सम्भोग से आत्मदर्शन-3

मैं पूरा माजरा समझ गया, उनके आँखों की मादकता और उस दिन की उनकी बातें सुन कर कि उन्होंने अंतरवासना पर मेरी कहानी पढ़ी है, जानने के बाद चूत में मूली डालना बहुत मामूली बात तो नहीं थी, पर घोर आश्चर्य जैसा विषय भी नहीं था।
शायद तनु को भी मूली डालने वाली बात से ज्यादा अपने अपराध के कारण रोना आ रहा था, जिसकी वजह से उनके बाबू जी इस दुनिया से चले गये थे।

पर अब मेरे लिए कुछ और बातों का जानना जरूरी था, मैंने तनु भाभी से कहा क्या वो भी जानती हैं कि तुमने उसे देख लिया है।
तनु भाभी ने ना में अपना सर हिलाया और फिर रोते हुए कहा- यही तो मेरी बेचैनी है कि माँ को घूट-घूट के जीना पड़ रहा है, अगर माँ इन चीजों का खुल कर मजा कर पाती तो मुझे अच्छा लगता, पर जैसे ही वो जानेगी कि मैंने उन्हें खुद को अन्य तरीके से शांत करते देख लिया है, शायद वो आत्महत्या ही ना कर ले।

इतना सुन कर मैं भी सोच में पड़ गया, एक पल की परेशानी के बाद मुझे भी अपने मजे नजर आने लगे, पर अभी हालात नाजुक थे।
मैंने तनु को ढांढस बंधाते हुए कहा- तुम अब चिंता ना करो, बस मैं जो करूँ उसमें मेरा साथ देना और मेरा विश्वास करना।
मैंने तनु से कहा- अब तुम माँ और छोटी के पास कुछ दिन कम ही आना जाना। मैं सब कुछ संभाल लूंगा।

दूसरे दिन से उसकी माँ के लिए मेरा नजरिया बदल गया था, पर मैंने स्पष्ट जाहिर नहीं होने दिया। तनु की माँ का नाम सुमित्रा था, और उसकी शादी बचपन के अंतिम पड़ाव अर्थात जवानी की दहलीज पर ही हो गई थी, इसलिए उसकी उम्र और शरीर में बुढ़ापे का असर बहुत कम था या बिल्कुल भी नहीं था कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
तनु और उसकी माँ की उम्र में महज सोलह सालों का फर्क था, मतलब अभी उसकी माँ की उम्र अभी चवालीस की थी पर लगती बिल्कुल चौबीस की थी. माफ कीजियेगा, अगर आपको यह बात पची ना हो तो आप चौंतिस जैसा भी मान सकते हैं। वास्तव में जब कोई शरीर से फिट हो तब उसकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है, और खास कर उम्र का पता तब और नहीं चलता जब उसके अंदर सेक्स कूट-कूट कर भरा हो।

मैं दूसरे दिन से ही उनसे और खुलने की कोशिश करने लगा, छोटी तो पागल थी, इसलिए कभी सोये रहती या किसी कोने में दुबकी कुछ बुदबुदाते रहती तो फिर मैं और तनु की माँ सुमित्रा देवी ही बैठ कर बातें किया करते थे।
मैं उन्हें आँटी कहकर बुलाता था।

एक दो दिन बाद मैंने यूँ ही चाय पीते हुए कहा- एक बात पूछूँ आँटी जी?
उन्हें अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि मैं क्या पूछने वाला हूँ, उन्होंने बिंदास कहा- हाँ पूछो क्या पूछना है।
मैंने थोड़ा झिझकते शर्माते हुए कहा- आपको अंतरवासना पर मेरी कहानियाँ कैसी लगी?
उन्होंने सर नीचे कर लिया और कुछ ना बोली, हल्की मुस्कान संकोच और डर उनके चेहरे में तैर गये थे। मुझे लगा कि कहीं मामला बिगड़ ना जाये इसलिए मै वहाँ से जाने लगा. तभी मेरे कानों पर कुछ शब्द पड़े- क्या वो कहानियाँ सच्ची हैं?

