काम-देवियों की चूत चुदाई-3

उसको कंप्यूटर चलाना भी सिखा दिया था, जिससे वो मकानों के प्लान उनके नक्शा और डिजाइन सब खोल सके। फुर्सत में लीना अक्सर गाने सुनती और गेम खेलती रहती है। मेरे जाते ही कंप्यूटर से चिपक जाती है।

अब उसकी चुदाई के लिए कोई संशय था तो वो यह कि यह चुदने तैयार होगी या नहीं। चुदाई के लिए पहल कैसे की जाए कि वो मेरे को गलत भी न समझ ले और बिना गुस्सा हुए मेरे प्रणय निवेदन को स्वीकार कर भी ले।

इन्हीं ख्यालों में खोया आज ऑफिस में बैठा उसके आने का इंतजार कर रहा था। ठीक सवा ग्यारह बजे लीना आ गई। साईड कट वाली पीली कुर्ती और टाँगों पर चिपकी काली लैगी उस पर काला दुपट्टा।

माशा अल्लाह! मेरी तो आँखें उसकी जाँघों के कटाव और गांड के उभारों में जैसे उलझ सी गईं। ऊपर निगाह उठाई तो उसके स्तनों ने भी मेरे दिल पर नश्तर से चला दिए।

हल्की सी मुस्कान देते हुए बोली- सर, कल मेरा महीना होने वाला है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

वो आगे कुछ बोलती उसके पहले ही मैंने चुटकी लेते हुए कहा- लेकिन तुम्हारा महीना तो पिछले हफ्ते ही हो चुका, फिर इतने जल्दी?

वो जोरों से हंसीं और बोली- सर आप भी न..! मेरा मतलब मेरी नौकरी को एक महीना होने वाला है और आपसे एक निवेदन है कि मेरी पगार आज ही दे दो। क्योंकि कल मेरी शादी की दूसरी सालगिरह है और मैं अपने पति को अपनी पहली पगार से एक सुन्दर सी टाई और एक कैप गिफ्ट करना चाहती हूँ।

मैंने भी साफ झूट बोलते हुए मौका देख चौका लगा दिया- अजब इत्तफाक है, कल मेरी बीवी का जन्मदिन भी है। अच्छा बाकी बातें बाद में, मेरे को साईट पर जाना है, दोपहर तक आ जाऊँगा।’

तो वो सिर्फ मुस्कुरा दी। मैं अपनी बाइक लेकर साईट पर चला गया, लेकिन मन ही मन कोई तरकीब सोचता रहा, फिर तीन बजे ऑफिस पहुँचा।

मौका देखकर बाहरी कांच वाला दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया। एक गिफ्ट पैक जिसमें दो जोड़ी ब्रा-पैन्टी के सैट 32 साइज के थे, लीना के सामने रख दिए।

लीना बोली- ये क्या है?

मैंने कहा- गिफ्ट है इसमें, देखो कैसा है?

वो उत्सुकता से गिफ्ट पैकिंग को खोलने लगी। मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

पैकिंग खुलते ही उसमें रखे ब्रा-पैन्टी के पैकेट देख उसका चेहरा सुर्ख हो गया, बोलने लगी- सर, मैं ये नहीं ले सकती।

मैंने कहा- खोलकर तो देखो, कैसी हैं ये?

तो बोली- जब लेना ही नहीं तो खोलकर क्या देखना?

मैं समझ गया कि ये नहीं लेगी तो मैंने बात को पलट दिया।

मैंने कहा- मत लेना, पर देख तो लो मेरी खातिर! ये तो मैं अपनी बीवी के लिए लाया हूँ यार। उसके जन्मदिन का उपहार के लिए, इसमें से एक जोड़ी पसंद कर दो मेरी बीवी के लिए। दूसरी जो पसंद नहीं होगी, उसे दुकान पर वापस कर दूंगा। तुम्हारे लिए थोड़े ही लाया हूँ जो इतना शरमा रही हो।

उसने काँपते हाथों से उन पैकेट को खोला तो उन ब्रा पैन्टी को देखकर बोली- सर ये तो बहुत ही सुन्दर और बिल्कुल नए फैशन की बहुत अच्छी हैं। ये तो मंहगी भी बहुत होंगी।

मैंने कहा- गिफ्ट में मंहगा सस्ता नहीं देखा जाता, देने वाले की भावनाओं को देखा जाता है। आपको अच्छी नहीं लगी क्या?जल्दी से एक पसंद करके बताओ न!

