जिस्म की मांग-1

गाँव में माहौल शहर से भी गंदा होता है, जब मेरी छाती बढ़ने लगी तो उसका रस चूसने के लिए न जाने कितने लड़के आहें भरने लगे, समझ नहीं आती थी किस गबरू को अपना दिल दूँ।

मैं नहाने लगती जब साबुन अपने मम्मों पर लगाती वो कस जाते, अपने हाथ से दबा देती।

एक दिन कड़क गरमी के दिन थे, लू ही लू चल रही थी, हमारा घर गाँव के बीच में ना होकर अपनी ज़मीन पर था वहाँ ज्यादा घर नहीं थे, काफी काफी फ़ासले पर थे। मैं घर में अकेली थी बस साथ दादी माँ थी। सुबह से बिजली का कट लगा हुआ था, हम दोनों का बुरा हाल था हाल था, मैं कमरे में गई, अपनी ब्रा उतार दी, सिर्फ सूती सूट पहन लिया बारीक सा, मेरे चुचूक तन गए थे।

तभी वहाँ पटवारी और उसका बेटा आ गया, उसे ज़मीन से सम्बन्धित काम था। उस लड़के की नजर मुझ पर गई, मैं खूबसूरत थी और जवान, उसकी नज़रें म्री छाती पर रुक गई,

पर वो दोनों ज़मीन की तरफ निकल गए तभी बिजली आ गई, ट्यूबवैल चलने लगा, उसके आगे सीमेंट का टब सा बनाया था नहाने के लिए और उसके आगे छोटा टब भैंसों को पानी पिलाने के लिए !

पंखा चला, दादी बेचारी सुबह से गर्मी से तड़फ रही थी, उनकी आँख लग गई।

गर्मी की वजह से मुझसे रुका नहीं गया क्योंकि टन्की प्लास्टिक की थी जिसमे पानी गीज़र से भी ज्यादा गर्म आता था।

मैंने सोचा कि अब तक पटवारी चला गया होगा, काम करने वाला लड़का किसी काम से गया था, मैं पानी में कूद गई, मेरा सूट मेरे जिस्म से चिपक गया, मेरी जवानी तो पानी में आग लगाने वाली थी। मैं काफी देर तक उसमें डुबकियाँ लगाती रही और मैं अपने चिपके सूट में से शल-शल करता अपना जिस्म, अपने जिस्म की बनावट को निहारने लगी,।

जब मैंने सर उठाया तो देखा पटवारी का लड़का पानी पीने के लिए पाईप के पास था, वो देख मुस्कुराने लगा।

मैं हाथों से जवानी छुपाने लगी, बोला- क्या बात है लीला तेरी?

मैं जल्दी से टब में बैठ गई।

वो बोला- जो देखना था, दिख गया रानी ! अब क्या छुपा रही हो?

वहाँ किसी के आने के कोई आसार नहीं थे, वो खड़ा रहा- कब तक छुपाओगी रानी जवानी? तुम कितनी सुंदर हो ! मेरा दिल तुझ पर आ गया है और मन बेईमान होने लगा है, तेरे पीछे मैंने कड़ी गर्मी में राहों की ख़ाक सर पर डलवाई, कई बार कागज़ पर अपना नंबर लिख कर फेंका, तू उठा भी लेती है मगर फ़ोन नहीं करती।

“जाओ यहाँ से ! कोई देख लेगा।”

“कौन देखने वाला है यहाँ? बता? दूर दूर तक कोई नहीं है।”

उसने अपनी शर्ट खोल दी घने बालों से भरी उसकी चौड़ी छाती देखी, बोली- यह क्या करने लगे हो?

उसने अपनी पैंट भी उतारी, मोटरों वाले कमरे पर लगी किल्ली पर टांग दी, सिर्फ अंडरवीयर में था, उसने भी छलांग लगा दी।

“बिट्टू, प्लीज़ जाओ या मुझे जाने दो !”

“चली जाना रानी ! बड़ी मुश्किल से मौका दिया है भगवान ने !”

उसने मुझे बाँहों में समेट लिया, मेरे होंठ चूमने लगा, एक हाथ से मेरे मम्मे दबाने लगा।

मैं हल्का हल्का विरोध करती रही लेकिन वो मेरे जिस्म से खिलता रहा।

पानी में आग ज्यादा मचती है, मेरा जिस्म भी कुछ मांगने लगा था, मेरी देह भी जागने लगी थी, पहला मरदाना स्पर्श, मुझे सब कुछ भुलवा कर वासना हावी होने लगी। उसने मुझे अपना लौड़ा पानी के अंदर ही पकड़ा दिया- सहलाओ ना इसको !

