शादी में दिल खोल कर चुदी -7

तभी बगल से मुझे अरुण जी की आवाज सुनाई दी- इधर कहाँ से आ रही हो?
मैं सकपका गई.. मेरे चेहरे का रंग उड़ने लगा।
जल्दबाजी में मैं बोली- बस ऐसे ही थोड़ा मन घबरा रहा था.. तो इधर टहलने चली आई.. आप?
‘मैं कमरे से आ रहा हूँ..’ अरुण जी बोले।

वे इतना कहते हुए मेरे पास आ गए और बोले- जान बल खा रही हो.. और तुम्हारे बदन से सेक्स की महक आ रही है.. क्या इरादा है?
मैं बोली- अगर मेरे इरादे में अपने इरादे का साथ दें.. तो मैं आप पर मर जाऊँ..
यह कह कर मैं अरुण जी से कस के लिपट गई और बोली- जान.. मेरा तो चुदने का इरादा है..

तभी अरुण जी ने मेरे लहंगे में हाथ डाल कर चूत को पकड़ा और आश्चर्य चकित होकर बोले- तुम बिन पैन्टी के.. और वो भी गीली चूत.. क्या बात है?
मैं बोली- बस इसे लण्ड चाहिए.. यही बात है.. ले चलो और मुझे चोदो.. चाहे कुछ भी हो.. पर मुझे चोद दीजिए।
अरुण जी बोले- अभी नहीं.. कोई आवश्यक काम है.. कल जरूर करूँगा।

यह कहते हुए उन्होंने मेरी चूत में दो उंगलियाँ पेल दीं और दोबारा आगे-पीछे करके बाहर कर लीं.. और बोले- चलो जयमाला का कार्यक्रम खत्म होने वाला है, 12:45 शादी का प्रोग्राम शुरू होगा।
यह कह कर अरुण जी चल दिए।

मैं भी पहुँची और थोड़ी रस्म अदाएगी करके मैं पति को खोजने लगी, पति मिल गए.. वे अपने दोस्तों के साथ थे..
मुझे देखते ही बोले- अरे नेहा.. क्या बात है?
मैं बोली- मेरे सर में दर्द है।
यह बहाना करके मैं कमरे में आराम करने के लिए जाने को बोली।

पति ने खाना पूछा.. मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
पति बोले- ठीक है जाओ आराम करो.. मैं तो नहीं आ पाऊँगा.. मुझे तो शादी के मण्डप में बैठना है.. लेकिन तुम भी कुछ समय के लिए शादी के मण्डप में आ जाना.. नहीं तो हो सकता है कि मेरे दोस्त के घर वालों को बुरा लगे।

मैं ‘हाँ’ बोल कर सीधे कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट कर कुछ पल पहले जो वासना का खेल खेलकर आई थी.. उसे याद करने लगी।
क्या मजेदार लण्ड था.. क्या तगड़ा मर्द था.. पर साले ने मेरे तनबदन में आग लगा कर छोड़ दिया।
बेदर्दी साला.. हरामी.. मेरी चूत की आग मुझे जला रही है..

मेरे तन पर कपड़े भारी लग रहे थे, मैं सारे कपड़े निकाल कर एक लाल रंग का नाईट ड्रेस पहन कर चूत और चूचों को मसलने लगी। तभी दरवाजे पर खटखट की आवाज हुई।
कौन होगा इस वक्त? यही सोचते हुए मैंने थोड़ा दरवाजा खोलकर देखा..

‘अरुण जी, अरे आप इस टाईम?’
वो बोले- तुम्हारी चूत की आग बुझाने चला आया। मुझसे तुम्हारी हालत देखी नहीं गई।
मैं इतना सुनते ही वहीं उनसे लिपट कर बोली- हाँ जान.. मेरी चूत को चुदाई चाहिए.. चोद दो साली को.. अपने लण्ड से.. मेरी जान.. तृप्त कर दो मुझे..

अरुण जी मुझे गोद में उठाकर बेड पर ले जाकर पटक कर मेरे ऊपर छा गए। अब मुझे उस पल का इन्तजार था.. जब उनका लण्ड मेरी चूत में घुस जाए.. क्यूँ कि मुझे फोरप्ले नहीं चाहिए था.. सीधे चुदाई ही चाहिए थी।
शायद अरुण जी को भी जल्दी थी, अरुण ने एक हाथ से मेरे चूचों को भींचा और एक हाथ से मेरी बुर पकड़ कर मसकते हुए बोले- मेरी जान.. आज एक जल्दी वाला राऊंड हो जाए.. क्यूँकि नीचे भी बहुत काम है।

मैं बोली- हाँ.. मुझे भी जल्दी वाला ही चाहिए।
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मेरी नाईटी को ऊपर चढ़ाकर अरुण ने लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर दो बार ऊपर से ही रगड़ कर एक ही झटके से लण्ड को मेरी चूत में पेल दिया और मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं, मैं ‘आहह.. उह्ह.. आहह..’ कर रही थी।
मेरी सिसकियों के साथ अरुण का हाथ मेरे चूचियों को जोर से दबाने लगा, मैं भी अरुण के लण्ड पर चूत उछाल कर चुदने लगी।
धीरे-धीरे अरुण मेरी चूचियाँ मसकते हुए ‘गचा-गच..’ लण्ड मेरी चूत में पेलते जा रहे थे, मेरी चूत से ‘फच-फच’ की आवाजें आती रहीं।
मेरी चूत लण्ड खाती जा रही थी।
‘ऊऊहह.. उईई.. ओम्मम्मम्मा.. आआहह.. और पेलो.. चोदो मुझे.. मारो मेरी चूत.. आह.. सीउई.. मैं गईई..’

मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, मैं कस कर लिपट गई और मेरे बदन और चूत की गरमी पाकर अरुण भी मेरी चूत में अपना पानी डाल कर शान्त हो गए।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और हम दोनों नंगे ही उछल कर बिस्तर से नीचे आ गए।
पता नहीं कौन होगा?
एक अंजान से भय से एक-दूसरे का मुँह देखते हुए बोले- अब क्या करें?

कहानी जारी है
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