तेरा साथ है कितना प्यारा-9

उसने तुरन्त मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बोला- अभी तो पूरी रात बाकी है जानेमन।

वो मुझे गोदी में उठाकर बाथरूम में ले गया और शावर के नीचे खड़ा करके शावर चला दिया।

मेरी योनि का दर्द अब बहुत कम हो गया था, उसकी बातों से तो दर्द महसूस ही नहीं हो रहा था। ठण्डा ठण्डा पानी बदन पर गिरना मुझे अच्छा लग रहा था। सबसे पहले उसने हम दोनों का सारा खून सना हिस्सा साफ किया, साबुन लगाकर अच्छी तरह धोया।

अब वो आराम से मुझे नहलाने लगा। मुझे उसका इस तरह अपने बदन पर हाथ फिराना बहुत अच्छा लगने लगा। ऊपर से ठण्डा-ठण्डा पानी माहौल में गर्मी पैदा करने लगा।

मुझे पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ भी मुकुल के बदन पर चलने लगे। उसकी चौड़ी छाती पर मैंने अपने गीले होंठों से एक चुम्ब‍न जड़ दिया।

मुकुल ने मुझे जकड़ लिया, मेरे दोनों रसीले खरबूजे मुकुल की छाती में दबने लगे, मेरे हाथ अब मुकुल की पीठ पर चल रहे थे।

मैंने अपने हाथ नीचे सरकाकर उसके गीले नितम्बों पर फेरने शुरू कर दिये।

अचानक मुझे बदमाशी सूझी और मैंने अपने बांये हाथ की तर्जनी ऊँगली मुकुल की गुदा में घुसाने की कोशिश की।

मुकुल कूदकर पीछे हटते हुए बोला- बदमाशी कर रही हो…?

हम दोनों एक साथ हंसने लगे। मुकुल ने मेरे गीले बदन को पुन: चाटना शुरू कर दिया। मेरी दोनों गोलाईयों को प्यार से सहलाते सहलाते वो मेरे चुचुक उमेठ देता… सीईईईई… मेरे मुंह से अचानक सिसकारी निकल जाती।

मुकुल का तो पता नहीं पर पानी में ये अठखेलियाँ मुझे बहुत अच्छी लग रही थी।

तभी मैंने महसूस किया कि मेरी जांघ पर कुछ टकरा रहा है। मैंने नीचे देखा मुकुल का काला नाग फिर से जाग गया था और युद्ध के लिये तैयार था।

उसको देखकर ही मेरी योनि के अन्दर तरावट होने लगी, मैं वहीं फर्श पर घुटनों के बल बैठ गई और मुकुल के उस बहादुर नाग को अपने होंठों में दबोच लिया।

‘उम्‍म्‍म्‍म… वाह…’ कितना स्वादिष्ट लग रहा था।

मेरे होंठ उसके लिंग पर आगे पीछे सरकने लगे।

सीईईईई… इस बार सिसकारी मुकुल की थी, उसने अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और अपने नितम्बों को हौले हौले हिलाने लगा।

कुछ देर बाद मुकुल ने मुझे खड़ा होने का इशारा किया, मैं खड़ी हुई तो मुकुल ने मुझे कमोड की तरफ मुंह करके आगे की ओर झुका दिया।

मैं दोनों हाथ से कमोड को पकड़ कर नीचे की ओर झुक गई, अब मेरे नितम्ब मुकुल की तरफ थे ओर आगे की ओर नीचे झुकने के कारण मेरी योनि पीछे की ओर बाहर दिखने लगी।

मुकुल वहीं से मेरी उस रामप्यारी पर जीभ रखकर चाटने लगा। 2-4 बार चाटने के बाद मुकुल ने अपना लिंग पीछे से मेरी योनि पर लगाया ओर एक हाथ से मेरी कमर को पकड़कर जोर लगाया, इस बार हल्के से सहारे से ही लिंग का अगला हिस्सा अन्दर सरक गया।

मेरी चम्पा चमेली तो जैसे उसके नाग को अपने अन्दर लेने को तैयार बैठी थी, बहुत टाईट जरूर लग रहा था पर ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद-ब-खुद ही अन्दर घुसा चला आ रहा हो।

