मुम्बई से दुबई- कामुक अन्तर्वासना-6

सुबह जब आँख खुली तो रेनू मेरी बाहों में ही थी।
मेरे दिमाग में सबसे पहली बात यही आई कि चलो कल रात जो हुआ वो सपना नहीं था।

मैंने रेनू को भी उठाया और खुद भी उठकर फ्रेश होकर ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया।
रेनू ने मेरे लिए चाय नाश्ता बनाया।

मेरी गोद में बैठकर उसने भी नाश्ता किया और बोली- मैं तो यहाँ रहूँगी नहीं, तुम एक काम करो, यह रखो गाड़ी की चाबी, जब तक यहाँ हो घर और घर के मालिक की घरवाली तुम्हारी है।

मैंने उसके बूब्स दबाए और गाड़ी लेकर ऑफिस चला गया।

ऑफिस में जैसे ही में पहुँचा तो बहुत ही खुशनुमा माहौल था।
मैंने जाकर अपनी डेस्क पर बैग रखा ही था, तब तक ऑफिस में सारे लोग खड़े होकर ताली बजाने लगे।

मैं तो खड़ा ही था तो मैं भी सभी लोगों के साथ मिलकर ताली बजाने लगा।
मेरे बगल वाली डेस्क पर जो बन्दा (हितेश) था मैंने उससे पूछा- क्या हुआ? आज किसी का बर्थडे वर्थडे है क्या?

तो हितेश बोला- भाई, ये तालियाँ तुम्हारे लिए ही बज रही हैं।

मुझे थोड़ा झटका लगा, मुझे लगा, ऑफिस वालों को कोई नया ताने भरा तरीका है किसी भी इंसान को सरेआम नंगा करने का?
तो मैं दनदनाता हुआ सीधा अपने मैनेजर के केबिन में पहुँचा।

इससे पहले की मैं कुछ कह पाता मैनेजर (दास) बोला दास- अबे ओ राहुल तू तो छा गया लोंडे!
मैं- हुआ क्या है सर ?

दास- अरे तेरा प्रोजेक्ट प्लान सेलेक्ट हो गया है। कंपनी के आला अधिकारियों ने तुझे परमानेंट कर दिया है और बाकी सारे पर्क्स की डिटेल्स तेरे ईमेल पर आ गई होगी।

मैं खुश होकर- ओह्ह अच्छा।
दास- तुझे 3 महीने के लिए दुबई जाना है। वहीं है तेरी ट्रेनिंग।

मैं- बहुत खूब…
मन में तो मेरे भी वही था जो आपके मन में है।

दास- कमीने अब पार्टी तो बनती है।
मैं- अरे क्यू नहीं सर !! अभी प्लान करता हूँ एक ज़बरदस्त पार्टी।

मुझे उसके केबिन से निकलने की जल्दी थी क्योंकि मुझे ईमेल देखने थे।

ईमेल तो बहुत थे पर जो मैं पढ़ना चाहता था वो ईमेल यह था कि मुझे अगले महीने तीन महीनों के लिए दुबई जाना है।
मैं अपने साथ अपनी बीवी को भी ले जा सकता हूँ। होटल और खाने का सब खर्च कम्पनी देने वाली थी। घूमने और पीने के भी बिल लगाकर उनका भुगतान लिया जा सकता है।

ऊपर वाल जब भी देता है, छप्पर फाड़ के ही देता है।
अभी तक न घर था, न गाड़ी थी और न ही कोई चूत… अब आलिशान घर ऑफिस के इतना करीब, गाड़ी भी, एक अस्थाई चूत है ही और एक अपनी वाली लिसेंसि चूत अगले हफ्ते आने ही वाली है।
ऊपर से पहला अंतर्राष्ट्रीय सफर वो भी तीन महीने के लिए।

मैंने तुरंत एक हफ्ते की छुट्टी के लिए दरख्वास्त कर दी पर मुझे केवल तीन दिन की छुट्टी की मंजूरी मिली। मैंने आज के लिए भी आधे दिन की छुट्टी ले ली थी।

आज शुक्रवार था और मुझे आज ही शाम की गाड़ी से जाना था।

मैंने घर जाकर रेनू को बोला- चलो मैं तुम्हें एयरपोर्ट छोड़ आता हूँ।
वो मेरे इस परवाह से बहुत खुश हुई, उसने कहा- पर अभी तो फ्लाइट में थोड़ा टाइम है, मैं तैयार हो जाती हूँ।

वो अपने कमरे में जाकर अपने सामान समेटने में लगी थी, मैं भी उसके कमरे में चला गया।
मैं- वो अपना रबर वाला लंड ले जा रही हो या नहीं?