मैं जहाँ था वहीं खड़ा हो गया और एक मुस्कुराहट के साथ पलट कर उनके चेहरे पर नजर डाली पर वो कहीं और देखने का नाटक करने लगी तो मैंने कहा- क्या कहा आँटी जी? जरा फिर से कहना?
तो उन्होंने मुंह बनाते कहा- छी, कोई इतना गंदा भी लिखता है क्या, जो एक बार पढ़ ले उसका तो धर्म भ्रष्ट हो जाये। और तुम तो फिर भी ठीक ही लिखते हो, कुछ और लोग तो रिश्तों नातों को भी नहीं छोड़ते, बस ये समझ नहीं आता कि सब सही बातों को लिखते हैं या गलत सलत कुछ भी लिख देते हैं?
उन्होंने इतनी सारी बातें एक सांस में ही कह डाली थी।

मैं सन्न रह गया क्योंकि उनकी बातों से पता चल गया कि उन्होंने अंतरवासना कि और भी कहानियाँ पढ़ी हैं, और अब तक मैं तो यही सोच रहा था कि इन्होंने छोटी के इलाज और मुझे जानने के लिए बस मेरी ही रचना पढ़ी होगी।
अब आगे बढ़ने में या कुछ कहने करने में मुझे ज्यादा झिझक नहीं थी। फिर भी पुराने लोगों के साथ पुराने तरीके से आगे बढ़ना ही अच्छा होता है। यही सोचकर मैंने मुस्कुरा कर कहा- मुझे मेरा जवाब मिल गया है, वैसे अपना जवाब भी जान लीजिए कि मेरी स्टोरी में बहुत कुछ काल्पनिक होता है, पर अनुभव सोला आना सच होता है। अब मैं चलता हूँ कल जल्दी आऊंगा छोटी के ईलाज के लिए कुछ उपाय आ रहे हैं दिमाग में।

मैं मुस्कुराता हुआ आ गया, शायद उन्होंने भी वही किया होगा क्योंकि मैंने उन्हें जानबूझकर पलट कर देखा ही नही, क्योंकि मैं उन्हें बेचैनी की हालत में छोड़ना चाहता था, या कहिए कि उनको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था।

दूसरे दिन मैं जब उनके घर गया तो मुझे आँटी जी ज्यादा अच्छे से तैयार नजर आईं। मैंने जाते ही उन्हें छेड़ा- क्या बात है आज कुछ खास है क्या?
उन्होंने मुस्कुरा के कहा- अंदाजा लगाने में माहिर नजर आते हो।
मैंने फिर कह दिया- माहिर तो बहुत सी चीजों में हूँ।
अब उन्होंने कुछ नहीं कहा और नजर झुका कर चाय बनाने चली गई।

चाय पीने के बाद थोड़ी सामान्य बातों के बाद मैंने कहा- सबसे पहले हमें छोटी के मन से सेक्स का डर निकालना होगा।
तो उन्होंने हम्म्म कहते हुए पूछा- पर ये होगा कैसे?
तो मैंने कहा- अगर वो किसी को सेक्स करते देखे, और सेक्स के वक्त लड़की या औरत तकलीफ में ना हो बल्कि मजे करते नजर आये तो इसके मन से सेक्स का डर हट सकता है।
मैं चाहता तो बस लड़की ही कह सकता था, पर मैंने जानबूझ कर लड़की या औरत कहा था।
उन्होंने कहा- अब तुम्हें इलाज का यही तरीका सही लगता है तो यही सही। पर ये कौन करेगा? इसके सामने सेक्स होते दिखाने इसे ये अब कहाँ ले जायें?

तब मैंने कमीनेपन के साथ हँसते हुए कहा- वैसे मूली के सामने मेरा मामूली है, पर जिंदा लिंग अगर गाजर मूली से आधे साइज का भी हो तो भी दुगुना मजा देता है।
इतना सुनकर तो उन्हें पसीने ही आ गये जुबान लड़खड़ाने लगी- तुम ये क्या कह रहे हो तुमने कब देखा, तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो?

मैंने अपने दोनों हाथ उनके कंधों पर रख के उनको शांत करने कि कोशिश की और कहा- देखो आँटी जी, एक तीर से दो निशाने लगाये जा सकते हैं, छोटी का इलाज भी हो जायेगा और आपके तन को शांति भी मिल जायेगी।
पर वो चुप रही.
मैंने कहा- अगर आपको ये सब गलत लगता है तो मैं जा रहा हूँ, और छोटी के लिए भी कुछ और सोचूंगा.
तब भी वो चुप रही.

फिर मैंने कहा- तनु को भी कोई एतराज नहीं है.
तो उसने मेरे चेहरे को चौंक कर देखा, उसकी आँखों से आँसू झरने लगे थे, चश्मा वो सफर या काम के समय ही लगाती थी।
मैंने उन्हें सिर्फ ये कहा कि एक स्त्री दूसरे स्त्री के मन को भली भांति समझती है।

और मैं तो हूँ ही औरतों को समझने में उस्ताद। अब मुझे इस वक्त उन्हें अकेला छोड़ना ही ठीक लगा, इसलिए मैं चुपचाप लौट आया।

मैंने पूरी रात बेचैनी मे गुजारी और दूसरे दिन लगभग नौ बजे ही मैं उनके यहाँ जा पहुंचा, उस समय तक वो नहा धो कर तैयार हो चुकी थी और छोटी को नाश्ता करा रही थी।
मैं उस दिन आँटी को देखते ही रह गया, आज उसने हरे रंग की काटन साड़ी पहन रखी थी, उसका बार्डर और ब्लाऊज लाल और गोल्डन कलर का था।
वो श्रृंगार तो नहीं करती थी, पर उन्हें किसी श्रृंगार की जरूरत भी नहीं थी.

