चूत में अन्तर्वासना के अंगारे

हमारे घर से कुछ ही दूरी पर यही कोई 20 घर छोड़ कर हमारे एक परिचित रहते हैं, वो मेरे पिताजी के बचपन के मित्र थे। अंकल की तो अब मृत्यु हो चुकी है, आंटीजी अभी हैं, उनके दो बेटियाँ और एक बेटा है, सब बच्चे शादीशुदा हैं।

आंटी की बेटियाँ दोनों बहुत खूबसूरत हैं। मेरी हमेशा से ही उन पर बुरी नज़र रही है। मगर कभी ऐसा मौका नहीं मिला कि मैं उन्हें पटा पाता।
मेरी अपनी शादी हो गई, मेरी शादी के कुछ साल बाद उन लड़कियों की भी शादियाँ हो गई। मगर अपनी खूबसूरती का गुमान ही उन दोनों लड़कियों को ले बैठा, शादी से पहले ही दोनों बहनें कच्ची उम्र में ही किसी न किसी से सेट हो गई और शादी से पहले ही दोनों ने खूब सुहागदिन और सुहागरात मना ली।

जब कोई आ कर बताता ‘अरे तुम्हारी वो आज किसी नए बॉयफ्रेंड के साथ गाड़ी में बैठी जा रही थी।’ तो दिल पे बड़े साँप लोटते कि भेणचोद, हमारे भी तो लंड लगा है, साली हमसे चुदवा ले… मगर हमारी किस्मत में तो वो थी ही नहीं।

खैर ऐसे ही ज़िंदगी चलती रही।

अब आते हैं आज पर!

सर्दियों के दिन, सुबह सुबह मैं उठ तो गया मगर फिर भी कम्बल में ही घुसा रहा, बीवी अपने घर के काम काज में लगी थी।

तभी अचानक आंटी जी अपनी छड़ी टेकते आ गई। पहले तो मैंने सोचा कि यह कहाँ से आ गई मोटी भैंस!
बस बेड पे लेटे लेटे ही मैंने थोड़ा सा झुक कर उनके पाँव छूने का ड्रामा किया।

‘और भई साहिल, क्या हाल हैं तेरे?’ कहते हुये आंटी जी मेरे पास ही बेड पर बैठ गई।
‘सुनाओ आंटीजी, क्या हाल चाल हैं आपके?’ मैंने उनसे पूछा और अपनी बीवी को आवाज़ लगाई- अरे रेणु, आना ज़रा!

मेरी बीवी आई और आंटीजी के पाँव छूए, आपस में दोनों ने एक दूसरी का कुशल क्षेम पूछा, उसके बाद रेणु चाय बनाने चली गई।
मैं कम्बल में ही लेटा रहा।

आंटी जी बेड पर पूरी तरह से फैल कर बैठ गई पीछे टेक लगा कर! घुटने की प्रोब्लेम की वजह से वो अपनी टाँगें मोड़ नहीं पाती थी। ठीक तरह से बैठने के बाद उन्होंने एक पाँव मेरे पाँव से लगा दिया।

मैंने पहले उनका पाँव देखा, फिर अपना कम्बल उनके पाँव पे डाला, तो उन्होंने अच्छी तरह से कम्बल अपनी दोनों टाँगों पे ले लिया। अब बहुत पुरानी सम्बन्ध थे हमारे, घर वाली बात थी, अक्सर वो हमारे घर आकर बड़ी बेतकल्लुफ़ी से बैठ जाती थी, खा पी लेती थी, तो मुझे इस में कोई खास बात नज़र नहीं आई।

जब वो बैठ गई, तो मैंने भी उठ कर बैठना ही मुनासिब समझा।

पहले तो इधर उधर की बातें चलती रही, फिर बात आ गई आंटीजी के घुटनों की। आंटीजी अपने दुखड़े रोने लगी- बेटा नहीं पूछता, घुटनों में बहुत दर्द रहता है, ये… वो…!

