ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई-5

बहूरानी की चूत से वही चिरपरिचित गंध आ रही थी जैसे दालचीनी, गरम मसाला और कपूर सब इकट्ठे एक कंटेनर में रखने से आती है. अब मेरी जीभ उसकी चूत को लपलप करके चाटने लगी और जितनी गहराई तक भीतर जा सकती थी जाकर चूत में तहलका मचाने लगी. उसकी चूत का नमकीन रस मेरे मुंह में घुलने लगा.

मुझे पता था कि बहूरानी जी को मम्में दबवाते हुये अपनी चूत चटवाना बेहद पसन्द है तो मैंने उसके दोनों स्तन मुट्ठियों में भर लिए और उन्हें मसलते हुए उसकी जांघें चाटने लगा. कुछ देर उसकी केले के तने जैसी चिकनी जांघें चाटने काटने के बाद मैंने उसकी चूत के चबूतरे पर अपनी जीभ से हमला बोल दिया और हौले हौले दांतों से कुतर कुतर के चूत के ऊपर चाटने लगा.

जल्दी ही बहूरानी अच्छे से मस्ता गयीं और अपनी चूत उठा उठा के मेरे मुंह में देने लगीं.

“आह… पापा जी… यू लिक सो नाईस. एम फुल्ली वेट नाउ… लिक मी डाउन एंड डीप!” बहूरानी अत्यंत कामुक स्वर में बोली और मेरे बाल पकड़ कर मेरा चेहरा अपनी चूत पर जोर से दबा लिया और मेरे सिर के ऊपर से एक पैर लपेट कर मेरे मुंह को अपनी चूत पर लॉक कर दिया.

“या बेबी… योर साल्टी पुसी टेस्ट्स सो लवली!” मैंने कहा और बहूरानी की समूची बुर को अपने मुंह में भर लिया और इसे झिंझोड़ने लगा

“हाय राम, कितना मज़ा दे रहे हो आज तो आप पापा जी!” बहूरानी बोलीं और उसने अपने पैरों को मेरे सिर के ऊपर से हटा लिया और उन्हें दायें बायें फैला दिया जिससे उसकी चूत मेरे सामने ज़ूम हो कर और विशाल रूप में आ गई और जैसे ही मैंने उसे फिर से चाटना शुरू किया बहूरानी जी की कमर अनियंत्रित होकर उछलने लगी जैसे कोई खिलौने वाली गुड़िया हो.

“फक मी हार्ड नाउ पापा!”
“या अदिति बेटा, ऍम गोइंग टू ड्रिल योर चूत नाउ!” मैंने बोला और फर्श पर से उठ कर बहूरानी पर झुक गया और अपने लंड से उसकी रिसती हुई चूत को रगड़ने लगा.
“ओफ्फो… पापा जी; अब घुसा भी दो ना!” बहूरानी जी सिसिया कर बोलीं और अपनी कमर उठा उठा कर चूत को मेरे लंड से लड़ाने लगी.

लेकिन मैं उसे अभी और गर्म करना चाहता था इसलिए मैंने अपनी कमर पीछे की तरफ कर ली और उसके मम्में दबोच के चूसने लगा. मेरे ऐसे करते ही बहूरानी अपनी चूत और ताकत से ऊपर तक उठा उठा के मेरे लंड से भिड़ाने की कोशिश करने लगी. लेकिन मैं उसे ऐसा करने दूं तब ना; और मैं और ऊपर को हो गया. मेरे यूं उससे दूर हटते ही बहूरानी जी को जैसे हिस्टीरिया कर दौरा पड़ा हो, उसका सिर बर्थ पर दायें बायें होने लगा… उसके मम्में सख्त हो गये और निप्पल फूल कर भूरे अंगूर की तरह नज़र आने लगे.

“मुझे आपका लंड अपनी चूत में चाहिये पापा …जल्दी से पेल दो मेरी चूत में!” बहूरानी जी अब भयंकर चुदासी होकर निर्लज्ज होने लगी थी और यही मैं चाहता था.
संग सहवास करने वाली स्त्री चाहे वो कोई भी हो, चुदाई के टाइम उसकी निर्लज्जता उसका बिंदासपन एक अनमोल गुण होता है जो कुछ ही कामिनियों को प्राप्त है; यूं तो नारी का शर्मीला, लज्जालु, शीलवान स्वाभाव ही उसका नैसर्गिक गहना है लेकिन सम्भोग काल में जब वह लाज शर्म तज कर बिंदास उन्मुक्त कामिनी का रूप धर चुदाई में लीन हो कर अपने साथी को पूरा आनन्द उसकी इच्छानुसार देती है और खुद भी तृप्त होती है तब ही उसका नारीत्व पूर्णता को प्राप्त करता है.

