पहला पहला प्यार और मिलन की बेचैनी -1

हमारी कक्षा में बहुत सारी लड़कियां थीं.. एक से बढ़कर एक खूबसूरत.. जैसा कि मैंने बताया मेरा कोई दोस्त नहीं था.. सो अब तक तो मैं भी एक अच्छे दोस्त की तलाश में था। मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन ईश्वर मेरी तलाश इस तरह से पूरी करेगा।

मैं कक्षा में बैठा पढ़ रहा था कि अचानक मुझे लगा कि कोई पीछे ही बात कर रहा है। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि हमारी कक्षा की एक लड़की जिसका नाम सोनिका था.. अपनी एक सहेली से कुछ बात कर रही थी।
मुझे अपनी तरफ देखता हुआ पाकर वो सकपका उठी और चुप हो गई, मैं समझ गया कि दाल में कुछ काला है।

अब मैं दोबारा अपनी पढ़ाई की कोशिश करने लगा.. पर मेरा ध्यान उन्हीं की तरफ था।
सोनिका एक बहुत ही बला की खूबसूरत लड़की थी, उसका बदन तो जैसे अप्सराओं जैसा था मानो बनाने वाले ने उसे बड़ी ही फुर्सत में बनाया हो।
बड़ी-बड़ी आँखें.. टमाटर से भी लाल होंठ.. सुराही जैसी गर्दन.. बड़े-बड़े नागिन से लहराते बाल.. लचीली कमर.. हिरनी जैसी चाल.. बस ये मानो एक तरह की क़यामत थी।
डर लगता था कहीं हाथ लगाने से मैली न न हो जाए। मुझे अपनी किस्मत पर नाज हो रहा था।

वो लड़की मेरे ही बारे में दूसरी लड़की से बात कर रही थी, वो भी लड़कियों वाले हॉस्टल में रहती थी, शायद उसका हाल भी मेरी तरह था.. पर कहने में डर रही थी। मैंने सोचा कोशिश करने में क्या जाता है।

दो दिन बाद ‘फ्रेण्डशिप डे’ था.. मैंने एक दोस्त से कुछ ‘फ्रेण्डशिप बैंड मंगाए और एक अच्छा सा लैटर लिखा कि अगर ये मेरा बैंड स्वीकार कर लेगी.. तो ये भी उसे दे दूँगा और हुआ भी ऐसा ही।

मन में डर तो था.. पर हिम्मत करके मैंने उसे अकेला पाते ही प्रपोज कर दिया।
उसने मना कर दिया।
मैं उदास होकर कक्षा में आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद मेरी ही कक्षा की एक लड़की पूजा ने आकर मुझसे कहा- सोनिका तुझे नीचे कॉमन रूम में बुला रही है।

मैं नीचे गया तो देखा कि सोनिका वहाँ एक कोने में खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मैं उसके पास चला गया।

वो बिलकुल डरी हुई और सहमी सी खड़ी थी..
मैंने पूछा- क्या बात है.. मुझे क्यों बुलाया है?

मुझे पता तो था ही कि वो भी वही चाहती है जो मैं चाहता था.. बस कहने में डर रही है।

उसने कहा- सॉरी.. मैंने तुम्हारा दिल दुखाया.. वैसे मैं भी तुमसे दोस्ती करना चाहती थी.. पर डरती थी कि कहीं तुम और लड़कों की तरह मुझे धोखा न दे दो।
मैंने उससे कहा- डरने की कोई बात नहीं क्योंकि मैं भी तुम्हें चाहता हूँ और बहुत पसंद करता हूँ।

वो यह सुनकर बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई।
हाँ किसी भी वक़्त कोई भी आ सकता था.. इसलिए मैंने उसे वो फ्रेंडशिप बैंड और वो लैटर दिया और हम दोनों अपनी कक्षा में चले गए।
मैं भी आज बहुत खुश था क्योंकि मेरा अरमान और इंतज़ार दोनों पूरे होने जा रहे थे।

दिन-प्रतिदिन हमारे बीच की नजदीकियाँ बढ़ती चली गईं.. हम दोनों कई-कई लेक्चर मिस करते और स्कूल की छत पर घन्टों एक-दूसरे की बाँहों में खोये रहते।

आजकल तो लोग पहली मुलाकात में ही वासना में अंधे होकर सेक्स करने की सोचते हैं.. पर वो नहीं जानते जो मजा पहले प्यार में है.. वो किसी और चीज में नहीं।

हम दिन में भी कैन्टीन में जाकर एक-दूसरे के लिए चॉकलेट और दूसरी चीजें लाते और शेयर करते, सबको धीरे-धीरे हमारे बारे में पता चल रहा था।

हमारे प्यार का असर हमारी पढ़ाई पर भी पड़ रहा था.. पर जिस पर प्यार का भूत सवार हो.. उसे बाकी की चीजें कहाँ दिखाई देती हैं।

सर्दियों की छुटियाँ होने वाली थीं.. पर उससे पहले मेरा जन्मदिन था।
उस दिन के लिए मुझ से ज्यादा वो उत्साहित थी.. क्योंकि अरमान उसके दिल में भी थे.. जो कि उस दिन पूरे होने वाले थे।
हम दोनों बहुत खुश थे।

आखिर वो दिन भी आया.. उसने रात को ही मुझे अपने हॉस्टल के एक कोने में बुलाया।
मैं गया तो वो वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रही थी।

