लिंगेश्वर की काल भैरवी-1

… प्रेम गुरु

अपना पिछला जन्म और भविष्य जानने की सभी की उत्कट इच्छा रहती है। पुरातन काल से ही इस विषय पर लोग शोध कार्य (तपस्या) करते रहे हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ सत्य हुई हैं।
आपने भारतीय धर्मशास्त्रों में श्राप और वरदानों के बारे में अवश्य सुना होगा। वास्तव में यह भविष्यवाणियाँ ही थी। उन लोगों ने अपनी तपस्या के बल पर यह सिद्धियाँ (खोज) प्राप्त की थी।
यह सब हमारी मानसिक स्थिति और उसकी किसी संकेत या तरंग को ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर करता है। अध्यात्म में इसे ध्यान, योग या समाधि भी कहा जाता है।
इसके द्वारा कोई योगी (साधक) अपने सूक्ष्म शरीर को भूत या भविष्य के किसी कालखंड या स्थान पर ले जा सकता है और उन घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में जान सकता है।
आपने फ्रांस के नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों के बारे में तो अवश्य सुना होगा। आज भी ऐसा संभव हो सकता है।

… इसी कहानी में से

समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता। अब देखो हमारी शादी को इस नवम्बर में पूरे 6 साल हो गए हैं पर आज भी लगता है जैसे कुछ दिनों पहले ही हमारी शादी हुई है। जब भी नवम्बर का महीना आता है मुझे अपना मधुर-मिलन (सुहागरात) और मधुमास (हनीमून) याद आ जाता है।

शादी के 8-10 दिनों बाद मैं और मधु (मेरी पत्नी मधुर) घूमने फिरने खजुराहो गए थे। मैं और मधु तो दिन रात अपनी चुदाई में इतने मस्त रहते थे कि कहीं जाना ही नहीं चाहते थे पर मौसी और सुधा (मधु की भाभी) के जोर देने पर हमने यह प्रोग्राम बनाया था।

मेरा एक बहुत अच्छा मित्र है सत्यजीत। रोहतक का रहने वाला है। उसने मेरे साथ ही इंजीनियरिंग की थी। उसकी भी नई नई शादी हुई थी और उसने भी हमारे साथ ही खजुराहो जाने का प्रोग्राम बना लिया था।

नई दिल्ली से खजुराहो के लिए प्रति दिन एयर सर्विस है। हम लोग यहाँ हवाई जहाज से लगभग 1:30 बजे पहुंचे। हालांकि नवम्बर का महीना था पर ठण्ड इतनी ज्यादा नहीं थी। गुलाबी ठण्ड कही जा सकती थी।

मधु ने जीन्स और गुलाबी रंग का टॉप और उसके ऊपर काली जाकेट पहनी थी। आँखों पर काला चश्मा, खुले बाल, ऊंची सैंडल, कलाइयों में कोहनियों तक लाल रंग की चूड़ियाँ। हाथों और पैरों में मेहंदी और बिल्लोरी आँखों में हल्का सा काज़ल। इन 8-10 दिनों में तो उसका रंग रूप जैसे और भी निखर आया था।

उसके नितम्ब तो इतने कसे लग रहे थे कि बार बार मेरा ध्यान उनकी ओर ही चला जाता था। मेरी बड़ी उत्कट इच्छा हो रही थी कि एक बार मधु मुझे गांड मार लेने दे तो यह मधुमास (हनीमून) यादगार ही बन जाए। पर अपनी नव विवाहिता पत्नी को इसके लिए कहना और मनाना बड़ा ही मुश्किल काम था। मैं तो बस अपने सूखे होंठों पर अपनी जबान ही फेरता रह गया।

मैं सत्यजीत से इस मसले पर बात करना चाहता था। मुझे पता था कि वो भी गांड का बड़ा शौक़ीन है। पता नहीं साले ने अपनी पत्नी की गांड मार भी ली होगी। उसकी पत्नी जिस तरीके से टांगें चौड़ी करके चल रही थी मेरा शक और भी पक्का हो जाता है।

