एक माह चाची के घर

अब मैंने पैकिंग की और सोचने लगा कि पता नहीं वो कैसे लोग हों, फिलहाल किसी तरह एक महीने तो गुजारना ही था तो मैं परीक्षा के एक दिन पहले ही निकल पड़ा।

मुझे पापा के दोस्त का घर खोजने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई, मैं शाम 4 बजे पहुँच गया। मेरे आने की खबर उन लोगों को पहले ही थी, वो लोग काफी खुश हुए।

मेरे पापा के दोस्त मिश्रा अंकल के घर में इस समय कुल तीन सदस्य थे, चाची उनकी दो बेटियाँ संजू और मंजू। चाची का एक बेटा भी था मेरी उम्र का लेकिन उसका सेंटर भी मेरी तरह कहीं दूर बना था। अत: वो आज ही निकल गया था।

अब उस घर में मुझको मिलाकर कुल चार सदस्य थे जो एक माह तक एक साथ ही रहने थे।

चाय नाश्ता करने के बाद हम लोग छत पर चले गए, मैं एक किताब लेकर बैठ गया। मेरे पास ही संजू और मंजू भी बैठी पढ़ रही थी इस बीच मैंने गौर किया कि संजू जिसकी उम्र करीब 18 साल रही होगी मुझे चोर नजरों से बार-बार देख रही थी। यह देखकर मैं भी कुछ विचलित होने लगा लेकिन फिर किताब की ओर देखने लगा। चूँकि लड़की सुंदर थी इसलिए मेरा भी मन कर रहा था कि किसी तरह वो मेरे पास आए लेकिन कोई बहाना नहीं बन रहा था।

मैं अपने विचारों में खोया था तब तक अचानक मंजू की आवाज आई जो संजू से दो साल छोटी थी- भैया जी, दीदी को एक सवाल समझ नहीं आ रहा, आप बता देंगे क्या?

मैं तो इसी का इंतजार कर रहा था, झट से बोला- हाँ हाँ क्यों नहीं, आ जाओ।

शरमाते हुए संजू भी मेरे पास आ गई, मैंने सवाल देखा वो पाइथागोरस प्रमेय का सवाल था, मैंने संजू को बड़े प्यार से वो सवाल समझाया उसके बाद और कई तरह की बातें हुई। इस दौरान संजू मुझसे काफी खुल गई थी।

मंजू ने कहा- भैया कोई कहानी सुनाइए।

मैंने दो एक हास्य कहानियाँ सुनाई उस दौरान कई बार मैंने संजू के शरीर को छुआ, कोई खास बात तो नहीं हुई लेकिन एक बात तो तय थी कि आज की रात कुछ होना था।

बातों का सिलसिला चल रहा था तभी चाची ने आवाज दी- खाना तैयार है।

हम लोग नीचे जाने लगे, सीढ़ियों पर उतरते समय संजू जानबूझकर अपनी छातियाँ मेरे हाथ में रगड़ देती तो मुझे एक अजीब सी अनुभूति होती।

खाना खाकर सब लोग सो गये लेकिन मैं काफी देर तक संजू के बारे में ही सोचता रहा, सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

रात में करीब एक बजे अचानक मेरी नींद खुल गई। मैंने आँख खोली तो देखा कि संजू मेरे बगल में लेटी थी। मैंने बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि तुरंत संजू ने मेरे मुँह पर हाथ रखा और मुझे चुप रहने को कहा। मैंने उसे बाहों में भर लिया, वह कुछ नहीं बोली फिर मैंने उसके होटों पर अपने होट रख कर एक जोरदार चुम्बन किया, उसके होटों से जैसे ही मैंने मुँह हटाया, उसने मेरे चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

मेरा तो पूरा जिस्म झनझना गया, उसके चेहरे को चूमते हुए मैं सीने पर आ गया लेकिन उसके कपड़े अब अड़चन पैदा कर रहे थे। मैंने उसके कपड़े उतार दिए, अब वो बिल्कुल नंगी थी। उसने मेरे शर्ट के बटन खोलना शुरू किया तो मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। जब मैं उसकी छातियों को चूस रहा था तब वो बीच बीच में अपनी चूत मेरे लंड से रगड़ देती। अब हम 69 की पोजीशन में आ गये वो जोर जोर से मेरा लंड चूस रही थी मैं उसकी चूत को चूस रहा था। बीच बीच में वो अपनी चूत इतनी जोर से मेरे मुँह पर दबाती कि मेरा सांस लेना मुश्किल हो जाता।

फिर वो उठी और सीधी लेट कर मुझे अपने ऊपर खींचने लगी। मैं समझ गया कि वो क्या चाहती है। मैंने उसकी टाँगें फैलाकर अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ना शुरु किया, वो पाँच मिनट भी नहीं झेल पाई और मेरा लण्ड अपनी चूत में खींचने लगी। मुझे भी अब बरदाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी चूत के मुँह पर अपना लंड रखकर एक धक्का दिया। आधा लंड अंदर जा चुका था, वो छटपटाने लगी लेकिन मैंने लंड नहीं निकाला। उसके होटों को चूसने लगा और धीरे धीरे धक्के देने लगा। अब उसे भी मजा आ रहा था वो भी मुझे सहयोग करने लगी। फिर मैंने उसे घोड़ी बनने का इशारा किया वो तुरंत बन गई। मैं पीछे से शुरु हो गया।

दस मिनट बाद मेरा पानी निकल गया और मैं बाहर हट गया। हमने अपने अपने कपड़े पहने, वो जाने लगी तो मैंने कहा- कल आओगी?

उसने हामी भरी और मुझे एक तगड़ा चुम्मा करके चली गई।

दोस्तों उसके बाद तो मेरी हर रात रंगीन होने लगी। मैं पूरा एक माह वहाँ रहा इस दौरान बहुत कुछ हुआ जो मैं आपको अगली कहानी में बताऊँगा।

यह कहानी आप को कैसी लगी मुझे जरूर बताएँ।

आपका दोस्त चक्रेश यादव