रेनू- वहा उसका क्या काम? मैं यहीं छोड़ जाती हूँ। वैसे भी मेरे पति को नहीं पता है कि मैं ऐसे किसी डिल्डो का उपयोग करती हूँ।
मैं- अरे! तुम्हारा पति बहुत ही दकियानूसी ख्यालात का है क्या?

रेनू- नहीं इतना दकियानूसी भी नहीं है, पर पता नहीं क्यूँ मैंने ही उसे नहीं बताया कि मैं इसका उपयोग करती हूँ। पर थोड़ी पुरानी सोच तो है ही उसकी। चलो छोड़ो, मैं अभी शावर लेकर आती हूँ फिर तैयार होती हूँ।

मैं- हाँ जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ।
रेनू- अगर तुम्हे ऑफिस के लिए लेट होगा तो तुम निकल जाओ।

मैं- नहीं कोई बात नहीं मैं तो ऐसे ही बोल रहा था।
रेनू कुछ नहीं बोली और मेरे सामने ही अपने अंग वस्त्र निकाल कर बाथरूम में चली गई।

जैसे ही बाथरूम में घुसी मैंने अपने सारे कपड़े निकाले और बाथरूम का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा बंद नहीं किया था उसने, मैंने अंदर जाकर उसे पीछे से पकड़ लिया।

रेनू- मैं जानती थी कि तुम आओगे, मुझे भी तुम्हारे साथ नहाना था।
मैं उसकी पीठ से चिपक कर उसके बूब्स को पकड़े हुए उसके गले पर काटते हुए- तो बोल देती।

रेनू- मुझे लगा कि तुम्हें ऑफिस जाना होगा इसलिए तुम इतना टाइम नहीं दोगे इसलिए नहीं कहा। मुझे न सुनना अच्छा नहीं लगता।
मैं- आगे से बोल दिया करो।
रेनू- अब आगे कहा और कब मुलाक़ात होगी भगवान् जाने।

अब अपना एक हाथ उसके बूब्स से हटा कर उसकी चूत पर फेरने लगा था।
मैं- हाँ, यह तो कहना मुश्किल है कि कब मुलाक़ात होगी। यदि तुम्हारी मेरी आशिक़ी में दम है तो हम जल्दी ही मिलेंगे।

मैं बताना नहीं चाहता था कि मैं दुबई आ रहा हूँ। मैं उसे सरप्राइज देना चाहता था और दूसरी बात की ऐसे सेंटी बातों से जब मिलन होगा तो उसकी अहमियत भी बढ़ेगी।
रेनू- जब भगवान् ने हमे मिलाया है तो आगे भी वो कुछ न कुछ जरूर करेगा।

मैं उसकी चूत के दाने को अपनी उँगलियों से छेड़ कर उसके बूब्स को भी जरा ताकत से दबा रहा था। उसके मुंह से अब सिसकारी फूटने लगी थी।

रेनू- तुम मुझे पहले क्यूँ नहीं मिले राहुल। तुम्हारे हाथों में आआआआह्ह्ह्ह जादू है जान। तुम मेरे बदन को छूते हो तो मुझे ऊऊह्ह्ह्ह् इतना अच्छा लगता है। ओह्ह्ह्ह की मैं, मेरा मन करता है की हमेशा के लिए तुम्हारे साथ ही रह आउच। मुझे अपनी रखैल बना लो राहुल कोने में पड़ी रहूंगी।

मैंने अपना हाथ उसके बूब्स से हटाकर उसके मुंह पर रख दिया जिससे वो चुप हो जाए और एक हाथ से उसकी चूत पर रगड़ जारी थी।
मेरे लंड भी अब रेनू की गांड की दरार में रगड़ खा रहा था।
हमारे भीगते बदन पर पानी की बूंदें आग में घी की तरह काम कर रही थी।

उसने अपने दोनों हाथ मेरे गले के पीछे डाल रखे थे, उसके कारण उसके बूब्स दबाने में और भी ज्यादा मज़ा आ रहा था।
मैंने शावर बंद कर दिया और उसका हाथ पकड़ कर बाहर सोफे पर ले आया।

कल रात के भीषण चुदाई के बाद फर्श पर फैला हुआ कामरस अब रेनू साफ़ कर चुकी थी, पर दीवार पर लगे निशान अब तक रात की घमासान चुदाई की दास्तान बयां कर रहे थे।

