मेरी आप बीती- पहला सहवास-2

अब महेश जी बिल्कुल नंगे थे उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। महेश जी का भार 70-75 किलोग्राम से ज्यादा ही होगा और मेरा मुश्किल से 40 किलोग्राम था, उनके विशाल शरीर के नीचे मेरा नाजुक कली सा पूरा बदन ढक गया था पता नहीं कैसे मैं उनका भार सहन कर पा रही थी।

मेरा यह पहला अवसर था जब मेरा नंगा बदन किसी पुरुष के नंगे बदन का स्पर्श पा रहा था जो कि बड़ा ही सुखद था।

महेश जी की बालो से भरी नंगी छाती से मेरे छोटे छोटे उरोज दब रहे थे और उनके लिंग की गरमाहट को मैं अपनी योनि पर महसूस कर रही थी।

इसके बाद महेश जी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे और साथ ही अपने शरीर को भी आगे पीछे हिलाने लगे जिससे मुझे बहुत मजा आ रहा था क्योंकि उनकी नंगी छाती से मेरे उरोज मसले जा रहे थे और उनका गर्म लिंग मेरी योनि पर रगड़ खा रहा था।

मैं बस आँखें बँद करके सिसकारियाँ भर रही थी।

जब महेश जी क़ो लगा कि मैं पूरी तरह से मस्त हो गई हूँ तो महेश जी ने एक हाथ से मेरी गर्दन को थोड़ा सा ऊपर उठा कर मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और अपने घुटनों से मेरी जाँघें फैला कर दूसरे हाथ से अपने लिंग को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर लगा के एक जोर का झटका मारा जिससे उनके मोटे लिंग का एक चौथाई भाग मेरी छोटी सी योनि को चीरता हुआ अन्दर चला गया।

यह सब इतना अचानक हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाई। मेरे मुँह से बस घुटी हुई उऊऊँऊँ ..ऊँ…ऊँ… हहुहु हुँहुँ.. हुँ…हुँ… उउउउ.. उ…उ…ह… की आवाज निकली व दर्द से मेरी आँखें बाहर उबल पड़ी, उनमें आँसू भर आये और मेरी योनि से खून का फव्वारा निकल पड़ा।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी योनि में जबरदस्ती कोई मोटी लोहे की जलती हुई छड़ घुसा दी हो।

मेरे होंठ महेश जी के मुँह में थे इसलिये मेरा मुँह बँद था नहीं तो मेरे मुँह से इतनी जोर से चीख निकलती की सारे घरवाले जाग जाते। मैं बस उँहह..ह… उँघुँघुँ..घुँ… करके रह गई।
मेरी सारी उत्तेजना गायब हो गई और मैं दर्द से तड़पने लगी, मैंने महेश जी की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उन्हें पीछे धकेलने लगी ताकि उनका लिंग मेरी योनि से बाहर निकल जाये मगर महेश जी ने अपनी कमर को छुड़वा लिया और मेरे दोनों हाथों की कलाइयों को मेरी गर्दन के पास अपने दोनों हाथों से इस तरह दबा लिया कि अब मैं ना तो अपने हाथ हिला सकती थी और ना ही अपनी गर्दन को हिला पा रही थी।

इसके बाद महेश जी ने अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर खींच लिया जिससे मुझे कुछ राहत मिली मगर फिर से उन्होंने जोरदार झटका मारा।
अब की बार उनका आधे से ज्यादा लिंग मेरी योनि में चला गया, मैं दर्द से बिलबिलाने लगी और अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर सफल नहीं हो पा रही थी।

कुछ देर रुक कर फिर से उन्होंने लिंग को बाहर खींचा और एक बार फिर से जोरदार झटका मारा इस बार उनका पूरा लिंग मेरी योनि में समा गया।
मेरी आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया और मैं दर्द से बुरी तरह तड़पने लगी।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे महेश जी का लिंग मेरी योनि को चीरकर मेरे पेट तक पहुँच गया है और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी क्योंकि मेरे दोनों हाथों को महेश जी ने अपने हाथों से दबा रखा था जिनको मैं हिला भी नहीं पा रही थी और मेरे होंठ भी उनके मुँह में थे जिससे मैं चिल्ला भी नहीं सकती और अगर गर्दन को थोड़ा सा भी हिलाती तो महेश जी मेरे होंठों को दाँत से काट लेते जिससे भी मुझे बहुत दर्द हो रहा था।