उसकी पत्नी रूपल भी नाम के अनुसार कमाल की सुन्दर है। रंग जरूर थोड़ा सांवला है पर नैन नक्श बहुत तीखे हैं। उसके नितम्ब तो उस समय मधु जितनी भारी नहीं थे पर उसके उरोज तो कहर बरपा ही थे। सच कहूं तो इस साले सत्यजीत की तो लाटरी ही लग गई थी। इतने बड़े बड़े और सुडौल स्तनों को चूस और मसल कर वो तो इस्स्स्स …. ही कर उठता होगा।
इस हरियाणा के सांड को इतनी मस्त मोरनी पता नहीं कहाँ से मिल गई है। मधु और रूपल तो ऐसे घुल मिल गई थी जैसे बचपन की सहेलियां हों।

होटल कलिंग में हमने दो कमरे पहले से ही बुक करवा लिए थे। पर काउंटर पर बैठा क्लर्क पता नहीं कमरे की चाबी देने में इतनी देर क्यों लगा रहा था। बस 5 मिनट – 5 मिनट ही करता जा रहा था। पता नहीं कमरा साफ़ करवाने का बहाना मार रहा था या कोई और बात थी। मुझे इस बात से बड़ी कोफ़्त सी हो रही थी वो तो साला मधुर और रूपल को घूरे ही जा रहा था।

“अरे भाई जरा जल्दी करो ! कितनी देर और लगेगी ?” मैंने उकता कर कहा।

“सर, बस 5 मिनट और। मैं चाहता हूँ कि आप लोगों के कमरे अच्छे से साफ़ हो और थोड़ा सजा भी दिया जाए। आप हनीमून कपल हैं ना?” उसने मेरी ओर रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा। उसकी कांइयाँ नज़रें मैं अच्छी तरह पहचानता था। ये होटल के क्लर्क और वेटर सब बड़े घाघ किस्म के होते हैं, मैं जानता था।

इतने में वेटर नीचे आया और बोला “आइये सर, कमरा तैयार है। आइये मैडम…” और वो हमारा सामान लेकर लिफ्ट की ओर चलने लगा। हम सभी उसके पीछे पीछे आ गए।

कमरा काफी बड़ा था। सामने टीवी, सीडी प्लयेर, एक कोने में छोटा सा फ्रिज और साइड टेबल पर टेलीफोन और नाईट लैम्प। एक बड़ा सा पलंग जिस पर साफ़ धुली हुई चद्दर 4-5 तकिये। गुलाब के फूलों की पत्तियाँ पलंग पर बिखरी हुई थी और विदेशी इत्र की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था।

सामने दीवाल पर एक 15-16 साल की उम्र की पहाड़ी लड़की की तस्वीर लगी थी। उसने केवल घुटनों तक साड़ी पहन रखी थी और उसके सुडौल वक्ष उस झीनी साड़ी में साफ़ नज़र आ रहे थे। मोटी मोटी काली आँखों में गज़ब की सम्मोहन शक्ति थी किसी का भी मन मोह ले। पास पड़ी मेज़ पर एक फूलों का गुलदस्ता और उसके नीचे एक गुलाबी कार्ड रखा था जिस पर दो दिल बने थे।

मधु ने उस कार्ड को उठा लिया और पढ़ने लगी। “आपका मधुर मिलन मंगलमय हो !” मधु मुस्कुराने लगी।

साले ये होटल वाले भी किस किस तरह के टोटके आजमाते हैं। मैंने मधु को बाहों में भर लेने की कोशिश की तो मधु ने इशारे से मुझे रोक दिया। वेटर अभी भी वहीं खड़ा था। मैंने उसे 100 रुपये का एक नोट पकड़ाया तो उसने अपनी मुंडी और कमर झुका कर 3 बार हाथ से सलाम किया जैसे राजा महाराजाओं को कोर्निश करते हैं।

