आसान काम नहीं है-2

सफ़र से आई थी तो साथ ही नहाने चली गई। उसके बाथरूम में जाते ही मैं कम्प्यूटर पर बैठ गई अपनी आज बीती लिखने !

श्रेया नहा कर आई तो मुझे कम्प्यूटर पर कुछ करते देख कर बोली- आन्टी, आज अन्तर्वासना पर एक बहुत बढ़िया कहानी आई है, आपने पढ़ी? और पता है मधुरेखा, इसकी काफ़ी बातें आपसे मिलती जुलती हैं !

असल में मधुरेखा मेरा वास्तविक नाम नहीं है। तो मैं चौंकने का अभिनय करते हुए बोली- क्या कहा तुमने?

तो वो मेरे पास आई और उसने अन्तर्वासना डॉट कॉम खोल कर मुझे मेरी कहानी दिखाई और बोली- इसे पढ़ कर देखो, इसमें हर चीज आप से मिलती है सिवाये नाम के !

वो मेरी आँखों में देखने लगी तो मेरी हंसी छूट गई।

उसने कहा- मधुरेखा, मैं समझ रही हूँ, कहीं यह आपका ही चमत्कार तो नहीं?

असल में उससे मैं कुछ नहीं छुपाती हूँ, मैंने सब सच सच बता दिया। उसे तो यकीन ही नहीं हुआ कि मेरी जैसी अच्छे खानदान की बहू अपनी लज्जा त्याग कर इतना बड़ा कारनामा कर सकती है..

अब मैं उसे कह रही थी कि यह मेरी ही कहानी है और उसे विश्वास नहीं हो रहा था, वो मान नहीं रही थी।

फ़िर मैंने जब उसे अपना गाउन उतार कर अपनी दाईं चूची पर मोम गिरने से लाल हुई जगह दिखाई, जले का हल्का सा निशान दिखाया तो वो हैरान रह गई.. पर अब तक मैंने ना उसे दूध वाले के साथ की अपनी हरकत के बारे में कुछ कहा था, ना चाँदी के गिलास के बारे में ! अच्छा हुआ कि उसने फ्रीज़र में उसे नहीं देखा…

मेरी चूची देख कर उसे कुछ कुछ विश्वास हुआ कि इस कहानी की नायिका मैं ही हूँ।

ये सारी बातें मैं उसके साथ कर तो रही थी पर मेरी चूत में अभी भी बर्फ़ का असर बरकरार था, मुझे लग रहा था कि अभी भी मेरी चूत में कुछ मोटा लण्ड जैसा फ़ंसा हुआ है, जैसे मैं अभी भी चुद रही हूँ।

अभी तो मैंने यह नमूना ही करके देखा था, रात को गिलास वाली मोटी लम्बी बर्फ़ को अंदर डाल कर हाथ में मोमबत्ती लेकर छत पर घूमना बाकी था ! अब श्रेया से कैसे कहूँ कि आज मुझे ये करतब करना है। वैसे मेरी हिम्मत भी नहीं थी आज रात का तय कारनामा करने की, मैंने आज के लिये इसे टालना ही उचित समझा, शायद कल यह कर सकूँ ! अब भी ऐसा लग रहा था कि अंदर बर्फ़ है पर इससे एक फ़ायदा तो हुआ, मेरी धुल कर साफ हो गई पानी टपक टपक कर..

श्रेया अपने घर से दीवाली का ढेर सारा सामान लाई थी, खाने पीने का काफ़ी सामान था, उसने कहा- मधु आंटी, अब खाना मत बनाना, इसी में से कुछ खा पी लेंगे ! अब तो बस मस्ती करते हैं।

रात में हमने खूब बातें की, अब मैं सोच रही थी कि अगर अब कोई कारनामा हम दोनों मिल कर करें दिन में तो बहुत मज़ा आएगा।

कुछ ऐसा गुल खिलाएँ जिसमें दर्द भी हो मज़ा भी, जिसे हम दोनों साथ हों, वो भी मेरे साथ करे !

लेकिन क्या वो मेरी बात के लिए राजी हो जाएगी? मैं तो यह चाह रही थी कि श्रेया खुद कहे कुछ ऐसा करने को !

