कुँवारा लण्ड, खेली खाई चूत

मैं समझ कर भी उसे टाल जाती हूं। पर देखिये तो…मौसम की मार… दिल भटकने लग जाता है… सब कुछ पास में है… फिर भी… ये दिल मांगे मोर… मोर…और मोर…

आखिर दिल हार बैठी… मैं राहुल की ओर देख कर मुस्करा उठी… उसकी तो जैसे बांछे खिल उठी। हंसी तो फ़ंसी के आधार पर हमारी गाडी आगे बढ चली। जब भी वो शाम को आता तो मैं उसका दरवाजे पर इन्तजार करती, पर वो समझ कर भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

मैं इन्तज़ार करती रही…पर कब तक…वो तो आगे ही नहीं बढ रहा था…। मैंने उसे अन्त में एक कागज का टुकड़ा लिख के उसे थमा ही दिया। वो पहले तो घबरा ही गया… फिर उसने मुझे देखा… मेरी आंखों में उसे बस लाल लाल वासना के डोरे दिखे।

‘सुनील कहाँ है…’

‘अन्दर है… आ जाओ… नहा रहे हैं…’ मैंने उसे आंख मार कर इशारा किया…। जैसे ही वो अन्दर आया, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया… मैंने लाज शरम छोड दी… वो कांप उठा।

‘लड़की हो क्या… ऐसे क्यों कांप गये…’
‘जी… पहली बार किसी ने छुआ है ना…’
‘ कल सुनील के जाने के बाद आओगे ना…’

उसने कहा कुछ भी नहीं… बस हाँ में सर हिला दिया। आज उसकी रात बेचैनी मे गुजरी… मेरी भी हालत उत्तेजना के मारे वैसी ही थी। सुनील के ओफ़िस जाते ही राहुल आ गया… कल की उसकी घबराहट देख कर नहीं लग रहा था कि वो आयेगा। मैंने दरवाजा खोला… और उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से अन्दर खींच लिया, और फिर से दरवाजा बन्द कर लिया।

‘राहुल… हाय… तुम आ गये…’ उसका मुख सूखने लगा था।
‘जी…जी… आप ने लिख कर बुलाया था ना…’ राहुल अटकता हुआ बोला।
‘नहीं तो… कब लिखा था…’
‘ये… है ना…’ वो झेंप गया… और कागज का टुकडा निकाल कर मुझे दिखाया।

मैंने कहा- अरे…हाँ… ये तो मैंने ही लिखा है…’ उसे मैंने पढ़ा… और उसे फाड़ कर फ़ेंक दिया… उसे देख कर लगा कि मुझे ही बेशरमी पर उतरना पडेगा।

‘राहुल कागज़ क्या है… मैंने तो खुद ही तुम्हें बुलाया था ना…’ मेरी आंखों मे फिर वासना के डोरे खिंचने लगे… उसे सामने देख कर मेरी चूंचियाँ कड़ी होने लगी।

‘ नेहा जी… आप बहुत अच्छी है… सुन्दर हैं… ‘
‘सच… फिर से कहो…’ मैं खुश हो उठी… उसे पास बुला कर सटा लिया और उसके गले में हाथ डाल दिया।
‘नेहा जी…मैं आपसे प्यार करता हूं…’
‘अच्छा… तो फिर चलो प्यार ही करो ना… या मैं ही सब कुछ करूं…’ मेरे स्वर में वासनामय विनती थी…

उसने हरी झन्डी पाते ही मुझे धीरे से लिपटा लिया। मेरे नर्म होंठों पर उसके होंठ रगड़ खाने लगे। मेरा काम सफ़ल हो गया। अब एक कुँवारा लण्ड मुझे चोदने के लिये तैयार था। उसने मेरे निचले होंठ को चूमना और चूसना चालू कर दिया। उसका लण्ड बुरी तरह से फ़डक रहा था…। इतना कठोर हो गया कि लगता था कि पैन्ट फ़ाड देगा।

‘राहुल… देखो तुम्हारा नीचे से पैन्ट फ़ट जयेगा… लण्ड तो बाहर निकाल लो…’
‘क्… क्… क्या कहा… लण्ड…हाय ‘ वो मेरी भाषा से उत्तेजित हो गया…
‘हाँ… देखो तो कितना जोर मार रहा है… मेरी चूंची दबा दो राहुल…’
‘हाय… नेहा जी… आप कितना सेक्सी बोलती हैं… लण्ड…चूंची… नेहा जी चूत भी है ना…’

वो मेरी चूँची बेदर्दी से दबाने लगा… चूंची में दर्द हुआ…पर अनाड़ी का मजा कहीं ज्यादा होता है… मैंने उसका लण्ड पैन्ट से बाहर निकाल दिया… मैं उसे देख कर ही मस्त हो गयी… लम्बा और मोटा सुनील की तरह ही था। मैंने उसके लण्ड को देखा उसकी सुपाडे की झिल्ली सही सलामत थी… मैंने जोश में उसे मसलना चालू कर दिया… कस कस कर उसे मुठ मारने लगी।