मैंने हमेशा की तरह नमस्ते किया और चुपचाप बैठ गया।
कुछ देर माहौल शांत रहा, फिर उन्होंने कहा- क्या सच में तनु की सहमति है, और तुमने गाजर मूली वाली बात क्यों कही?
मैंने कहा- देखो आँटी, इन सारी बातों का कोई मतलब नहीं है। बस आप ये सोचो कि छोटी का इलाज जरूरी है और आपकी प्यास का कारण भी तनु है, क्योंकि उसकी वजह से ही बाबू जी नहीं रहे और आपको तड़पना पड़ रहा है। इसलिए उसकी सहमति पर आप आश्चर्य ना कीजिए। बस अब आप अपनी सहमति दीजिए।

उन्होंने कुछ नहीं कहा, माहौल कामुक ना होकर गंभीर होने लगा, फिर हमने छोटी को सहारा देकर बेड पर सुलाया, फिर आँटी बंद पड़े कमरों की तरफ बढ़ चली, मुझे कुछ समझ नहीं आया फिर भी मैं उनके पीछे चल पड़ा।
उन्होंने उन तीन कमरों में से एक कमरे को साफ कर रखा था और नीचे चटाई पर गद्दे चादर तकिये लगा रखे थे, एक कोने पर पानी का बर्तन रखा था।

अब मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा क्योंकि यह स्पष्ट संकेत था कि आँटी पूरी तरह से तैयार है, मैंने आँटी से कहा- हमें तो छोटी के सामने करना था ना?
आँटी ने कहा- मैं तुमसे पहली बार में ही अपनी बेटी के सामने ऐसा नहीं कर सकती, मुझे सेक्स किये लंबा समय हो चुका है, और फिर पहली बार में मुझे भी तुमसे दर्द हो सकता है, तो कहीं छोटी और ना डर जाये। ये सब मैं अपनी बेटी के इलाज के लिए ही कर रही हूँ, इसलिए सिर्फ इतना ध्यान रहे कि जितना उसके इलाज के लिए जरूरी हो वही चीजें हो, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं।
ये सारी बातें उन्होंने बहुत रूखे स्वर में कहीं।

मुझे ये बातें थोड़ी चुभ रही थी इसलिए मैंने कहा- आँटी, छोटी के इलाज के और भी तरीके हैं। पर मैं तो चाहता था कि हम इस सरल उपाय से इलाज भी कर लें और आपकी प्यास भी बुझ जाये। पर आपकी बातों से लग रहा है कि मैं आपको फंसा कर ये सब कर रहा हूँ, और सेक्स के समय खुश होने का सिर्फ दिखावा करने से छोटी ठीक नहीं हो सकती, उसे सच की खुशी और मजा आना चाहिए, जिसके लिए आप तैयार नहीं हो, इसलिए छोटी के इलाज का दूसरा उपाय करना ही बेहतर होगा।
और इतना कहकर मैं वापस आ गया।

ये बात सही भी थी छोटी को सम्भोग में आनंद ही आनंद नजर आना था तभी तो वो अपने दर्द को भुला पाती, और दूसरी बात ये थी कि मुझे आज नहीं तो कल तनु और सुमित्रा दोनों ही मिलने वाले थे, इसलिए इस समय जल्दबाजी करने से मैं विलेन बन जाता, इसलिए मैंने सोचा कि धैर्य रखने से शायद मैं हीरो बन जाऊं।

फिर मैंने तनु को फोन करके सारी बातें विस्तार से बता दी, वो अपनी माँ की शराफत पे खुश भी हुई और उसके खुल कर हाँ ना कहने पर दुखी भी।
फिर मैंने तनु को कहा- क्यों ना तुम और मैं छोटी और तुम्हारी माँ के सामने वासना का ये खेल खेलें! इससे छोटी का इलाज भी हो जायेगा और आँटी हमसे खुल जायेगी तो अपनी प्यास भी बुझा लेगी।
तनु ने कहा- वाह बच्चू, अपने दोनों हाथों में लड्डू चाहते हो। माँ बेटी का एक दूसरे के सामने इतना बेशर्म होना आसान है क्या? मुझसे भी ऐसा नहीं होगा।