उसने अपना नाम जयभान बताया और जाते जाते उसने बताया कि टीवी का रिमोट मेज़ की दराज़ में रखा है और उस में नई नई हिंदी और इंग्लिश फिल्मों की सीडी भी पड़ी हैं। इंग्लिश फिल्मों की सीडी का मतलब मैं अच्छी तरह जानता था।

उसने बताया कि किसी और चीज की जरुरत हो तो 9 नंबर पर काउंटर पर बैठे उदय भान से बात कर लें। वह धन्यवाद करता हुआ दरवाज़ा बंद करके चला गया। मैंने झट से मधु को धर दबोचा और अपनी बाहों में भर कर इतना जोर से भींचा कि उसकी तो चीख निकलते निकलते बची। मैंने उसे पलंग पर पटक दिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा।

“ओह… प्रेम तुम्हें तो ज़रा सा भी सब्र नहीं होता। रुको थोड़ी देर ! मुझे बाथरूम जाना है!” मधु ने मेरी बाहों में कसमसाते हुए कहा।

“अरे मेरी शहद रानी तुम्हें क्या पता, मैं पिछले 41 घंटों से सूखा ही हूँ। कल रात को तो तैयारी के चक्कर में तुमने बहाना मार लिया था और मुझे कुछ करने ही नहीं दिया था !”

“चलो अब छोड़ो मुझे… कल की कमी रात को पूरी कर लेना… ओहो… हटो भई !”

ना चाहते हुए भी मुझे उसके ऊपर से उठना पड़ा। मधु अपना वैनिटी बैग उठा कर बाथरूम में घुस गई। उस को जाते हुए मैं तो बस उसके नितम्बों को लचकता हुआ देखता ही रह गया। मेरा प्यारेलाल (लंड) तो बस आहें ही भरता रह गया।

मधु बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खोलते हुए बोली “प्रेम मुझे थोड़ा समय लगेगा तुम बाज़ार से “वो” ले आओ इतनी देर !” मधु ने मेरी ओर आँख मार दी।

अब मुझे परसों रात वाली बात याद आई। ओह मधु को तो बाथरूम में कम से कम एक घंटा तो जरूर लगेगा। ओह… आप भी इन छोटी छोटी बातों को पता नहीं क्यों नहीं समझते। उसे आज अपने अनचाहे बाल साफ़ करने थे।

परसों ही वो कह रही थी कि उसे अपने गुप्तांगों पर बढ़े हुए बाल बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते। पिछले 8-10 दिनों में उसे इन्हें साफ़ करने का मौका ही नहीं मिला था। मुझे निरोध (कंडोम) का पैकेट भी खरीदना था।
मधु ने कह दिया था कि वो बिना निरोध के नहीं करने देगी और वैसे भी हम दोनों ही अभी बच्चा नहीं चाहते थे। मधु पिल्स तो लेती नहीं थी इसलिए कोई सावधानी रखने की मजबूरी थी। मैं बाजार जाने के लिए कमरे से बाहर आ गया।

मैं सत्यजीत को भी साथ ले लेना चाहता था। अगले दिन का प्रोग्राम बनाना था। उनको भी साथ वाला कमरा मिला था। मैंने जैसे ही उसके कमरे के दरवाजे को खटखटाना चाहा, कमरे के अन्दर से आती सिसकारियां सुनकर मैं रुक गया।

“ओह … जरा धीरे … ओह … जीत बड़ा मज़ा आ रहा है। आह… ओईईइ … माआआ….” शहद जैसी मीठी आवाज़ तो रूप की रानी चंद्रावल (जीत की पत्नी रूपल) की ही हो सकती थी।