‘नेहा जी… आऽऽऽऽह हा… बस बस… हाय…’ और ये क्या… उसका वीर्य निकल पड़ा… वो जोर लगा कर वीर्य निकालने लग गया। और हाँफ़ने लगा। मेरी आंखो में वासना के डोरे और खिंच गये… वो मुझसे लिपट पडा।

‘नेहा जी… माफ़ करना… ये कैसे हो गया…’
‘पहले कभी लड़की को नहीं चोदा क्या…’

‘नहीं… ये पहली बार आपके साथ मजा आया है…’ उसने सर झुका लिया। उसकी मासूमियत पर मुझे प्यार आ गया।

‘कोई बात नहीं पहली बार ऐसा होता है… देखना दूसरी बार तुम मुझे पूरा चोद दोगे…’ मैंने उसे ताबड़तोड़ चूमने लग गयी। इतना कुँवारा… कि किसी ने उसे छुआ तक नहीं…। मैं तो ये सोच कर ही आनन्दित हो रही थी कि फ़्रेश माल मिल गया है… कोई सेकन्ड हेण्ड नहीं।

मैंने उसका पैन्ट उतार दिया और उसे पूरा नंगा कर दिया। वो अपना लण्ड छुपा कर सोफ़े पर बैठ गया। उसका सिर नीचे झुका हुआ था। उसकी एक एक अदा पर मुझे प्यार आने लगा। कुंवारे लण्ड और अनछुए जिस्म का मजा पहले मैं लूंगी… ये सोच सोच कर ही मेरी चूत पानी छोड़े जा रही थी।

‘नेहा जी आप भी तो…कपडे…’ मेरी बेशर्मी उसे भा रही थी… मैं मुसकरा उठी… मैंने कमीज़ ऐसी स्टाईल से उतारी कि मेरे बोबे उछल कर बाहर आ गये… फिर जीन्स उतार कर एक तरफ़ रख दी… मुझे इस तरह नंगी देख कर उसकी आंखे फ़टी की फ़टी रह गयी। उसके मुँह से एक आह निकल पडी।

मैं भी चुदने को उतावली हो रही थी। मैंने उसके पास आकर उसका लण्ड पकड़ लिया… उसे फिर से अच्छी तरह से देखा… सुपारे की चमड़ी धीरे से ऊपर कर दी… सच में उसका मोटा लाल सुपाडा और उसकी लगी हुयी स्किन उसकी कुंवारेपन को दर्शा रही थी…

मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में भर लिया… और उसका मर्द जाग उठा… टन से उछल कर खडा हो गया… जैसे मैं चूसती, उसका लण्ड मोटा होता जा रहा था… बेहद टाईट हो कर फ़ुंफ़कार उठा… मैंने बेशरमी से उसे न्योता दिया…

‘राहुल… आओ बिस्तर हमारा इन्तजार कर रहा है… चलें…’
‘जी…जी… क्या करेंगी… बिस्तर पर…’
‘अरे… क्या बुद्धू हो…’ मैं हंस पडी ‘चलो चुदाई करते है…’
‘जी… मैंने कभी किया नहीं है ऐसा… सुनो बाद मे करेंगे…’

‘क्या… क्या कहा… हाय मर जाऊँ… मेरे राजा…’ मैं उसकी अदा पर बिछ गयी… उसके ऐसा कहने से मैं तो और उत्तेजित हो गयी… उसका हाथ पकड कर उसे मैंने बिस्तर पर लिटा दिया।

‘बस पडे रहो ऐसे ही… तुम कुछ मत करो… ‘

उसके बिस्तर पर सीधे लेटते ही उसका लण्ड ऐसे खडा हो गया जैसे कोई लोहे की रोड हो। मैं राहुल के ऊपर आ गयी… और अपनी चूत को उसके मुख पर रख दिया… और हल्के से चूत दबा दी… मेरी गीली चूत ने उसके होंठ गीले कर दिये-

‘ये तो गीली है…चिकना पानी है…’ उसने अपना मुख एक तरफ़ कर दिया।
‘चाट जाओ राहुल… पीते जाओ और… जीभ घुसा दो…’ मैंने फिर से चूत को उसके मुख पर चिपका दिया।

मेरा हाथ पीछे लण्ड पर गया… हाय कितना बेचैन हो रहा है… उसने अब मेरी चूत अच्छे से चूसना चालू कर दिया । मैं भी अब अपनी चूत को उसके होठों पर रगडने लगी थी…