बोली- सर दोनों इतनी अच्छी हैं कि मैं इनमें से सिलेक्ट नहीं कर पा रही हूँ।

उसकी बात को अनसुना करते हुए मैंने कहा- ये रही आपकी पगार।

उसको रूपये देते हुए कहा- एक काम करते हैं, कल ऑफिस की छुट्टी कर लेते हैं। मुझे अपनी बीवी के पास और आपको अपने पति संतोषकुमार के साथ बिताने का समय मिल जाएगा, आप इस ब्रा-पैन्टी का चुनाव तो करो!

लीना बोली- मैं तो असमंजस में पड़ गई हूँ।

‘अगर आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ? अगर आप असमंजस में हों और दोनों सैट अच्छे लगे हों तो एक सैट ब्रा-पैन्टी का आप ही रख लो।’

लीना बोली- न बाबा न मेरे पति संतोष इसे देखकर कहेंगे कि इतना मंहगा सैट कैसे ले लिया तुमने?

मेरे को लगा चिड़िया फँस गई जाल में! फ़ौरन मैंने कहा- तुम उसे टाई और कैप तो ले ही रही हो, बोल देना मेरी पगार मिली तो ख़ुशी में खरीद ली। फिर सालगिरह का मौका है, वो ज्यादा ध्यान नहीं देंगे।

एक पैकेट मैंने उसके बैग में डाल दिया वो किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो गई।

लेकिन मेरा आगे का रास्ता खुल गया था। इच्छा तो हो रही थी कि उससे कहूँ कि मुझे एक बार पहन कर दिखा दो। पर अभी यह बात कहने के लिए समय उपयुक्त नहीं था।

फिर शाम तक वो अपने काम में व्यस्त रही।
शाम पाँच बजे मैंने ही कहा- अब तुम घर चली जाओ, तुम्हें बाजार भी जाना है।

वो अपना बैग उठाकर जाने लगी तो मैंने अपना हाथ उसके और बढ़ाते हुए कहा- सालगिरह की बधाई तो लेती जाओ।

तो उसने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया, बोली- धन्यवाद।

उसके कोमल मक्खन सी हथेली को छोड़ने का दिल नहीं कर रहा था पर मजबूर था।

मैंने कहा- यह तुम्हारी शादी की दूसरी सालगिरह है, पर लगता है जैसे कल ही तुम्हारी शादी हुई हो। बिल्कुल नई-नवेली लगती हो।

वो शरमाते हुए बोली- सर, आप भी न मजाक करने में जरा भी नहीं चूकते।

वो ऑफिस से बाहर निकल गई। मैं उसकी कुर्ती के कट से उभरे हुए नितम्ब देखता रह गया।

दूसरे दिन ऑफिस की छुट्टी के कारण लीना को तो आना नहीं था, मैं सीधा साईट पर चला गया। फिर फुर्सत के समय में आकर ऑफिस खोल लिया।

सोचा एक अधूरी कहानी को पूरी कर के अन्तर्वासना पर भेज दूँ। तब मैं कली से फूल कहानी लिख रहा था। उसे तैयार करके प्रकाशन हेतु पोस्ट कर दिया।

फिर लीना की चुदाई के लिए कोई युक्ति सोचने लगा। मुझे अब विश्वास हो गया की मेरा युक्ति कामयाब रही तो कल जरूर कुछ कर गुजरूँगा।

कहानी जारी है। अपने विचार यहाँ पोस्ट करें-

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