पति गांडू निकला, उसके दोस्त कड़क-1

सुहागसेज पर उनके लंड को देखा तो दिल का सारा चाव खत्म होने लगा। कहाँ पहले मैं बहुत घबराई हुई थी कि कहीं उनको मालूम न चले कि मैं पहले से खेली-खाई हुई लड़की हूँ। मुझे मेरी सहेली ने कुछ नुक्ते सिखाए थे।

मैं घबराई हुई सी में कमरे में बैठी थी, पति देव कमरे में आए, मुझे देखा थोड़ा मुस्कुराए और दरवाज़ा लॉक करके वाशरूम गए। वहाँ से चेंज करके मेरे पास आए और लाईट बंद करके मेरे करीब आए और बाँहों में भरकर मुझे चूमने लगे।

एक-एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे, देखते ही देखते में टू-पीस में रह गई थी, लेकिन उन्होंने अपना कोई कपड़ा नहीं उतारा। मुझे नंगी करके मेरे मम्मे दबाने लगे, निप्पल चूसने लगे।
मैं डर रही थी कि जिस तरह वो मेरे जिस्म से खेल रहे हैं, वो मंजे हुए खिलाड़ी दिख रहे थे।

मेरा शरीर कातिलाना है, फिर उनके होंठ मेरी चूत के होंठ चूसने लगे, मैं पागल होने लगी, मैं पूरी गर्म होकर हाँफने लगी।
मुश्किल से खुद को रोका था दिल चाहता था कि कोई लंड मेरी चूत कि गहराई नापे..!

मैंने पाँव से उनके लंड को मसला, पर माप नहीं सकी कि कैसा होगा..!
वो मेरी चूत चूसते ही जा रहे थे।
आखिर मेरे सिले होंठ खुले- बस भी करो जानू… क्यूँ तड़पा रहे हैं..!
मुझे ना चाहते हुए भी यह कहना पड़ा।

अब वो अपना अंडरवियर खिसका कर मेरे ऊपर आए। मैंने जाँघें खोल डालीं, अपनी सांसें खींच लीं, चूत को सिकोड़ लिया।
उन्होंने खुद को ऊपर से नंगा नहीं किया था। मैं चाहती थी कि जिस्म से जिस्म रगड़े। उससे चुदाई का मजा दुगुना होता है। उन्होंने लंड डालने की कोशिश की, लेकिन घुस नहीं पाया। दूसरी बार मैंने चूत थोड़ी ढीली की, तो लंड घुस गया।

मेरी चूत ने महसूस किया, इतना छोटा सा टुन्नू सा लंड कि अगर में चूत न सिकोड़ती पता भी न चलता।
मैंने उनकी टी-शर्ट खींच दी। उनके जिस्म पर बाल बहुत कम थे। मैं अभी तक जितने लड़कों के साथ लेटी थी सभी के जिस्म पर मर्दाना निशानी बाल थे। उनकी छाती बहुत नर्म थी, शायद इसी लिए वो कपड़े नहीं उतार रहे थे।

लेकिन मैं एक नंबर की चुदक्कड़ रही थी और जिस अंदाज़ में मेरे पति मुझे गर्म कर रहे थे मैं बेकाबू होने लगी थी। मैंने फुद्दी ढीली कर दी और उसका लंड मेरी फुद्दी में था और उन्होंने मेरे मम्मे घोड़ी की लगाम की तरह पकड़ कर गाड़ी चालू की, अभी मुझे मजा आने ही लगा था कि उसका पानी निकल गया और वो मुझ पर लेट कर हाँफने लगा था।

मैं प्यासी थी, पूरी गर्म थी। सोचा था कि आज पहली रात है, आज कहाँ वो रुकने वाला है, पर वो उठा कर कपड़े पहनने लगा और मैंने पास पड़ी चद्दर खुद पर खींच ली और चुपचाप लेटी रही।
उसने मुझे गुड-नाईट कही और लंड सिकोड़ कर सो गया।

मैं झेलती रही, तड़प कर उठी… बाथरूम में गई। पानी अपने ऊपर डाला अपने दाने को रगड़-रगड़ कर खुद की आग खुद ही बुझाई।