मैं बिल्कुल विवश और लाचार हो गई, बस मेरे पैर ही आजाद थे जिनको मैं जोर जोर से बेड पर पटकने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

इसके बाद महेश जी अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे हिलाने लगे जिससे उनका लिंग मेरी योनि में अन्दर बाहर होने लगा, जब उनका लिंग बाहर जाता तो मुझे कुछ राहत मिलती मगर जब वो अन्दर जाता तो मुझे ऐसा लगता कि जैसे उनका लिंग मेरी योनि व पेट को फाड़ कर पीछे मेरी कमर से बाहर निकल जायेगा।

दर्द के कारण मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैं कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर अपनी गीली आँखों से महेश जी से अपने आप को छोड़ देने की भीख माँग रही थी और जोर जोर से अपने पैर बेड पर पटक रही थी!

मगर महेश जी पर ना तो मेरी आँसुओं से भरी आँखों का और ना ही मेरे पैर पटकने का कोई असर हो रहा था, वो तो बस मेरी योनि पर वार पर वार किये जा रहे थे, उनका एक एक वार मेरी योनि को तहस नहस कर रहा था और मैं दर्द से तड़प रही थी।

कुछ देर बाद असहनीय दर्द के कारण मेरा शरीर जैसे संज्ञा-शून्य सा हो गया क्योंकि मेरे पेट के नीचे के भाग पर मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी नाभि के नीचे कुछ है ही नहीं। मगर महेश जी लगातार धीरे धीरे धक्के लगाते रहे।

थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही जड़ सी होकर पड़ी रही और अपने आप धीरे धीरे फिर से मेरे शरीर में चेतना आने लगी मगर अब मुझे इतना अधिक दर्द नहीं हो रहा था।

कुछ देर बाद तो मेरा दर्द गायब ही हो गया और धीरे धीरे दर्द की जगह आनन्द ने ले ली, मैं फिर से उत्तेजित हो गई, अब महेश जी के झटकों से मुझे दर्द नहीं हो रहा था बल्कि सुख मिल रहा था इसलिये मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और बिल्कुल शाँत सी हो गई।

महेश जी धक्के लगाते हुए मेरे होंठों को बुरी तरह चूस रहे थे। मेरे होंठों को महेश जी ने अपने मुँह में लेकर बँद कर रखा था मगर फिर भी उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से उँहु…हुँ…हुँ.. उँह…हुँ…हुँ… उँह…हुँ…हुँ… की आवाज निकलने लगी।

कुछ देर बाद जब महेश जी को लगा कि मैं शांत हो गई हूँ तो उन्होंने मेरे हाथों को छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे उरोजों को सहलाने लगे और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे।

अब मेरे होंठ और हाथ दोनों आजाद हो गये थे इसलिये मैंने अपने दोनों हाथों से महेश जी के कँधों को पकड़ लिया और अपने आप ही उत्तेजना के कारण मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआआहहा.. हाँ…हाँ… इईशश..श…श… अआहहा.. हम्म…हाँ… की मादक सिसकारियाँ निकलने लगी जिससे महेश जी का जोश दोगुना हो गया और वो तेजी से धक्का लगाने लगे।

मेरी भी साँसें तेज हो गई और सिसकारियों की आवाज बढ़ गई।
सर्दी का मौसम था फिर भी हम दोनों के शरीर पसीने से पूरे गीले हो गये और साँसें उखड़ने लगी। पूरा कमरा मेरी सिसकारियों और हम दोनों की साँसों की आवाजों से गूंजने लगा।

धीरे धीरे मेरा मजा बढ़ता गया और कुछ देर बाद मेरे पूरे शरीर में आनन्द की एक लहर दौड़ गई, मेरे हाथ-पैर महेश जी की कमर से लिपट गये और मेरे कूल्हे अपने आप ऊपर उठ गये, मेरे मुँह से इईशश..श…श… अआहह..ह…ह… की जोर से आवाज निकली और मैं अपनी योनि से ढेर सारा पानी छोड़ते हुए शाँत हो गई।

कुछ देर बाद महेश जी भी चरम पर पहुँच गये उन्होंने मेरे शरीर को कश कर पकड़ लिया और अआह.प..आ… य…अ…ल.. इईशशश.. श…श… मेरी ज.आ..न… कहा और उनका लिंग ढेर सारा गर्म वीर्य मेरी योनि में उगलने लगा।

