सम्भोग से आत्मदर्शन-24

मैंने सबकी धोती भी खोल दी, उनका लंड मुझे नहीं दिख रहा था, और मैं उन्हें देखने के लिए बेचैन भी हो रही थी। फिर मैंने उनकी पीठ में अपने सुंदर कठोर स्तन घिसने शुरू कर दिये. मेरे स्तन छोटे जरूर थे पर उसका एक फायदा ये था कि वो छोटे होने की वजह से कठोर थे। और मेरे चूचुक भी तन चुके थे, जिसका स्पर्श उन साधकों की पीठ में हो रहा था और असर उनके लंड में हो रहा था।

अब वो सब पीछे मुड़ गये अर्थात अब सभी के लंड मेरे सामने आ गये थे, वो अभी भी घेरा बना कर ही खड़े थे और मैं उनके बीच थी, अब तक सभी के लंड पूर्ण आकार में आ गये थे, किसी का काला किसी का गोरा किसी का सांवला पर सभी विकराल लंबे और मोटे नजर आ रहे थे, लगभग सभी लंड सात इंच से ऊपर ही थे, और कुछ तो नौ दस इंच होने का भी आभास करा रहे थे।

मैं सबके सीने को बारी बारी से सहलाने लगी, और उनके बालों को हल्के हल्के खींच कर वहाँ चुम्बन भी कर देती थी, और सबके लंड को भी मैं जड़ से लेकर ऊपर तक छू कर देखती थी, या कहो कि उसे सहलाने से खुद को रोक नहीं पाती थी.

उन साधकों में से सिर्फ तीन लोगों ने ही लंड पर बाल रखे थे बाकी सभी ने बहुत अच्छी तरह से बाल साफ किये थे।

मुझे साध्वी द्वारा फिर आदेश मिला कि इनके लंड चूसो और उससे अच्छा बुरा जो भी मिले प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लो.
उनके आदेश का पालन मैं कैसे नहीं करती, मैं तो खुद लंड चूसने के लिए मरी जा रही थी। पर मैं अनायास ही बाल के गुच्छों वाले लंड के सामने बैठ गई और उन झांटों को सहलाते हुए कौतुहल से उस साधक की ओर देखा, उस साधक ने एक मुस्कान दी और यूं ही खड़ा रहा।

तब साध्वी ने मेरे मन की बात समझ कर कहा- इन तीनों के लंड पर बाल इसलिए हैं क्योंकि इन्हें खास लोगों की पसंद और मांग को पूरा करना होता है.
मैं मुस्कुरा दी और लंड के सुपाड़े को चाट लिया. और मैंने उनके शब्द को दोहराया ‘खास’ सही में वो तीनों लंड खास ही थे क्योंकि वो तीनों ही लगभग नौ दस इंच के थे, उनमें से एक गोरा और दो काले थे।

अब मैंने लंड चूसने की अपनी अद्भुत कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, मैं बारी बारी से सबके लंड चूस रही थी और मैं जिस लंड को चूसती उसके आजू बाजू के लंड अपने एक-एक हाथ में थाम लेती थी और अलग अलग लंड चूसने में मुझे खुद को मजा आ रहा था, तो मैं एक ही लंड के पास ज्यादा देर बैठ जाती.
इससे आखरी के साधकों की बेचैनी बढ़ गई और एक साधक ने आकर मेरा बाल बेरहमी से पकड़ा और मेरे सर को घुमा कर मेरे मुंह में लंड डाल दिया।

मेरे साथ इस चुदाई में यह पहला वहशीपन था। वैसे इस वहशीपन ने आग में घी डालने का काम किया, अब मैं और उत्तेजित होकर लंड चूसने लगी, एक के बाद एक सबके लंड और गोलियों को मैंने चूसा चाटा, उनके लंड मेरे गले के छोर में जाकर अटक जाते थे फिर भी मेरे मुंह में आधे ही समा पाते थे।