मैंने वैसे ही आंटी जी के घुटने पर हाथ रख कर पूछा- क्या यहाँ, जोड़ पर दर्द होता है?
आंटी बोली- अरे सारे घुटने में होता है।
कह कर आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने घुटने पर जहाँ जहाँ दर्द होता है, वहाँ वहाँ लगा कर बताया।

मैंने इसमें कोई खास बात नहीं नोटिस की। मैं भी उनके दर्द की कहानियाँ सुन रहा था।

आंटी की चूत की चुदास

फिर बोली- ला हाथ दे, और बताऊँ, कहाँ दर्द होता है।
मैंने बड़े सहज रूप से उनको अपना हाथ दे दिया।

आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा, कम्बल के अंदर किया। मुझे लगा फिर घुटने पर या पाँव पे रखेंगी, मगर आंटी ने मेरा हाथ सीधा अपनी चूत पे रख लिया, मैंने हाथ पीछे खींचना चाहा तो आंटी मेरा हाथ मजबूती से वहीं जकड़ लिया- यहाँ भी बहुत दर्द होता है।

अब था तो मैं भी शिकारी, मगर इतनी बूढ़ी शेरनी का शिकार मैंने कभी नहीं किया था, मैंने पूछा- तो आंटी इस दर्द का इलाज कैसे होगा, और मुझे तो हैरानी है कि इस उम्र में भी आपको इसकी ज़रूरत है?

वो बोली- बेटा, इस चीज़ की ज़रूरत तो हमेशा रहती है, लोग अपनी इच्छाओं को मार लेते हैं कि अब उम्र हो गई, मगर इच्छाएँ कभी नहीं मरती।
‘तो मुझसे क्या चाहती हैं आप?’ मैंने पूछा।

वो बोली- मुझे एक बार मेरी बेटी लीज़ा ने बताया था कि किसी समय तुमने उसको सोती हुई को छेड़ा था।
मैंने कहा- मगर आंटी, वो तो बहुत पुरानी बात है।
‘पता है’ वो बोली- मगर उस वक़्त लीज़ा की उम्र भी कितनी थी, अगर तुम एक छोटी लड़की, जिसने अभी जवानी में अपना पहला कदम रखा हो, उसके साथ छेड़छाड़ कर सकते हो तो तुम किसी दीन के नहीं, तुम उन लोगों में से हो, जिन्हें सिर्फ छेद चाहिए, जिसमें तू डाल सके।

सुन एक बार तो लज्जित हुआ कि आंटी को मेरी करतूत कर पता चल गया, मगर फिर मैंने भी सोचा कि अगर इस बुढ़िया की चूत में इतनी आग है, तो इसकी बेटियाँ कितनी चुदासी होंगी, एक बार मन पक्का करके इस बुढ़िया को ठोक देता हूँ, बाद में इसी से पूछ लूँगा, कि अब दोनों में से अपनी किसी भी बेटी की भी दिलवा दे।

बस ये विचार दिमाग में आते ही मैंने आंटी की चूत को हल्के सहला दिया।
जब आंटी ने देखा कि मैं उनकी चूत को सहला रहा हूँ तो उन्होंने अपने हाथ की पकड़ छोड़ दी।

मैं आंटी की सलवार के ऊपर से ही उनकी झांट और चूत को सहलाता रहा।
‘तो आंटी आपको यह कैसे लगा कि मैं आपकी इस बात के लिए मान जाऊँगा?’ मैंने पूछा।
वो बोली- पक्का तो नहीं पता था पर मैंने सोचा कि ट्राई करके देख लेती हूँ, अगर मान गए तो ठीक, नहीं तो ना सही।

मैंने फिर पूछा- अगर आपको अभी भी इतनी आग है तो आप कुछ तो करती होंगी।
आंटी ने अपनी सलवार को थोड़ा सा सेट किया, और नीचे से मेरा हाथ अपनी सलवार के अंदर डाल दिया।

आंटी की सलवार नीचे से काफी फटी हुई थी, मैंने अब अंदर हाथ डाल कर सीधा आंटी चूत का दाना सहलाना शुरू कर दिया, खैर अब ये दाना तो नहीं था, मोटे मोटे चूत के होंठों से बाहर निकला मांस का बड़ा सा टुकड़ा था।

जब आंटी की भ्ग्नासा को मैंने छेड़ा तो आंटी ने एक बार आँखें बंद कर ली, फिर बोली- अरे तेरे अंकल के जाने के बाद मैंने बहुत कुछ किया। मर्द तो कोई मिला नहीं, कभी उंगली, कभी डंडा, कभी ये, कभी वो, बस जो चीज़ अंदर ले सकती थी, सब कुछ लिया, मगर जो असली स्वाद मर्द के औज़ार में है, किसी में नहीं।

आंटी की चूत में उंगली

मैंने देखा कि आंटी बातें भी कर रही थी और मज़े भी ले रही थी।
मैंने अपनी एक उंगली आंटी की चूत के अंदर घुसेड़ दी। आंटी ने हल्की सी सिसकारी ली और बोली- आह, बस यही मज़ा अपने हाथ से नहीं आता है, मर्द का हाथ लगते ही जो मज़ा आता है, उसका तो कोई जवाब ही नहीं है।