मैं उसको आगे-पीछे करने लगी, उसने मेरा कमीज उठाया, मेरे चूचे चूसने लगा। अब मैंने समर्पण कर दिया, बदन ढीला छोड़ दिया।

उसने सलवार का नाड़ा खोल दिया और हाथ डाल पैंटी के ऊपर से मेरी कुंवारी फुद्दी पर हाथ फेरने लगा। मेरे अंदर अंगारे बालने लगे, मैं कस कर उसके फौलादी जिस्म से चिपक गई।

वो बोला- वाह रब्बा वाह ! आज मुझ पर इतना मेहरबान हो गया ! आया तो था बाप के साथ, मिल गई मुझे वो, जिसके पीछे कब से घूमता हूँ, वो भी इस हालत में !

“हालत का फायदा मत उठाओ प्लीज़ बिटटू !”

वो टब से निकला और टांगी हुई पैंट से मोबाइल निकाला और तस्वीर खींच ली मेरी अधनंगी की !

“यह क्या किया?”

“इसे देख कर मुठ मारा करूँगा !”

उसने अपना लौड़ा मेरे होंठों पर रगड़ा- रानी, मुँह तो खोल !

“यह क्या?”

“पहले एक बार खोल तो सही !”

जब मैंने मुँह खोला तो उसने मुँह में डाल कर कहा- चूस इसको !

अब वो ऊपर मुँडेर पर बैठा था, मैं टब में घुटनों के बल उसका लौड़ा चूसने लगी।

फिर उसने अपनी जगह मुझे बिठाया खुद मेरी जगह मेरी तरह बैठ कर मेरी कुंवारी फुद्दी का रसपान करने लगा।

मैं गर्म हो गई, पहला अनुभव था, कुछ जानती ना थी, छोटी उम्र थी, मैं नासमझ थी मगर वो मुझसे काफी बड़ा था, उसको मालूम था लड़की की कौन सी रग पकड़ी जाए तो वो बेकाबू हो मर्द के काबू आ जाती है।

मेरा पॉइंट था मेरी फुद्दी का दाना !

उसने मुझे उठाया और मोटर वाले कमरे में बिछे बोरों पर लिटाया।

“क्या करने लगे हो बिटटू?”

“खामोश मेरी जान ! तुझे स्वर्ग की सैर का इंतजाम करने लगा हूँ !”

इतना मुझे मालूम था कि दर्द बहुत होता है, उसने पूरे तजुर्बे का इस्तेमाल किया, मेरी टांगें उठा दी, चुचूक को मुँह में ले लिया एक हाथ से सुपारे को दाने पर रगड़ने लगा, चूची चूसते चूसते उसने लौड़ा प्रवेश करवा दिया।

मेरी मानो दर्द से जान निकल गई हो !

वहीं रुक उसने पूरी मस्ती से मेरे चूचे चूसे और ऊँगली से दाने को रगड़ते हुए आधा लौड़ा घुसा दिया।कुछ देर उतनी ही जगह को चोदने लगा। फिर रुका, मेरे होंठ चूसते हुए उसने लौड़ा और आगे किया, फिर और, फिर और, करते जड़ तक उसका लौड़ा घुस गया। मेरे होंठ उसके होंठों में थे अचानक से उसने लौड़ा निकाला और दुबारा धीरे धीरे धकेला। ऐसी क्रिया उसने चार पांच बार की, जब आराम से घुसने लगा तो मेरे होंठ आज़ाद किये और मेरे जिस्म को ढीला कर दिया और धक्के पर धक्के लगने लगे।

“हाय राजा, बहुत मजा आने लगा है !”

“हाय मेरी रानी ! कहा था न कि आज स्वर्ग की सैर करवाऊँगा !”

मेरे कूल्हे खुद ही उठने लगे।

“हाय मेरी बिल्लो ! कैसी हो अब?”

“हाय और करो ! हाय और ! और करो !”

मुझे महसूस हुआ कि मेरे अंदर से कुछ तरल सा निकला जिससे उसका लौड़ा और आराम से घुसने लगा। तब मुझे नहीं मालूम था उसको झड़ना कहते हैं, माल कहतें हैं।

थोड़ी देर में वो भी फ़ारिग होने को आया, उसने चूत से निकाल मुँह में घुसा दिया, सार माल वहीं छोड़ा, जब तक मैं निगल नहीं गई, निकाला नहीं, एक एक बूँद मुझे पीनी पड़ी।

मुझे स्वाद लगा तो मैंने आसपास लगा हुआ भी जुबान से चाट लिया।

“यह हुई ना बात !”

हम दोनों खड़े हुए, खून का धब्बा बोरे पर देखा- यह क्या हुआ?

“तेरी जवानी की झिल्ली फटी है रानी !”

“बिटटू मुझे धोखा मत देना, देख इसमें कोई शक नहीं रहा कि तुमने ही मेरी सील तोड़ी, यकीन करो पहला मौका तेरे संग है !”

“फिकर मत कर !”

मैं नादान उसकी बातों में आई, एक साथ नहाने के बाद मैंने गीले कपड़े ही पहने और भाग गई। वो भी निकल गया।

कहानी जारी रहेगी।

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