लंड की करतूत-2

इस तरह जब वह रोज काम पर आती तो कभी-कभी मैं उसकी कमर और पीठ की मालिश कर देता और उसे भींच कर चूम लेता। हफ़्ते में एक दो बार हम चुदाई भी कर लेते थे।

एक दिन मैंने रेखा से कहा- तुम्हारी आंटी 4-5 दिन के लिए अपनी बहन के यहाँ दूसरे शहर जा रही है। हम दोनों 4-5 दिन खूब मस्ती करेंगे।
यह सुनकर वह बहुत खुश हुई और पूछने लगी- आंटी कब जा रही हैं?
मैंने कहा- कल !

दूसरे दिन मेरी पत्नी को स्टेशन छोड़ने के बाद मैं घर आया। थोड़ी देर में रेखा भी आई। मैं बाज़ार से नाश्ता लेकर आया था। हम दोनों ने नाश्ता किया और ऊपर अपने चुदाई क्षेत्र में आ गये।
मैंने रेखा को बाँहों में भींच लिया। उसे चूमा और दोनों बोबे हाथ में पकड़ लिए।
मैंने रेखा से कहा- आज ऐसे नहीं, हम दोनों पहले बाथरूम में साथ नहायेंगे।
वह मान गई।

मैंने टब में पानी भरना चालू किया, इस बीच हम दोनों ने एक दूसरे के कपड़े उतारने शुरू किये। हम दोनों बाथरूम के बाहर ही नंगे हो गए और आइने के सामने खड़े होकर दोनों शरीरों को देखते रहे। मैंने रेखा से कहा- तुम बिल्कुल अप्सरा लग रही हो !
और उसे बाँहों में जकड़ लिया। मैं सर से पैर तक उसे चूमता रहा।
मैंने रेखा से कहा- तुम पैर फैला कर खड़ी हो जाओ।
मैं उसके नीचे बैठ गया और उसे कहा- पेशाब करना चालू करो, मैं उसमें नहाना चाहता हूँ,
वह शरमा गई और बोली- मैं ऐसा नहीं कर सकती !
मैंने कहा- तुम्हें मेरी कसम ! करना पड़ेगा !

वह मुश्किल से मान गई और उसने पेशाब करना शुरू किया। मैंने उसके गरम-गरम मूत्र-स्नान का आनंद लिया और अपने लंड को उसके मूत्र की धार से अभिषेक कराया।
फिर मैंने रेखा से कहा- रेखा, तुम्हारी झांटे बहुत बढ़ गई हैं, आओ मैं काट देता हूँ।
पहले तो वह शरमाई और मना करने लगी। बहुत मनाने पर वह मान गई।

मैंने रेज़र से उसकी झांटें साफ़ की और उसकी चूत को साबुन से धोकर चूमना चालू किया।
मैंने उसे कहा- महीने- बीस दिन में मैं तेरी झांटें काट दिया करूँगा।

उसके मुँह से आहें निकलने लगी। मेरा लंड भी खड़ा होकर उसकी चूत को सलामी देने लगा। उसने मुझे बताया कि उसके पति ने कभी उसकी झांट साफ़ नहीं की और न ही वह कभी चूत चूमता है। आज ये दोनों बातें आप कर रहें हैं, मुझे इतना मजा आ रहा है कि मैं बयान नहीं कर सकती। मैं अपने आप को भाग्यशाली समझती हूँ।

हम दोनों की सांसें फूलने लगी। उसकी चूत और मेरे लंड से चिकना पानी निकलने लगा।

आवेश में उसकी चूत की दोनों फांकें तितली के पंखों की तरह खुलने और बंद होने लगी। इधर टब में पानी भर चुका था।
मैं पहले टब में लेट गया और अपने ऊपर रेखा को बैठने के लिए इशारा किया।
वह मेरे ऊपर लेट गई। हम एक दूसरे को चूमते रहे और पानी से खेलते रहे। मेरा लंड गर्म पानी में उछलने लगा, रेखा भी उफान पर आ गई।

मैंने रेखा से पूछा- कैसा लग रहा है?उसने कहा- मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं।
फिर मैंने उसे कहा- अब तुम लंड को अपनी चूत में डाल कर मेरे ऊपर बैठ जाओ।
वह बैठ तो गई मगर बोली- ऊपर से बैठने से लंड अन्दर गड़ता है।मैंने कहा- तुम मेरे ऊपर लेट जाओ और जितना लंड अन्दर लेना चाहती हो ले लो।

हम दोनों इस तरह एक दूसरे पर पानी में पड़े रहे। कुछ देर बाद उत्तेजना में रेखा ने चूत को आगे पीछे करना चालू किया, मैंने भी लंड से झटके देने शुरू किये।

दस मिनट में हम दोनों झड़ गए। हम लोग टब से बाहर निकले और एक दूसरे को नहलाने लगे। मैंने उसकी पीठ और उसने मेरी पीठ पर साबुन मला और हम शावर के नीचे खड़े हो गए। फिर हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर तौलिए से पोंछे और बिस्तर में आकर लेट गए।
रेखा बोली- दो और लोगों से चुदवा चुकी हूँ मगर आज जैसा मजा कभी नहीं आया।
उसने कहा- आज मुझे ऐसा लगा कि मैं स्वर्ग का आनंद भोग रही हूँ !

मैंने उससे कहा- मुझे भी ऐसा ही लगा ! करीब एक घंटा हम दोनों चादर ओढ़े नंगे पड़े रहे और एक दूसरे के शरीर सहलाते रहे। मैं उसकी चूत की फांकें और वह मेरा लंड चूसते रहे। हम दोनों एक बार फिर बहुत उत्तेजित हो गए। मैंने फिर अपना लंड उसकी चूत में डाल कर पिस्टन की तरह चलाना चालू किया और हम दोनों झड़ गए।

रेखा ने मुझसे कहा- अंकल, मुझे आपकी एक बात बहुत अच्छी लगी है, आप गुदा में लंड नहीं डालते। मेरा पति इसके लिए जिद करता है तो मैं उसे मना कर देती हूँ। मुझे बहुत गन्दा लगता है।

रेखा ने कहा- मैं जिन दूसरे दो लोगों से चुदवाती हूँ उन्हें भी पहले ही साफ़-साफ़ कह दिया है कि अगर वो मेरे साथ ऐसा करना चाहेंगे तो मैं उनका साथ छोड़ दूँगी।

मैंने कहा- वह तो गन्दी बात है ही। भगवान ने लंड के लिए इतनी सुन्दर चूत दी है उसे छोड़ कर हम क्यों गन्दा काम करें।

यह सुनकर वह बहुत खुश हुई और कहा- मेरे पिछले जन्म के पुण्य से ही आप मुझे मिले। मैं आपके लिए कुछ भी कर सकती हूँ।

मैंने उससे कहा- कल हम समुन्दर के किनारे बालू में लंड और चूत का खेल खेलेंगे।
वह हंस दी और बाय कह कर चली गई।
कहानी जारी रहेगी..
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