धोबी घाट पर माँ और मैं -15

मैंने बुर पर से अपने मुँह को हटा दिया और अपने सिर को माँ की जांघों पर रख कर लेट गया।
कुछ देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद मैंने जब सिर उठा कर देखा तो पाया कि माँ अब भी अपने आँखों को बंद किये बेसुध होकर लेटी हुई है।

मैं चुपचाप उसके पैरों के बीच से उठा और उसकी बगल में जाकर लेट गया। मेरा लंड फिर से खड़ा हो चुका था पर मैंने चुपचाप लेटना
ही बेहतर समझा और माँ की ओर करवट लेकर मैंने अपने सिर को उसकी चूचियों से सटा दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट
गया।

मैं भी थोड़ी बहुत थकावट महसूस कर रहा था, हालांकि लंड पूरा खड़ा था और चोदने की इच्छा बाकी थी। मैं अपने हाथों से माँ के पेट, नाभि और जांघों को सहला रहा था। मैं धीरे धीरे यह सारा काम कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि माँ ना जागे।
मुझे लग रहा था कि अब तो माँ सो गई है और मुझे शायद मुठ मार कर ही संतोष करना पड़ेगा इसलिये मैं चाह रहा था कि सोते हुए थोड़ा सा माँ के बदन से खेल लूँ और फिर मुठ मार लूँगा।

मुझे माँ की जांघ बड़ी अच्छी लगी और मेरा दिल कर रहा था कि मैं उन्हें चूमूं और चाटूँ।
इसलिये मैं चुपचाप धीरे से उठा और फिर माँ के पैरों के पास बैठ गया।
माँ ने अपना एक पैर फैला रखा था और दूसरे पैर को घुटनों के पास से मोड़ कर रख हुआ था। इस अवस्था में वो बड़ी खूबसूरत लग रही थी, उसके बाल थोड़े बिखरे हुए थे, एक हाथ आँखों पर और दूसरा बगल में था।
पैरों के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांड दोनों का छेद स्पष्ट रूप से दिख रहा था।

धीरे धीरे मैं अपने होंठों को उसकी जांघों पर फेरने लगा और हल्की हल्की चुम्मियाँ उसकी रानों से शुरु करके उसके घुटनों तक देने लगा।
एकदम मक्खन जैसी गोरी, चिकनी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर हल्के हल्के मसल भी रहा था। मेरा यह काम थोड़ी देर तक चलता रहा।

तभी माँ ने अपनी आँखें खोली और मुझे अपनी जांघों के पास देख कर वो एकदम से चौंक कर उठ गई और प्यार से मुझे अपनी जांघों के पास से उठाते हुए बोली- क्या कर रहा है बेटे? जरा आँख लग गई थी। देख ना, इतने दिनों के बाद इतने अच्छे से पहली बार मैंने वासना का आनन्द उठाया है। इस तरह पिछली बार कब झड़ी थी, मुझे तो यह भी याद नहीं। इसलिये शायद संतुष्टि और थकान के कारण आँख लग गई।
‘कोई बात नहीं माँ, तुम सो जाओ।’

तभी माँ की नजर मेरे 8.5 इंच के लौड़े की तरफ गई और वो चौंक कर बोली- अरे, ऐसे कैसे सो जाऊँ?
और मेरा लौड़ा अपने हाथ में पकड़ लिया- मेरे लाल का लंड खड़ा होकर बार बार मुझे पुकार रहा है, और मैं सो जाऊँ।
‘ओह माँ, इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लूँगा, तुम सो जाओ।’
‘नही मेरे लाल, आ जा जरा-सा माँ के पास लेट जा। थोड़ा दम ले लूँ, फिर तुझे असली चीज का मजा दूंगी।’

मैं उठ कर माँ के बगल में लेट गया। अब हम दोनों माँ बेटे एक दूसरे की ओर करवट लेते हुए एक दूसरे से बातें करने लगे।
माँ ने अपना एक पैर उठाया और अपनी मोटी जांघों को मेरी कमर पर डाल दिया, फिर एक हाथ से मेरे खड़े लौड़े को पकड़ कर उसके सुपारे के साथ धीरे धीरे खेलने लगी।

मैं भी माँ की एक चूची को अपने हाथों में पकड़ कर धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठों को माँ के होंठों के पास ले जाकर एक चुम्बन लिया।
माँ ने अपने होंठों को खोल दिया।

चूमा-चाटी खत्म होने के बाद माँ ने पूछा- और बेटे, कैसा लगा माँ की चूत का स्वाद? अच्छा लगा या नहीं?
‘हाय माँ, बहुत स्वादिष्ट था, सच में मजा आ गया।’
‘अच्छा, चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा, इससे बढ़ कर मेरे लिए कोई बात नहीं।’

‘माँ, तुम सच में बहुत सुन्दर हो। तुम्हारी चूचियाँ कितनी खूबसूरत है। मैं… मैं क्या बोलूँ? माँ, तुम्हारा तो पूरा बदन खूबसूरत है।’
‘कितनी बार बोलेगा यह बात तू मुझसे? मैं तेरी आँखें नहीं पढ़ सकती क्या? जिनमें मेरे लिये इतना प्यार छलकता है।’

मैं माँ से फ़िर पूरा चिपक गया, उसकी चूचियाँ मेरी छाती में चुभ रही थी और मेरा लौड़ा अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था।
हम दोनों एक दूसरे की आगोश में कुछ देर तक ऐसे ही खोये रहे।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]