एक भाई की वासना -47

फैजान थोड़ा घबराया हुआ था.. कुछ ही देर गुज़री कि मैंने अपना सिर फैजान के कन्धों पर रख दिया और अपना एक हाथ फैजान की बाज़ू पर रख कर आहिस्ता आहिस्ता उसकी बाज़ू को सहलाने लगी। फैजान भी मेरी तरफ तवज्जो दे रहा था, उसने अपना एक बाज़ू मेरी गर्दन के पीछे से डाला और मेरी दूसरी तरफ के कन्धों पर रख दिया और धीरे-धीरे मेरी बाज़ू को सहलाने लगा।

मैंने अब अपना हाथ फैजान की जांघ पर रख दिया और आहिस्ता-आहिस्ता उसकी जाँघों को सहलाने लगी। मेरा हाथ उसके लण्ड की तरफ बढ़ रहा था। दूसरी तरफ से जाहिरा ने अपना सिर अपने भाई के कंधे पर रखा हुआ था।

जैसे ही मेरा हाथ फैजान के लंड की तरफ बढ़ा.. तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बहुत ही आहिस्ता से मेरे कान में बोला- क्या कर रही हो.. जाहिरा बिल्कुल साथ में बैठी है.. उसने देख लिया.. तो बहुत बुरा लगेगा।

लेकिन मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके लण्ड के उभार पर रखा और उसे मुठ्ठी में लेकर हौले-हौले दबाते हुए बोली- बहुत अँधेरा है.. वो नहीं देख पाएगी।
यह कहते हुए मैंने उसके लण्ड को सहलाना शुरू कर दिया, मेरे हाथ के छूने से उसका लण्ड उसकी पैन्ट के अन्दर अकड़ने लगा।

मैंने उसके चेहरे को अपनी तरफ मोड़ा और फिर अपने होंठ फैजान के होंठों पर रख दिए और आहिस्ता आहिस्ता उसे चूमने लगी। फैजान ने अपनी होंठ पीछे हटाने चाहे.. तो मैंने फ़ौरन ही उसके दोनों होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया और अपनी ज़ुबान भी उसके मुँह के अन्दर डाल दी।

फैजान भी मस्त होता जा रहा था और उसकी मस्ती का अंदाज़ा मुझे उसकी पैन्ट के अन्दर उसके अकड़ते हुए लंड से हो रहा था।
मैंने अपना हाथ हटाया और फैजान के सीने पर रख कर उसे सहलाने लगी। उतनी देर में जाहिरा ने अपना हाथ फैजान के लंड पर रखा और उसे दबाने लगी।

दो दो खूबसूरत और जवान लड़कियों के साथ मस्ती करते हुए फैजान की तो हालत ही पतली हो रही थी।
फैजान ने अपने हाथ से जाहिरा का हाथ पकड़ कर अपने लंड से हटाना चाहा.. तो जाहिरा उसके कान में बोली- भैया क्या बात है.. अपनी बीवी को तो मज़ा दे रहे हो.. लेकिन अपनी बहन को महरूम रख रहे हो?

जैसे ही मैं अपना हाथ नीचे दोबारा उसके लण्ड पर लेकर गई.. तो फ़ौरन ही जाहिरा ने अपना हाथ हटा लिया।
मैंने दोबारा से फैजान के लंड को अपने हाथ में ले लिया और उसे दबाने के बाद उसकी पैन्ट की ज़िप खोलने लगी।

फैजान ने कोई मज़हमत नहीं की.. क्योंकि उसे पता था कि मैं उसकी बात नहीं मानूँगी।
मैंने उसके लण्ड को उसकी पैन्ट की ज़िप के रास्ते बाहर निकाला और अब सिनेमा हाल में अपनी बीवी और बहन के दरम्यान में बैठे हुए फैजान का लंड बिल्कुल नंगा हो चुका था।