“अरे मेरी रूपा रानी तेरी गांड है ही इतनी कमाल की … मज़ा क्यों नहीं आएगा … आह… या … गोपी किशन की सौगंध तूने तो मुझे निहाल ही कर दिया है।” एक थप्पी जैसी आवाज आई जैसे कई बार मैं मधु के नितम्बों पर लगाता हूँ। जरूर इस साले ने रूपल को इस समय घोड़ी बना रखा होगा। मैंने नीचे झुक कर की-होल से अन्दर का दृश्य देखना चाहा पर अन्दर कुछ नज़र नहीं आया।

“ओह … जीत … आह… पहले तो मुझे बड़ा डर लगता था और दर्द भी होता था पर अब तो सच कहती हूँ जब तक तुम एक बार मेरी गांड नहीं मार लेते मुझे मज़ा ही नहीं आता … उईई … मा…. आ… आ … !”

“यार तुम्हारे चूतड़ हैं ही इतने मस्त कि मैं तो इनका मुरीद (दीवाना) ही हो गया हूँ।”

“हाय … नितम्ब तो उस बिल्लो रानी के हैं ! मुझे तो ईर्ष्या होती है उसके इतने कसे हुए सुडौल नितम्बों को देख कर !”

“अरे मेरी रूप कँवल ! तुम देखना दो महीने में ही तुम्हारे भी चूतड़ उस बिल्लो रानी जैसे हो जायेंगे …”

“उईई … माँ… आह…” रूपल ने एक सिसकारी ली।

पता नहीं ये दोनों किस बिल्लो रानी की बात कर रहे थे।

“रूप एक बात तो है ? ये प्रेम का बच्चा तो उनका पूरा मज़ा लूटता होगा… साले ने क्या तकदीर पाई है।”

“अरे नहीं… सब मेरी तरह थोड़े ही होती हैं !”

“क्या मतलब ?”

“मधुर बता रही थी कि प्रेम बहुत ललचाई नज़रों से उसके नितम्बों को देखता रहता है। वो भी उसकी गांड मारना चाहता है पर संकोच के मारे कह नहीं पा रहा है कहीं नवविवाहिता पत्नी को बुरा ना लगे !”

“एक नंबर का लल्लू है साला ! ऐसी मटकती गांड भी भला कोई बिना मारे छोड़ने की होती है ?”

“तुम्हें क्या पता कि वो कितना प्रेम करता है मधुर को ?”

“हाँ यह तो है… पर मेरी रूपा रानी मैं भी तो तुम से बहुत प्रेम करता हूँ ?”

“हाँ… यह बात तो है… इसीलिए तो मैं भी तुम्हें किसी चीज के लिए मना नहीं करती। तुमने तो सुहागरात में ही इसका भी मज़ा लूट ही लिया था ? पता है लड़कियां कितने नखरे करके गांड मरवाने के लिए राज़ी होती हैं ?”

“अरे मेरी जान तू है ही इतनी कसूती चीज मैं अपने आप को कैसे रोक पाता !”

“ऊईईई … माँ…” एक मीठी सीत्कार कमरे में गूंजी।

“ओह … जीत … मेरी चूत को भी तो मसलो … ओह… जरा 2-3 धक्के जोर से लगाओ … आह… ईईईइइ…”

“आह … ओईई… मैं तो… मैं तो … या इस्ससस … मैं तो ग… गया…”

“ऊईईइ … मैं भी ग … गइइईईई….”

अब वहाँ रुकने का कोई अर्थ नहीं रह गया था।

लिफ्ट से नीचे आते मैं सोच रहा था कि ये औरतें भी कितनी जल्दी आपस में खुल कर एक दूसरे से अपने अंतरंग क्षणों की सारी बातें बता देती हैं। मधु मेरे सामने तो लंड, चूत और चुदाई का नाम लेते भी कितना शर्माती है और इस जीत रानी (रूपल) को सब कुछ बता दिया। ओह … मधु मेरे मन की बात जानती तो है। चलो कोई अच्छा मौका देख कर इस बाबत बात करूंगा।

कई भागों में समाप्य !