहनचोद दिल में क्या पूरे बदन में अंदर बाहर खूब गहरा चुभ चुका था और ज़बरदस्त दर्द कर रहा था.

मैंने भांप लिया था कि अलका एक बहुत सेक्स पसंद लड़की है. जैसा हर लड़की को यह अहसास हो जाता है कि कोई आदमी उसको घूर रहा है, वैसे ही अलका भी ताड़ गई थी कि मैं उसे ध्यानपूर्वक देख रहा हूँ. दो चार बार जब भी उसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो मुझे खुद को देखते हुए पाया. कम्बख्त समझ गई कि मैं उस पर लट्टू हो गया हूँ क्यूंकि जब हमारी आँखें चार होतीं तो एक शरारत भरी मुस्कान उसके चेहरे पर खेल जाती जैसे मुझे बता रही हो कि चूतिये मुझे पता है कि तू मेरे ऊपर फ़िदा है. और ये चुनौती भी कि अगर है दम तो दिखा मुझे कि तू मुझे पटा सकता है.

पार्टी में मैं उसके इर्द गिर्द मण्डराता रहा. उसके बालों से आती हुई शैम्पू की सुगंध और उसके बदन से चारों तरफ फैलती हुई इत्र की महक मुझे पागल बनाये जा रही थी. खैर पार्टी ख़त्म हुई तो घर पहुँचते ही अपनी पत्नी जूसी रानी को जकड़ा और पटक के ड्राइंग रूम के गलीचे पर ही चोद डाला. इतना ज़ोर से लौड़ा अकड़ा हुआ था. एक बार चोद के भी तसल्ली न हुई. बार बार अलका दिमाग में घूम रही थी. जूसी रानी को एक बार फिर चोद दिया लेकिन मन में यह समझ के कि अलका को चोद रहा हूँ.

इसके बाद यारों, शुरू हुई अलका को पटाने की लम्बी यात्रा. उसके पति सत्येन को कस्टमर सर्विस के नाम पर बार बार दूसरे शहरों में भेजना शुरू किया दो से पांच दिनों के लिए. वो भी खुश था कि अच्छा खासा यात्रा भत्ता आदि बन जाता था.

कई बार दोनों को डिनर पर आमंत्रित भी किया ताकि बातचीत इनफॉर्मल हो जाए. अलका और जूसी रानी आपस में काफी घुल मिल गए. दोनों का दोपहर में घर आना जाना भी होने पगा. मैंने अपना व्यव्हार बिलकुल आदर्श जेंटलमैन जैसा रखा. बड़ी इज़्ज़त से पेश आता था. कोई भी ऐसी हरकत नहीं करी जिस से अलका उखड़ जाए या उखड़ने का नाटक करे.
परन्तु बड़ी चालाक थी हरामज़ादी. सब समझती थी लेकिन हाथ आने के लिए मेरा एड़ी चोटी का ज़ोर लगवा दिया.

अलका को फांसने के लिए मैंने क्या क्या किया उसका विवरण संक्षिप्त में दे देता हूँ. विस्तार से वर्णन करूंगा तो काफी लम्बा हो जायगा. इसलिए मैंने वो सब लिख के पढ़ने वालों का समय नष्ट नहीं करूँगा. मैं सीधे उस मुक़ाम तक फ़ास्ट फॉरवर्ड हो जाता हूँ जहाँ मुझे ये लगने लगा था कि अब मंज़िल दूर नहीं है. अगला क़दम बढ़ाने का समय शायद आ गया था. अब तक चार पांच महीने गुज़र चुके थे.

जैसा मैंने पहले बताया मैंने सत्य नारायण को अक्सर बाहर दूसरे शहर में भेजना शुरू कर रखा था. जब वो नहीं होता था तो मैं अलका को फोन करके पूछ लेता कि कोई काम हो तो बता दे, मैं करवा दूंगा.
ऐसे ही एक दिन मैंने फोन किया- अलका जी… सब ठीक है न? कुछ प्रॉब्लम हो तो बताइयेगा.
उसकी खनखनाती हुई आवाज़ से बहनचोद लौड़ा अकड़ गया- नहीं जी… सब ठीक है… थैंक्स.