इतने में सामने से रेणु चाय लेकर आ गई।
मैंने धीरे से अपना हाथ आंटी की सलवार से निकाला और उठ कर बाथरूम चला गया। बाथरूम में जाकर मैंने उस उंगली को सूंघा जिसे आंटी की चूत में डाला था, उंगली से कोई बदबू नहीं आई, जबकि उंगली मेरी गीली थी।

कुल्ला करके, हाथ मुँह धोकर मैं वापिस आ गया और फिर से आंटी के साथ बैठ गया, हमने चाय पी।

मगर अब मेरा नज़रिया ही बदल गया था, बात करते करते मैं आंटी के बदन को घूर रहा था और जायजा ले रहा था कि इसके चूचे कितने बड़े होंगे, कैसे होंगे, गोरी चिट्टी है, मोटी है, तो बदन तो भरपूर है, बाल आधे सफ़ेद हो गए तो क्या। पर क्या इसकी झांट भी सफ़ेद होगी।
मैं यही सोचता रहा और दोनों औरतें आपस में बतियाती रही।

फिर मैंने कहा- अरे रेणु, बातें ही करती रहोगी या आंटी जी को नाश्ता भी करवाओगी?
रेणु बड़ी खुशी से जाने लगी, तो आंटी बोली- मैं सिर्फ सादा चपाती लूँगी, परांठा नहीं खाती मैं!

रेणु उठ कर चली गई तो मैंने आंटी की पीठ पर हल्की सी धौल जमाते हुये कहा- आंटी जी, कुछ और भी पर्दे हैं हमारे बीच क्या वो भी फाड़ दें आज?
आंटी बोली- वो क्या?
मैंने अपना लोअर नीचे किया और अपना लंड बाहर निकाल कर कहा- बस एक मिनट के लिए चूस लो इसे।

मैंने तो अभी कहा ही था, आंटी तो एकदम नीचे को झुकी और झट से मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और क्या चूसा… बस यह समझो कि खा गई मेरे लंड को।
मैंने भी आंटी के चूचे पकड़ लिए और खूब दबाये।

आंटी बोली- अरे यार, तुम्हारा चूस के और आग भड़क गई, अब तो दिल करता है कि सारा काम अभी निपटा दूँ, यहीं पर!
मैंने कहा- आज मेरी छुट्टी है, मैं बस थोड़ी देर में ही नहा धोकर आपके घर आता हूँ, मैं भी चाहता हूँ कि सारा काम आज ही पूरा हो जाए।

आंटी अपने हाथ में मेरा लंड पकड़े बैठी थी, जो अब पूरी तरह से तन गया था, मैंने आंटी के गाल पे किस किया, क्योंकि होंठ पे किस करने का दिल सा नहीं किया, और उठ कर बाथरूम में घुस गया।

रेणु ने आंटी को नाश्ता करवा दिया। मैंने तैयार होकर नाश्ता किया और काम का बहाना करके घर से निकल गया।

पहले तो जाकर बाहर एक पार्क में बैठा रहा, फिर करीब एक घंटे बाद आंटी के घर फोन किया, आंटी ने खुद ही उठाया, मैंने पूछा, तो आंटी ने बताया कि वो घर में अकेली हैं, कामवाली भी काम करके चली गई।

मैं तो सीधा आंटी के घर की तरफ बाईक पे उड़ता हुआ गया, रास्ते में सोच रहा था कि चूत भी क्या चीज़ बनाई है ऊपर वाले ने, मेरी बीवी आंटी से कहीं खूबसूरत और जवान है, मगर मुझे देखो, एक बूढ़ी औरत की चूत मारने को मिल रही है, उसके पीछे भी दीवाना हुआ जा रहा हूँ।

खैर आंटी के घर पहुंचा, अंदर गया, आंटी ने पूछा- कुछ लोगे?
मैंने भी हँसते हुये कहा- जी बस आपकी चूत ही लूँगा।
आंटी हंस दी और छड़ी टेकती अपने बेडरूम की तरफ चल दी… मैं उनके पीछे पीछे!