फिर मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा- हाँ हाँ जाओ, डालो चूत में मूली गाजर… और छोटी का बकना सुनते रहो, पहले दिन तो बड़ी बडी बातें हांक रहे थे कि तुम जो बोलोगे हम वो करेंगे अब क्या हुआ? तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हारे शरीर के लिए मरा जा रहा हूँ। जाओ जो करना है करो फिर मुझे दोष ना देना, बिना कारण के तीन लोगों से एक साथ चुद सकती हो, और अपनी माँ और बहन के लिए चुदने में शर्म आ रही है।

मैंने शायद उसकी दुखती रग में हाथ रख दिया था तो उसने बिना कुछ कहे फोन काट दिया। मैंने भी ज्यादा कुछ नहीं सोचा और अपने काम पर लग गया।

दूसरे दिन ग्यारह बजे फोन आया- मैं छोटी के पास आई हूँ. तुम आज कैसे नहीं आ रहे हो?
मैंने थोड़ी चुप्पी रखी, उसने फिर कहा… कल के लिए सॉरी… प्लीज आ जाओ ना! यार, आप कितना भी नाराज रहो, किसी लड़की के ऐसे बुलावे पे आप जाते ही नहीं हो, बल्कि खींचे चले जाते हो!

मैं भी वहाँ खिंचा चला गया।

मैंने हमेशा की तरह अंदर जाते ही बाहर का दरवाजा बंद करते हुए अंदर प्रवेश किया। तनु चेयर पर बैठी थी, तनु आज शर्माते हुए मुझसे नजरें चुरा रही थी, एकदम गोरी हीरे जैसी चमक लिए चंदन कुंदन जैसी दमकती कामदेवी गुलाबी मुलायम साड़ी में लिपटी हुई, होठों पर लाली तो थी ही और थिरकन उसे कयामत ढाने वाले बना रहे थे।
आँखों की खूबसूरती आज और बढ़ गई थी क्योंकि आज उनमें शर्म थी, लज्जत थी आग्रह था, समर्पण था और काजल दिखा रहे थे कि वो कैसे तैयार हुए हैं, एक बारगी लगा कि वो कटार हों, पर दूसरे ही पल मैंने ध्यान दिया कि हे भगवान ये काजल तो किसी प्याले की तरह हैं जिसमें नैनों के अमृत भरे पड़े हैं। और ये अमृत सिर्फ मेरे लिए हैं।
कानों में बाली गालों में लाली नाक में नथ, और धड़कनों की उथल-पुथल से हलचल करते उसके तने हुए लाजवाब उरोज मुझे पागल किये जा रहे थे। उसकी सांसें जितनी बार आती और जाती थी उसका सीना फूलता और सिकुड़ता था उसकी खूबसूरत घाटी पर पड़े मंगलसूत्र के पेंडल भी हिल डुल रहे थे, चौंतीस नम्बर की ब्रा के भीतर सुडौल स्तन अपनी पूरी गोलाई पे नजर आ रहे थे, ब्लाउज से उनका कुछ भाग झांकता हुआ मुझे चिढ़ा रहा था।
पैरों के नाखून एक दूसरे को कुरेद रहे थे, जांघें आपस में सटते ही जा रही थी, नितम्ब, कमर, पेट, पिंडलियाँ सभी इतने सुडौल थे कि कोई चेहरा ना भी देखे तो तनु को कपड़ों के ऊपर से देख कर ही अपनी मुठ मार ले। हर अंग तराशा हुआ चमकता हुआ था।

मैं खुश हुआ जा रहा था कि आज ये काम की देवी मुझ कामदेव के लिए ही आई है। मैं उनके सामने जाकर घुटनों पर बैठ गया और उसकी गोद में, मतलब उसकी नर्म जांघों पर अपना सर रख दिया और अपने हल्के हाथों से उसको सहलाते हुए चूमने लगा।
आँटी सामने खड़ी थी पर मैंने उनकी परवाह नहीं कि पर तनु असहज हो रही थी और उसका असहज होना जायज भी था.

तभी आँटी चाय बनाने के लिए किचन में चली गई।
और आँटी के चाय बनाने के लिए जाते ही तनु ने मेरे सर के ऊपर झुक कर मेरे कान में कहा- संदीप, अब तुम जो चाहो करो, मैंने सब कुछ तुम पर छोड़ दिया है, पर माँ से मैंने इस मामले में ज्यादा बात नहीं की है, बस इतना कहा है कि संदीप जो कह रहा है वो हमें करना पड़ेगा… बाकी बातें तुम खुद ही संभाल लो।

यह एडल्ट कहानी जारी रहेगी…
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