फैजान के नंगे लंड को मैंने अपने हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी।
धीरे-धीरे उसका लंड और भी अकड़ता जा रहा था.. दूसरी तरफ से जाहिरा ने भी अपने भाई का एक हाथ पकड़ा और उसे अपने मम्मों पर रखवा लिया और फैजान भी आहिस्ता आहिस्ता अपनी बहन की बिल्कुल स्टिफ और सीधी अकड़ी हुए चूचियों को दबाने लगा। जाहिरा भी आँखें बंद किए हुए अपने भाई से अपनी चूचियों को दबवाने का मज़ा लिए जा रही थी।

फैजान का दूसरा हाथ मैंने खींच कर अपनी चूत के ऊपर रख दिया। फैजान ने फ़ौरन ही मेरी चूत को अपनी मुठ्ठी में ले लिया और उसे पहले तो दबाने लगा और फिर आहिस्ता-आहिस्ता सहलाने लगा।

कुछ ही देर में खुद ही से फैजान ने अपना हाथ मेरी पजामी के अन्दर डाला और फिर मेरी नंगी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

मेरा भी मजे से बुरा हाल होने लगा हुआ था और मेरी आँखें बंद हो रही थीं। मैंने अँधेरे में ही दूसरी तरफ देखा.. तो उधर भी फैजान ने अपना हाथ अपनी बहन की टाइट्स के अन्दर डाला हुआ था और उसकी चूत को सहला रहा था।

हाउ मच लकी फैजान वाज़.. कि एक ही वक़्त में अपनी बीवी और अपनी बहन की चूत को सहला रहा था और उनमें अपनी उंगलियाँ डाल कर दोनों को एक ही वक़्त में एक साथ मजे दे रहा था।
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फैजान की उंगलियाँ मेरी चूत के दाने को सहला रही थीं और मेरी आँखें एक बार फिर से बंद हो चुकी हुई थीं। मैं अपनी मंज़िल के क़रीब पहुँचती जा रही थी और किसी भी वक़्त मेरी चूत पानी छोड़ने वाली थी।

मेरी भी कोशिश थी कि जल्दी से जल्दी मेरी चूत का पानी निकल जाए और मेरा जिस्म रिलेक्स हो जाए। लेकिन अचानक ही कुछ यूँ हुआ कि फिल्म का इंटरवल हो गया और हाल की तमाम लाइट्स जलना शुरू हो गईं।

हम तीनों जल्दी से सीधे होकर बैठ गए। फैजान ने मेरी और जाहिरा की चूत पर से अपना हाथ हटा लिया और फिर जल्दी से अपने लंड को अपनी पैन्ट के अन्दर कर लिया।

हम तीनों ही घबराए हुए थे और फिर कुछ ही देर में मैं मुस्कुरा कर फैजान की तरफ देखने लगी और वो भी मुस्कुरा दिया। फैजान की नज़र बचा कर मैंने जाहिरा को आँख मार दी और मुस्कुरा भी दी।

फैजान थोड़ा शर्मिंदा शर्मिंदा लग रहा था।

कुछ देर बार मैं उठी और टॉयलेट में जाने का कह कर बाहर आ गई.. लेकिन उन दोनों बहन-भाई में से कोई भी मेरे साथ बाहर नहीं आया। जैसे ही मैं टॉयलेट से फारिग होकर बाहर आई और हॉल की तरफ जाने लगी.. तो अचानक से ही किसी ने मुझे पीछे से आवाज़ दी ‘भाभीजान.. भाभी…’

मैंने चौंक कर पीछे मुड़ कर देखा तो हमारे मोहल्ले का लड़का नावेद.. पीछे से मेरी तरफ आ रहा था।
उसे अचानक से देख कर मैं थोड़ा परेशान सी हो गई।

नावेद हमारा बिल्कुल लगे हुए मकान में रहता था.. वो हमारा पड़ोसी था। अभी तो वो पूरी तरह से जवान भी नहीं हुआ था और किसी लड़की की तरह ही कम उमर का लगता था। काफ़ी हद तक शर्मीला और सब लोगों से अलग-थलग रहने वाला लड़का था। मोहल्ले में भी कभी उसको किसी के पास खड़े हुए नहीं देखा था और ना कभी उसकी किसी लड़की तो क्या.. किसी दूसरी लड़की के साथ दोस्ती के बारे में भी नहीं सुना था। वो मोहल्ले का एक बहुत ही प्यारा खुबसूरत.. भोला-भाला.. शर्मीला और शरीफ लड़का था।

नावेद मेरे पास आया और बोला- भाभी आप यहाँ क्या कर रही हो?

