अन्तर्वासना की प्रशंसिका की बुर की पहली चुदाई-2

मेरे हाथ स्वतः उनकी बालों को सहलाने लगे… कभी वो ऊपर का होंठ चूसते तो कभी नीचे का, अब मैं भी उनके लिप्स चूस रही थी। काफी देर तक हम दोनों वैसे ही रहे।

तभी उन्होंने मेरी टी को ऊपर उठाना शुरू की मैंने हाथ पकड़ कर उनको देखा..
हर्ष सर- क्या हुआ? उतारने दो न.. मुझे अच्छा लगेगा..
‘सर, क्या ऊपर से नहीं हो सकता?’
हर्ष सर- अगर मुझे अच्छा नहीं लगा तो? फिर तुम…
कह कर चुप हो गए।

मैं उनका मतलब समझ गई.. मेरे हाथ ऊपर उठे और अगले पल मैं काली ब्रा में उनके सामने थी.. उन्होंने मुझको लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गए.. मेरे होंटों को फिर से चूमना शुरू किया, मैं कमसिन सी कन्या उनके बोझ तले दबी थी।

सर ने पीछे हाथ ले जा कर मेरी ब्रा को खोल दिया और मेरी ब्रा मेरे शरीर से निकाल दी, बल्ब की उजली रोशनी में मेरा ऊपर का गोरा जिस्म पूरी तरह चमक रहा था, हर्ष सर भी मेरी चमक में खोकर रह गए।
मेरा बेदाग गोरा अछूता कमसिन शरीर उनके सामने बेपर्दा था और उनकी आँखों की चमक बता रही थी कि उनको अच्छा लग रहा था…
मेरा जो शारीर आज से पहले मेरे सिवाय किसी ने भी नहीं देखा था, वो नंगा शरीर हर्ष सर देख रहे थे।

वो मेरी चूची को मुँह में भर कर चूसने लगे.. उनका हाथ मेरी चूची पर आकर उसे मसलने लगे, मेरी चूचियों को दबाने लगे, कभी सर मेरी चूची दबाते तो कभी मेरी बुर से छेड़खानी करते और मैं आंखें बन्द किये हुये ये सब करवाती रही।

फिर अपनी उंगलियाँ मेरी चूचियों की गोलाइयों पर चलाने लगे और बीच बीच में मेरे निप्पल को दबा देते तो मैं दर्द से तड़प कर उम्म्ह… अहह… हय… याह… करती।

उसके बाद सर मुझे चूमने लगे और फिर मेरी नाभि में अपनी जीभ को घुमाने लगे। सर जितने प्यार से मेरे जिस्म से खेल रहे थे कि उन्हें किसी बात की कोई जल्दी नहीं है।
उनके इस तरह से मेरे जिस्म से खेलने के कारण मैं पानी छोड़ चुकी थी या यह कहें कि मैं एक बार झड़ चुकी थी।

मेरी साँसें तेज हो चुकी थी, मेरा अब तक का पहला अनुभव बेमिसाल था, मेरे मुख से सिर्फ और सिर्फ सिसकारियाँ ही निकल रही थी।
तभी उनके हाथों ने मेरे शॉर्ट्स के बटन खोल कर उसे उतारने लगे, मैं अब मना करने की स्थिति में नहीं थी, मैंने भी गांड उठा कर सहयोग किया और मेरी पेंटी के साथ मेरा शॉर्ट्स भी उतर गया.. मेरी बाल रहित गुलाबी कुंवारी बुर उनके सामने बेपर्दा थी।

हर्ष सर की आँखों के चमक बढ़ गई… और उन्होंने भी अपनी पैंट और अंडरवियर निकाल दिया… मेरे सामने उनका लंबा सा लंड था गोरा गोरा उनकी ही तरह ऊपर से गुलाबी…

तब तक भी मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि यह मेरी बुर के अंदर जायेगा.. पर अच्छा लग रहा था देखने में!

सर फिर मेरे ऊपर आ गए, पहली बार मेरा नंगा जिस्म किसी मर्द के नंगे जिस्म के संपर्क में आया था, मेरा कोमल मन और बदन में सिहरन से हो गई थी, उनका लंड मेरी जांघों के बीच में मेरी बुर में रगड़ खा रहा था… मेरे मुख से सिर्फ केवल ‘उईईई ईईईई… आअह्ह्ह आह उफ्फ्फ्फ़ ओह्ह सर.. आ… ओ… आ… की आवाज़ ही निकल रही थी।

सर मेरी चूचियों को मुख में भर कर चूस रहे थे, कभी मेरे निप्पल को काट लेते तो मेरे मुँह से दर्द भरी चीख़ निकल जाती ‘आउच आहः लगती है सर!
पर सर कहाँ रुकने वाले थे… उनके हाथ मेरी बुर की दरार में फिसल रहे थे।

अचानक मैं चीख़ पड़ी ‘आउच आय ओओह उफ्फ्फ…’
सर की एक उंगली मेरी कुंवारी बुर में प्रवेश कर चुकी थी, मेरी बुर का गीलापन उनकी उंगली के मेरी बुर में प्रवेश में सहारा बना… पर मेरे जिस्म में दर्द की लहर दौड़ गई… ऐसा दर्द मैंने कभी महसूस नहीं किया.. मुझे नहीं पता था की बुर में उंगली भी डाली जाती है।
ये सब मेरे लिए नया था और मैं पागल सी हो रही थी..