अब यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा। कुछ दिनों बाद सासू माँ, ससुर जी मेरे जेठ के पास वापस ऑस्ट्रेलिया चले गए और मेरी भी छुट्टियाँ खत्म हो गईं। यह भी अपने दफ्तर वापस ज्वाइन हो गए। अब घर में सिर्फ हम मियां-बीवी ही रह गए थे।
मेरे पति ट्रेन से पास बनवा कर अप-डाउन करते थे। कभी-कभी वहीं रुक जाते।

रात को मैं कभी अकेली न परेशान होऊँ सो मेरी वजह से इन्होंने ऊपर वाला पोर्शन किराए पर दे दिया। उनकी सीढ़ियाँ बाहर से निकली हुई थीं।
किराएदार की बेटी हॉस्टल में पढ़ती थी। बेटा यहीं कॉलेज में पढ़ता था। वो मियां-बीवी भी नौकरी वाले थे।

एक दिन मेरे पति सुबह-सुबह घर आए। सीजन की वजह से काम बहुत था, मैं तब स्कूल के लिए तैयार हो रही थी। उनके साथ एक बेहद बलशाली बंदा आया था।
उन्होंने उसे मुझसे मिलवाया- यह मेरी मौसी का लड़का है, किसी काम के लिए हमारे शहर में आया है, कुछ दिन रुकेगा!
उसने मुझे बहुत गौर से देखा। वह काफी आकर्षक मर्द था। पति बाथरूम नहाने गए वो बाहर सोफे पर बैठा था।
मैं चाय बना रही थी गर्मी की वजह से मैंने चुनरी उतार रखी थी। मैंने उसको झुक कर चाय दी, उसकी नज़र मेरे मम्मों पर थी।
उसके चेहरे पर कमीनी मुस्कान थी। मेरी मुस्कराहट में भी कुछ छुपा था।

मैंने पति देव को आवाज दी- देखो कुलचे मंगवा लेना… दोपहर का खाना आकर बना दूँगी!
पति बोले- कोई बात नहीं.. तुम टेंशन मत लो.. जाओ..जाओ, मुझे भी काम है, यह घर पर ही रहेगा!
मैं चली गई, उसकी नज़र अब तक मेरी कमीनी सोच में बसी थी। मेरा मन स्कूल में लग नहीं रहा था। उसका चेहरा, उसका बलशाली शरीर.. उसकी नज़र, जिसने मुझे छलनी-छलनी किया था, आह.. चूत में सनसनी हो रही थी।

मैं छुट्टी लेकर स्कूल से घर लौट आई। मैंने सोचा पति की गैर-मौजूदगी में उसको अपने हुश्न के जाल में फंसा लूँगी।
मैंने देखा सभी दरवाज़े लॉक थे, मैं मायूस हो गई, मुझे लगा कि अकेले छोड़ने के बजाए वे उसको साथ ले गए।
दूसरी चाभी पर्स से निकाल कर दरवाज़ा खोला और अन्दर गई। रूम का दरवाज़ा भी बंद दिखा, मेरा माथा ठनका कहीं दोनों घर में ही काल-गर्ल तो लेकर नहीं आए हैं।

अन्दर की आवाजें सुन कर मुझे यकीन हो गया कि अन्दर बैंड बजाया जा रहा है।
मैं जल्दी से पिछवाड़े में गई, उधर खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उड़ने लगे।
उधर कोई लड़की नहीं थी, मेरे पति ही लड़की का फर्ज़ अदा कर रहे थे। मेरी ब्रा-पैंटी पहने वे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठे अपने आशिक का लंड मजे से अपनी गाण्ड में ले रहे थे।

मेरी खोपड़ी उलट गई।
इधर मैं अपनी चूत को लेकर परेशान थी और इसको अपनी गाण्ड मरवाने की पड़ी थी। मेरी चूत के लिए क्या हुआ यह मैं आपको अगले भाग में लिखूँगी, मेरी चुदाई की कहानी अभी बाकी है।
अभी तो मैं आपके ईमेल के इन्तजार में बैठी हूँ।
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