मैंने मुस्कुरा कर उसे देखा और बोली- बस वो हम सब भी फिल्म देखने आए हुए थे.. लेकिन तुम यहाँ सिनेमा में इस वक़्त क्या कर रहे हो.. क्या अपने मम्मी-पापा को बता कर आए हो?
मैंने उसे तंग करने की लिए कहा था.. क्यूँ कि उसको घर में और मोहल्ले में अभी तक बिल्कुल एक बच्चे की तरह से ही ट्रीट किया जाता था और था भी वो कुछ ऐसा ही।

हमारे साथ वाले घर में वो अपनी मम्मी-पापा.. भाई और भाभी के साथ रहता था। उसके भाई की शादी थोड़ा अरसा पहली ही हुई थी।

नावेद मुस्कुरा कर बोला- जी भाभी जी.. मैं घर पर सबको बता कर ही आया हूँ कि मैं फिल्म देखने जा रहा हूँ। आइए.. मैं आपको कोल्ड ड्रिंक पिलाता हूँ।
मेरे इन्कार के बावजूद वो भाग कर पास ही की कैन्टीन पर गया और दो कोल्ड ड्रिंक ले आया।
फिर बोला- आइए भाभी.. अन्दर चलते हैं.. इंटरवल खत्म हो चुका है और फिल्म भी शुरू हो चुकी है।
मैंने नावेद से पूछा- तुम्हारे दोस्त कहाँ बैठे हैं?

वो मुस्कुरा कर बोला- भाभी मेरे तो कोई भी दोस्त नहीं हैं। मैं तो अकेला ही फिल्म देखने आया हूँ.. चलो अब मैं आप लोगों के साथ ही बैठ कर देख लूँगा।

अब मैं और नावेद कोल्ड ड्रिंक्स सिप करते हुए अन्दर की तरफ बढ़े.. तो अचानक से मुझे ख्याल आया कि मैं नावेद को फैजान और जाहिरा के पास कैसे ले जा सकती हूँ.. वो पता नहीं अभी किस हालत में बैठे हों।
तो इस तरह से नावेद को सब कुछ पता चल जाएगा और फिर उन दोनों बहन-भाई को भी एंजाय करने का वक़्त नहीं मिलेगा।

हम इतनी देर में हॉल में एंटर हुए थे तो अन्दर फिर से बहुत ही अँधेरा हो गया था।
नावेद बोला- भाभी फैजान भाई कहाँ पर बैठे हैं.. उधर ही चलते हैं।
मैंने उससे कहा- नहीं.. बहुत अँधेरा हो रहा है.. हम दोनों एक साइड पर इधर ही बैठ जाते हैं।

वो बोला- ठीक है भाभी.. फिल्म के बाद उनसे मिल लेंगे और फिर एक साथ ही घर चलेंगे।

वहाँ गैलरी तो पूरी की पूरी खाली पड़ी हुई थी.. मैंने नावेद को लिया और एक तरफ होकर बैठ गई। नावेद भी मेरे साथ बगल वाली कुरसी पर बैठ गया, हम दोनों फिल्म देखते हुए कोल्ड ड्रिंक पीने लगे।

मैंने जो कमीज़ पहनी हुई थी.. वो स्लीबलैस थी और मेरे कन्धों से नीचे से पूरी बाज़ू नंगी थी।