मैंने एक कदम आगे बढ़ाने की ठानी और एक दोहरे अर्थ वाला संवाद मारा- अलका जी, अगर कोई भी काम हो तो बेखटके बोल दीजियेगा. आपके पति की कमी नहीं महसूस होने दूंगा.
अलका चुप रही; फोन पर सिर्फ उसकी सांसों की हल्की हल्की आवाज़ मी कानों में आ रही थी.
मैंने आगे कहा- किरण कह रही थी कि काफी दिन से साथ में डिनर नहीं हुआ. आज का कर लें?
“अभी तीन दिन पहले तो आपके घर पर डिनर लिया था राज जी. भूल गए आप?” अलका ने हँसते हुए कहा.
“क्या करूँ अलका जी, आपकी आवाज़ जब कानों में शहद घोलती है तो सब याददाश्त उड़ जाती है.”
अलका फिर से हंस दी- अच्छा जी… आप बातें खूब बना लेते हैं… कुछ कुछ शरारत भी है आपके मिज़ाज में. चलिए आज आप लोग मेरे यहाँ आइये डिनर पर!

मैंने कहा- जैसी आज्ञा मैडम अलका जी!
अलका खिलखिला के हंसी- बॉस आप हैं और आज्ञा मेरी. यह तो उलटी गंगा बहा रहे हैं. अब फोन रखती हूँ. डिनर पर जितनी उलटी या सीधी, जैसी भी गंगा बहानी हो खूब बहाइयेगा.
उसने फोन बंद कर दिया.

शाम को मैं और जूसी रानी उसके घर डिनर पर चले गए. डिनर से पहले कुछ स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स को सर्व किया गया. स्नैक्स में पकोड़े और फ्रूट चाट थे. पकौड़े बहुत अच्छे थे और फ्रूट चाट में मसाला बहुत अच्छा था; बहुत ही स्वादिष्ट.

उसके बाद समय बिताने के लिए बातचीत चलती रही. एक घंटे के बाद जब अलका ने डिनर के लिए डाइनिंग टेबल पर आने का न्योता दिया तो जूसी रानी हाथ धोने के लिए वाश रूम में गयी. मौका ताड़ के मैंने कहा- आपके हाथों में तो जादू है अलका जी… आपकी बनाए हुए पकवान खाकर तो जी करता है कि आपकी उंगलियां चूम लूँ… चूमूँ और बस चूमता ही जाऊँ.
कोई उत्तर नहीं मिला; अलका सर झुकाये रही लेकिन बोली कुछ नहीं.

मैंने थोड़ा सा और आगे बढ़ने की सोची, मैं बोला- अलका जी सच कहूं तो आपके हाथ इतने खूबसूरत हैं कि इनको वैसे ही हर वक़्त चूमने का दिल करता रहता है. आपकी हर हरकत में ऐसा ग्रेस है कि आदमी निहारता ही रहे.
इतने में जूसी रानी हाथ धोकर वापिस आ गयी तो मैं चुप हो गया.

फिर डिनर हुआ जो बहुत अच्छा बना हुआ था. नरगिसी कोफ्ते, दाल मक्खनी, सूखे गट्टे, बैंगन भरता, मशरूम पुलाव और बूंदी रायता आदि सामान था. डिनर के बाद फिरनी थी. सब कुछ बहुत मज़ेदार और स्वादिष्ट!

उसके बाद अलका कॉफ़ी ले आयी; बहुत बढ़िया कॉफ़ी थी. कॉफ़ी की चुस्कियां लेते लेते हम लोग इधर उधर की गप्पें लगाते रहे.

अचानक जूसी रानी उठी और तेज़ तेज़ कदम बढ़ाते हुए बाथरूम की ओर चल दी. यह मौका पाकर मैंने जो अलका से संवाद का सिलसिला शुरू किया था उसको सिरा फिर से पकड़ लिया.
“अलका… तुम्हारे हाथ ही नहीं पांव भी बहुत अधिक सुन्दर हैं… बहुत कम लड़कियां हैं जिन्हें प्रकृति अति सुन्दर पैरों से सुसज्जित करती है… तुम्हारे पैरों को निहारते निहारते न आँखें थकती हैं और न ही दिल भरता है… ये इतने हसीन हैं किसी विज्ञापन कंपनी के लिए नेल पोलिश, फुट क्रीम, सैंडल्स या पायजेब के लिए मॉडल बन सकते हैं.” मैंने जान बूझकर उसे अलका जी की जगह सिर्फ अलका कहा था और आप न कह के तुम का प्रयोग किया था.

