चरित्र बदलाव-1

इसलिए मम्मी बुआ के घर मदद के लिए सुबह ही चली जाती थी और मेरी बहन स्वाति भी जॉब पर चली जाती थी. मेरी बहन खुद खूबसूरत जिस्म की मालकिन है वो 24 साल की है कोई भी उसे देख ले तो चोदे बिना ना छोड़े! उसका पूरा बदन कसा हुआ है.

मेरा भाई-भाभी भी जॉब पर चले जाते थे और घर में मैं और चित्रा बचते थे मगर फिर भी मेरी चित्रा से बात करने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि तब मैं थोड़ा शर्मीला था.

एक दिन की बात हैं मैं और चित्रा घर पर अकेले थे तभी एक सेल्सगर्ल ने दरवाजा खटकाया.
मैंने दरवाजा खोला तो मैंने देखा कि वो ब्रा बेचने के लिए आई थी.
उसने कहा- घर में कोई लेडी है?
मैंने मना किया, तभी चित्रा आई और बोली- रुको मुझे खरीदनी है!

मगर उसको पसंद नहीं आई और उसने मुझे शाम को उसके साथ मार्केट चलने को कहा तो मैंने हाँ कर दी.
बाज़ार में सबसे पहले हमने कुछ खाया फिर उसने कहा कि उसे ब्रा-पेंटी खरीदनी है.

फिर हमने शॉपिंग की और भी काफी सामान खरीदा. घर आते-आते शाम के छः बज गए. जब हम घर पहुँचे तो भाई घर पर पहले से था. भाई थोड़ा थका हुआ था तो जाकर सो गया. चित्रा भी अपने कमरे में चली गई और मैं टीवी देखने लग गया.

थोड़ी देर में किसी ने मुझे पीछे से आवाज लगाई, मैंने मुड़ कर देखा तो वो चित्रा थी, वो बोली- मैं कैसी लग रही हूँ?

चित्रा सिर्फ ब्रा-पेंटी पहने थे और वो किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उसे देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया मगर वो मेरी बुआ की लड़की थी इसलिए मैंने अपने आप को रोक लिया और उससे कपड़े पहन कर आने के लिए कहा.

रात को मेरे ख़यालों में सिर्फ चित्रा और उसके चूचे घूम रहे थे और हाथ अपने आप पैंट के अंदर जा रहा था.

मैं उठा और चित्रा के कमरे की ओर बढ़ा. मैंने देखा कि चित्रा वहाँ नहीं थी और उसकी ब्रा वहाँ पड़ी थी. मैंने उसे उठाया और अपने कमरे में ले जाकर ब्रा लंड पर रख कर चित्रा के नाम की मुठ मारने लगा.

मैं मुठ मार रहा था, इतने में पीछे से आवाज़ आई. मैं मुड़ा तो देखा तो चित्रा थी.

मुझे अपनी हरकत पर शर्म आ रही थी और मैं एक बुत की तरह वहीं खड़ा रहा. चित्रा अंदर आई और चादर लेकर बिना कुछ कहे चली गई.

अगले दिन मैं चित्रा से नजर नहीं मिला पा रहा था, मैंने माफी मांगने की सोची.

जब सब चले गए तो मैं चित्रा के कमरे में गया. चित्रा ने काले रंग का सूट पहना था. मैं कुछ कहता इससे पहले चित्रा ने कहा- मैं तुमसे प्यार करती हूँ!
और यह कह कर उसने मुझे गले लगा लिया.

मैं भी सब कुछ भूल गया और चित्रा को चूमने लगा. आज मेरा भी सपना सच हो गया मैं कब से उसे ख्यालों में चोद रहा था, कब से उसके नाम की मुठ मार रहा था, आज वो चूत मेरी होने वाली थी. थोड़ी ही देर में उसकी साँसें तेज़ चलने लगी.

मैंने अपने एक हाथ से उसके चूचे मसलने चालू कर दिए और दूसरे हाथ से सलवार के ऊपर से उसके चूतड़ दबाने लगा. फिर मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और पेंटी के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत सहलाने लगा.

वो सिसकारियाँ लेने लगी और साथ में हल्का सा विरोध भी कर रही थी.

फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और पंद्रह मिनट तक हम एक दूसरे के होंठ चूसते रहे. फिर उसके बाद मैंने उसका कुर्ता उतार दिया और फिर ब्रा भी उतार दी.
उसके चुचे ऐसे लग रहे थे जैसे दो रसदार संतरे!!

