स्नेहल के कुंवारे बदन की सैर -4

फिर मैंने कुछ देर वैसे ही रुककर उसे सम्भलने का मौका दिया, मैंने उसे देखा तो उसकी आँखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।
फिर थोड़ी देर शांत रहने के बाद मैंने अपने होठों से उसके होंठों को आजाद छोड़ कर उसे कहा- स्नेहल, रो मत, जो दर्द होना था हो गया अब और दर्द नहीं होगा अब तो तुम्हें सिर्फ जन्नत की सैर करनी है। तो तैयार हो जाओ जन्नत की सैर करने के लिए!

मेरे इतना कहते ही बड़ी नजाकत से उसने एक स्माइल देते हुए मेरे चेहरे को अपने हथेलियों में लेकर मेरे होठों पर एक बहुत ही प्यारी सी चुम्मी दे दी तो मैंने भी धीरे धीरे अपने लंड महाराज का दबाव बढ़ाना चालू कर दिया जिसकी वजह से लंड धीरे धीरे अंदर घुसने लगा और मेरी प्यारी स्नेहल को थोड़ा और दर्द सहना पड़ा।
लेकिन इस बार वह बिना आवाज निकाले दर्द को छिपा रही थी, चादर को अपनी मुठ्ठियों में भरकर दर्द का इकरार कर रही थी।
उसकी इस अदा पर तो मैं लुट गया।

फिर मैंने उसका दर्द कम करने के लिए अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उसके क्लाइटोरिस को सहलाना चालू कर दिया जिससे उसे दर्द का अहसास कम होकर उस पर वासना हावी होने लगी।
मैंने फिर एक जोर के झटके के साथ अपना पूरा लंड उसके अंदर डाल दिया और थोड़ी देर उसे चूमते हुए वैसे ही पड़ा रहा।
और जब उसने नीचे से कमर हिलानी शुरू की तो मैंने भी अपना काम चालू किया।

मैं अब एक हाथ से उसकी चूचियाँ मसल रहा था और दूसरा हाथ उसके चेहरे पर जो आँसू थे, वो पौंछ रहा था और नीचे लंड बाबु ने अपनी धकापेल चुदाई जारी रखी थी।
उससे कुछ सुनने के लिए मैंने उसे पूछा- कैसा लग रहा है माय डियर?
तो उसने कहा- कुछ मत कहो, बस जोर से करते रहो और जोर से…
और वो अपनी आँखे बंद करके जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी।

फिर मैंने उसे थोड़ा तड़पाने के लिए लंड बाहर निकाल लिया तो मेरा पूरा लौड़ा खून से सना हुआ था।
उसने झट से आँखें खोल कर पूछा- क्या हुआ राज? रुक क्यूँ गये?
मुझे लगा कि खून देखने के बाद वो डर न जाये इसलिए मैंने उसके इतना कहते ही फिर एक ही झटके में पूरा लंड अंदर घुसेड़ दिया तो उसके मुख से एक हल्की सी चीख निकल गई।

और फिर एक हाथ नीचे ले जाकर उसके चूत के दाने को सहलाते सहलाते जोर जोर से लंड को अंदर बाहर करने लगा।
इससे वो बहुत जल्द ही उत्तेजना के चरम पर पहुंचने लगी और अब मुझसे भी रुका नहीं जा रहा था तो मैंने भी जोर से झटके लगाने शुरू किये।
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और कुछ ही पलों के बाद हम दोनों ही एक दूसरे को अपने आगोश में लेते हुए स्खलित हो गये।
मैं इतना उत्तेजित था कि मुझे यह भी ध्यान नहीं आया कि मैंने कंडोम नहीं पहना और अपना वीर्य उसके अंदर ही छोड़ दिया।

फिर हम 10-15 मिनट वैसे ही एक दूसरे की बाँहों में बाहें डालकर लेटे रहे और जब हम अपने होश में आने लगे तो स्नेहल उठकर बाथरूम जाने लगी तो मैंने उसके कमर में अपने हाथ डालकर उसे रोक दिया और अपनी तरफ खींच लिया।
इससे वो सीधे मेरे शरीर पर गिर गई और उसे मेरा हथियार फिर से चुभने लगा तो उसने कहा- अभी मैं बहुत थक चुकी हूँ, अब हमें थोड़ा आराम करना चाहिए।

मैंने कहा- चलो तुम्हारी थकान मिटा देते हैं!
और उसे चूमकर अपनी गोदी में उठाकर मैं उसे बाथरूम में ले गया।

कहानी जारी रहेगी।
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