मेरा मुंह दुखने लगा था, पर मैं जानती थी वहाँ दर्द को समझने वाला कोई नहीं है। वो तो गनीमत हो एक मुस्टंडे साधक का जिसे मेरी चूत पर तरस आ गया, उसने मुझे कमर से पकड़ कर उठा लिया, बिस्तर में पीठ के बल लिटा दिया, और मेरी पनिया चुकी चूत में अपना मुंह लगा दिया, अब एक साधक ने आकर मेरे मुंह में फिर लंड दे दिया और दो साधकों ने आजू-बाजू से आकर मेरे हाथ में अपने लंड पकड़ा दिये।

मेरे पेट कमर जांघ निप्पल और स्तन हर जगह पर किसी ना किसी का सख्त हाथ महसूस हो रहा था, कौन क्या छू रहा था दबा रहा था कहना मुश्किल है, धीरे धीरे उनके लंड की कठोरता के साथ उनके व्यवहार की कठोरता भी बढ़ती जा रही थी।
और साथ ही मेरी भी कामुकता और उससे भी ज्यादा मन का डर बढ़ता जा रहा था, वैसे उनके खुरदुरी जीभ का स्पर्श अपनी चूत पर पाकर मैं खुद चुदने को बेताब हो रही थी, फिर भी सात लोगों से एक साथ वहशी चुदाई सोचकर ही मैं काँपने लगी। मैंने अगर संदीप से वहशीयाना सेक्स करके इस पल के लिए तैयारी ना कि होती तो शायद मैं कब का मैदान छोड़ चुकी होती, फिर भी एक इंसान से चुदने में और सात लोगों से चुदने में बहुत अंतर होता है।

शायद एक बार फिर मेरे मन की बात वो साध्वी समझ गई जो मुझे सेक्स सिखाने के लिए ही वहाँ उपस्थित थी और वो खुद महिला भी थी जो इस दौर से गुजर चुकी थी इसलिए उसने कहा- तुम फिक्र मत करो, तुम यह सब आसानी से कर लोगी. तुम्हें हमने जो इतने दिनों से दवाई दी थी वो एक तरह से सेक्स क्षमता बढ़ाने का ही स्लो डोज था। और अभी अनुष्ठान के वक्त तुम्हें सेक्स के लिए फुल डोज दिया गया है। इसलिए तुम ये सब आसानी से कर सकोगी और तुम्हें मजे ही मजे मिलेंगे। हम यहाँ ऐसे सामूहिक चुदाई में शामिल होने वाली लड़की को ये डोज देते ही हैं।

अब मेरे मन से डर थोड़ा कम हुआ, और मैं लंड चूसने में और कामक्रीड़ा में उनका अच्छे से साथ देने लगी। अब उस नौ इंची लंड वाले साधक ने मुझे हाथ और पीठ से पकड़ कर उठा दिया और खुद लंड आसमान की ओर तान कर लेट गया, इसका साफ मतलब था कि अब मुझे उस पर चढ़ कर चुदना था, पर मैं अभी भी ना समझने का नाटक कर रही थी।

तभी साध्वी ने कहा- देख क्या रही है, उसके ऊपर चढ़ के लंड चूत में ले और मजे ले।
चाहती तो मैं भी यही थी, इसलिए मैंने बिना समय गंवाये सवारी करना उचित समझा, मैं उस विकराल लंड के ऊपर आकर अपनी कमर हिला कर चूत की दीवारों में उसे घिसने लगी, फिर जब लगा कि लंड चूत में घुसने को खुद ही उछल रहा है तब मैंने लंड को अपनी चूत में ले लिया।

सभी आंखें फाड़े यही देख रहे थे कि मैं लंड ले पाऊंगी या नहीं क्योंकि शरीर को देखने पर मैं उन्हें कमजोर और बच्ची ही लगती थी। पर मैंने सबको सोच बदलने पर मजबूर कर दिया। हालांकि मुझे उस विकराल लंड को गटकने में दर्द हुआ पर मैं हल्की चीख के साथ ही लंड गटक गई।

लंड मेरी चूत में आधा ही घुस पाया था और मैं उसे उतना ही घुसे रहने देना चाहती थी क्योंकि लंड बहुत बड़ा था और अभी मुझे बहुत लोग चोदने वाले थे, इसलिए मैं अपनी उर्जा बचा कर रखना चाहती थी, इसलिए मैं वैसे ही अपनी कमर हिला के मजे लेने लगी।