हम दोनों के होंठ एक दूसरे के होंठों के रस को निचोड़ लेना चाहते थे। हम दोनों कुछ इस तरह मिल रहे थे जैसे बहुत बेचैन और बिछड़े हुए प्रेमी सालों बाद मिले हों और अब फिर सालों के लिए बिछड़ने वाले हों।

कम से कम रेनू के दिमाग में तो यही था, मुझे तो पता था कि मैं अगले महीने इससे फिर से मिलने वाला हूँ।
पर मुझे भी थोड़ा शक था कि मैं इसको दुबई में चोद पाऊँगा या नहीं क्योंकि वहाँ तो इसका पति भी होगा।
और पता नहीं होटल और इसका घर कितनी दूरी पर होगा।

खैर अभी तो चुदाई के मजे ले लेने में ही भलाई थी।
मैं उसके निप्पलों पर अपनी उँगलियाँ घुमा रहा था और वो अपनी कोहनी से बार बार मेरे हाथ को ऐसा करने से रोक रही थी।
जितना ही वो उंहहह आह्ह्ह्ह् करती मुझे उस पर उंगली घुमाने में उतना ही मज़ा आता।

होंठ होंठों से अलग हुए, रेनू बोली- अरे ऐसे मत करो, गुदगुदी होती है।
मैं- मज़ा तो आता है न?
रेनू- अरे हंसी आने लगती है। अच्छा सुनो कल जैसे तुमने मेरे मुंह में वीर्य छोड़ा था क्या तुम आज फिर मेरे मुंह को अपने वीर्य से सरोबार कर सकते हो?

मैं- नेकी और पूछ पूछ! तुम्हारे मुंह की गर्माहट में वीर्य छोड़ने में इतना मज़ा आता है कि तुम सोच भी नहीं सकती। पर जैसे मैं कहूँगा वैसे ही करना।
रेनू हसंते हुए- जो हुकुम मेरे आका।

मैंने अपने लंड को रेनू की चूत पर टिकाया और धक्का मारा।
थोड़ा सा लंड चूत के अंदर चला गया।

रेनू की चूत तो शायद तभी गीली होना शुरू हो गई थी जब वो शावर लेने जा रही थी। उसके गीले बदन पर चिपक कर फिसलने का लुफ्त एक अनोखा अनुभव था।

धीरे धीरे मेरा लंड रेनू की चूत में अच्छे से जा चुका था और मैं उसमें दमदार झटके मार रहा था।

रेनू- तुम तो मेरी चुदाई कर रहे हो। ऐसे तो तुम्हारा लंड मेरी चूत में ही उलटी कर देगा।
मैं- नहीं में ऐसा नहीं होने दूँगा, जब मैं अपने चरम पर आ जाऊँगा तब तुम्हारी चूत से अपना लंड निकाल कर तुम्हारे मुंह में दे दूंगा।

रेनू- ओह वाह!! मैंने आज तक अपने पानी को नहीं चखा है। आज तुम्हारे लंड पर अपने पानी को भी टेस्ट करूँगी।
मैं- अरे वाह तुम तो एक ही दिन में मेरी भावना समझने लगी।
रेनू- अरे मैं तो तुम्हारी रंडी हूँ, मुझे प्यार से नहीं, वासना से चोदो।

मैंने उसको अपनी बाहों में बुरी तरह जकड़ लिया और कसावट इतनी कर दी थी कि अगर थोड़ी और ताकत लग जाती तो उसकी पसलियाँ टूट जाती।

और इधर लंड चूत में अपने लंड को पूरी गति के साथ अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था।

रेनू बेतहाशा दर्द के साथ चुदाई करवा रही थी, उसकी आँखों से आंसू भी थे और दोनों होंठों को अपने होंठों में दबाये कम से कम आवाज़ के साथ चुदवा रही थी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे इस दर्द में इतना मज़ा क्यूँ आ रहा है। जब मुझे लगा कि उसे दर्द में अच्छा लगता है तो मैंने उसकी पकड़ को छोड़ा और टांगों में बीच बैठकर उस पर थप्पड़ों की बौछार कर दी, उसके गाल, वक्ष पर इतने थप्पड़ मारे कि उसके गाल और बूब्स दोनों लाल हो गए।

फिर मैंने उसे घोड़ी पोजीशन में आने को कहा। अब मैंने इस पोजीशन में भी उसकी चूत में लंड पेल दिया और चूतरों पर जोर जोर से चांटे मारने लगा, उसकी गांड पे चाटे मार मार के लाल कर दी।