हॉल में स्क्रीन पर चल रही फिल्म की रोशनी में मेरे गोरे-गोरे मुलायम बाज़ू बहुत चमक रहे थे। दूसरी तरफ नावेद ने एक हाफ स्लीव टी-शर्ट पहन रखी थी और साथ में जीन्स पहनी हुई थी।

कुछ ही देर में नावेद का नंगा बाज़ू मुझे अपनी नंगी मुलायम चिकनी बाज़ू से टच होता हुआ महसूस हुआ। मैंने फ़ौरन से कोई भी रिस्पॉन्स नहीं दिया.. क्योंकि मुझे नावेद का नरम सा.. पतला सा.. बाज़ू का टच बहुत अच्छा फील हो रहा था।
अपनी बाज़ू पर उसके जिस्म का टच मुझे सीधे-सीधे मेरे दिमाग पर असर करता हुआ महसूस हो रहा था। मैंने भी अपनी बाज़ू को हटाने की बजाए उसकी बाज़ू की गर्मी को महसूस करना शुरू कर दिया।

नावेद को भी शायद अहसास हो गया था कि उसका बाज़ू मेरी बाज़ू से छू रहा है लेकिन मैं हटा नहीं रही हूँ.. तो वो भी चुप करके बैठा रहा और मेरे जिस्म की गर्मी को महसूस करता रहा।

कुछ ही देर के बाद नावेद अपने होंठों को मेरे गालों की तरफ लाया तो मैं तो जैसे चौंक ही पड़ी और थोड़ा पीछे को हटी लेकिन उसने आगे होकर कहा- भाभी मेरी बात सुनिए..

वो कुछ ऊँचा बोल रहा था.. लेकिन फिल्म की तेज साउंड में उसकी आवाज़ बहुत ही कम आ रही थी।

मैंने अपना कान उसकी तरफ किया.. तो वो बोला- भाभी फैजान भाई परेशान हो रही होंगे कि आप कहाँ रह गई हो.. हम लोग उनको तो बता देते..
मैं- हाँ यह ठीक कहा तुमने.. मैं उसे कॉल कर देती हूँ।

तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं अपना सेल फोन तो अपनी पर्स समेत वहीं जाहिरा को दे आई थी।
मैंने नावेद की तरफ मुँह किया और अपने होंठ उसके कानों के क़रीब ले जाकर बताया कि मेरे पास फोन नहीं है।

नावेद अपने होंठ मेरे कानों के पास लाया और इस बार अपने होंठों को मेरे कानों से छूते हुए बात करने लगा।
‘भाभी.. आप मेरे सेल से कॉल कर लें..’

यह बात मुकम्मल करके जैसे ही वो पीछे हटा.. तो मुझे अहसास हुआ कि जैसे उसने मेरी कान को हौले से चूम लिया हो। लेकिन मैं पक्का नहीं थी.. इसलिए चुप रही। नावेद ने अपना सेल फोन मेरी तरफ बढ़ा दिया.. मैंने उससे सेल फोन लिया और फैजान को कॉल करके पूरे हालाते हाजरा बता दिये।
वो भी शायद खुश ही था कि उसे जाहिरा के साथ एंजाय करने का टाइम मिल गया था।

जिस दौरान मैं फैजान से फोन पर बात कर रही थी.. तो नावेद का बाज़ू तब भी मेरी नंगी चिकनी बाज़ू के साथ छू रहा था।

अब मुझे थोड़ा-थोड़ा अहसास हो रहा था कि यह बच्चा अब इतना भी बच्चा नहीं रहा है.. और उसे औरत के जिस्म से मज़ा लेने का शौक़ शुरू हो गया हुआ है।
मैं धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी.. बिना उसे रोके या बिना उससे दूर हटे हुए।

कॉल करने के बाद भी मैंने उसका सेल फोन उसे नहीं दिया था.. बल्कि अपने हाथ में ही लिया हुआ था। फिर मैं उसकी सेल की ब्राउज़िंग करने लगी।