बेडरूम में जाकर आंटी बेड पे बैठ गई, फिर बड़ी मुश्किल से लेटी क्योंकि घुटनों की वजह से उठना बैठना मुश्किल था।

आंटी ने सलवार खोल कर नीचे सरका दी

लेट कर आंटी ने अपनी सलवार खोली और नीचे को सरका दी, शर्ट ऊपर को खींच लिया, मोटा गोरा पेट, नीचे दो मोटी, गोरी और चिकनी जांघें, जिनमें उनकी मोटी सी चूत, जो उनकी झांट के गुच्छे में छुपी हुई थी।मगर झांट आंटी के काले थे।

मैंने भी अपनी पेंट और चड्डी उतार दी और आंटी साथ 69 की पोजीशन में लेट गया।
आंटी ने बिना कहे मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैंने आंटी की चूत तो नहीं चाटी, मगर अपनी एक हाथ की उंगली से उनकी भगनासा से खेलने लगा और दूसरे हाथ का अंगूठा उनकी चूत के अंदर डाल दिया।

आंटी मेरे लंड चूसने के साथ साथ अपनी कमर भी हिला रही थी, जिससे मेरा अंगूठा उनकी चूत में अपने आप आगे पीछे हिल रहा था। मैंने पूछा- आंटी गांड भी मरवाती थी?
उसने हाँ में सर हिलाया तो मैंने अपने अंगूठे को आंटी की चूत से निकाला, जो पहले से ही चूत के पानी से भीगा हुआ था, थोड़ा सा और पानी लेकर मैंने आंटी की गांड के छेद पे लगाया और अपना अंगूठा आंटी की गांड में घुसेड़ने लगा।

थोड़ी सी मशक्कत के बाद ही मेरा सारा अंगूठा आंटी की गांड में घुस गया, आंटी अपनी गांड को बार बार भींच रही थी। मैंने आंटी की चूत के आस पास ही किसिंग की, यहाँ वहाँ काटा भी, जिसने आंटी की आग और भड़का दी।
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आंटी बोली- बस अब और सब्र नहीं होता, ऊपर आ जा!
मैं उठा और आंटी की दोनों टाँगों के बीच में आ गया, टाँगें तो पहले ही आंटी की बहुत खुली थी, बस लंड रखा और धकेल दिया अंदर! चूत टाईट थी आंटी की।

मैंने पूछा- आंटी तुम तो कुछ न कुछ लेती रहती थी अपनी चूत में, फिर ये चूत इतनी टाईट क्यों है?
वो बोली- अरे कौन सा रोज़ लेती हूँ, बहुत हुआ कभी महीने 20 दिन बाद। अब तो दो महीने से ऊपर हो गया कुछ लिए, बस आज तेरा लंड ही लिया है।

मैंने फिर पूछा- आंटी, एक बात बताओ, मुझे अब भी यकीन सा नहीं हो रहा कि तुम मेरे से चुदने को कैसे सोची, मुझमें ऐसा क्या खास
देखा तुमने?
वो बोली- अरे मैंने तो एक दिन वैसे ही तुम्हें बाजार जाते देखा, तभी मेरे दिल में अपनी बेटी की बात याद आ गई, जब उसने मुझे बताया कि कैसे जब वो सो रही थी, तो तूने उसके छाती और पीछे हाथ फेरा था। तब मेरे दिल में खयाल आया कि तू बहुत बड़ा कमीना है, तू किसी को भी चोद सकता है, बस इसी लिए, तुमसे बात की और देखो बात बन गई।

मैंने सोचा मैं भी अपने मन की बात कर दूँ, मैंने कहा- आंटी जानती हो, मैं शुरू से ही तुम्हारी दोनों बेटियों पे फिदा रहा हूँ, बड़ी इच्छा थी मन में, थी क्या अब भी है कि दोनों को, या दोनों में से किसी एक भी अगर चोद सकूँ तो ज़िंदगी का मज़ा आ जाए। आंटी क्या तुम मेरे लिए ऐसा कर सकती हो, अपनी किसी एक बेटी को चुदवा दो मुझसे?

आंटी बोली- पागल है क्या, मैं माँ होकर कैसे अपनी बेटी से कह सकती हूँ कि तुमसे चुदवा ले। हाँ तू ट्राई करके देख, लाईन मार ले, अगर पट गई, तो तेरी किस्मत!मैंने कहा- अरे आंटी, अब दोनों शादीशुदा हैं, दोनों अपने अपने पति का लंड खा रही होंगी, अब वो क्यों पटेंगी मुझसे?