मेरे वहाँ जाते ही उसने मुझे जन्मदिन विश किया और मेरे सीने से लग गई।
आज हम दोनों के ही जज्बात काबू में नहीं थे। मैंने उसे कुछ देर अपने सीने से लगाए रखा.. जैसे हम दो शरीर न होकर एक ही हों।

कुछ तो सर्दियों का मौसम था तो रात को ठण्ड तो थी ही। पर जब दो जवां मदहोशी से भरे हुए दिल आपस में मिलते हैं.. तो कहाँ सर्दी का पता चलता है।

उसकी साँसें धौंकनी की तरह चल रही थी और मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था.. मन कर रहा था कि एक-दूसरे में समां जाएँ।
जब दो प्यार भरे दिल पहली बार मिलते हैं.. तो ऐसा ही होता है।
मैंने पूछा- मेरा जन्मदिन का गिफ्ट कहाँ है??

उसने शरमाते हुए मेरे दोनों हाथ अपने जवां कबूतरों पर रख दिए। आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. उस वक़्त तो ये भी होश नहीं रहा कि हम कहाँ खड़े हैं।

मैंने वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपने बाहुपाश में उसको जकड़ लिया और उसके मदिरा से लबालब भरे हुए दो प्यालों पर अपने प्यासे होंठ रख दिए और ऐसे उन्हें चूसने लगा जैसे कि जन्मों के प्यासे रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हो रही हो।
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जिंदगी जीने में इतना मजा पहले कभी नहीं आया.. जितना उन दो हसीं प्यार के लम्हों में आ रहा था।

वो मेरी बाँहों में बिन पानी मछली की तरह मचलने लगी। हमारे होंठ एक-दूसरे का रसपान करने में लगे थे और मेरे हाथ उसके खरबूजों जैसे कूल्हों पर अपनी पकड़ बनाये हुए थे। मैं उन्हें बड़े ही जोश से भींच-भींच कर सहला रहा था। उसके चूतड़ों को पकड़ कर मैंने ऊपर उठाया और उसकी टाँगों को अपनी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया।

उसके नाखून मेरी कमर में चल रहे थे। जमा देने वाली ठण्ड में भी हम पसीने से तर-बतर हो रहे थे।
मैं उसकी गर्दन पर चूम रहा था और वो तो एक बेल की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। उसके मुँह से आह्ह.. ऊह्ह्ह्ह्ह… जैसी सीत्कार निकल रही थी।

दो घंटे कैसे बीत गए.. पता ही नहीं चला। चार बज गए थे और सबके जागने का वक़्त हो गया था.. इसलिए हमने वक़्त की नजाकत को समझते हुए रात को मिलने का प्रोग्राम बनाया और एक और दिल की गहराइयों को महसूस करते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूम लिया.. और अपने-अपने कमरे में लौट गए.. क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि किसी को हमारी मुलाकात का पता चले और कोई मुसीबत खड़ी हो।
वैसे भी जान है.. तो जहान है।

हम वापस आ तो गए.. पर ये जो आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. ये ऐसे ही तो बुझने वाली नहीं थी।
जैसे-तैसे हमने दिन में अपने अरमानों को काबू में रखते हुए दिन बिताया, सारा दिन हमने एक साथ बिताया, खूब एन्जॉय किया.. पर असली मज़ा तो रात को आने वाला था।
जैसे-जैसे शाम हुई.. हमारे मन में बांछें खिल रही थीं। मैंने अपने रूममेट को दूसरे कमरे में एडजस्ट किया और अपने कमरे में ‘कैंडल-लाईट’ डिनर का इंतज़ाम किया।
हमने दिन में एक केक मंगवाया था.. ताकि रात में भरपूर मजा उठा सकें। हम इस रात को इतनी यादगार बनाना चाहते थे जितनी कि हमारी सुहागरात… और इसी हिसाब से इंतज़ाम भी किए थे।

सारा कमरा अपने महबूब के इंतज़ार में झूम रहा था। भीनी-भीनी इत्र की खुश्बू आ रही थी। मोमबत्तियों का मद्धिम प्रकाश था और एक शानदार गिफ्ट मैंने भी ख़रीदा था.. अपनी महबूबा के लिए..

जैसे-जैसे घड़ी की सुईयों ने ग्यारह बजने का इशारा किया.. वैसे ही मेरे इंतज़ार की घड़ियाँ भी खत्म होने को थीं। मैं अपनी हसीना को लाने के लिए मैस के पिछले दरवाजे से उसके हॉस्टल के नीचे गया.. ताकि उसको आने में कोई तकलीफ न हो। किस्मत भी हमारे साथ थी.. क्योंकि आज बड़ी गहरी धुँध पड़ रही थी.. इसलिए किसी ने हमें आते-जाते नहीं देखा।

सोनिका जैसे ही मेरे कमरे में आई.. मैंने कुण्डी लगाई और हम एक-दूसरे से लिपट गए। ऐसा लग रहा था बरसों का इंतज़ार खत्म हो गया हो।

मित्रों मेरा मन तो नहीं था कि इस प्रेम की रस धार में आपको बीच मंझधार में छोड़ कर चला जाऊँ.. पर मुझे खुद अपनी जान से मिलने की जल्दी है.. बस कल हम सब इस मिलन की अलबेली बेला की पूरी दास्तान के साथ मिलते हैं।
अपने ईमेल मुझे जरूर भेजिएगा।
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