“राज जी, यही तो पीड़ा है कि पैरों को या हाथों को कौन देखता है… कोई निगाह नहीं डालता… सबकी नज़रें सिर्फ चेहरा या बॉडी तक ही सीमित रहती हैं… वैसे तो किरण भाभी जी के हाथ भी और पैर भी काफी सुन्दर हैं. आप चूमते होंगे उनको.”
“ऐसा न कहो अलका… मैंने डाली न नज़र तुम्हारे पैरों पर… अच्छे से हाथ भी देखे और पांव भी… कौन अँधा है जो इस बेमिसाल खूबसूरती को अनदेखा कर सकता है. हाँ तुमने सही कहा मैं चूमता हूँ जूसी रानी के हाथ और पैर… बहुत आनंद आता है.”
“राज जी… आप तो हज़ारों में एक हैं… भाभीजी बहुत लकी हैं जो उन्हें आप जैसा क़दरदान पति मिला… सबके नसीब ऐसे तो नहीं न होते.”

बोलते बोलते अलका रानी अचानक से ठिठक गई- राज जी… जूसी रानी कौन?
मैंने कहा- मैं प्राइवेट में किरण को जूसी रानी कहता हूँ.
अलका रानी ने मुस्काते हुए पूछा- इसमें ज़रूर कुछ न कुछ दिलचस्प बात होगी… यह नाम क्यों दिया अपने भाभीजी को… और प्राइवेट में उनको जूसी रानी कहते तो मेरे सामने क्यों बोले?

मैंने शर्माने का नाटक करते हुए धीमी सी आवाज़ में कहा- अलका जी, किरण के एक विशेष अंग से ढेर का ढेर जूस निकलता है इसलिए मैंने जूसीरानी नाम रख दिया… रही बात प्राइवेट की तो हम प्राइवेट में ही तो बात कर रहे हैं न? मेरा मन नहीं मानता कि मैं आपसे कुछ झूठ बात कहूं… जो सच्चाई थी वही बता दी.

अलका रानी का भी मुंह शर्म से सुर्ख हो गया. वो समझ गयी थी मैं किस जूस की बात कर रहा था. उसने ऑंखें नीची कर लीं- राज जी आपका दिमाग सच मुच बड़ा शरारती है.

इस सारे वार्तालाप से अब मुझे यकीन हो गया था कि अलका पट गयी. अब जल्दी ही यह सेक्स की पटाखा पुड़िया मेरे लंड को लील जायगी. बड़ी बेसब्री से मुझे उस शुभ दिन का इंतज़ार होने लगा था.

इससे पहले मैं कुछ और डायलॉग मारता, जूसी रानी लौट आयी और आकर मेरी बग़ल में अपनी जगह पर बैठ गयी. मैंने उसको कोहनी मारी. “बहनचोद थोड़ा सा सब्र नहीं कर सकती थी?… कर दिया न अमृत बर्बाद.” मैं उसके कान में मुनमुनाया.
उसने भी फुसफुसा के कहा- अरे सुस्सू करने नहीं गयी थी… मेरी माहवारी अभी शुरू हो गयी थी… खून निकलने लगा था… पैड लगाने गयी थी.

रात ग्यारह बजे के करीब हम दोनों अपने घर लौट आए. अलका रानी के साथ होने वाले मदमस्त संगम की बढ़ती हुई आशा ने मेरे लौड़े को बहुत ज़ोर से अकड़ा दिया था. घर आते ही मैंने जूसी रानी को वहीं ड्राइंग रूम में सोफे पर गिरा कर के मासिक धर्म के रक्त से भरी हुई चूत की ज़बरदस्त चुदाई कर डाली. जूसी रानी को भी ऐसी अचानक की जाने वाली चुदाई में बड़ा आनंद आता है तो उसने भी तुर्की ब तुर्की मेरा साथ दिया.

कुछ दिनों के बाद जूसी रानी को दस दिन के लिए अपने मायके जाना था, तो मैंने सत्येन को भी एक लम्बे टूर पर रवाना कर दिया.
कहानी जारी रहेगी.
आपका चूतनिवास
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