अब मुकुल ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर जोर का धक्का मारा और उसका पूरा का पूरा शेर मेरी माँद में घुस गया।

मेरे दोनों स्तन आगे पीछे झूलने लगे।

‘वाह ऽ..ऽ..ऽ..ऽ…’ उनका यूं झूलना भी तो गजब ढा रहा था पर शायद मुकुल को उनका यों झूलना पसन्द नहीं आया।

अब उसने मेरे ऊपर झुककर मेरे दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में कैद कर लिया और पीछे से अपने नितम्ब आगे पीछे हिलाने लगा।

हाययय… क्या अहसास था… मैं भी अपने नितम्ब… आगे पीछे करके मुकुल का साथ देने लगी।

इस बार भी मैं ही पहले धराशायी हुई, मुकुल तो जैसे हर बार जीतने की ठान चुका था पर फिर भी उसको मेरे सामने झुकना ही था, मेरे पीछे-पीछे ही उसका शेर भी बेचारा निढाल हो कर बाहर आ गया।

मैंने उठकर पीछे मुड़ कर देखा हाययय…रे.ऽ..ऽ..ऽ… कितना क्यूट लग रहा था ना सच्ची…

अब मैंने तुरन्त पानी लेकर अपने और मुकुल के शरीर को साफ किया।

थकान इतनी हो रही थी कि खड़ा होना भी मुश्किल था, आखिर पहली बार मैंने ये खेल खेला था, तौलिये से बदन साफ कर मैं बाहर आई तो ध्यान आया कि सारी चादर खून से सनी हुई थी।

मैंने मुकुल को आवाज लगाकर कहा तो उसने बाहर आकर वेटर को बुलाया। उसको 100 का नोट पकड़ाया वेटर तुरन्त बिस्तर बदल कर दूसरा दे गया।

अब तो नींद बहुत जबरदस्त थी, मैं तुरन्त ही बिस्तर में आ गई, मुकुल भी आ गया।

हम दोनों एक दूसरे को चिपक कर सो गये।

सुबह मेरी आँख पहले खुली, मैंने देखा मेरे मोबाइल में पापा की 9 मिस काल थी, मैंने तुरन्त पापा को फोन किया तो पापा ने बताया कि रात को आशीष का एक्सीडेन्ट हो गया, अब वो हास्पीटल में है।

मेरी आँखों से तो तभी आँसुओं की धारा बहने लगी, मैंने फोन काटते ही मुकुल को जगाया तेजी से तैयार होकर जयपुर के लिये निकल गये।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्याँ करूंॽ मुझे लगा कि रात को मैंने जो किया भगवान ने मुझे ये उसी की सजा दी, मेरे पति का एक्सीडेन्ट हो गया।
शायद मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।

मुझे खुद पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस हो रही थी दिल कर रहा था कि चुल्लू भर पानी में डूब मरूं। क्या इतना भी कंट्रोल नहीं है मेरा खुद परॽ

दिल्ली से जयपुर तक मुकुल लगातार ड्राइव करता रहा और मैं लगातार सिर्फ आँसू ही बहाती रही।

सीधे उस नर्सिंग होम में पहुँची जहाँ आशीष भर्ती थे, उनको सामने देखा तो जान में जान आई।

आशीष भी जैसे मेरी ही राह देख रहे थे, दरवाजे पर ही मुझे देखकर उन्होने मुझे पुकारा। उनके मुख से अपना नाम इतना दिनों बाद सुनकर पुन: मेरी अश्रुधारा बह निकली पर आशीष ठीक थे उनके सिर और एक पैर में कुछ चोट आई थी।
डाक्टर ने बताया कि कुछ घंटों के बाद उनको छुट्टी मिल जायेगी।

मैंने वहीं रूकने का फैंसला किया और मुकुल को वापस भेज दिया।
शाम को मैं आशीष को लेकर घर आ गई। मेरी सास का दिमाग भी उस समय बिल्कुल शांत था इसीलिये कोई बात नहीं हुई पर मैं लगातार आत्मग्लानि को आत्मसात कर रही थी, आशीष से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी।

जैसे तैसे रात हुई। सब अपने अपने कमरे में गये मैं भी आशीष के साथ अपने कमरे में आ गई।

