सीधे सीधे चुदाई की बात

मैं उसको एकटक देखे ही जा रहा था और वो भी कभी-कभार मुझको ध्यान से देख रही थी। मेरे मन में डर भी था कि कहीं पुलिस में शिकायत न कर दे कि ये घूर कर देख रहा है.. पर जब वो भी मुझे एकटक देखने लगी तो मेरा हौसला और बढ़ा और मैं उसको एक बार देख कर मुस्कुरा दिया।

शायद उसने भी मेरी स्माइल को देख लिया पर नज़रअंदाज़ कर दिया। जब उसने मुझे पलट कर स्माइल नहीं दी तो मुझे लगा कि वो यूँ ही मेरी ओर देख रही थी।

अब मेरे दिल की धड़कन उस समय तेज होने लगीं.. जब बस के आने के बाद बस में बैठ कर भी मुझे ही देखने लगी।
मैं नीचे खड़ा था.. मेरे मन में एक ख्याल आया कि जब उसके मन में कुछ नहीं था तो मुझको क्यों देख रही थी?
मैंने तुरंत फैसला लिया कि पीछे चल कर एक बार चैक कर लेता हूँ कि क्या ये मेरे नसीब में है।

किसी ने सच ही लिखा है कि किस्मत बहादुरों और हिम्मतियों का ही साथ देती है और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
उस धूप में भी मैं एक भरे बैग के साथ पीछे वाली बस में चढ़ गया.. क्योंकि मेरे फैसले से पहले उसकी बस काफी दूर जा चुकी थी और उम्मीद भी लगभग पचास प्रतिशत थी कि पता नहीं मिलेगी या नहीं..

जैसे ही हम दोनों की बसें.. एक अगले स्टॉप पर रुकीं.. मैं वो भरा बैग लेकर बस के पीछे भागने लगा.. किन्तु बस निकल चुकी थी.. मैंने जोर से चिल्ला कर बस को आवाज़ दी जिसमें वो बैठी थी.. पर बस लगभग तीन सौ मीटर दूर जा चुकी थी।
पर मेरी किस्मत अच्छी थी कि एक बस के सामने से एक आदमी ने हाथ देकर बस को रुकवा दिया कि एक लड़का दौड़ रहा है।

मैं बस में जाकर खड़ा हो गया।
वो औरत मुझे देखने लगी.. मैंने कुछ नहीं किया.. बस यूँ ही खड़ा रहा.. और बाद में उस औरत के बस स्टॉप पर मैं भी उतर गया।

अब वो मुझे नजरंदाज कर रही थी..

वो जैसे ही एक इंस्टिट्यूट में जाने वाली थी मुझे पलट कर देखा और निगाहों से पूछ लिया- क्या है?

मैं बैग के भार की वजह से पूरा पसीना-पसीना हो गया था। मैंने स्माइल करते हुए कहा- मैं केवल आपके लिए ये बड़ा बैग लेकर दौड़ रहा था और मेरी किस्मत अच्छी थी कि एक भले इन्सान ने बस को रुकवा दिया वरना..
उसने मेरी बात काटते हुए कहा- अच्छा.. तो वो तुम थे.. जिसने बस को दौड़ते ही बीच में पकड़ा था?
मैंने ‘हाँ’ में सर हिला दिया.. वो मुस्कुराने लगी.. उसने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया और बाद में कॉल करने को कहा।
मेरे पूछने पर अपना नाम गीता बताया।

दोस्तो, वैसे तो वो पैंतीस की रही होगी.. पर उसने बहुत अच्छे से अपने आपको मेन्टेन किया था और वो मात्र चौबीस-पच्चीस की लग रही थी।

उसका एक गठा हुआ शरीर मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था.. खूबसूरत चूचियाँ.. मस्त बलखाती कमर.. प्यार भरे बड़े और नशीले नैन.. और होंठों पर एक अच्छी सी स्माइल!

खैर.. बाद में कॉल करने पर उसने जवाब दिया कि वो ‘शादीशुदा’ है और दो बच्चे भी हैं.. उसके पति और वो दोनों ही एक कंपनी में काम करते हैं।
कहम दोनों की बातें होने लगीं और वो मेरी सच्चाई और ईमानदारी से मुझ पर फ़िदा हो गई कि मैं उसके साथ केवल सेक्स करना चाहता हूँ और इसी चीज ने मुझे उसके पीछे खींचा था।

चूंकि वो भी एक अच्छे परिवार से थी इसलिए उसने मेरी बात को समझा और उचित तरह से पेश आई, वो बोली- मैंने पहली बार कोई इन्सान देखा कि सेक्स से पहले कोई इंसान किसी औरत से कह दे कि वो उससे प्यार नहीं करता.. वरना लोग झूठ पर झूठ बोल कर लड़की को सेक्स के लिए फंसा लेते हैं।