जब मैंने उस विकराल लंड को चूत मे लेकर मजे से सिसकारी निकाली, तब सभी आश्वस्त हो गये कि मेरा शरीर भले कमसिन और नाजुक लग रहा हो, पर मैं खूब चुदी हुई अनुभवी औरत हूं जो सबको आसानी से सह कर मजे दे सकती है। और शायद इसी सोच के साथ एक और झांटों से आच्छादित लंड वाला साधक बिस्तर पर मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया, और उसने झुक कर बिना किसी घृणा के मेरी गांड का छेद चाट लिया, मैं आनन्दित हो उठी और अगले हमले और दर्द के लिए खुद को तैयार करने लगी।

उसने कुछ देर गांड की छेद चाट कर उसमें बहुत सारा थूक दिया, शायद वो फिसलन लाना चाहता था, जिसके लिए मैंने उसे मन ही मन धन्यवाद दिया। वो पहले ही मेरी गुंदाज गांड को मसल रहा था, उसके साथ ही कुछ और हाथों का अहसास मुझे अपनी सुंदर गांड पर मिल रहा था।
अब उसने जोर जोर से चपत मारते हुए अपने लंड को मेरे गांड में रगड़ना शुरू कर दिया, मैं दम साधे उसके हमले की प्रतीक्षा करने लगी और अगले ही पल उसका मूसल मेरी गांड की दीवारों को रगड़ता हुआ संकरे से छेद में लगभग आधा घुस गया।

वैसे मैंने वो गांड का छेद पहले से बड़ा करवा रखा था गांड मरवा कर… पर लंड विशाल था इसलिए उसके सामने मेरी गांड का छेद बहुत छोटा पड़ गया. मैं जोर से कराह उठी, मुंह से चीख निकल गई, मैंने सोचा कि मुझे दर्द में देख कर शायद कोई रहम करे, इसलिए मुझे जितना दर्द नहीं हुआ था मैं उससे कहीं ज्यादा चीखी थी।
पर मेरी सोच गलत थी, उन कमीनों को मेरे चीखने से और ज्यादा मजा आया और वो मुझे पहले से ज्यादा बेरहमी से चोदने लगे, मुझे इस पोजिशन में पांच सात मिनट ही चोदा गया, और मेरी हालत खराब होने लगी।

तभी मेरी गांड से लंड निकाल लिया गया तो मुझे लगा कि उस कमीने का हो गया है, पर मैं गलत थी उसने मेरे नीचे वाले साधक और मुझे भी उठा दिया और खुद लेट गया, अब मुझे उसके पैरों की तरफ मुंह करके अपनी गांड में लंड लेना था, वहाँ मेरी इच्छा अनिच्छा का कोई मोल नहीं था, इसलिए मैं यंत्रवत ही सबकुछ करने लगी, उन्हें मेरी चीख सुनने में मजा आ रहा था इसलिए मैं अपनी सामान्य चीखों को भी और बढ़ा कर प्रदर्शित कर रही थी।

अब इस तरह लंड अपनी गांड में लेने से मेरे स्तन ऊपर की ओर हो गये, और पीठ नीचे लेटे साधक की ओर हो गई। अब एक तीसरा बालों के गुच्छे से भरे लंड वाला साधक सामने आ गया और उसने अकसमात ही मेरी चूत में लंड पेल दिया, मैं बहुत जोरों से कराह उठी, और ना चाह कर भी मैं पीछे की ओर दब गई, ऐसे में मेरे आगे पीछे के दोनों लंड पूर्ण रुप से मेरे अंदर समा गये, उसने कुछ देर बिना झटके दिए लंड डाल कर ऐसे ही रोके रखा, तब मैंने एक बार चूत की तरफ नजर दौड़ाई।

मेरी चूत गांड और योनि प्रदेश कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, नीचे और ऊपर के दोनों साधकों की काली घनी और वृहद झांटों ने मेरे उस पूरे भाग को ही ढक लिया था। दोनों के झांट आपस में ऐसे मिल गये थे कि बता पाना भी मुश्किल था कि कौन सी झांटें किसकी हैं। सच कहूं तो मैं उस दृश्य को कैमरे में कैद करवाना चाहती थी, पर ये सब उस समय संभव नहीं था।