यहां एक बात और कहना चाहूंगा कि शुरुआत में जब हमारे बीच यौन सम्बन्ध स्थापित हुए तो बहूरानी चूत, लंड, चुदाई जैसे अश्लील शब्द बोलना तो क्या सुनना भी पसन्द नहीं करती थी. मैं बोलता तो वो अपने कान हथेलियों से ढक लेती; लेकिन धीरे धीरे मैं उसे अपनी मर्जी के अनुसार ढालता गया और वो ढलती गयी. अब उसे चूत लंड जैसे शब्द मुंह से निकालने में कोई हिचक नहीं होती.

“पापा जी ई ई… मुझे अपने लंड से चोदिये ना प्लीज!” बहूरानी अपनी आँखें मूँद कर अपनी कमर उठा कर बोली.
वक़्त की नजाकत को समझते हुए मैंने अपना लंड बहूरानी की चूत की देहरी पर रख दिया और उसके दोनों दूध कसकर दबोचे और… इससे पहले कि मैं धक्का मारता, बहूरानी ने अपनी कमर पूरे दम से ऊपर उछाली और मेरा लंड लील लिया अपनी चूत में.

ठीक इसी टाइम कोई ट्रेन विपरीत दिशा से आती हुई मेरी राजधानी को क्रॉस करती हुई धड़धड़ाती, हॉर्न देती हुई बगल से निकल गयी. कुछ देर का शोर उठा और फिर पहले की तरह शान्ति छा गयी.

अब तक बहूरानी ने अपने पैर मेरी कमर में बांध दिये थे और मुझे बेतहाशा चूमे जा रही थी. मैंने धक्का लगाने को कमर उठाई तो बहूरानी जी चिपकी हुई मेरे साथ ऊपर को उठ गयी.

“अदिति बेटा, अपने पैर खोल दे और ऊपर कर ले!” मैंने धक्के लगाने का प्रयास करते हुए कहा.
“ऊं हूं… आप लंड बाहर निकाल लोगे!” वो बोली जैसे उसने इसी बात के डर से मुझे अपने से बांध लिया था.

बहूरानी के इस भोलेपन पर मुझे हंसी आ गई- अरे नहीं निकालूंगा बेटा, अब तो तेरी चूत मारनी है न!
मैंने उसे चूमते हुए कहा.
“पहले प्रॉमिस करो?”
“ओके बिटिया रानी… आई प्रॉमिस!”

मेरे कहने से बहूरानी ने अपने पैरों के बंधन से मुझे आजाद कर दिया और अपने घुटने मोड़ कर ऊपर की ओर कर लिए. अब उसकी चूत अपना मुंह बाये हुये मेरे सामने थी और चूत का दाना फूल कर बाहर की ओर निकल आया था. मैं बहूरानी के ऊपर झुक गया और उसकी प्यासी चूत का दाना अपनी छोटी छोटी नुकीली झांटों से घिसने लगा. बहूरानी ने भी मिसमिसाकर अपनी चूत और ऊपर उठा दी और अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिए. मैं भी उसके निप्पल चुटकियों में भर के बड़े आराम से मसलने लगा और साथ में उसका निचला होंठ अपने होंठों से चूसने लगा.

बहूरानी जी मुझसे किसी लता की तरह लिपट गयीं जैसे सशरीर ही मुझमें समा जाना चाहती हो.
“लव यू पापा…” वो नशीली आवाज में बोली.
“बेटा, आई लव यू टू…” मैंने कहा और उसका बायाँ दूध चूसने लगा.

बहूरानी की चूत से जैसे रस का झरना बह रहा था, मैंने लंड को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया. पहले धीरे धीरे फिर रफ़्तार बढ़ा दी. बहूरानी भी मेरे धक्कों का जवाब अपनी चूत से देने लगी. फिर मैं किसी वहशी की तरह उसकी चूत मारने लगा. लंड को पूरा बाहर तक खींच कर फिर पूरी ताकत से उसकी चूत में पेलने लगा.
मेरे हर धक्के का जवाब वो पूरे लय ताल से अपनी कमर उचका उचका के देने लगी.

