जब दोस्त के लिए लड़की देखने गए -2

मधु के घर से वापस आने के बाद एक दिन अनजान नंबर से मेरे मोबाइल पर फोन आया, आवाज किसी लड़की की थी।
मधु- हैलो..
मैं- हैलो..
मधु- पहचाना.. मैं कौन?
मैं- नहीं!
मधु- क्यों.. भूल गए?
मैं- माफ़ कीजिएगा.. मैंने पहचाना नहीं।
मधु- मैं मधु बोल रही हूँ.. अब पहचाना?
मैं- त..तुमम..? कैसी हो..? क्या हाल हैं?

मैंने कई सवाल एक साथ पूछ डाले।

मधु- आप बताइए.. आप लोग कैसे हैं? वो कैसे हैं.. वो कहाँ हैं? उन्हें मेरी याद आती है या नहीं? आप लोगों ने फिर जाने के बाद एक दिन भी फोन नहीं लगाया कि मैं कैसी हूँ.. किस हाल में हूँ? मेरा मजा लिया और भूल गए?

प्रति उत्तर में उसने भी कई सवाल दाग दिए।

मैं- अरे बस-बस.. कितना पूछोगी… हम लोग सब ठीक हैं। तेरे ‘वो’ भी ठीक हैं.. अभी काम से बाहर गया है। जब से हम तुम्हारे यहाँ से लौटे हैं.. तब से तो वह तेरा दीवाना हो गया है, दिन-रात उसे तुम ही तुम दिखाई देती हो। हम लोग शादी की तैयारी में लगे होने के कारण फोन नहीं कर पाए.. इसके लिए सॉरी.. दो महीने बाद की तिथि निकली है। मोहन के परिवार वाले दो दिन बाद तुम्हारे यहाँ आएँगे। अब तुम बताओ.. तुम्हारे क्या हाल हैं?

मधु- जब से आप लोग गए हो.. मुझे रात को नींद नहीं आती और आप लोग जो चस्का लगा गए हैं.. उससे तो मेरी हालत खराब है। आए दिन मेरी ‘उसमें’ सुरसुरी होती रहती है। जब तक उंगली से न कर दूँ.. तब तक चैन नहीं मिलता। अब तो बस ये लगता है कि कब इसका उद्घाटन हो।
मैं- सब्र करो.. सब्र का फल मीठा होता है। लेकिन तुम्हें अपना वादा याद है कि नहीं.. साथ में सुहाग..!
मधु- मुझे याद है सब.. वो आएँ.. तो उनसे कहना मुझे इसी नंबर पर फोन करें। अच्छा अब मैं रखती हूँ।
अब मोहन और मधु की बीच-बीच में बात होने लगी।

वो दिन भी आ गया जिस दिन का इंतजार था, मोहन की शादी हो गई और मधु मोहन की पत्नी बनकर मोहन के घर आ गई।
मोहन का घर छोटा था.. जिसमें सारे महमान रुके हुए थे।
मैंने अपने घर में अपने कमरे के बगल में जिसमें दोनों कमरों में आने-जाने के लिए बीच में एक दरवाजा था.. उसमें मोहन की सुहागसेज सजाई ताकि किसी को पता न चले कि क्या हो रहा है।

रात को जब मोहल्ले की भाभियाँ मधु को कमरे में छोड़ गईं और कुछ देर में उन्होंने मोहन को भी कमरे में धकेल दिया।
अब मधु और मोहन दोनों अकेले कमरे में थे.. और मैं अकेला बगल वाले कमरे में था और दरवाजे में कान लगाकर उनकी बातों को सुन रहा था।

मोहन- मधु.. यहाँ आकर कैसा लग रहा है? यह कमरा राकेश का है.. देखो आज हमारी सुहागरात के लिए कैसा सजाया है.. अच्छा लगा न..!
मधु- हाँ.. पर वो कहाँ है.. उन्हें भी तो बुला लो। मैंने उनसे वादा किया था कि सुहागरात दोनों के साथ मनाऊँगी। नहीं तो मैं झूठी साबित हो जाऊँगी। मैं तभी घूँघट उठाऊँगी.. जब वो आएँगे, उन्हें भी बुला लो।

तभी मोहन ने मेरे कमरे के दरवाजे पर नॉक किया.. तो मैंने भी दरवाजा खोल दिया और मैं उनके कमरे में आ गया।
मधु मुझे देखते ही खड़ी हो गई।