थोड़ी देर रुकने के बाद उन्होंने अपने पिस्टन को गति देना प्रारंभ किया, उनके हर झटके के साथ कामुकता की लहर वातावरण को नशीली बना रही थी। हर साधक लंड हाथ में लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, मेरे मुंह में भी निरंतर एक के बाद एक लंड ठूँस दिया जाता था, मेरा मुंह हाथ पैर सब दुखने लगे थे।

उन दोनों साधकों की दमदार चुदाई में ही मैं दो बार झड़ चुकी थी, जिसे जान कर भी अनजान बन कर चुदाई करते रहे। फिर उनका भी वक्त आ गया, कुछ बेरहमी भरे धक्कों के बाद उन दोनों ने अचानक ही फक की आवाज के साथ लंड खींच लिया और मुझे अपनी बारी का इंतजार कर रहे दूसरे साधकों के हवाले कर दिया।

दूसरे साधकों ने एक बार फिर मेरे तीनों छेद पलक झपकते ही भर दिया। और पहले चोद रहे साधकों के सामने दोनों साध्वी चांदी का पात्र लेकर खड़ी हो गई और उन दोनों के लंड को हिलाने लगी साधक अकड़ रहे थे उनके शरीर में पसीना और कंपकंपी स्पष्ट नजर आ रही थी, अंततः उन्होंने उस चांदी के पात्र में अपना वीर्य उगल दिया, उनका वीर्य बहुत ज्यादा मात्रा में और गाढ़ा जैसा निकला, उन्होंने वीर्य का हर बूंद उस पात्र में ही उड़ेला। ये सब मैं चदते हुए ही देख रही थी।

और इधर घमासान चुदाई से मेरी चूत शून्य अवस्था में चली गई, मेरा बदन दर्द कांप रहा था, और गोरी त्वचा लाल दिखने लगी थी, सभी साधक लंबे देर तक चुदाई कर रहे थे, सभी के लंड भी विकराल थे, ऐसे में कुछ समय बाद मेरा मस्तिष्क भी शून्य स्थिति में चला गया, इसे मुर्छा या अचेत अवस्था नहीं कह सकते क्योंकि मैं सब कुछ देख रही थी, सुन रही थी, कर रही थी, पर मुझे अब कुछ महसूस नहीं हो रहा था।

फिर शायद ईश्वर को मेरी इस दशा पर तरस आया होगा इसलिए सब थोड़े थोड़े समय अंतराल में उस चांदी के पात्र में जाकर झड़ने लगे उन साध्वियों ने सबको झड़ने में मदद की, और जब सबका हो गया तब मैं वहीं बिस्तर पर पसर गई क्योंकि मुझमें उठ पाने की भी ताकत नहीं बची थी।

शायद उसी अवस्था में मेरी नींद भी लग गई थी, कुछ घंटों बाद मुझे साध्वियों ने उठाया, और एक कक्ष में ले गये ये कक्ष बड़ा सा बाथरूम जैसा था, जहाँ मुझे एक पीढ़े में बैठाया गया, और वे सातों साधक फिर मुझे घेर कर खड़े हो गये वो सब अभी भी नंगे थे उन्हें देख कर मेरी गांड फटने लगी कि कहीं ये मुझे फिर ना चोदें क्योंकि ये चुदाई मेरे लिए भले ही जान लेवा थी पर उन सबका तो सिर्फ एक ही राउण्ड हुआ था।

पर अब मेरी चुदाई नहीं होनी थी बल्कि ये सप्तक भोग की पूर्णाहुति का समय था, उन सबने वैसे ही खडे रहकर मंत्र पढ़ने शुरू किये, और हर मंत्र के पूरे होने पर मुझे एक चम्मच में प्रसाद दिया जाता था जिसे पीना पड़ता था, ये उन साधकों का वीर्य ही था जो मुझे दिया जा रहा था। बाद में मुझे साध्वियों बताया था कि इस क्रिया से यौवन में निखार आता है बुढ़ापा दूर रहता है और आयु बढ़ती है।