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि में कोई गर्म लावा फ़ूट पड़ा हो जो मेरी योनि से रिस कर मेरी गुदा छिद्र पर भी बहने लगा और वो शाँत हो गये।

अब पूरे कमरे में सन्नाटा सा छा गया था, बस हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई तूफान आ गया था और अब वो गुजर गया है।

कुछ देर महेश जी मेरे ऊपर ऐसे ही पड़े रहे और जब वो उठने लगे तो मेरा ध्यान उनके लिंग व जाँघों पर चला गया जिन पर खून लगा हुआ था।

कमरे में इतनी अधिक रोशनी तो नहीं थी मगर महेश जी की जाँघों और लिंग पर लगे खून को देखने के लिये पर्याप्त थी।

मैं तुरन्त अपनी योनि को देखने के लिये उठी तो मुझे योनि में बहुत पीड़ा महसूस हुई मगर मैं फिर भी उठ कर बैठ गई और अपनी योनि को देखने लगी।

मेरी योनि से अब भी खून और वीर्य रिस रिस कर बाहर आ रहा था और मेरी जाँघें व योनि खून से लथपथ थी, चादर पर भी काफ़ी खून गिरा हुआ था, इतना खून देखकर मैं घबरा गई।

मैं खड़ी होकर लाईट जलाने लगी तो असहनीय दर्द के कारण मेरी आँखों में फिर से आँसू भर आए और मैं बेड से नीचे गिर पड़ी।

महेश जी ने मुझे उठाया और गोद में उठा कर बाथरुम में ले गये, मेरी योनि व जाँघो को साफ किया और मुझे दर्द की एक दवा भी खिला दी।

इसके बाद महेश जी ने बिस्तर की चादर को बदली करके मुझे कम्बल औढ़ाकर सुला दिया और कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई।

यह मेरा पहला सहवास था जो कि बहुत ही दर्द भरा मगर आन्नदायक भी था।

सुबह करीब ग्यारह बजे मेरी नींद खुली। वैसे भी छुट्टियाँ चल रही थी इसलिये मैं रोजाना ही देर तक सोती रहती थी, यह सोचकर किसी ने मुझे जगाया भी नहीं।

जब मैं उठी तो मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था और मेरे होंठ भी कुछ भारी भारी से लग रहे थे। जब बाथरुम जाने लगी तो मेरे पैर लड़खड़ाने लगे मेरी योनि तो इतना दर्द कर रही थी कि मैं ठीक से चल भी नहीं सकती थी।

बाहर भैया भाभी खड़े हुए थे, भैया ने पूछा- बड़ी देर तक सोती हो?

मैंने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाकर कहा- वो भैया मेरी छुट्टियाँ चल रही है ना इसलिये!

और जल्दी से बाथरुम में घुस गई।
जब मैं शौच करने लगी तो मेरे योनि द्वार में इतनी जलन हुई कि मेरी आँखों से आँसू निकल आये क्योंकि रात को महेश जी के लिंग से मेरी योनि जख्मी हो गई थी और जब उसमें मेरा नमकीन पेशाब लग रहा था तो वो जलन करने लगा।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मूत्र द्वार से पेशाब नहीं बल्कि तेजाब निकल रहा है जो मेरी योनि को जला रहा है।

मैंने ठण्डे पानी से अपनी योनि को साफ किया तो कुछ राहत मिली। मैं बिना नहाये ही बाथरुम से बाहर आ गइ। भैया भाभी अब भी बाहर खड़े बाते कर रहे थे।

इस बार भाभी ने पूछा- क्या बात है? आज नहाई क्यों नहीं?

मैंने बताया- आज थोड़ी तबियत सी खराब है!

भाभी ने मुझे हाथ लगाकर देखा और कहा- अरे! तुम्हें तो तेज बुखार है! चलो, कुछ खा लो फिर डॉक्टर के पास चलते हैं।

मैंने मना कर दिया और घर पर ही बुखार की दवा खाकर भैया भाभी के कमरे में ही सो गई। मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि मैंने यह क्या कर दिया। रात को मैं क्यों…!?!

इसके आगे की कहानी भी जल्दी लिखूँगी।

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