गैर मर्द से जिस्मानी रिश्ता-1

बात आज से 6 महीने पहले की है, एक दिन रात को खाना खाते वक़्त शहजाद ने मुझसे कहा कि नसीम क्यों ना हम अपना ऊपर वाला कमरा किराये पर दे दें?
मैं- क्यों.. किस लिए?
शहजाद- अरे कुछ नहीं, बस ऐसे ही… मेरे ऑफिस में एक नया लड़का आया है.. संजय शर्मा, वो अमृतसर से है, उसका ट्रान्सफर दिल्ली में हुआ है और बेचारे के कोई रिश्तेदार भी यहां नहीं हैं, तो वो मुझसे रहने के लिए कोई ठिकाने लिए पूछ रहा था.
मैं- लेकिन मुझे ये ठीक नहीं लग रहा है, किसी गैर मज़हबी का हमारे साथ रहना, मेरा मतलब है कि क्या वो सैट हो पाएगा?

शहजाद- अरे कोई नहीं, वैसे भी पंजाबी लोगों की लाइफ स्टाइल बिल्कुल हमारे जैसी ही होती है. वो नॉनवेज माँस मच्छी सब खाते हैं, तो बोलो क्या कहती हो? उसे कल बुला लूँ?
मैंने मन मार कर हां में सर हिला दिया, पर मन में कुछ घबराहट सी महसूस हो रही थी.

दूसरे दिन सुबह शहजाद ने मुझसे ऊपर के दोनों कमरे ठीक करने को कहा और ऑफिस चले गए. शाम को जब 8 बजे वो वापस आए तो उनके साथ एक लड़का आया, जो करीब 24 साल का था. उसके साथ में कुछ कपड़े और थोड़ा सा सामान था. वो दिखने में काफी हैंडसम था.
मैंने मुस्कुराहट के साथ उनका वेलकम किया.

शहजाद- नसीम ये संजय है, जो मेरे कलीग हैं जिनके बारे में मैंने कल तुम्हें बताया था.
संजय ने हाथ जोड़कर कहा- नमस्ते भाभीजी..
उसकी आँखें मेरे पूरे बदन को घूर रही थीं.

मैंने मुस्कुराहट के साथ उसका स्वागत किया- आईए संजय भाई.
संजय- शहजाद भाई, आपका घर तो बहुत खूबसूरत है.
यह बात कहते हुए उसकी नजरें मुझ पर थीं.
शहजाद- शुक्रिया संजय, आओ तुम्हें मैं ऊपर के कमरे दिखाता हूँ.
मैं- आप लोग ऊपर जाइए मैं चाय वगैरह लेकर आती हूँ.

वो दोनों ऊपर गए और मैं कुछ देर में चाय लेकर पहुँची. ऊपर के फ्लोर पे 2 कमरे हैं, जिसमें से एक कमरे की बाल्कनी हमारे बरामदे में पड़ती है, जहां मैं सुबह कपड़े धोने सुखाने का काम करती हूँ.

मैंने चाय दी और कहा- और कहिए संजय भाई कौन सा कमरा सिलेक्ट किया आपने?
संजय- भाभीजी ये बाल्कनी वाला कमरा ही ठीक रहेगा.
शहजाद- नसीम, इन्हें बाल्कनी वाला कमरा पसंद है.
मैं- ठीक है, तो बस आप अपना सामान यहीं पर सैट कर लो और फटाफट नीचे आ जाओ खाना तैयार है.

संजय- अरे नहीं नहीं.. खाना वगैरह मैं अपने आप सैट कर लूँगा.
शहजाद- नहीं भाई बाहर का खाना खाने की कोई जरूरत नहीं है.
मैं- अरे संजय भाई फिक्र मत करो, मैं बहुत अच्छा खाना बनाती हूँ.
संजय- अरे नहीं नहीं भाभीजी, ऐसी कोई बात नहीं है.

मेरे और शहजाद के जोर देने पर वो राजी हो गया. उधर नीचे हॉल से बच्चों की आवाज आई जो टयूशन से आ चुके थे. बाद में खाना खाते वक़्त शहजाद ने बच्चों से संजय को मिलवाया, कुछ ही देर में संजय उनसे घुल मिल गया. रात को मैं और शहजाद बेडरूम में बातें कर रहे थे.