मोहन- लो आ गया तुम्हारा दूसरा पति.. अब तो घूँघट खोलो। अब रहा नहीं जाता.. कसम से जब से तुम्हारी चूत को देखा है.. कमबख्त इस लंड को चैन नहीं है। अब न तरसाओ.. अपनी चुदासी चूत को हमारे लंड के हवाले कर दो… मेरी प्रियतमा..
वो हँस दी..
मोहन- मधु, बोलो कौन तुम्हारे कपड़े उतारेगा?
मधु- कोई भी उतारो, मैंने अपने तन को आप लोगों को समर्पित कर दिया है। आप जैसा चाहो वैसा मेरा इस्तेमाल कर सकते हैं।

मुझे मधु की इस बात का बड़ा झटका लगा, मैं समझ गया कि ये मज़बूरी में कह रही है।
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मैं- नहीं.. आज की रात सिर्फ तुम लोगों के लिए ख़ास है.. तुम लोग एन्जॉय करो.. मजे करो बस। मैं बाहर हूँ… कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल कर देना।

ओके.. एन्जॉय.. गुड नाइट कहकर जैसे ही जाने के लिए मुड़ा तो मधु ने मेरे हाथ पकड़ लिए और कहा- मुझसे नाराज हो गए क्या? मैंने ऐसा क्या कह दिया कि आप जाने लगे। कसम से मेरे दिल में कोई मलाल नहीं है मैं अपनी इच्छा से कह रही हूँ और करवाना चाहती हूँ। आप बाहर मत जाइये मेरे साथ मनाइये।
और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर पर बैठा दिया।

उसने मेरी तरफ इशारा कर मधु को कहा- हो गया नाटक.. मैं पति हूँ कि ये.. चल अब मेरे सब्र का बांध टूट रहा है.. मैं तो यहीं झड़ जाऊँगा।

मोहन ने मधु को पीछे से अपनी बाँहों में लेकर उसके चुम्बन लेते हुए उसके मम्मों को दबाने लगा और मधु भी अपने हाथ पीछे की तरफ करके मोहन के गले को पकड़ कर उसका साथ दे रही थी। उसका यह पोज काफी उत्तेजक था।

मैं अपने को काफी सम्हाल रहा था.. पर उसकी इस पोजिशन ने मेरा मन डुला दिया और अब मैं भी आगे से मधु के गालों को चुम्बन लेते नीचे सरकने लगा। मधु के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। मोहन ने उसका ब्लाउज और चोली निकाल कर फेंक दी।
मोहन मम्मों को दबा रहा था, मैं उसकी नाभि को जीभ से सहला रहा था और धीरे से उसकी साड़ी को अलग कर दिया।

मैं- यार अब तू ही इसके कपड़े उतार क्योंकि आज का दिन तुम्हारा है।
मोहन ने उसका पेटीकोट और चड्डी उतार कर फेंक दी।
अब वह हमारे सामने क्लीन शेव.. गुलाबी और फूल सी नाजुक चूत की मालकिन.. अपनी चूत से चूतरस टपकाते हुए नंगी खड़ी थी।

मैं- मोहन अब लिटाओ.. और तुम भी तो कपड़े उतारो।
मोहन- मेरे कपड़ों को मधु उतारेगी।
मधु मोहन के एक-एक कर कपड़े उतारने लगी।

मोहन- मधु इसके भी कपड़े उतारो, आज न जाने न इसे क्या हो गया है?
मधु ने मेरे भी कपड़े उतार दिए, अब हम तीनों मादरजात नंगे थे।
मधु हमारे लंडों को पकड़ कर का चूसने लगी।

कुछ देर बाद मैंने मधु की टांगों को फैलाकर उसकी चूत में जीभ डालकर जीभ से चोदने लगा। मधु अपने कूल्हे उचका कर अपनी चूत को चुसवा रही थी- ओईईईई.. स्स्स्स्स स्स्स्स्स्.. और चूसो मेरे राजा.. आआआह.. पूरी जीभ डाल कर चोदो.. आह्ह.. अब रहा नहीं जाता मेरे राजा.. डालो न.. अब न तड़पाओ.. जल्दी डालो.. फाड़ दो मेरी चूत को.. आआ आआअह..

