महीने वाली बीमारी

प्रेषक : परिंदा
नमस्ते दोस्तो, मैंने अन्तरवासना पर सारी कहानियाँ पढ़ी।
समय तो पीछे चला जाता है लेकिन उसकी कुछ खट्टी मीठी यादें मन पर अपना प्रभाव बनाए ही रखती हैं ! और जब वे यादें बेचैन करने लगती हैं तो बस बेचैनी से बचने का एक ही मार्ग होता है कि उन्हें किसी से बांट दिया जाए ! यह कुछ ऐसी ही याद है जो मैं आपसे बांटना चाहता हूँ। मुझे लगा कि मुझे अपनी कहानी लिखनी चाहिए।
आशा करता हूँ कि आप मेरी कहानी पसंद करेंगे।
तब तक मैंने कभी भी सेक्स नहीं किया था, मेरा लंड हमेशा चूत के लिये तड़पा करता था लेकिन मैं मुठ मार कर काम चला लिया करता था।
मेरे घर में मेरे मम्मी-पापा के अलावा दो छोटे भाई और एक सबसे छोटी बहन है। उन दिनों मेरे घर मेरी मौसी की लड़की आई हुई थी उसका नाम रेखा है। मैं उसे पसंद करता था और उसके साथ सेक्स करना चाहता था, वह भी मुझे पसंद करती थी।
एक बार की बात है, मैंने उससे जानबूझ कर मासिक धर्म के बारे में कहा- यार, लड़कियाँ महीने में 3-4 दिन बीमार सी क्यों रहती हैं?
ऐसा सुनते ही वो मेरी तरफ कातर निगाहों से देख कर मुस्कराने लगी।
मैंने कहा- क्या हुआ? बता ना?
रेखा बोली- मजे क्यों ले रहा है? तुझे सच में नहीं पता क्या?
मैंने कहा- पता होता तो तुझसे क्यों पूछता?
रेखा बोली- कितना भोला है तू ! तुझे इतना भी नहीं पता? मैं भी नहीं बता सकती यार !
मेरे ज्यादा जोर देने पर उसने कहा- रात में बताऊँगी।
मैं रात के लिए इंतजार कर रहा था, रात होने पर मैं चुपचाप उसके बगल में जाकर लेट गया, मैंने उसको कहा- अब उस बीमारी के बारे में बताओ?
वो हंसने लगी, बोली- तू क्यों पूछ रहा है बार बार !
मेरी जिद पर उसने बताया- उन दिनों लड़कियों को महीना होता है।
“महीना? मतलब?”
‘लड़कियों की पेशाब वाली जगह से खून निकलता है तो वे बीमार सी रहती हैं।”
मैंने फ़िर पूछा- पेशाब वाली जगह से? क्या मतलब?
“हाँ ! उसे बुर कहते हैं !” वो अब भी हँसे जा रही थी।
“और चूत किसे कहते हैं?”
“चल भाग यहाँ से ! तू बड़ा बदमाश है, तुझे सब पता है, तू मेरे साथ मजे ले रहा है।”
मैं फ़िर बोला- मुझे बुर दिखा ना ! मैंने कभी बुर नहीं देखी !