शहजाद- नसीम तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी ना संजय के यहां रहने से?
मैं- नहीं ऐसा कुछ नहीं है, वो तो बस एक गैर मज़हबी लड़के को साथ रखना कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए आपसे कहा था, पर अभी ठीक है.. अच्छा लड़का है, सैट हो जाएगा.
शहजाद- हां सही कह रही हो.. और देखो ना एक ही दिन में बच्चों से भी कितना घुल-मिल गया है.
मैं- हां बच्चे भी संजय के साथ बहुत इन्जॉय कर रहे थे.

इसी तरह दिन बीतते गए और एक महीने में तो संजय हमारी फैमिली में काफी एडजस्ट हो गया.. ज्यादातर रात के खाने पर हम सब साथ ही होते. वो बच्चों के साथ हंसी मजाक करता था, जिसमें कभी कभी मैं भी शामिल हो जाती थी. जिससे कई बार मेरा हाथ संजय के हाथ से टच हो जाता या कई बार वो जानबूझ कर मेरे हाथ से अपने हाथ को टच कर देता था.

इस बीच मैंने नोटिस किया कि संजय मुझे कुछ अजीब ही नजरों से देखता रहता था.. खासकर जब शहजाद कुछ काम में लगे हों या मेरी नजर उस पर ना हो. तब फिर जब हमारी नजरें मिलतीं, तो वो नजर हटा लेता था. मुझे बड़ा अजीब लगता था, पर मैं हमेशा इग्नोर कर देती थी. कभी कभी वो मेरे खाने की और मेरी खूबसूरती की तारीफ़ कर देता, खासकर जब मैं ब्लैक सूट पहनती.

संजय ने बताया कि वो काफी अच्छा पेन्टर भी है, उसने अपनी ड्राइंग की हुई कुछ तस्वीरें भी हमें दिखाईं, जो वाकयी बेहद खूबसूरत थीं. मुझे भी बचपन से ही पेंटिंग का शौक था तो मैं उसके इस हुनर से बहुत ही इम्प्रेस हुई.

एक दिन सुबह जब मैं बरामदे में कपड़े धो रही थी, तो मुझे महसूस हुआ कि कोई ऊपर के कमरे की बाल्कनी में है, जो संजय के कमरे की थी. उस वक़्त में सिर्फ कुर्ती और सलवार में थी, दुपट्टा नहीं लिया हुआ था और मेरे कपड़े काफी भीगे हुए थे तो मैंने फ़ौरन खड़े होकर दुपट्टा डाल लिया और बाल्कनी में देखा तो कोई नहीं था. शायद तब तक संजय चला गया था.

आज मुझे थोड़ा गुस्सा आया, पर फिर सोचा शायद कुछ काम से आया होगा. धीरे धीरे वो रोजाना मुझे बाल्कनी से चुपके चुपके देखता. अब तक मैं इतना जान चुकी थी कि संजय की नियत मुझ पर ठीक नहीं थी.

एक दिन रात को मैं और शहजाद ऊपर संजय के कमरे में कुछ काम से गए और वापस आते वक्त मैं अपना मोबाइल उसके कमरे में ही भूल आई, जिसका पता मुझे देर रात बेडरूम में सोते वक्त चला.

मैं- शहजाद मेरा फोन नहीं दिख रहा?
शहजाद- यहीं कहीं होगा रिंग मार के देख लो.. कहीं ऊपर संजय के कमरे में ही तो नहीं छोड़ दिया?
मैं- हां.. हां.. शायद ऊपर ही रह गया है.
शहजाद- ठीक है जाओ लेकर आओ. मैंने देखा रात 12 बज चुके थे, मुझे इस वक्त संजय के कमरे में अकेले जाना कुछ ठीक नहीं लगा, तो मैंने कहा कि सुबह ले आऊँगी, वैसे भी रात को किसका फोन आने वाला है.

इसके बाद हम सो गए. सुबह 7 बजे रोज की तरह कपड़े धोते वक्त मैंने नोटिस किया कि संजय बाल्कनी से मुझे देख रहा है. मैंने फ़ौरन पीछे मुड़ कर देखा, पर मैं फिर लेट हो गई थी, संजय वहां नहीं था. तभी मुझे याद आया कि मेरा फोन ऊपर है, सो मैंने सोचा कि जाकर ले आती हूँ. वैसे भी शहजाद और बच्चे 8 बजे तक उठते हैं, उस वक्त मेरे कपड़े पूरे भीगे हुए थे, तो मैंने अपना दुपट्टा ओढ़ा और ऊपर गई. मैंने देखा संजय के कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था. मैंने नॉक किया, पर कुछ जवाब नहीं आया. पर बाथरूम से पानी की आवाज़ आई तो मैं समझ गई कि वो बाथरूम में है. मैं अन्दर चली गई, सोचा अपना फोन लेकर चली जाती हूँ.

