जिस्मानी रिश्तों की चाह -41

फिर आपी ने जग से दूध का गिलास भरा और मेरे पास आकर मेरे होंठों को चूमा और मेरे सिर पर हाथ फेर कर बोलीं- उठो मेरी जान.. शाबाश दूध पियो और फिर कपड़े पहन कर सही तरह लेटो.. शाबाश उठो..

मुझे अपने हाथ से दूध पिलाने के बाद आपी ने एक बार फिर मेरे होंठों को चूमा और खड़ी हो गईं।

‘फरहान निकले तो उसे भी लाज़मी दूध पिला देना अच्छा.. याद से भूलना नहीं ओके.. मैं अब चलती हूँ.. तुम भी सो जाओ..’

यह कह कर आपी कमरे से बाहर निकल गईं।

आजकल कुछ ऐसी रुटीन बन गई थी कि रात को सोते वक़्त.. मेरे जेहन में आपी के खूबसूरत जिस्म का ही ख़याल होता.. साँसों में आपी की ही खुश्बू बसी होती थी और सुबह उठते ही पहली सोच भी आपी ही होती थीं।

मैं सुबह उठा तो हमेशा की तरह फरहान मुझसे पहले ही बाथरूम में था और मैं अपने स्पेशल नाश्ते के लिए नीचे चल दिया।

मैंने नीचे पहुँच कर देखा तो अम्मी अब्बू का दरवाजा अभी भी बंद ही था.. लेकिन आपी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था। मैंने अपने क़दम आपी के कमरे की तरफ बढ़ाए ही थे कि उन्होंने अन्दर से ही मुझे देख लिया।

मैंने आपी के सीने के उभारों की तरफ इशारा करते हुए उनको आँख मारी और मुँह ऐसे चलाया जैसे दूध पीने को कह रहा हूँ।

आपी ने गुस्से से मुझे देखा और आँखों के इशारे से कहा कि हनी यहीं है।

मैंने अपने हाथ के इशारे से कहा- कोई बात नहीं..

मैंने उनके कमरे की तरफ क़दम बढ़ा दिए.. आपी ने एक बार गर्दन पीछे घुमा कर हनी को देखा और फिर मुझे गुस्से से आँखें दिखाते हुए वहीं रुकने का इशारा किया।

मैंने आपी के इशारे को कोई अहमियत नहीं दी और आगे बढ़ना जारी रखा।

आपी ने एक बार फिर मुझे देखा और फ़ौरन कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।

मैं कुछ सेकेंड वहीं रुका और फिर सिर को झटकते हुए मुस्कुरा कर वापस अपने कमरे की तरफ चल दिया।

जब मैं नहा कर तैयार हो कर नाश्ते के लिए पहुँचा.. तो सब मुझसे पहले ही टेबल पर बैठे थे।
मैंने सलाम करने के बाद अपनी सीट संभाली ही थी कि आपी ने आखिरी प्लेट टेबल पर रखी और मेरे लेफ्ट साइड पर साथ वाली सीट पर ही बैठ गईं।

सदर सीट पर अब्बू बैठे.. जो अब्बू के लिए मख़सूस थी। वे एक हाथ में अख़बार पकड़े चाय के आखिरी आखिरी घूँट पी रहे थे।
हमारे सामने टेबल की दूसरी तरफ अम्मी.. फरहान और हनी बैठे थे और अम्मी रोज़ के तरह उनको नसीहतें करते-करते नाश्ता भी करती जा रही थीं।

मैंने सबको एक नज़र देख कर आपी को देखा.. तो वो परांठे का लुक़मा बना रही थीं। आपी ने लुक़मा बनाया और अपने मुँह की तरफ हाथ ले जा ही रही थीं कि मैंने आहिस्तगी से अपना हाथ उठाया और आपी की रान पर रख दिया।

मेरे हाथ रखते ही आपी को एक झटका सा लगा.. एकदम ही खौफ से उनका चेहरा लाल हो गया, आपी का लुक़मा मुँह के क़रीब ही रुक गया और मुँह खुला ही रखे आपी ने नज़र उठा कर अब्बू को देखा.. वो अपनी नजर अख़बार में ही डुबाए हुए थे।