मैंने मोहन से कहा- तुम पहले इसका आनन्द उठाओ.. मैं बाद में आनन्द लूंगा।

तो मोहन अपने लंड को पकड़ कर उसकी चूत के मुँह में रखकर अन्दर करने लगा.. लेकिन चूत टाइट होने के कारण फिसल जाता था। मुझे देख कर हंसी आ रही थी।

उधर मधु चुदाने को बेकरार थी- क्या कर रहे हो.. डालो न.. बहुत जोर की खुजली हो रही है..
मैंने मधु की बेचैनी देखकर मोहन के लंड को पकड़ कर छेद पर लगाकर मोहन को अन्दर करने को कहा, मोहन ने झटका लगाया तो वो चिल्ला उठी- अरे मर गई रे.. ..निकालो.. ओओहह.. लग रही है।

मैं मधु के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा.. ताकि आवाज बाहर न जा पाए।
तभी मोहन ने दूसरा झटका मारकर पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर कर दिया।

मधु- माँ… आआआ माआर डाला भोसड़ी के बआहर निकालो.. मैं मर जाऊँगीईई.. लगता है.. धीरेएए..
मोहन- चुप बहन की लौड़ी.. पहली पहली बार दर्द होता ही है.. बाद में मजा आने लगेगा.. तूने बहुत तरसाया है। अपने घर में मेरी गाण्ड मरते देखती रही और जब तुम्हारी बारी आई.. तो खड़े लंड पर धोखा देकर भाग गई। अब बताता हूँ। आज तो तुम्हारी चूत और गाण्ड की चुदाई होगी। हम दोनों मिलकर तुम्हारी चूत और गाण्ड फाड़ेंगे। बस तुम अपनी चूत को ढीला रख.. और देखो कैसा मजा आता है।

मोहन ने एक जोरदार धक्का मारा।
मधु पुनः चीख उठी- मम्म्म्म्म् म्म्म्म्म्मी.. रे..
मधु की आँखों में पानी भर आया था और उसकी चूत से खून निकलने लगा था, इससे विश्वास हो गया कि यह बिल्कुल कुँवारी है।

कुछ देर बाद मधु की आवाज कम हो गई, अब मधु अपने चूतड़ उचका-उचका कर मजा ले रही थी।
मोहन- कैसा लग रहा है।
मधु- हाआआ आआआय सीईईईईईईए अब मजा आ रहा है.. एक बार निकाल कर फिर से डालो.. चोदो जम के चोदो मेरे राजा.. मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि आज सुहागरात के दिन दो-दो लंडों से मेरी चुदाई हो रही है.. आआआअ फाड़ दोओ.. ओहह.. जोर से चोदो राजा.. कल दे..देखूंगी तेरे लंड में कितना दम है.. भोसड़ी के.. राजा पूरा डालो। मेरा होने वाला है आआआहह..

मधु के मुँह से गालियाँ सुन कर हम सकते में आ गए।
मैंने पूछा- तुम गलियां क्यों दे रही हो?
तो मधु ने बताया- मेरी सहेली ने कहा है कि जितनी ज्यादा गालियां दोगी.. उतनी ही अच्छे से तेरी चुदाई होगी और मजा आएगा.. इसलिए दे रही हूँ। अगर आपको पसंद नहीं है.. तो नहीं दूँगी।

तब मैंने मधु को अपना लंड चूसने के लिए कहा.. तो मधु मेरा लंड पकड़ कर चूसने लगी।
इधर मोहन उसकी चूत चुदाई कर रहा था। उधर में मैं उसके मुँह को चोद रहा था। मधु भी बराबर का साथ दे रही थी और बातों से हमको उकसा रही थी। इस बीच मधु दो बार झड़ चुकी थी।
कुछ ही देर में मोहन भी झड़ गया और उसने मुझसे चोदने के लिए कहा।

अब मैंने उसके मुँह से लंड निकाल कर उसकी चूत में पेल कर उसको चोदने लगा और मोहन उसके मम्मों को मुँह में लेकर पीने लगा।
आज जैसा दृश्य किसी सेक्सी फिल्मों में नहीं देखा था।

लगभग दस मिनट चोदने के बाद मेरा भी पानी निकलने वाला था। मैंने अपना लंड निकाल कर उसकी छाती पर वीर्य की पिचकारी छोड़ दी, मोहन ने सारा वीर्य उसके मम्मों पर मल दिया।
मधु काफी थक गई थी इसलिए मैंने उसको आराम करने के लिए कहा और हम दोनों उसके अगल-बगल में लेट गए।

पता ही नहीं चला कि नींद कब आ गई।
सुबह जब मेरे कमरे पर दस्तक हुई.. तो मैं हड़बड़ाकर उठा और घड़ी में देखा तो आठ बजे थे। मैंने तुरंत कपड़े पहने और इनके कमरे को बंद करके बाहर आ गया।

इसके बाद की कहानी को आगे भी लिखूँगा।
कहानी कैसे लगी मुझे [email protected] पर मेल जरूर करें.. आपका राकेश