मैंने इधर उधर नजर घुमाई तो फोन टेबल पर पड़ा दिखा, साथ में एक पेंटिंग भी थी. मैंने जब वो देखी तो मेरे होश उड़ गए और शॉक के मारे मेरी आंखें बड़ी हो गईं. वो मेरी पेंटिंग थी, जिसमें मैं बिना दुपट्टे के सिर्फ़ ब्लैक सूट और सलवार में थी, मेरे बाल खुले हुए और मेरे पूरे शरीर को बखूबी पेंट किया हुआ था, बहुत ही खूबसूरत पेंटिंग थी वो, मैं उसे देखने में खो गई थी कि तभी पीछे से संजय की आवाज़ आई- कैसी लगी भाभी जी पेंटिंग?

मैं चौंक गई और पीछे मुड़ते हुए बोली- अच्छी है पर क्यों ऐसी? मेरा मतलब बिना दुपट्टे के.. अगर शहजाद ने देख ली तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा..
संजय- और आपको?
मैंने शर्म से नजरें झुका लीं.
संजय- कहिये ना भाभीजी आपको कैसी लगी?
मैंने शर्माते हुए कहा- बहुत अच्छी..

संजय थोड़ा मेरे करीब आया और हमारी नजरें मिलीं. मैंने उससे थोड़ा गुस्से से कहा- ओह तो तुम ये पेंटिंग बनाने के लिए रोज मुझे बाल्कनी से छुप छुप के देखते हो..
संजय- हां.. भाभीजी आप हो ही इतनी खूबसूरत कि मैं आपको देखने के लिए मजबूर हो जाता हूँ और ना चाहते हुए भी मैंने ये पेंटिंग बना दी..

मुझे ना जाने आज क्या हो गया था कि में संजय की बातों को सुनते जा रही थी. संजय की बातों में इतनी कशिश थी कि मैं उसकी आंखों में आंखें डालकर उसे ध्यान से सुन रही थी.

संजय- भाभाजी आपसे एक बात कहूँ?
मेरी आँखें उसे हर सवाल का हां में जवाब दे रही थीं.
संजय- मैं आपको एक बार इस पेंटिंग की तरह देखना चाहता हूं.
मैं बहुत ही डर गई, मैंने फ़ौरन मना कर दिया.
संजय ने मेरे करीब आते हुए कहा- प्लीज़ भाभीजी मैं देखना चाहता हूँ कि मैंने ये पेंटिंग ठीक बनाई है कि नहीं..

वो बड़ी शिद्दत से मेरे पूरे बदन को निहार रहा था. मैं उसकी बात का और उसका मतलब दोनों बखूबी समझ रही थी. मैं उसे मना करना चाहती थी, पर उससे पहले ही संजय ने मेरे बिल्कुल करीब आकर धीरे धीरे करके मुझसे लिपटे हुए मेरे दुपट्टे को खींच लिया. मैं आज पहली बार किसी गैरमर्द के सामने इस तरह बिना दुपट्टे के खड़ी थी. संजय की नजरों में मुझे हवस साफ नजर आ रही थी. हम एक दूसरे को बिना पलक झपकाए देख रहे थे. मेरे पूरे शरीर में अजीब सी सरसराहट हो रही थी, मेरी धड़कनें बढ़ रही थीं, घबराहट के मारे मेरा गला सूख रहा था और होंठ कांप रहे थे.

संजय मेरे इतने करीब आ चुका था कि हम दोनों की सांसों की गरमाहट एक दूसरे में समा रही थी. मैंने शर्मा कर अपनी नजरें झुका लीं. संजय ने अपने दोनों हाथों को मेरे बालों में डालते हुए मेरे कांपते हुए होंठों पे अपने होंठ रख दिए और चूसना शुरू कर दिया.

उसकी इस हरकत से मैं हक्की बक्की थी, मैं उसे रोकना चाहती थी.. पर उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में भर लिया. कुछ ही पल में मेरा विरोध कम हो गया और धीरे धीरे मैं भी पूरा साथ देने लगी. हम एक दूसरे के होंठों को चूसे जा रहे थे. मैंने दोनों हाथों से संजय की पीठ को सहलाते हुए उससे चिपक गई. मेरे चूचे संजय के सीने में समा गए. वो अपनी जीभ को मेरे मुँह में डालते हुए मुझे डीप स्मूच कर रहा था. मैं भी अपनी जीभ को संजय के मुँह में डालकर डीप स्मूच का पूरा आनन्द ले रही थी. उसका एक हाथ मेरी पीठ को सहला रहा था और दूसरा हाथ मेरे चूतड़ों को दबा कर मुझे उसके लंड की तरफ खींच रहा था.