यह कहते हुए मैंने उसकी जांघों में हाथ रख दिया और धीरे से उनके पीछे पूरे शरीर से चिपक गया।
फ़िर मैंने कहा- तू मुझे अपनी बुर दिखा, मैं तुझे अपना लुल्ला दिखाऊंगा।
तो वो शरमा गई।
मैंने सोचा कि अब यह अच्छा मौका है, मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर घुमा कर खींचा और उसका हाथ अपने लण्ड के ऊपर रख दिया। अब उसके शर्ट के गले से उसकी चूचियाँ बिल्कुल साफ़ दिख रही थी और वो अब भी हँसे जा रही थी।
मैं उसकी चूचियाँ बड़े ध्यान से देख रहा था। पता नहीं क्यों मेरे अन्दर एक बिजली सी दौड़ रही थी।
मैंने हिम्मत करते हुए उसकी चूचियों पर धीरे से हाथ रखा और लगभग एक मिनट तक हाथ रखा रहा।
जब उसने कुछ न कहा तो मैंने अपना दूसरे हाथ से उसका टी-शर्ट ऊपर उठा दिया और दोनों हाथ से उसकी चूचियाँ दबाने लगा। मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया और फिर उसकी शर्ट उतार मैंने धीरे से उसकी ब्रा का हुक खोल दिया। यह सब करते हुए मेरे पूरे शरीर में कंपकंपाहट हो रही थी। अब वो भी गर्म हो चुकी थी, फ़िर मैंने जल्दबाजी न करते हुए धीरे से अपना मुँह उसकी चूचियों पर ले गया और चूसना शुरु किया। कुछ देर में उसके मुँह से ‘आ आह’ सिसकारियाँ निकलने लगी।
वो भी चाहती थी कि आज हम दोनों कुछ करें।
धीरे धीरे मैंने उसके पूरे शरीर को नंगा कर दिया तो उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए, मैंने उसे अपना लण्ड पकड़ा दिया। वह मेरा मोटा और लंबा लण्ड सहलाने लगी तो मैं मदहोश होने लगा, मैंने कहा- बस करो मैं मर जाऊँगा।
मैंने उसकी चूचियों को बहुत देर तक चूसा। वो मस्त हो कर आहें भर रही थी। मेरा लण्ड खड़ा होकर पत्थर की तरह सख्त हो गया और उसकी टांगों के बीच जोर मारने लगा। हमने अब समय ना गंवाते हुए अब एक दूसरे का साथ देना शुरू किया। मैं अपना हाथ उसकी चूत पर ले गया और छुआ तो उसकी चूत गीली थी, अब तक तो मेरा लण्ड गर्म लोहे जैसा हो गया था। अब मैं उठा और उसकी गांड के नीचे एक तकिया रखकर उसके ऊपर आ गया, अपनी उंगली को कई बार उसकी फ़ुद्दी के अन्दर बाहर किया। फिर लण्ड को बूर के पास ले जाकर अन्दर डालने की कोशिश की पर नाकाम रहा।
अगली बार फिर से कोशिश की तो थोड़ा सा लण्ड बूर में जा सका जिससे उसक चीख निकल गई- नहीं.. नहीं… प्लीज… बाहर.. निकालो की आवाज़ करने लगी।
मैंने फट से अपना हाँथ उसके मुंह पर रख दिया।
कुछ सेकंड के बाद जोरदार धक्का के साथ उसकी बूर की झिल्ली को फाड़ते हुए मेरा लण्ड उसकी बूर में पूरा का पूरा समां गया जिससे उसकी भयानक चीख निकली पर मुंह बंद होने के कारण आवाज़ घर के बाहर नहीं जा सकी।
वह एक बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी और मुझे धक्का देने की कोशिश करने लगी, मैंने उसे जोरदार मजबूती से पकड़ रखा था जिसके कारण वह नाकाम रही, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
कुछ समय के बाद उसकी तड़प में कमी आई तो मैंने मोर्चा संभाला और धक्के लगाना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी बूर बहुत टाइट थी जिस कारण मैं लण्ड को आसानी से अन्दर बाहर नहीं कर पा रहा था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई चीज मेरे लण्ड को चारों ओर से कसे हुए थी।
मैंने महसूस किया कि कोई गर्म सा चीज मेरे लण्ड को जला रही है। जब मैंने देखा तो सु्न्न रह गया।
मैंने देखा मेरे लण्ड के चारों और से बुर में से खून निकल रहा था।
मैंने डर कर लण्ड को बाहर निकाल लिया तो रेखा ने कहा- यह क्या हो गया? अब और मत करो ! प्लीज उसे अन्दर मत डालो।
मैंने अपना लण्ड फिर से संभाला और जोर से धक्का लगा कर पूरा लण्ड बुर में डाल दिया जिससे उसकी चीख निकली पर वह दर्द को सहन कर रही थी।
मैंने भी धक्के लगाना तेज कर दिया था, उसकी आवाजें साफ साफ नहीं निकल रही थी।
चूंकि हम दोनों की यह पहली चुदाई थी इसलिए हम दोनों जल्द ही झड़ गए थे।
मैंने अपना सारा माल उसकी चूत में ही डाल दिया था। मैं पूरी तरह से थक गया था तो उसकी चूचियों पर सर रखकर लेट गया। करीब दस मिनट के बाद हम दोनों उठे पर रेखा ठीक से चल नहीं पा रही थी।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे इस पते पर ईमेल करें।