वो मेरे आत्मविश्वास से अचंभित हो गई थी। वो खुद भी अपनी पसंद पर फूली नहीं समां रही थी।
हम दोनों ने मिलने का फैसला किया और एक पार्क में मिले.. वहाँ हमने केवल चुम्बन किया.. क्योंकि पार्क में और सब करना मना भी था और अनुचित भी था।

मैंने बातों-बातों में उससे पूछा- तुम मेरे साथ कैसे सेक्स करना पसंद करोगी?
तो उसने अपनी माथे की क्लिप एक हाथ से उल्टा करके दिखाते हुए बोली- इस तरह से मतलब वो ऊपर.. और मैं नीचे..
मतलब वो मुझे चोदना चाहती थी।

उसके बाद एक दिन मैंने उसे अपने कमरे पर बुलाया। दिन का समय था बहुत बारिश होने की वज़ह से मौसम भी सुहाना हो गया था।
कमरे में आने के बाद हम दोनों एक-दूसरे के की बाँहों में समा गए, हम दोनों ने एक-दूसरे को बहुत चूमा-चाटी किया और अंग-प्रत्यंगों को चाटने लगे।
किसी पराए मर्द से छुए जाने पर उसकी जवानी और भी निखर गई.. वो और मस्त दिखने लगी.. उसकी चूचियाँ.. मानो मेरे लिए अभिवादन के लिए नंगी हुई हों।
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मैं प्यार करते समय हमेशा अपनी पार्टनर की ख़ुशी का बहुत ध्यान रखता हूँ और ये बात उसको महसूस हो रही थी।
मैंने जल्दबाजी न दिखाते हुए उसके हर एक अंग को पहले निहारा.. फिर चूमा और फिर प्यार से चाटा.. वो मस्ती में झूमने लगी।
वो मेरे प्यार करने की कला पर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।

मैंने उसके पूरे कपड़े निकाल कर नंगा कर दिया। पहले तो वो शर्मा रही थी.. पर बाद में खुल कर मुझे भी नंगा करके मेरे लंड को लेकर अच्छे से चूसने लगी।
मैंने ऊँगली कर-कर के उसे इतना गरम कर दिया कि उसका पानी मेरी हथेली पर आ गया और वो मुझसे लिपट गई।
थोड़ी देर बाद में.. मैंने उसे लिटा दिया और अपना लंड उसकी चूत में डालना शुरू किया।
उसकी चूत अभी भी बहुत कसी हुई थी और मेरा सुपारा मोटा होने की वजह से वो एकदम से उछल पड़ी, उसने मुझे जोर से दबा लिया.. मैंने भी उसके कूल्हों को जोर से पकड़ कर एक तेज झटका मारा और मेरा पूरा लंड उसकी लपलपाती चूत के अन्दर चला गया।

हम दोनों ने मिशनरी पोजीशन में लगभग दस मिनट तक चुदाई की। वो चुदाई से मस्त हो गई थी और इस बात को लगातार कह रही थी- ओह्ह.. राज.. तुम्हारे जैसी चुदाई कोई नहीं कर पाएगा.. और जोर से चोद..

उसकी इस तरह की बातों से मेरी ताकत और बढ़ गई.. अगले ही मिनट हमने चुदाई का आसन बदल लिया और हम दोनों ने डॉगी स्टाइल में एक-दूसरे को चुदाई का मजा देकर रज और वीर्य रसपान कराया।
वो बहुत थक चुकी थी.. क्योंकि मैं एक पहलवान जैसा दिखता हूँ और मेरी अच्छी फिटनेस होने के कारण.. मैंने उसको पूर्ण रूप से संतुष्ट कर दिया।

उसके बाद भी हम दोनों ने कई तरह से चुदाई की और वो मुझसे काफी खुश रहने लगी। कहते हैं कि औरत को सेक्स में भावनाएँ ज्यादा संतुष्ट करती हैं.. न कि फिजीकल ताकत.. और मुझमें तो दोनों का समावेश है।
शायद यह ऊपर वाले की ही मर्जी थी कि मैं उसको पटा कर चोद पाया।
एक बार चुदाई के दौरान उसने एक अच्छी सी लाइन कही थी.. कहीं न कहीं वो लाइनें हमारे और आपके लिए बहुत सही हैं-

जब तक हम बिके न थे..
हमारा कोई न था..
आपने हमें खरीद कर..
हमें अनमोल बना दिया..

मेरी यह कहानी आपको कैसी लगी.. प्लीज मुझे जरूर लिखना। आपके मेल से मुझे और भी कहानी लिखने को हौसला मिलेगा।
थैंक यू वैरी मच।