करीब दो मिनट के लिप स्मूच के बाद संजय के होंठ मेरे गालों को चूमते हुए मेरी गरदन पे जा पहुँचे. संजय मेरी गरदन को दोनों तरफ से बेतहाशा चाट रहा था, जिससे संजय की लार से मेरी गरदन पूरी गीली और लाल हो चुकी थी. मेरे मुँह से मदहोशी भरी सिसकारियां निकल रही थीं. संजय मेरे होंठ गाल कान और गरदन पर चुम्बनों की बौछार कर रहा था. मैं भी अब इतनी मदहोश हो चुकी थी कि पूरा जोर लगा कर उसको अपने अन्दर खींच रही थी.

करीब पांच मिनट तक यही चलता रहा, फिर संजय ने मुझे घुमा कर दीवार से चिपका दिया और पीछे से मुझे अपनी बांहों में भर कर मेरे चूचों को दबाते हुए फिर से मेरी गरदन को चूमना शुरू कर दिया. मेरे मुँह से मादक सिसकारी निकल गई, पता नहीं क्यों, आज मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था और संजय की हर हरकत का मजा लेना चाहता था. मेरी सांसें तेज चल रही थीं. मेरे दोनों चूचे संजय के हाथों में खेल रहे थे और उसके गीले होंठ मेरी मखमली गरदन को मसाज दे रहे थे.

संजय का लंड मेरे चूतड़ों के बीच जगह बना रहा था. मैं विरोध तो नहीं कर रही थी, पर मेरे मुँह से ‘नहीं संजय.. नहीं प्लीज.. ये गलत है.. मैं शादीशुदा हूँ.. ये गलत है..’ जैसे शब्द निकल रहे थे.

संजय का एक हाथ मेरे पेट को सहलाते हुए मेरी सलवार तक पहुंचा. मैं कुछ समझती उससे पहले तो मेरा नाड़ा खिंच चुका था और मेरी सलवार जमीन पर थी.
मैंने संजय की तरफ देखकर मना करना चाहा, पर मैं कुछ कहती उससे पहले संजय ने मेरे होंठों को अपने होंठों में भर के लिपलॉक कर लिया और अपनी उंगलियों से मेरी पेन्टी के ऊपर से सहलाने लगा. फिर उसने मेरी पेन्टी में हाथ डाल कर मेरी चुत पे अपनी कामुक होती उंगली फेर दी और धीरे धीरे संजय ने एक उंगली मेरी रस से तरबतर होती गीली चुत में डाल दी.

मैं एकदम से उछल पड़ी और संजय के बालों में हाथ डाल कर उसके होंठों को जोर से काटने लगी. संजय मेरे होंठ गाल कान और गरदन पर बेतहाशा चूम रहा था और अपनी दो उंगलियों को मेरी रसभरी गीली चुत में अन्दर बाहर कर रहा था.
मैं कामुकता से सराबोर सिसकारियां ले रही थी ‘सिस्स्स्सस अम्म्म्मम..’ मेरा पूरा तन और मन अब वासना की आग में डूब चुका था और मैं अपनी सारी मर्यादा भूल चुकी थी, मैं भूल चुकी थी कि मैं शादीशुदा हूँ और अपने शौहर से बहुत प्यार करती हूँ, मैं दो बच्चों की अम्मी हूँ, किसी के घर की इज्ज़त हूँ.
ये सब कुछ भूलकर मैं अब एक ऐसे गैर मर्द की कामुक उंगली से अपनी चूत के मर्दन का भरपूर आनन्द ले रही थी.. जो उम्र में मुझसे करीब 10 साल छोटा था.

संजय ने मेरी चूत में अपनी उंगली की स्पीड बढ़ा दी.
‘आह्ह्ह्ह्ह अम्म्म्म्मम..’ मैं बहुत ही उत्तेजित हो गई और किसी भी वक्त झड़ने वाली थी. करीब 3-4 मिनट के फिंगर सेक्स के बाद मेरी चुत से ढेर सारा रस निकल पड़ा और मेरी जांघों पर बहने लगा, मेरा शरीर अब निढाल हो गया था. जबकि संजय अभी भी मेरे कोमल होंठों का रस पी रहा था.

