मेरी मदमस्त रंगीली बीवी-20

पहले मैं ड्राइंगरूम में था, अब बैडरूम में हूँ, मगर वे चारों फ़िर से वही सब करने लगे थे।

सलोनी पूरी नग्न खड़ी थी, कलुआ, पप्पू खड़े हुए ही उसके स्तन मसल रहे थे चचा नीचे बैठ कर सलोनी की दोनों टांगों को फैला कर मेरे लंड के रस से भीगी हुई सलोनी की चूत चाट रहे थे।
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सलोनी की आँखें बन्द थी वरना वह मुझे पर्दे से झाँकते हुए देख सकती थी।
उसको बहुत मज़ा आ रहा होगा, उसने पप्पू और कलुआ के लंड अपने हाठों में पकड़े हुये थे।

कुछ ही देर में सलोनी ने अपने हाथों से उन लड़कों का पानी निकाल दिया जो बैठे हुये जावेद चचा पर गिरा।
लेकिन उन्होंने कोई गुस्सा नहीं दिखाया, आराम से सलोनी की चूत को चाटते रहे।

फिर सलोनी चचा को खड़ा करके उनका लंड भी हिलाने लगी।
जावेद चचा ने सलोनी को कुछ कहा, सलोनी ने एक बार मना किया लेकिन फिर नीचे बैठ कर वह उनके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी।

और कुछ देर बाद चचा का वीर्य भी निकल गया।

सलोनी वैसे ही बाथरूम से अन्दर आई… मैं जल्दी से बेड पर आकर सो गया।
सलोनी कुछ देर बाद कमरे में आई और मुझे उठाने लगी।

उसने अब नाईटी पहन ली थी लेकिन नाईटी के अन्दर पता नहीं उसने कुछ पहना भी या नहीं!

सलोनी- सुनो लगता है कि वे बाहर अपना काम कर चुके हैं, जाओ उनको वापिस भेज आओ, मुझे घर के काम भी निबटाने हैं अब!

मुझे हंसी आ गई, मुझे पता था कि उन्होंने कौन सा काम निपटाया था।

फिर भी मैंने उठ कर टी-शर्ट और लोअर पहना और बाहर आया।

बाहर अब सब सामान्य था… जैसे वे कुछ जानते ही नहीं! मुझको भी सामान्य ही रहना था क्योंकि तभी मेरी इज्जत रह सकती थी।

चचा ने कहा- साब, काम हो गया, कल सवेरे हम सामान यहीं से ट्रक में लदवा देंगे, यहीं से चला जाएगा। पर आप लोग कब जाएँगे?

मैंने कहा केवल इतना- बता दूँगा! अभी तुम जाओ, ये 500 रुपए लो, कुछ खा पी लेना, बाकी मैंने ट्रांसपोर्ट में पैसे दे दिये हैं।

मेरे काफ़ी कहने पर भी उन्होंने पैसे नहीं पकड़े और मुझे नमस्ते कर के चले गये।
जाते हुए उनकी निगाहें मेरे पीछे थी… शायद सलोनी को ढूंढ रहे थे पर सलोनी अब बाहर नहीं आई।

रात में मैंने सलोनी को फ़िर से चोदा क्योंकि लंड बहुत खड़ा हो रहा था।
अब मैंने तो अपनी सभी सखियों से नाता तोड़ लिया था तो अब सिर्फ़ सलोनी की ही चूत थी जिसे चोद कर मैं मज़े ले सकता था।

सामने वाली नलिनी भाभी और अरविन्द अंकल भी अपने बच्चों के पास विदेश गये हुये थे।
मैंने ऑफिस जाना बन्द कर दिया था क्योंकि वहाँ का चार्ज मैं दे चुका था, इसलिये वहाँ वाली चूतें भी नहीं मिल सकती थी।

1-2 दिन में हमने भी निकलना था मगर जाने से पहले सलोनी को यह मज़ा मिलना था, उसने ले लिया!
वैसे भी अब यहाँ कुछ भी करके जाए क्या फरक पड़ना था।

अगले दिन मैं सवेरे जल्दी निकल पड़ा बकाया काम निबटाने के लिये।
जब वापिस आया तो कम्पाऊण्ड में एक ट्रक खड़ा था, उसमें हमारा सामान लदा हुआ था।

वाह.. बहुत अच्छी सर्विस है इन लोगों की।
मैं तो ट्रान्सपोर्ट में फ़ोन करने की सोच ही रहा था लेकिन ये लोग तो अपना काम कर चुके थे।

ट्रक जाने को तैयार था, मैंने ड्राईवर से पूछा- लद गया सब सामान?
उसने कहा- हां साब, सब सामान आ गया… अब हम निकल ही रहे हैं वैसे अभी जावेद काका अन्दर ही हैं।

मेरा दिमाग तुरन्त क्लिक कर गया।
जावेद काका… यह तो शायद वही कल वाला बूढ़ा है, वो अन्दर क्या कर रहा है? अकेला है या उसके साथ वे छोकरे भी हैं पप्पू, कलुआ!

मैं जल्दी से अन्दर अपनी बिल्डिंग तक आया… पर मेरी किस्मत कुछ साथ नहीं दे रही थी, बिजली नहीं थी तो लिफ्ट बन्द थी।

मैं फ़टाफ़ट सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने फ्लोर तक पहुँचा और पहले आस पास का आईडिया लिया।

मुझे पता चल गया कि जावेद घर के अन्दर ही है।
कौन कौन हैं कुछ नहीं पता!

मैंने जेब से फ्लैट की चाबी निकाली और जितनी धीरे हो सकता था, उतनी धीरे से दरवाज़ा खोला।

जैसे अपने घर में नहीं किसी दूसरे के घर में चोरी छिपे घुस रहा हूँ।

मैंने बहुत जरा सा दरवाजा खोल कर अन्दर झांका… इस रूम में तो कोई नहीं दिखा, यहाँ कोई फर्नीचर भी नहीं था कि कोई छुप सकता!
हाँ बैडरूम से आवाजें भी आ रही थी और परछाई भी दिख रही थी।

आवाज में गूंज थी, खाली घर में ऐसे आवाज गूंजती है।

मैंने दरवाजा हल्के से बन्द किया और बैडरूम की ओर बढ़ा।
आज भी उन तीनों में से ही होंगे या फिर कोई और भी हो सकता है?

क्या आज सलोनी कफिर रंगरेलियाँ मना रही है?

पर्दा पहले से ही सरका हुआ था, यह अच्छा भी था और बुरा भी, इससे मेरे देखे जाने का चांस अधिक था।
फिर भी मैंने एक तरफ़ खड़े हो कर अन्दर देखा!

यह क्या?
कहानी जारी रहेगी।