मैंने उसके एक चूचे को मुँह में ले लिया और दूसरे को हाथ से मसलना शुरू कर दिया. उसकी सिसकारियाँ बढ़ती ही जा रही थी. फिर उसने मेरी पैंट खोलकर मेरा लंड पकड़ लिया और मेरे लंड को दबाने लगी.

मुझे लगा जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया. इतने में मैंने उसकी पेंटी नीचे सरका दी. उसने मेरी टी-शर्ट भी उतार दी. अब हम दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे के सामने खड़े थे. उसकी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे.

फिर मैंने चित्रा को अपनी बाहों में समेटा और उसे बिस्तर पर लिटा दिया और जीभ से उसकी चूत चाटने लगा वो तो जैसे पागल हो उठी.

वो बोली- भैया, मुझे भी आपका लंड चूसना है!

उसके बाद हम दोनों 69 की अवस्था में आ गए. हम दोनों पंद्रह मिनट तक एक-दूसरे को ऐसे ही चूसते रहे और हम दोनों एक एक करके झड़ गए. फिर हम एक दूसरे के ऊपर लेट गए. थोड़ी देर में हम फिर गर्म हो गए और मैं फिर उसके चूचे चूसने लगा तो वो बोली- भैया, रहा नहीं जाता अपना लंड अंदर डाल दो!

उसकी चूत कुंवारी थी और मैं उसको दर्द नहीं पहुंचाना चाहता था इसलिए मैंने थोड़ी वेसलिन लेकर उसकी चूत की मालिश कर दी.
मेरा लंड 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा है.

उसके बाद मैंने अपना लंड चित्रा की चूत पर लगाया और हल्के-हल्के लंड को अंदर करने लगा पर अंदर जा ही नहीं जा रहा था क्योंकि उसकी चूत कुँवारी थी. मैंने हल्का सा धक्का लगाया तो वो तड़प गई और उसके मुँह से आह की आवाज़ निकल गई. मेरे लंड का सुपारा अंदर जा चुका था. फिर मैंने हल्के-हल्के अंदर डालना चालू किया और बीच-बीच में हल्का धक्का भी मार देता जिससे उसकी चीख निकल जाती. उसकी चूत बहुत कसी हुई थी. अब तक मेरा पूरा लंड उसकी चूत में जा चुका था फिर मैं हल्के हल्के अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा.

शुरू में तो उसे थोड़ा दर्द हुआ फिर वो भी मेरा साथ देने लगी. हम दोनों चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थे.

फिर हम दोनों बीस मिनट तक चुदाई का आनन्द लेते रहे और फिर वो झड़ गई. मैं भी बस झड़ने वाला था फिर हम दोनों ने एक-दूसरे को कस के पकड़ किया और फिर अपना अपना पानी एक दूसरे में मिला दिया और उसके बाद हम एक-दूसरे में समा गए.

हम दस मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे और उसके बाद बाथरूम में जा कर एक-दूसरे को साफ किया. हम लोग उस वक़्त भी बिल्कुल नंगे थे. एक दूसरे को साफ करते वक़्त मैंने उसे कई बार चूमा भी जिससे मेरा लंड फिर खड़ा हो गया, मैंने अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया और वो उसे दस मिनट तक चूसती रही. फिर हम दोनों नंगे ही बाहर आ गए.

मैंने बाहर आकर देखा तो स्वाति दीदी बिस्तर पर बैठी थी. मैं अपने लंड को एक कपड़े से छुपाने लगा.
दीदी ने आकर मुझे एक तमाचा मार दिया और बोली- यह क्या कर रहे थे.
तब चित्रा ने स्थिति को संभालते हुए कहा- मैंने कहा था! हम आगे से ऐसा कुछ दोबारा नहीं करेंगे.

तब कहीं जाकर दीदी शांत हुई और मैं वापिस अपने कपड़े पहनने लगा तो दीदी बोली- अपनी दीदी की आग शांत नहीं करेगा?

यह कह कर दीदी मुझे चूमने लगी और चित्रा यह सब देखती रही मगर मैंने कहा- दीदी, मम्मी आने वाली है. हम दोनों तो कभी भी कर सकते हैं.

मैंने दीदी की चूत और चित्रा की गांड कैसे मारी, यह मैं अगली कहानी में बताऊँगा.

आप बताइये आपको मेरी सच्ची कहानी कैसी लगी?
[email protected]