फिर आपी ने अम्मी लोगों को देखते हुए अपना हाथ नीचे करके मेरे हाथ को पकड़ा और अपनी रान से हटा दिया।

आपी की हालत मेरे पहले हमले की वजह से ही अभी नहीं संभली थी कि मैंने चंद लम्हों बाद ही फिर अपना हाथ आपी के रान पर रखा और इस बार रान के अंदरूनी हिस्से को अपने पंजे में जकड़ लिया।

आपी ने इस बार फ़ौरन कोई हरकत नहीं की और खौफजदा से अंदाज़ में नाश्ता करते-करते फिर मेरा हाथ हटाने की कोशिश करने लगीं।
लेकिन मैंने अपनी गिरफ्त को मज़बूत कर लिया।
आपी ने कुछ देर मेरा हाथ हटाने की कोशिश की और नाकाम हो कर फिर से नाश्ते की तरफ ध्यान लगाने लगीं।

मैंने यह देखा कि अब आपी ने इन हालात को क़बूल कर लिया है.. तो मैंने भी अपनी गिरफ्त ढीली कर दी और आपी की रान के अंदरूनी हिस्से को नर्मी से सहलाने लगा।

आपी की रान को सहलाते-सहलाते ही गैर महसूस तरीक़े से मैंने अपने हाथ को अन्दर की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। जैसे ही मेरा हाथ आपी की चूत पर टच हुआ.. तो वो एकदम उछल पड़ीं।

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जिससे अम्मी भी आपी की तरफ मुतवज्जो हो गईं और पूछा- क्या हुआ रूही.. तुम्हारा चेहरा कैसा लाल हो गया है?

अम्मी की बात पर अब्बू समेत सभी ने आपी की तरफ देखा तो आपी ने खाँसते हुए कहा- अकककखहून.. कुछ नहीं अम्मी.. वो.. अखों..न.. आममलेट में हरी मिर्च थी ना.. डायरेक्ट गले में लग गई है.. पानी.. अखखांकखहूंन.. जरा पानी दे दें..

मैंने इस सबके दौरान भी अपना हाथ आपी की चूत से नहीं हटाया था.. बल्कि इस सिचुयेशन से फ़ायदा उठा कर अपने अंगूठे और इंडेक्स फिंगर की चुटकी में आपी की सलवार के ऊपर से ही उनकी चूत के दाने को पकड़ लिया था।

‘इतनी जल्दी क्या होती है.. ज़रा सुकून से नाश्ता कर ले.. तुम्हारी वो मुई यूनिवरसिटी कहीं भागी तो नहीं जा रही ना..’

अम्मी ने गिलास में पानी डालते हुए कहा और पानी का गिलास आपी की तरफ बढ़ा दिया।

मैंने अम्मी के हाथ से गिलास लिया और आपी के होंठों से गिलास लगा कर शरारत से कहा- ऐसा लगता है सारी पढ़ाई बस हमारी बहन ने ही करनी है.. बाक़ी सब तो वहाँ झक ही मारते हैं।

मेरी बात पर अब्बू अम्मी भी मुस्कुरा दिए और अब्बू ने फिर से अख़बार अपने चेहरे के सामने कर लिया और उसमें गुम हो गए..
अम्मी भी फिर से हनी और फरहान से बातें करने लगीं।

मैं आपी को अपने हाथ से पानी भी पिला रहा था और दूसरे हाथ से आपी की चूत के दाने को मसलता भी जा रहा था।
मेरी इस हरकत से आपी की चूत ने भी रिस्पोन्स देना शुरू कर दिया था और आपी की सलवार वहाँ से गीली होने लगी थी।

मैं समझ गया था कि आपी खौफजदा होने के बावजूद भी मेरे हाथ के लांस से मज़ा महसूस कर रही हैं।

आपी ने सब पर नज़र डालने के बाद अपनी खूबसूरत आँखें मेरी तरफ उठाईं और इल्तिजा और गुस्से के मिले-जुले भाव से मुझे देखा.. जैसे कह रही हों कि ‘सगीर ये मत करो प्लीज़।’