इतनी हिंसक और उग्र चुदाई का मेरा यह पहला अनुभव था, मैं भी उसके रंग में रंगने लगा था, मुझे उसे मारने और बहुत जोर से उसके बूब्स दबाने में इतना मज़ा आने लगा कि मैं यह भूल ही गया था कि मैं किसी औरत के साथ चुदाई कर रहा हूँ न की किसी रोबोट या खिलौने के साथ… जिसे दर्द नहीं होता।

पर रेनू पूरा दर्द सहन करके भी अब तक उफ़ नहीं करी थी, बड़े आराम से चुदाई करवा रही थी और पिट रही थी।

मैंने जैसे ही अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला, पक की आवाज़ आई और एक झटके में रेनू जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई और कुतिया की तरह अपना मुंह फाड़ के मेरे लंड को मुंह में लेने को तैयार थी।

मैं बड़े आराम से सोफे पर कमर टिका कर बैठ गया, मेरा तना और सना हुआ लंड रेनू के मुंह एक बहुत करीब था, उसकी गर्म साँसें मेरे लंड से टकरा रही थी।

उसने अपने हाथों से मेरे लंड को जोर जोर से हिलाना शुरू किया और मेरे लंड से मलाई टपकाने को बेकरारी उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।

मैंने उसके हाथ से अपना लंड छुड़ाया और उसके गालों पर अपने लंड से मारने लगा।
वो बार बार अपना मुंह खोल कर उस प्रहार को यह समझती कि मैं लंड को उसके मुंह में डालने को कह रहा हूँ।

मेरे सने हुए लंड के निशान उसके गालों पर दोनों तरफ बना के मैंने अपने लंड को उसके मुंह के अंदर पेल दिया।

अब मैं उसके मुंह में धकाधक अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगा था, मेरी आँखें बंद हो रही थी, मैं चाह कर भी अपनी आँखें नहीं खोल पा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो बस अब जान निकलने वाली है।

तभी मैंने उसके सर के बालों को पीछे से जोर से पकड़ कर अपने लंड के तरफ धक्का मारा और उसके मुंह में दनादन पिचकारी मारने लगा।
उसने जड़ तक मेरे लंड को अपने मुंह में ले रखा था और मेरी पिचकारी शायद उसके गले में चल गई होगी।
उसके ठसके से मेरा लंड उसके मुंह के बाहर आ गया।

उसके दुबारा मुंह में लेने से पहले मेरी एक पिचकारी उसकी आँखों और नाक के आस पास गिरी, उसने अपने हाथ से मेरे लंड को हिलना जारी रखा जिससे मेरी मलाई का कोई भी अंश मेरे लंड के अंदर बच न पाये।

मेरे वीर्य की कुछ बूंदें उसके बूब्स पर भी गिर गई थी।
बाकी सब उसने मेरे लंड के टोपे को अपने मुंह में डाल के अपने अंदर ले लिया था।

मैं झड़ते झड़ते हमेशा की तरह बेहतरीन गन्दी गालियों की बौछार किये जा रहा था।

उसने मेरे वीर्य को पिया या नहीं, मैं यह तो नहीं कह सकता क्योंकि मेरी आँखें उस पल को देख नहीं सकी।
पर हाँ जो पहली धार थी, वो उसके पेट तक गई होगी इसलिए चाहते या न चाहते हुए भी उसने मेरे वीर्य की कुछ बूंदें तो अपने खून में मिला ही ली थी।

थोड़ी देर बाद उसने मेरे लंड को एक कपड़े से पौंछकर अच्छे से साफ़ कर दिया और बाथरूम चली गई।
मैं भी जल्दी ही तैयार हो गया, क्योंकि अब फ्लाइट का समय बहुत नजदीक था।

रेनू ने कार में भी थोड़ा बहुत मेरे लंड से छेड़छाड़ की थी और कार से उतरने से पहले एक बार जोर से चूस कर चूम लिया था।
मेरे मन में कई सवाल थे जो मैं उससे जानना चाहता था। पर अब इतना समय नहीं था मेरे पास कि मैं उससे ये सवाल पुछूँ।

इसी के साथ वो एयरपोर्ट में दाखिल हो गई और मैं रास्ते से कुछ शॉपिंग करके घर आ गया था।

मेरी ट्रेन का भी तो समय होने वाला था।

काफी दिनों से भूखे शेर को दुबारा खून लग गया था। देखो क्या होता है? कई महीनों से प्यासी मधु से मुलाकात कैसी रहेगी?

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