मैं पहले भी वीर्य गटक चुकी थी, लेकिन लंड मुंह में लेकर ताजा पीर्य गटकना और चम्मच में वीर्य पीने में बहुत अंतर होता है, मैंने इस वीभत्स कार्य को भी सही सही अंजाम दिया। और फिर मुझे वीर्य का वो पूरा पात्र देकर कहा गया कि मैं उसे चेहरे स्तन और शरीर पर मलूं!
मैंने उनकी इस आज्ञा का भी पालन किया, और फिर अंत में सातों साधक ने एक साथ अपने लंड पकड़े और मुझे मूत्र स्नान कराने लगे. मुझे बहुत अजीब और गंदा लग रहा था, पर थोडा रोमांच भी मन में पैदा हो रहा था।
उन साधकों ने मेरी निद्रा के दौरान पानी पी कर और मूत्र ना करके मेरे लिए संचित रखा होगा तभी तो उन सबके मूत्र की धार तेज थी।

मैं वैसे ही मूत्र स्नान करके बैठी रही, फिर उसके बाद सबने बारी बारी मंत्र पढ़ते हुए मेरे सर पर अपने लंड पीटे जैसे वो मुझे आशीर्वाद दे रहे हों, और उस कक्ष से निकलते गये।

उनके जाने के बाद साध्वियों ने मुझे उठाया और दूध गंगाजल से अच्छी तरह नहलाया, फिर सबकी तरह का एक भगवा वस्त्र थाल में रख कर मेरे हाथों में पकड़ा दिया जैसे हम किसी को पुरस्कार देने के समय पकड़ते हैं।

और तब मुझे भोगानंद बाबा के सामने पेश किया गया।

मुझे उनके सामने थाल रख कर घुटनों के बल झुक कर प्रणाम करने को कहा गया. मैंने वैसा ही किया.
फिर बाबा अपनी जगह से उठे और मेरे पीछे आकर मेरे गांड को सहलाते हुए अपनी उंगली मेरी चूत में घुसा दी, अब तक मेरे शरीर में जान आ चुकी थी, इसलिए इतने में ही बाबा जी को मेरी चूत में हल्का चिपचिपापन महसूस हो गया।

तो उन्होंने साध्वियों को ललकार कर कहा- इसका अच्छे से शुद्धिकरण हुआ ही नहीं, ये तो अभी भी चुदासी हो रही है।
तो साध्वियों ने कांपते हुए कहा- शुद्धिकरण अच्छा ही हुआ है गुरुदेव, ये और लोगों से ज्यादा चुदने के बाद भी अंत तक बेहोश नहीं हुई, इसके अंदर बहुत चुदास है गुरुदेव!

तब वो बाबा खुश होकर बोला- हम्म… अच्छी बात है, इसे वस्त्र पहनाओ!
फिर मुझे वही वस्त्र पहनाये गये जिन्हें मैं थाल में लेकर उनके सामने गई थी. फिर बाबा ने मंत्र पढ़ते हुए मुझे चंदन का तिलक लगाया और कहा- अब से तुम इस आश्रम की साधिका हो, तुम्हें और बाकी चीजें ये दोनों समझा देंगी।

मैंने दुबारा उनके चरण स्पर्श किये और मुझे एक कमरे में लाकर बिस्तर और सामान देकर कुछ हिदायत दी गई जो सामान्य थी।

उस दिन के बाद बहुत लंबे अंतराल में ही ऐसी सामूहिक चुदाई होती थी, लेकिन एक दो साधक तो जब मौक़ा पाते, तब ही मुझे चोद कर निकल जाते। और जब हम साधावियों का चुदने का मन होता हम भी किसी भी साधक से चुद लेती थी।
इतना सब तो ठीक ही था पर मुझे उस गुप्त कक्ष तक पहुंचना था और बाबा की चुदाई और कार्यों को जानना था.

फिर एक दिन वो वक्त भी आ ही गया, जब मुझे उस गुप्त कक्ष में जाने के लिए तैयार होने को कहा गया।

कहानी जारी रहेगी.
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