इसके लिए तो फ़िर अपने उन्हीं मित्र की शरण में जाना था।

श्रेया बहुत थकी थी इसलिए जल्दी सो गई पर मुझे अब भी मुझे मेरी चूत सुन्न ही लग रही थी। पर सच में बड़ा ही मज़ा आया, एक छोटा सा आइस क्यूब जो शरबत में डाला तो उसकी कोई हैसियत नहीं पर जब अंदर जाता है.. तो मेरी जैसी इतनी बड़ी औरत को भी कैसे ज़मीन पर लोटने पर मजबूर कर दिया।

मैं तो जमीन पर लोट रही थी, पैर पटक रही थी, बर्फ़ को निकालने का भरसक प्रयास कर रही थी पर नहीं निकल रहा था, ऐसा लग रहा था कि किसी ने मेरे अंदर लण्ड फ़ंस गया या एकदम किसी ने मुझे बड़े लौड़े से बेरहमी से चोद दिया हो ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

बता ही नहीं सकती कि कितनी तड़प थी मुझमें ! मैंने कई बार खुद के ही होंठ चबाए, अँगुलियाँ सिकौड़ी पैर पटके.. कसम से अगर कोई मुझे उस वक्त देखता तो ऐसा लगता मुझमें नागिन आ गई हो, श्री देवी से भी ज़्यादा छटपटाहट मैंने की होगी। ऐसा लग रहा था कि जलती मोमबत्ती अंदर डाल लूं तो सारी बर्फ़ पिंघल जायेगी।

आज पहली बार मैं हारने जा रही थी, मैंने जो ठाना था, उसका ट्रायल करने के बाद मुझ में हिम्मत नहीं थी कि मैं उसे पूरा करूँ। आज ऐसा लगा कि खुद को सजा दूँ। मैं एक मोमबत्ती और माचिस लेकर बाथरूम में गई, मोमबत्ती जलाई और अपनी चूची पर जानबूझ कर मोम गिराना चाहा पर ना गिरा सकी, हाथ काम्प रहे थे… हिम्मत ही नहीं हुई खुद के ही ऊपर गर्म गर्म मोम ! वैसे जब से मेरे दायें उरोज पर मोम गिरा था, तब से मेरा बायाँ उरोज चीख चीख कर इन्साफ़ मांग रहा था, उसे भी मोम की जलन चाहिये थी। मुझे दायें उरोज का मीठा दर्द याद आ गया.. पर नहीं कर सकी, मुझे ऐसे लगा जैसे मेरा दायाँ स्तन मुझे और बाएँ स्तन को देख कर हंस रहा हो.. चिढ़ा रहा हो ! मैंने मोमबत्ती बुझा दी, बाहर आ गई।

रात में अपने दोस्त को सब बता दिया मैंने, वो भी नाराज़ हो गये, बोले- इतना भी नही कर पाई? बातें इतनी बड़ी?

उन्होंने मुझसे आगे बात नहीं की, बस यही कहा- कल कुछ और सोचेंगे…

उधर श्रेया भी ज़िद करने लगी- आंटी एक कारनामा मेरे सामने कर के दिखाना.. मैं आपको देखना चाहती हूँ…

मैं कुछ नहीं बोली।

सवेरे फिर मित्र से बात हुई… वो बोले- रात में जो नहीं कर सकी…

मैं बीच में टोकते हुए बोली- सॉरी !
वो बोले- नो सॉरी, नो ! इसकी सजा मिलेगी !

जब स्कूल में मैं काम करके नहीं ले जाती थी तब भी मुझे सजा मिलती थी, आज उसकी याद आ गई, मैंने कहा- ठीक है.. मुझे मंजूर है ! क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करती तो वे मुझे रोज नये नये करतब करने को नहीं बताते !

मैं सजा भुगतने के लिए मान गई क्योंकि मैं जानती थी कि सजा में भी अब मुझे मज़ा लेना है।

वे बोले- आज तुम्हें और श्रेया को घर की छत पर साथ में दोपहर का खाना खाना होगा..

मैंने कहा- इसमें क्या खास बात है, थोड़ी धूप है तो गर्मी ही लगेगी।

मुझे लगा कि वो धूप में खाना खाने की सजा दे रहे हैं…मैंने एकदम हाँ कर दी।

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिये अन्तर्वासना पर मेरी सच्ची कहानियाँ !
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