लेकिन मैंने आपी के चेहरे से नज़र हटाते हुए मुस्कुरा कर अपना कप उठाया और चाय की चुस्कियाँ लेते-लेते अपने हाथ को भी हरकत देने लगा।

कुछ देर आपी की चूत के दाने को अपनी चुटकी में मसलने के बाद मैंने अपनी उंगली आपी की चूत की लकीर में ऊपर से नीचे फेरना शुरू कर दी।

आपी ने भी परांठा खत्म कर लिया था और अब चाय पी रही थीं।
मैंने अपनी ऊँगली को ऊपर से नीचे फेरते हुए चूत के निचले हिस्से पर ला कर रोका और अपनी ऊँगली को अन्दर की तरफ दबाने लगा।

आपी के चेहरे पर तक़लीफ़ के आसार पैदा हुए और उन्होंने एक गुस्से से भरपूर नज़र मुझ पर डाली और अपनी कुर्सी को पीछे धकेलते हुए खड़ी हुईं और गुस्से से मुझे देखते हुए अपने कमरे में चली गईं।

आपी के साथ ही अब्बू भी खड़े हो गए थे।
हनी और फरहान भी नाश्ता खत्म कर चुके थे.. वो भी खड़े हो गए कि स्कूल बस तक उन्हें अब्बू ही छोड़ते थे।

मैंने चाय का घूँट भरते हुए हनी को आवाज़ दे कर कहा- हनी देखो ज़रा.. आपी ने कल मुझसे हाइलाइटर लिए थे.. वो कमरे में ही पड़े होंगे.. मुझे ला दो।

हनी ने सोफे से अपना स्कूल बैग उठाया और बाहर की जानिब जाते हुए कहा- भाई आप खुद जा कर ले लें ना.. अब्बू बाहर निकल गए हैं.. हमें देर हो रही है प्लीज़..

यह कह कर वो बाहर निकल गई.. उसके पीछे ही फरहान भी चला गया।

उनके जाने के बाद अम्मी भी अपने कमरे की तरफ जाने लगीं और मुझे कहा- सगीर चाय खत्म करके रूही को कह देना.. बर्तन उठा ले.. मैं ज़रा वॉशरूम से हो आऊँ।

मैंने भी अपनी चाय का आखिरी घूँट भरा तो अम्मी अपने कमरे में जा चुकी थीं। मैंने एक नज़र उनके दरवाज़े को देखा और फिर भागता हुआ आपी के कमरे में दाखिल हो गया।

आपी बाथरूम में थीं.. मैंने दरवाज़े के पास जा कर आहिस्ता आवाज़ में आपी को पुकारा- आपी अन्दर ही हो ना..?? क्या कर रही हो?

आपी ने अन्दर से ही गुस्से में जवाब दिया- तुम्हें पता है सगीर.. तुम.. खबीस.. तुम कभी-कभी बिल्कुल पागल हो जाते हो।

मैंने आपी की बात सुन कर शरारत से हँसते हुए कहा- हहेहहे हीए.. छोड़ो ना यार आपी.. अब ये झूठ मत बोलना कि तुम को मज़ा नहीं आया.. तुम्हारे मज़े का सबूत अभी भी मेरी उंगलियों को चिपचिपा बनाए हुए है.. और मुझे पता है अभी भी मेरी बहना जी.. अपने हाथ से मज़ा ले रही है.. प्लीज़ आपी मुझे भी देखने दो ना यार..

आपी ने उसी अंदाज़ में जवाब दिया- हाँ.. हाँ.. हाँ.. मैं कर रही हूँ.. अभी भी अपने हाथ से.. और तुम्हारी ये सज़ा है कि मैं तुम्हें ना देखने दूँ।

मैं 2-3 मिनट वहीं खड़ा रहा.. आपी को दरवाज़ा खोलने का कहता रहा.. लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.. बस अन्दर से हल्की हल्की सिसकारियों की आवाजें आती रहीं।

यह कहानी एक पाकिस्तानी लड़के सगीर की है.. बहुत ही रूमानियत से भरे हुए वाकियात हैं.. आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।

वाकिया मुसलसल जारी है।
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