कमाल की हसीना हूँ मैं-20

“हाँ !”

“फिर क्या कहा आपने? वो तैयार हो गये? अरे परेशान क्यों होते हो… हम लोग इस तरह की किसी औरत को ढूँढ लेंगे। जो दिखने में सीधी-साधी घरेलू औरत लगे।”

“अब कुछ नहीं हो सकता!”

“क्यों?” मैंने पूछा।

“तुम्हें याद है वो हमारे निकाह में आये थे।”

“आये होंगे… तो?”

“उन्होंने निकाह में तुम्हें देखा था।”

“तो??” मुझे अपनी साँस रुकती सी लगी और एक अजीब तरह का खौफ पूरे जिस्म में छाने लगा।

“उन्हें सिर्फ तुम्हारा बदन चाहिये।”

“क्या?” मैं लगभग चीख उठी, “उन हरामजादों ने समझा क्या है मुझे? कोई रंडी?”

वो सर झुकाये हुए बैठे रहे, मैं गुस्से से बिफ़र रही थी और उनको गालियाँ दे रही थी और कोस रही थी। मैंने अपना गुस्सा शांत करने के लिये किचन में जाकर एक पैग व्हिस्की का पिया।

फिर वापस आकर उनके पास बैठ गई और कहा- फिर???

मैंने अपने गुस्से को दबाते हुए उनसे धीरे-धीरे पूछा।

“कुछ नहीं हो सकता!” उन्होंने कहा, “उन्होंने साफ़-साफ़ कहा है कि या तो तुम उनके साथ एक रात गुजारो या मैं इलाईट ग्रुप से अपना कांट्रेक्ट खत्म समझूँ !” उन्होंने नीचे कालीन की ओर देखते हुए कहा।

“हो जाने दो कांट्रेक्ट खत्म ! ऐसे लोगों से संबंध तोड़ लेने में ही भलाई होती है, तुम परेशान मत हो, एक जाता है तो दूसरा आ जाता है।”

“बात अगर यहाँ तक होती तो भी कोई परेशानी नहीं थी।” उन्होंने अपना सिर उठाया और मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा- बात इससे कहीं ज्यादा संजीदा है। अगर वो अलग हो गये तो एक तो हमारे माल की खपत बंद हो जायेगी जिससे कंपनी बंद हो जायेगी… दूसरा उनसे संबंध तोड़ते ही मुझे उन्हें 15 करोड़ रुपये देने पड़ेंगे जो उन्होंने हमारी फर्म में इनवेस्ट कर रखे हैं।

मैं चुपचाप उनकी बातों को सुन रही थी लेकिन मेरे दिमाग में एक लड़ाई छिड़ी हुई थी।

“अगर फैक्ट्री बंद हो गई तो इतनी बड़ी रकम मैं कैसे चुका पाऊँगा। अपनी फैक्ट्री बेच कर भी इतना नहीं जमा कर पाऊँगा।”

अब मुझे भी अपनी हार होती दिखाई दी। उनकी माँग मानने के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा था।

उस दिन हम दोनों के बीच और बात नहीं हुई। चुपचाप खाना खाकर हम सो गये। मैंने तो सारी रात सोचते हुए गुजारी।

यह ठीक है कि जावेद के अलावा मैंने उनके बहनोई और उनके बड़े भाई से जिस्मानी ताल्लुकात बनाये थे और कुछ-कुछ ताल्लुकात ससुर जी के साथ भी बने थे लेकिन उस खानदान से बाहर मैंने कभी किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं बनाये। अगर मैं उनके साथ एक रात बिताती हूँ तो मुझ में और दो-टके की किसी रंडी में क्या फर्क रह जायेगा। कोई भी मर्द सिर्फ मन बहलाने के लिये एक रात की माँग करता है क्योंकि उसे मालूम होता है कि अगर एक बार उसके साथ जिस्मानी ताल्लुकात बन गये तो ऐसी एक और रात के लिये औरत कभी मना नहीं कर पायेगी।

लेकिन इसके अलावा हो भी क्या सकता था। इस भंवर से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक बीवी से एक रंडी बनती जा रही हूँ। किसी ओर भी रोशनी की कोई किरण नहीं दिख रही थी। किसी और से अपना दुखड़ा सुना कर मैं जावेद को जलील नहीं करना चाहती थी।

सुबह मैं अलसाई हुई उठी और मैंने जावेद को कह दिया, “ठीक है ! मैं तैयार हूँ !”