नावेद ने मुझे रोकना चाहा और अपने होंठ मेरे कानों से छू कर और अपना हाथ मोबाइल की तरफ बढ़ा कर बोला- भाभी मेरा सेल दे दें.. अन्दर ना देखें.. प्लीज़..
मैंने सेल थोड़ा पीछे किया और बोली- क्यों.. इसमें तुम्हारी गर्ल फ्रेंड्स के नंबर्स हैं क्या?
वो चुप कर गया और फिर बोला- नहीं भाभी.. मेरी तो कोई भी गर्ल फ्रेंड नहीं है।

मैंने उसकी सेल फोन की गैलरी खोली.. तो उसमें पड़ी हुई इमेजिज को देखने लगी। बहुत साड़ी मुख्तलिफ फोटोज थीं कुछ उसकी.. कुछ घर वालों की थीं। फिर जैसे ही मैंने वीडियो गैलरी खोली.. तो उसने दोबारा फोन लेना चाहा.. लेकिन मैंने हाथ पीछे को कर लिया और उसका हाथ मेरी सीने के आगे से होकर मोबाइल की तरफ बढ़ा.. तो उसकी बाज़ू से मेरी चूचियों दब गईं।

‘ऊवप्प्स.. अरे अरे.. सीधे होकर बैठो.. क्या कर रहे हो.. देखने तो दो तुमने कौन-कौन सी मूवीज इसमें रखी हुई हैं..’
नावेद- नहीं नहीं.. भाभी कुछ नहीं है इसमें.. प्लीज़ मुझे मेरा सेल फोन दे दें।

यह कहते हुए उसने मेरी एक नंगी बाज़ू पर पहली बार अपना हाथ रखा और फिर मेरी बाज़ू को पकड़ कर दूसरे हाथ से अपने मोबाइल को पकड़ लिया। इस दौरान एक बार फिर से उसकी बाज़ू ने मेरी खूबसूरत तनी हुए चूचियों को मसल सा दिया.. लेकिन इस बार मैंने उसका सेल फोन उसे दे दिया।

नावेद ने अपना सेल फोन अपनी पॉकेट में डाल लिया। मैं भी सीधी होकर फिल्म देखने लगी.. जैसे मैं उसे थोड़ी नाराज़गी दिखा रही हूँ।
नावेद ने दोबारा से अपना हाथ मेरी नंगी बाज़ू पर रखा और आहिस्ता आहिस्ता मेरी नंगी बाज़ू को सहलाते हुए बोला- भाभी प्लीज़.. आप नाराज़ हो रही हैं क्या?

यह कहते हुए उसके हाथ की उंगलियों ने मेरी बाज़ू की गिर्द चक्कर पूरा कर लिया। अब उसके हाथ की उंगलियों की बैक साइड मेरी चूचियों को छू रही थीं और जैसे-जैसे वो अपने हाथ को ऊपर-नीचे को मूव करता.. तो उसके हाथ की उंगलियों की बैक मेरी चूचियों को सहलाते जातीं। मुझे भी इसमें मज़ा आ रहा था.. लेकिन मैं अभी भी खामोश बैठी हुई थी।

वो थोड़ा सा मेरी तरफ दोबारा झुका और अपने होंठों को मेरे नंगे कन्धों पर रख कर बोला- प्लीज़ भाभी नाराज़ ना हों.. मैं आपको सेल फोन दिखा दूँगा.. अभी तो फिल्म खत्म होने वाली है.. लेकिन कल मैं आपके घर आकर आपको दिखाऊँगा.. फिर इसमें से जो दिल चाहे.. देख लीजिएगा।

मैंने अपना चेहरा मोड़ कर उसकी तरफ देखा.. तो उसके होंठ मेरे होंठों के बहुत क़रीब थे और उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। उसकी गरम साँसों की वजह से मेरी चूत में कुछ होने लगा था और मुझे थोड़ा गीलापन महसूस होने लगा था। उसकी पतले गुलाबी होंठों को अपने इतना क़रीब देख कर मेरे होंठों पर भी हल्की सी मुस्कान फैल गई।

आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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