चुदाई की फच फच की मधुर आवाजें और बहूरानी के मुंह से निकलती संतुष्टिपूर्ण किलकारियाँ और अपनी पूरी रफ़्तार से दिल्ली की ओर दौड़ती राजधानी एक्सप्रेस…
“पापा जी… अच्छे से कुचल डालो इस चूत को आज!”
“हां बेटा, ये लो… और लो… अदिति मेरी जाऽऽऽन!” मैं भी यूं बोलते हुए अपने हाथों और पैरों के बल उस पर झुक गया. अब मेरे शरीर का कोई अंग बहूरानी को छू नहीं रहा था; सिर्फ मेरा लंड उसकी चूत में घुसा था… मैंने इसी पोज में उसे चोदना शुरू कर दिया.

“आःह पापा जी…मस्त हो आप. फाड़ डालो मेरी चूत को… ये मुझे बहुत सताती है बहुत ही परेशान करती रहती है. आज इसकी अच्छे से खबर लो आप!” बहूरानी जी अपनी चूत मेरे लंड पर उछालते हुए बोली.

हम ससुर-बहू ऐसे ही कुछ देर और ट्रेन में चुदाई का कभी न भूलने वाला अलौकिक आनन्द लूटते रहे. फिर हम दोनों एक संग स्खलित होने लगे. मेरे लंड से रस की फुहारें मेरी इकलौती बहूरानी की चूत में समाने लगी और वो भी मुझसे पूरी ताकत सी लिपट गयी.

लाइट का स्विच पास में ही था, मैंने बहूरानी को लिपटाए हुए ही बत्ती बंद कर दी और अंधेरे कूपे में फिर से उसके होंठ चूसने लगा; रास्ते में कोई छोटा स्टेशन आता तो वहां की रोशनी एकाध मिनट के लिए भीतर आती और फिर घुप्प अँधेरा हो जाता.
सच कहूं तो ऐसा सम्भोग सुख मैं पहली बार भोग रहा था.

फिर पता नहीं कब नींद ने हमें घेर लिया.

अगले दिन सुबह देर से आँख खुली. बहूरानी अभी भी मुझसे नंगी ही लिपटी हुई बेसुध सो रही थी पर उसके होंठो पर मधुर मुस्कान खेल रही थी, शायद कोई हसीन सपना देख रहीं हो.
मैं बड़े आहिस्ता से उसके पहलु से निकला और अपनी टी शर्ट और लोअर पहन लिया. सुबह के साढ़े सात बज चुके थे चारों ओर उजाला फ़ैल चुका था ट्रेन अभी भी पूरे रफ़्तार से अपना सफ़र तय कर रही थी.

कुछ ही देर बाद ट्रेन सिकंदराबाद स्टेशन पर आ कर ठहर गयी. मैंने बहूरानी के नंगे जिस्म पर कम्बल ओढ़ा दिया; तभी उसकी नींद खुल गयी और उसे अपनी नग्नता का अहसास होते ही उसने कम्बल को अपने कन्धों के ऊपर तक ओढ़ लिया और मुस्कुरा के मेरी तरफ देखा.

“अदिति बेटा, नींद तो अच्छी आई ना?” मैंने अपना टूथपेस्ट ब्रश पर लगाते हुए पूछा.
“हां पापा जी… अब मैं खुद को बहुत ही हल्का फुल्का फील कर रही हूं. थैंक्स फॉर आल दैट!” वो शर्माते हुए बोली.
“ओके बेटा जी, मैं फ्रेश होकर आता हूँ.” मैंने कहा और अपना टूथब्रश मुंह में चलाते हुए कूपे से निकल गया.

मैं वापिस लौटा तो बहूरानी ने सलवार कुर्ता पहन लिया था और मेरे आते ही वो बाहर निकल गयी. मैं खिड़की से बाहर के नज़ारे देखने लगा. मेरे लिये ये एकदम अनजाना रूट था मैं इस रास्ते पर पहले कभी नहीं आया था लेकिन ये बदला बदला माहौल सुखद लग रहा था.

बहूरानी वापिस आ गयी और अपने बाल संवारने लगी.

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