जावेद चुपचाप सुनते रहे और नाश्ता करके चले गये। उस दिन शाम को जावेद ने बताया कि रस्तोगी से उनकी बात हुई थी और उन्होंने रस्तोगी को मेरे राज़ी होने की बात कह दी है।

“हरामजादा… मादरचोद… बहन का लौड़ा खुशी से मारा जा रहा होगा !” मैंने मन ही मन जी भर कर गंदी-गंदी गालियाँ दीं।

“अगले हफ़्ते दोनों एक दिन के लिये आ रहे हैं।” जावेद ने कहा, “दोनों दिन भर ऑफिस के काम में बिज़ी होंगे… शाम को तुम्हें उनको एंटरटेन करना होगा।”

“कुछ तैयारी करनी होगी क्या?”

“किस बात की तैयारी?” जावेद ने मेरी ओर देखते हुए कहा, “शाम को वो खाना यहीं खायेंगे, उसका इंतज़ाम कर लेना… पहले हम सब ड्रिंक करेंगे।”

मैं बुझे मन से उस दिन का इंतज़ार करने लगी।

अगले हफ़्ते जावेद ने उनके आने की इत्तला दी। उनके आने के बाद सारा दिन जावेद उनके साथ बिज़ी थे। शाम को छः बजे के आस पास वो घर आये और उन्होंने एक पैकेट मेरी ओर बढ़ाया।

“इसमें उन लोगों ने तुम्हारे लिये कोई ड्रेस पसंद की है। आज शाम को तुम्हें यही ड्रेस पहननी है। इसके अलावा जिस्म पर और कुछ नहीं रहे… यह कहा है उन्होंने।”

मैंने उस पैकेट को खोल कर देखा। उसमें एक पारदर्शी झिलमिलाती साड़ी थी और साथ में काफी ऊँची और पतली हील के सैंडल थे और कुछ भी नहीं था। उनके कहे अनुसार मुझे अपने नंगे जिस्म पर सिर्फ वो साड़ी और सैंडल पहनने थे बिना किसी पेटीकोट और ब्लाऊज़ के। साड़ी इतनी महीन थी कि उसके दूसरी तरफ़ की हर चीज़ साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।

“ये..?? ये क्या है? मैं ये साड़ी पहनूँगी? इसके साथ अंडरगार्मेंट्स कहाँ हैं?” मैंने जावेद से पूछा।

“कोई अंडरगार्मेंट नहीं है। वैसे भी कुछ ही देर में ये भी वो तुम्हारे जिस्म से नोच देंगे और तुम सिर्फ इन सैंडलों में रह जाओगी।”

मैं एकदम से चुप हो गई।

“तुम?… तुम कहाँ रहोगे?” मैंने कुछ देर बाद पूछा।

“वहीं तुम्हारे पास !” जावेद ने कहा।

“नहीं तुम वहाँ मत रहना, तुम कहीं चले जाना। मैं तुम्हारे सामने वो सब नहीं कर पाऊँगी… मुझे शर्म आयेगी !” मैंने जावेद से लिपटते हुए कहा।

“क्या करूँ, मैं भी उस समय वहाँ मौजूद नहीं रहना चाहता। मैं भी अपनी बीवी को किसी और की बाँहों में झूलता सहन नहीं कर सकता। लेकिन उन दोनों हरामजादों ने मुझे बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो जानते हैं कि मेरी दुखती रग उन लोगों के हाथों में दबी है इसलिये वो जो भी कहेंगे मुझे करना पड़ेगा। उन सालों ने मुझे उस वक्त वहीं मौजूद रहने को कहा है।” कहते कहते उनका चेहरा लाल हो गया और उनकी आवाज रुंध गई।