आंटी बोली- हिम्मत करके तो देख, मैंने नहीं तुम्हें पटा लिया?
मैंने कहा- आंटी औरत मर्द को पता सकती है एक पल में, मगर मर्द औरत को इतनी जल्दी नहीं पटा सकता, अगर औरत अपनी घर गृहस्थी से खुश है तो।

आंटी बोली- चल तू ये बात छोड़ और जो काम कर रहा है, उसे कर ढंग से, फिर मैं सोचूँगी कुछ!
मैंने कोई ज़ोर नहीं लगाया, बस आराम आराम से आंटी से करता रहा, आंटी भी बहुत समय से प्यासी थी तो पहली बार तो 2 मिनट में ही स्खलित हो गई, उसके बाद 5 मिनट बाद उसका दूसरा स्खलन हुआ, दूसरी बार झड़ने के बाद आंटी ने मेरी पीठ थपथपाई और बोली- शाबाश मेरे शेर, तेरी बीवी भी तुझसे बहुत खुश होगी, अच्छी चुदाई करता होगा उसकी भी।

मैंने कहा- अरे आंटी रेणु का तो पूछो ही मत, वो तो कहती है कि आप बस लेट जाओ, सारा काम मैं खुद ही कर लूँगी। मैं तो बहुत कम चोदता हूँ उसको, वो ही मुझे चोदती है। पर एक बात कहूँगा आंटी, इस उम्र में भी आप बहुत गर्म हो, आज भी आपके चूचे चिकने पड़े हैं, चूत पानी की पिचकारियाँ मार रही है।

तो आंटी बोली- अरे पानी की पिचकारियाँ नहीं, मेरी चूत तो अंगारे छोड़ती थी। तेरे अंकल तो इतने दीवाने थे, जब हम हनीमून पे गए तो तेरे अंकल ने पूरी रात अपना लंड मेरी चूत से बाहर नहीं निकाला, सारी रात वो धीरे धीरे मुझे चोदते रहे। और कमाल की बात यह कि सारी रात उनका लंड आकड़ा रहा… बहुत दम था उनमें। वहीं पे पहली बार उन्होंने मेरे पीछे किया।

मैंने पूछा- मतलब गांड मारी तुम्हारी?
‘हाँ’ आंटी बोली- बहुत दर्द हुआ था मुझे, पर मैंने एक बार भी सी नहीं करी, जिस आदमी ने मुझे इतना आनन्द दिया हो, उसके थोड़े से मज़े के लिए मैं क्यों हाय हाय करूँ, थूक लगा लगा कर खूब पेला उन्होंने, उसके बाद जब भी हमने सेक्स किया, वो हर बार मेरे तीनों छेदों में डालते थे, पहले शुरू करते मुँह से, फिर नीचे, फिर पीछे, और उसके बाद जहाँ उनका मन करता। वैसे ज़्यादातर वो चूत में पूरा दम लगा कर पेलते जब झड़ना होता तो बस पीछे डालते और पिचकारी मार देते।

आंटी मुझे अपनी जवानी के किस्से सुनाती जा रही थी।

मैंने पूछा- आंटी, अगर आपकी चूत अंगारे छोड़ती थी तो फिर तो आपने अंकल के अलावा और भी लोगों से ज़रूर किया होगा। मेरा शरारती अंदाज़ देख कर आती हंस दी, पर बोली कुछ नहीं।
मतलब साफ था आंटी खूब चुदी थी, उसका मौन ही बता गया।

बात करते करते मेरा फिर से मन कर गया, मैंने आंटी से कहा- आंटी थोड़ा सा चूसोगी, मेरा फिर से मन कर रहा है।
‘अरे ये भी कोई पूछने की बात है, जब दिल करे मेरे मुँह में दे दिया कर, मुझे तो लंड चूसना पसंद ही बहुत है।’ और आंटी ने मेरा
लंड फिर से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी।

2 मिनट चूसने के बाद आंटी बोली- अरे सुन, क्या तू मेरी चूत चाटेगा, तेरे अंकल के जाने के बाद बरसों बीते, किसी ने चाटी नहीं।
मैंने थोड़े बेमन से ही सही मगर उसकी चूत में मुँह लगा दिया।

मगर मेरी सोच के उलट, उसकी चूत बहुत ही फ्रेश थी, कोई बदबू नहीं, सिर्फ झांट ही ज़्यादा उगी हुई थी।
मैंने उसकी झांट को साइड पे हटा कर उसकी चूत को मुँह लगाया, तो आंटी की सिसकारी निकल गई- उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय वे, तूने तो मार ही दिया, थोड़ा और अंदर तक जीभ डाल कर चाट!