अचानक राहुल ने मेरी चूतडों की फ़ान्कों को पकड लिया और सहलाने लगा… उसकी ऊँगलिया चूतडों कि दरारों में घुसने लगी… अब उसकी एक ऊँगली मेरी गाण्ड में घुसने लगी थी… मैं मदहोश होने लगी। मैंने अपनी गाण्ड ढीली छोड दी…

उसने पूरी ऊँगली अन्दर घुसा दी। मैं हौले हौले से अपनी चूत उसके होंठों पर रगड रही थी। उसका लण्ड झूम रहा था। उसकी ऊँगली मेरी गाण्ड को अन्दर घुमा घुमा कर चोद रही थी।

मुझ पर मस्ती चढने लगी थी। उसकी जीभ मेरी चूत में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया… एक दम कड़क… टन्नाया हुआ… अनछुआ लण्ड…। अब मैंने अपनी चूत धीरे से हटा ली…

‘राहुल… मेरी गाण्ड से ऊँगली निकाल लो प्लीज़…’
उसने धीरे से अपनी ऊँगली बाहर निकाल ली…

मैंने अब उसकी कमर के दोनों ओर अपने पैर करके उसके लण्ड पर धीरे से बैठ गयी। उसका लण्ड भी चिकना पानी छोड रहा था… मेरी चूत तो वैसे ही चिकनी और गीली हो रही थी।

राहुल से रहा नहीं गया… उसने नीचे से अपनी चूतड उछाल कर लण्ड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया… मैंने भी साथ ही ऊपर से जोर लगा कर अन्दर तक बैठा दिया… उसकी चीख निकल पड़ी… उसके लण्ड की चमड़ी फ़ट चुकी थी…
‘नेहा… जलन हो रही है…हटो ना… ‘

‘कुछ नहीं है…राहु्ल… सब ठीक हो ज़ायेगा…हाय रे मेरे राजा…’ उसका कुँवारापन टूट चुका था… उसका दर्द मुझे असीम खुशी दे रहा था… उसके कुंवारेपन की कराह मुझे मदहोश कर रही थी।

मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी… और ऊपर से धक्के चालू रखे… वो कराहता रहा…मैं मजे लेती रही…मैंने अब चूतडों को उसके लण्ड पर तेजी से मारना चालू कर दिया… अब उसकी कराह खुशी की सिसकारी में बदलने लगी… उसने मेरे बोबे भींच लिये… और अब नीचे से उसके चूतड़ भी उछलने लगे… मैं सातवें आसमान पर पहुंच गयी।

‘मेरे राहुल… मजा आ रहा है…क्या मस्त लण्ड है… चोद दे रे…’
‘नेहा…मेरी रानी… हाय पहली बार किसी ने…मुझे इतना प्यार दिया है…’
‘मेरे राजा…’
‘नेहा…जोर से धक्के मारो ना…हाय… मुझे ये क्या हो रहा है…’

मैंने भी अब अपनी चूत को भींच भींच कर और टाईट करके चोदने लगी… उसकी चरमसीमा आने वाली थी… मैंने अपनी चूत को उसके लण्ड पर जोर से दबा डाला… मेरी चूत में एक बार तो लण्ड जड़ तक पहुंच गया…

मैंने लण्ड को दबाये ही रखा…और मैंने एक अंगडाई ली और राहुल पर बिछ गयी… मैं झड़ रही थी… मेरी चूत में लहरें उठने लगी थी… और झड़ती जा रही थी… राहुल का लण्ड भी चूत से भींचा हुआ था… कब तक बचता… उसने भी नीचे से जोर लगाया… और एकबारगी उसका पूरा शरीर कांप गया…

और फिर उसके लण्ड ने चूत की गहराईयों में अपना वीर्य छोडना चालू कर दिया… उसके लण्ड का फ़ूलना पिचकना… और रस छोड़ना बडा ही आनन्द दे रहा था… मैं उस पर थोड़ी देर लेटी रही… जब हम दोनों पूरे ही झड़ गये तो मैं उस पर से उठी और बिस्तर से नीचे आ गयी… उसका वीर्य थोड़े से खून के साथ मेरे तौलिये पर गिरने लगा।

लाल लाल खून भरा वीर्य मुझे बहुत सन्तोष दे रहा था। मैंने कपड़े पहन लिये और राहुल को निहारती रही। आखिर वो भी उठा और कपडे पहन कर तैयार हो गया…

‘नेहा जी… आज आपने मुझे सही मर्द का दर्जा दे दिया… बहुत मजा आया…’
‘आओ एक बार प्यार कर लो… फिर शाम को तो मिलोगे ही…’
‘नेहा जी…कल दिन को…’
‘अभी अपने लण्ड को ठीक तो कर लो… फिर मजे तो करेंगे ही…’

राहुल ने हाथ हिला कर विदा ली… मैं आज की चुदाई से खुश थी…

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