अन्द‍र जाते ही आशीष ने मुझे गले से लगा लिया, वो सच में मुझसे बहुत प्यार करते थे, मैं बहुत परेशान थी, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
दिल हो रहा था कि आत्महत्या कर लूँ पर मेरे अन्दर शायद इतनी भी हिम्मत नहीं थी।

आशीष थे कि मुझे एक पल भी अलग नहीं होने दे रहे थे, उनका प्यार देख-देख कर तो मैं वैसे ही शर्मिन्दा हो रही थी।

अचानक आशीष ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा- नयना.. तुम्हारा ध्यान किधर है… कुछ परेशान लग रही हो? सब ठीक है ना?

कितनी अच्छी तरह जानते थे आशीष मुझे ! उनका सवाल सुनते ही पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई और फ़ूट पड़ी…

इतनी जोर जोर से मुझे रोता देखकर आशीष बहुत परेशान हो गये। मेरे सिर पर बार बार प्या‍र से हाथ फेरते और बात पूछते।

मेरी आँखें बन्द थी, मैं एक सांस में कल घर से चलने से लेकर दिल्‍ली जाने और वहाँ से जयपुर आने तक पूरी बात आशीष को बताती चली गई।

मेरी बात पूरी होते ही आशीष की पकड़ मुझ पर ढीली हो गई, मैं अपराधबोध से ग्रस्त वहीं पड़ी रही, इतनी हिम्मत नहीं थी कि आशीष ने नजरें मिला सकूँ।

आशीष भी बिल्कुल भावहीन से ऊपर कमरे की छत की तरफ देखते रहे।

कुछ मिनट बात आशीष बोले- नैना.. तुम एक साधारण इंसान नहीं, उससे बढ़कर हो।
मैंने नजरें आशीष की तरफ घुमाई।

आशीष फिर बोले- यदि तुम पुरूष होती तो शायद इतने दिन खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती ! यह जो तुमने कल रात किया, कई साल पहले ही कर जाती। तुम एक नारी हो, मर्यादा में बंधी हो शायद इसीलिये खुद पर कंट्रोल कर पाई, अब तुम भी आखिर हो तो इंसान ही ना, और फिर जो भी हुआ वो तुमने आकर मुझे बता दिया। अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद यह कभी नहीं कर पाता। और हाँ, तुमने जो भी किया उसमें कुछ भी गलत नहीं किया, यह तो हर इंसान के शरीर की जरूरत है। क्योंकि शादी, प्यार और सैक्स, ये सब अलग अलग बातें हैं, ऐसा नहीं है कि तुमने किसी और के साथ सैक्स किया तो तुम्हारा मेरे प्रति प्यार या जिम्‍मेदारी कम हो गई; या मेरा प्यार तुम्हारे प्रति कम हो गया। मैं तो पुरूष हूं, तुमको प्यार भी करता हूं पर जब माँ ने तुमको घर से निकाला तो मैं कुछ भी नहीं कर पाया, और एक तुम हो जो मेरा एक्सीडेन्ट सुनकर सबकुछ भुलाकर भागी चली आई। यह तुम्हारा एहसान मुझ पर आजीवन रहेगा, और हाँ तुम मुकुल साथ कुछ भी करने को मेरी तरफ से आजाद हो। बस इतना ध्या‍न रखना कि वो यहाँ ना आये, तुम उसके लिये महीने में एक-दो बार आगरा जा सकती हो, मुझे कोई एतराज नहीं है। और मुकुल से तुमको जो बच्चा मिलेगा, मैं उसको अपना नाम देना चाहता हूँ ताकि माँ ने तुम्हारे माथे पर जो बांझ का कलंक लगाया, वो मिट सके।

मैं आशीष की बात सुनती रही, मुझे तो जब होश आया जब वो चुप हो गये।

मैंने भावविभोर होकर उनके पैर छू लिये, मैं भी यह समझ चुकी थी कि मुकुल मेरे शरीर की जरूरत थी पर आशीष का साथ जीवन में सबसे प्यारा था।

मुझे पता ही नहीं चला मैं कब नींद की आगोश में चली गई।

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