न जाने कितनी देर तक वो मुझे चूमते सहलाते रहे उंगली को धीरे धीरे अंदर बाहर करते रहे… फिर वो उठ कर मेरे पैरों के बीच में आ गए.. मेरी जांघों से मेरे पैरों को पकड़ कर ऊपर उठा कर अच्छे से फैला दिया और मेरी बुर पर झुक गए।

तभी उनकी जीभ ने मेरी बुर को टच किया, मैं आनन्द और सिहरन से उछल गई… पर उनकी पकड़ मजबूत थी, मैं कसमसा कर रह गई।
उनकी जीभ मेरी बुर की दरार में अपना काम करने लगी, मैं आनन्द से पागल हुई जा रही थी- आआह्ह मत करो सर! कुछ हो रहा है हमें आअह्ह्ह ह्ह्ह सररर… क्या कर रहे हो आप!

मेरी बुर से पानी निकाल चुका था और मैं थक कर चूर हो चुकी थी।
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कि सर अचानक उठ कर मेरी चूचियों पर बैठ गए सर का लंड मेरे मुँह के पास था, एक अजीब से महक आ रही थी जो मुझे पागल कर रही थी।

फिर एक और नया अनुभव… उनका लंड मेरे होंटों पर रगड़ने लगा, उसका दबाव मेरे होंटों पर था, मैं वो सह नहीं पाई, मेरा मुँह खुल गया और उनके लंबा लंड मेरे मुख के अंदर था… मैं उस मोटे और बहुत लम्बे लंड को ठीक से मुँह में ले भी नहीं पा रही थी पर सर की आवाज़ से लग रहा था कि उनको काफी मजा आ रहा था।

‘उफ्फ ओह्ह आआह्ह… ऐसे ही करो… थोड़ा सा थूक लगा कर चूसो… आअह्ह्ह्ह आ ऋचा… तुमको मैं पास करा दूंगा! बस ऐसी ही चूसती रहो..’
साथ में वो मेरे गाल को सहला रहे थे, कभी हाथ पीछे ले जाकर मेरे निप्पल को जो से मसल देते पर मेरी दर्द से भरी चीख बाहर नहीं आ पाती।

अचानक सर ने स्पीड बढ़ा दी… वो जोर जोर से लंड को मुह के अंदर बाहर करने लगे… अचानक उनके मुंह से ‘आअहह्ह ऋचा आ आ आअ अईह आह…’ की आवाज़ निकली, उन्होंने मेरी सर जोर से पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में पूरा डाल दिया और मुझे उसमें से कुछ निकलता हुआ लगा, फिर मेरा मुँह कुछ अजीब से स्वाद से भर गया.. मैं उसको बाहर निकालना चाहती थी पर लंड पूरा मुँह में था तो मुझे उसको गटकना पड़ा, कसैला सा अजीब सा स्वाद था!

अब उनका लंड सिकुड़ कर छोटा होकर मेरे मुँह निकल आया और वो मेरे बगल में गिर कर जोर जोर से साँस लेने लगे।
मैं तुरंत बाथरूम में गई और पानी से मुह के अंदर तक साफ किया पर वो स्वाद मुँह से जा ही नहीं रहा था।

फिर मैं उसी अवस्था में यानि नंगी अवस्था में बाहर आकर मैंने सर का नग्न जिस्म को रोशनी में ठीक से देखा तो अच्छा लगा।
मैं उनके पास गई तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के अपनी तरफ खींच लिया और मेरे लिप्स को चूसने लगे… मेरे अंदर फिर से कुछ होने लगा।

पर मैंने रुक कर पूछा- सर, मैं पास तो हो जाऊँगी ना?
सर ने कहा- अगर तुम कल फिर आओगी तो मैं सोचूंगा!

मुझे काफी देर हो गई थी तो मैंने अपने कपड़ों को समेट कर पहन लिया।
हर्ष सर- कल इसी टाइम आना और आज जो भी हुआ उसका जिक्र किसी से ना करना नहीं तो तुम पास नहीं हो पाओगी!
मैं- जी सर..

और मैं वहाँ से निकल कर घर आ गई।
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