मैंने उनको अपनी बाँहों में ले लिया और उनके सिर को अपने दोनों मम्मों में दबा कर सांत्वना दी।

“तुम घबराओ मत जानेमन ! तुम पर किसी तरह की परेशानी नहीं आने दूँगी।”

मैंने नसरीन भाभीजान से फ़ोन पर इस बारे में कुछ घुमा-फ़िरा कर चर्चा की तो पता चला उनके साथ भी इस तरह के वाक्यात होते रहते हैं।

मैंने उन्हें उन दोनों के बारे में बताया तो उन्होंने मुझे कहा कि बिज़नेस में इस तरह के ऑफर्स चलते रहते हैं और मुझे आगे भी इस तरह की किसी सिचुएशन के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये। उन्होंने सलाह दी कि मैं नेगेटिव ना सोचूँ और ऐसे मौकों पर खुद भी एन्जॉय करूँ।

उस दिन शाम को मैं बन संवर कर तैयार हुई। मैंने कमर में एक डोरी की सहायता से अपनी साड़ी को लपेटा। मेरा पूरा जिस्म सामने से साफ़ झलक रहा था। मैं कितनी भी कोशिश करती अपने गुप्ताँगों को छिपाने की, लेकिन कुछ भी नहीं छिपा पा रही थी। एक अंग पर साड़ी दोहरी करती तो दूसरे अंग के लिये साड़ी नहीं बचती।

खैर मैंने उसे अपने जिस्म पर नॉर्मल साड़ी की तरह पहना। फिर उनके दिये हुए हाई-हील के सैंडल पहने जिनके स्ट्रैप मेरी टाँगों पर क्रिसक्रॉस होते हुए घुटनों के नीचे बंधते थे।

मैंने उन लोगों के आने से पहले अपने आप को एक बार आईने में देख कर तसल्ली की और साड़ी के आंचल को अपनी छातियों पर दोहरा करके लिया। फिर भी मेरे मम्मे साफ़ झलक रहे थे।

उन लोगों की पसंद के मुताबिक मैंने अपने चेहरे पर गहरा मेकअप किया था। मैंने उनके आने से पहले कोंट्रासेप्टिव का इस्तेमाल कर लिया था क्योंकि प्रिकॉशन लेने के मामले में इस तरह के संबंधों में किसी पर भरोसा करना एक भूल होती है।

उनके आने पर जावेद ने जा कर दरवाजा खोला, मैं अंदर ही रही। उनकी बातें करने की आवाज से समझ गई कि दोनों अपनी रात हसीन होने की कल्पना करके चहक रहे हैं।

मैंने एक गहरी साँस लेकर अपने आप को वक्त के हाथों छोड़ दिया। जब इसके अलावा हमारे सामने कोई रास्ता ही नहीं बचा था तो फिर कोई झिझक कैसी। मैंने अपने आप को उनकी खुशी के मुताबिक पूरी तरह से निसार करने की ठान ली।

जावेद के आवाज देने पर मैं एक ट्रे में चार गिलास और आईस क्यूब कंटेनर लेकर ड्राइंग रूम में पहुँची। सबकी आँखें मेरे हुस्न को देख कर बड़ी-बड़ी हो गई।

मेरी आँखें जमीन में धंसी जा रही थी, मैं हया से पानी-पानी हो रही थी, किसी अंजान के सामने अपने जिस्म की नुमाईश करने का यह मेरा पहला मौका था। मैं हाई-हील सैंडलों में धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई उनके पास पहुँची।

मैं अपनी झुकी हुई नजरों से देख रही थी कि मेरे आजाद मम्मे मेरे जिस्म के हर हल्के से हिलने पर काँप उठते और उनकी ये उछल-कूद सामने बैठे लोगों की भूखी आँखों को राहत दे रही थी।

कहानी जारी रहेगी।