मुझसे रहा नहीं गया और मैं संजय की तरफ घूम गई और संजय के होंठों को जोर जोर से चूसने लगी. मेरी इस हरकत से वो भी पूरे जोश में आ गया. हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. मैं मदभरी सिस्कारियां लेती हुई अपना चेहरा इधर उधर घुमा रही थी और संजय मेरी गरदन को अपनी लार से भिगोता हुआ लगातार चूम रहा था.

फिर संजय ने मेरे कुरते को मेरे कन्धों तक ऊपर कर दिया, जिससे मेरे चूचे बाहर आ गए. संजय ने दोनों हाथों से मेरे चूचों को मसलना शुरू कर दिया और अपनी गरम जीभ मेरे निप्पल पे रख दी.
‘सिस्स्स.. आहम्म्म्म.. धीरेरेरे.. प्लीज़..’ करते हुए मैं उसके बालों में उंगलियां फिरा रही थी. मेरे दोनों चूचे चूस चूस और निप्पलों को काटकर संजय ने पूरे लाल कर दिए थे.

करीब 5 मिनट की चूची चुसाई के बाद उसने धीरे से नीचे मेरी नाभि के अन्दर जीभ डालते हुए दोनों हाथों से मेरी पेन्टी उतार दी, जिसमें अब मेरी क्लीन शेव मखमली चूत बिल्कुल नंगी एक गैर मर्द के सामने थी.
संजय नीचे बैठ गया, उसने पहले मेरी चूत के आस पास हल्के से चुम्बन किए. इससे मैं और गरम हो गई और मैंने अपने पैर थोड़े फैला दिए. संजय ने अपनी गरम जीभ मेरी चुत पे रख दी.

‘आहहह..’ मेरे मुँह से चीख निकल गई. ये मेरे लिए पहला और बिल्कुल नया अनुभव था. मेरे शौहर शहजाद ने भी अब तक कभी मेरी चुत नहीं चाटी थी. मैं तो जैसे सातवें आसमान पर थी, इतना मजा आ रहा था कि मैं शब्दों में बता नहीं सकती.
संजय मेरी चुत को पूरी लम्बाई में चाट रहा था. वो के निचले हिस्से से अपनी जीभ को रगड़ता हुआ मेरी चूत के दाने तक जीभ को फेर रहा था. उसकी खुरदुरी जीभ जैसे ही मेरे दाने पर लगती, मेरी आह निकल जाती थी. एक अजीब सी सनसनी भर रही थी.

मैं अपने दोनों हाथ संजय के सर में डालकर अपनी चुत में जोर से दबा रही थी. हम दोनों इतने मदहोश हो चुके थे कि रिश्ते, नाते, शर्म, हया.. सब कुछ भूल कर उस पल का आनन्द ले रहे थे. मुझसे रहा नहीं जा रहा था.
अब तो संजय अपनी पूरी जीभ मेरी चूत में अन्दर बाहर कर रहा था. मैं अपने दोनों हाथों से उसके सर को अपनी चुत में दबाते हुए जीभ चुदाई का पूरा आनन्द ले रही थी ‘आह मम्म्म्म सीस्स्स्स उइइइइ..’

मैं अब झड़ने वाली थी तो मैंने अपने हाथों से जोर से संजय का सर अपनी चुत में दबा दिया, जिससे संजय की जीभ मेरी चुत में अन्दर तक धंस गई. संजय ने भी पोजीशन को समझते हुए चुत के अन्दर ही जीभ को लपलपाना शुरू कर दिया, जिससे मेरी चूत का मजा दुगना हो गया.
इतना मजा तो कभी नहीं आया था मुझे सेक्स में!
‘आआह ईईई आआआआह आआआह..’ और आखिरकार मेरी चुत ने ढेर सारा रज संजय के मुँह पर ही छोड़ दिया. मेरा शरीर बिल्कुल निढाल हो चुका था. मैंने संजय को उठा कर अपनी बांहों में ले लिया और हम दोनों ने एक दूसरे के होंठ चूसना शुरू कर दिया.

तभी बाहर से मेरी बेटी गुड्डी की आवाज़ आई- अम्मी… अम्मी.. कहां हो?
मैंने हडबड़ा कर एकदम संजय को अपने से दूर कर दिया और कपड़े पहनते हुए कहा- आई… बेटा..

दोस्तो, मेरी ये रसभरी चुदाई की कहानी कैसी लग रही है.. आपके मेल का इन्तजार रहेगा.
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कहानी जारी है.

कहानी का अगला भाग : गैर मर्द से जिस्मानी रिश्ता-2