मैंने जब देखा आंटी की चूत गीली हो कर भी साफ सुथरी थी, लगता ही नहीं था कि यह 60 साल की चूत है, बिल्कुल कुँवारी लड़की के जैसी थी, मैंने भी खूब मन लगा कर चटाई की।

आंटी तो 2 मिनट चटवा कर ही झड़ गई, बोली- तू तो बहुत ही कमीना है, खा जाता है चूत को, अपनी बीवी की भी ऐसे ही चाटता है क्या?

आंटी की गांड मारी

मैंने कहा- आंटी उसकी चूत गांड सब खा जाता हूँ। सुनो अगर मैं तुम्हारी गांड मारनी चाहूँ तो?
आंटी बोली- अरे रहने दे, अब नहीं 10 बरस हुये तेरे अंकल को गए, तब से नहीं मरवाई, अब तो दर्द होगा।

मैंने कहा- तो क्या हुआ, थोड़ा दर्द मेरे लिए भी सह कर तो देखो। चलो करवट ले लो, ट्राई करके देखते हैं।
आंटी के करवट ले ली।
दो बहुत ही भारी और विशाल चूतड़ मेरे सामने आ गए, दूध जैसे गोरे… मैंने उसके दोनों चूतड़ की फांक खोल कर देखा, अंदर छोटा सा गांड का छेद।

छेद देख कर मैं समझ गया कि आंटी अब 60 साल में दुबारा गांड फटने का दर्द सहने वाली हैं। मैंने उसे बताया नहीं, सिर्फ बाथरूम से तेल की शीशी लाया, ढेर सारा अपने लंड पे लगाया और काफी सारा उसकी गांड पे और अंदर लगाया, फिर अपना लंड रखा और अंदर को ठेला।

टोपा अंदर घुसते ही आंटी तड़प उठी- हाए, अरे निकाल, मर गई मैं, अरे निकाल… बहुत दर्द हो रहा है।
मगर मैंने नहीं निकाला बल्कि और अंदर ठेलता गया, दर्द के मारे आंटी ने अपनी गांड भींच ली, मगर तेल लगा होने की वजह से मेरा लंड अंदर घुसता ही चला गया।

मैंने आंटी का मुँह अपनी तरफ घूमा कर उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिये और ज़ोर लगा लगा कर अपना सारा लंड आंटी की गांड में डाल दिया।
‘आंटी मज़ा आ गया, क्या कुँवारी गांड है तेरी!’ मैंने कहा।

आंटी गुस्से में बोली- मादरचोद, चीर के रख दी तूने!
आंटी की गाली भी मुझे प्यारी लगी। मगर मैंने महसूस किया अब आंटी को गांड मरवाने में वो मज़ा नहीं आ रहा, तो 2-3 मिनट की गांड चुदाई के बाद मैंने अपना लंड आंटी की गांड से निकाल लिया, आंटी को सीधा किया और फिर से उसकी चूत में डाल कर उसे चोदने लगा।

अब आंटी सीधी लेटी थी, तो चूत में मेरे लंड का मज़ा लेने लगी।
मैंने पूछा- आंटी कितना चुद सकती हो?
वो बोली- तेरे लंड में कितना दम है, जितनी देर चोद सकता है, चोद!

मैंने बड़े जोश में आंटी को ज़ोर ज़ोर से धक्के मार मार कर चोदा मगर मेरे हर धक्के का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया।
15 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मैं झड़ गया। आंटी की चूत से मेरा वीर्य बाहर चू गया। मैं थोड़ी देर लेटा रहा। फिर उठ कर कपड़े पहन कर तैयार हो गया।

आंटी बोली- बस क्या?
मैंने पूछा- और चुदना है क्या?
वो बोली- मैंने कब ना कहा, तेरे में दम है तो आ जा?
मैंने कहा- इतनी चुदासी क्यों हो?
वो बोली- आज बहुत बरसों बाद प्यास बुझी है, वो कहते हैं न पेट भर गया, पर नीयत नहीं भरी। तसल्ली तो हो गई, मगर नीयत अभी भी भूखी है।

मैंने कहा- तो इंतज़ार करो, अब तो आता जाता रहूँगा और हर बार तुम्हें चोद कर जया करूंगा।
और मैं आंटी को वैसे ही नंगी लेटी छोड़ कर अपने घर को आ गया।

आते हुये मैं सोच रहा था, क्या चीज़ बनाई है ऊपर वाले ने, औरत किसी भी उम्र की हो, मर्द को अगर चोदने को मिले तो कोई उम्र मायने नहीं रखती।
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